16 October 2022 HINDI Murli Today | Brahma Kumaris
Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi
15 October 2022
Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.
Brahma Kumaris
आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन। Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. Source: Official Murli blog to read and listen daily murlis. ➤ पढ़े: मुरली का महत्त्व
रूहानी रॉयल्टी सम्पन्न आत्माओं की निशानियां
♫ मुरली सुने (audio)➤
आज बापदादा चारों ओर के अपने रूहानी रॉयल फैमिली को देख रहे हैं। सारे कल्प में सबसे रॉयल आप आत्मायें ही हो। वैसे हद के राज्य-अधिकारी रॉयल फैमिली बहुत गाये हुए हैं। लेकिन रूहानी रॉयल फैमिली सिर्फ आप ही गाये हुए हो। आप रॉयल फैमिली की आत्मायें आदि काल में भी और अनादि काल में भी और वर्तमान संगमयुग में भी रूहानी रॉयल्टी वाली हो। अनादि काल स्वीट होम में भी आप विशेष आत्माओं की रूहानियत की झलक, चमक सर्व आत्माओं से श्रेष्ठ है। आत्मायें सभी चमकती हुई ज्योतिस्वरूप हैं, फिर भी आपकी रूहानी रॉयल्टी की चमक अलौकिक है। जैसे साकारी दुनिया में आकाश बीच सितारे सब चमकते हुए दिखाई देते हैं, लेकिन कोई विशेष चमकने वाले सितारे स्वत: ही अपनी तरफ आकर्षित करते हैं, लाइट होते हुए भी उन्हों की लाइट विशेष चमकती हुई दिखाई देती है। ऐसे अनादि काल परमधाम में भी आप रूहानी सितारों की चमक अर्थात् रूहानी रॉयल्टी की झलक विशेष अनुभव होती है। इसी प्रकार आदि काल सतयुग अर्थात् स्वर्ग में आप आत्मायें विश्व-राजन् की रॉयल फैमिली के अधिकारी बनते हो। हर एक राजा की रॉयल फैमिली होती है।
लेकिन आप आत्माओं की रॉयल फैमिली की रॉयल्टी वा देव-आत्माओं की रॉयल्टी सारे कल्प में और किसी रॉयल फैमिली की हो नहीं सकती। इतनी श्रेष्ठ रॉयल्टी चैतन्य स्वरूप में प्राप्त की है जो आपके जड़ चित्रों की भी कितनी रॉयल्टी से पूजा होती है। सारे कल्प के अन्दर रॉयल्टी की विधि प्रमाण और कोई भी धर्म-पिता, धर्म-आत्मा या महान् आत्मा की ऐसे पूजा नहीं होती। तो सोचो जब जड़ चित्रों में भी रॉयल्टी की पूजा है तो चैतन्य में कितने रॉयल फैमिली के बनते हो! तो इतने रॉयल हो? वा बन रहे हो? अभी संगम पर भी रूहानी रॉयल्टी अर्थात् फरिश्ता स्वरूप बनते हो, रूहानी बाप की रूहानी रॉयल फैमिली बनते हो। तो अनादि काल, आदि काल और संगमयुगी काल – तीनों काल में नम्बरवन रॉयल बनते हो। ये नशा रहता है कि हम तीनों काल में भी रूहानी रॉयल्टी वाली आत्मायें हैं?
इस रूहानी रॉयल्टी का फाउण्डेशन क्या है? सम्पूर्ण प्योरिटी। सम्पूर्ण प्योरिटी ही रॉयल्टी है। तो अपने से पूछो कि रूहानी रॉयल्टी की झलक आपके रूप से सबको अनुभव होती है? रूहानी रॉयल्टी की फलक हर चरित्र से अनुभव होती है? लौकिक दुनिया में भी अल्पकाल की रॉयल्टी न जानते हुए भी चेहरे से, चलन से अनुभव होती है। तो रूहानी रॉयल्टी गुप्त नहीं रह सकती, वो भी दिखाई देती है। तो हर एक नॉलेज के दर्पण में अपने को देखो कि मेरे चेहरे पर, चलन में रॉयल्टी दिखाई देती है वा साधारण चेहरा, साधारण चलन दिखाई देती है? जैसे सच्चा हीरा अपनी चमक से कहाँ भी छिप नहीं सकता, ऐसे रूहानी चमक वाले, रूहानी रॉयल्टी वाले छिप नहीं सकते।
कई बच्चे अपने को खुश करने के लिए सोचते हैं और कहते भी हैं कि “हम गुप्त आत्मायें हैं, इसलिए हमको कोई पहचानता नहीं है। समय आने पर आपेही मालूम पड़ जायेगा।” गुप्त पुरुषार्थ बहुत अच्छी बात है। लेकिन गुप्त पुरुषार्थी की झलक और फलक वा रूहानी रॉयल्टी की चमक औरों को अनुभव जरूर करायेगी। स्वयं, स्वयं को चाहे कितना भी गुप्त रखें लेकिन उनके बोल, उनका सम्बन्ध-सम्पर्क, रूहानी व्यवहार का प्रभाव उनको प्रत्यक्ष करता है। जिसको साधारण शब्दों में दुनिया वाले बोल और चाल कहते हैं। तो स्वयं, स्वयं को प्रत्यक्ष नहीं करते, गुप्त रखते – यह निर्मानता की विशेषता है। लेकिन दूसरे उनके बोल-चाल से अनुभव अवश्य करेंगे। दूसरे कहें कि यह गुप्त पुरुषार्थी है। अगर स्वयं को कहते हैं कि मैं गुप्त पुरुषार्थी हूँ तो यह गुप्त रखा या प्रत्यक्ष किया? कह रहे हो गुप्त लेकिन बोल रहे हो कि मैं गुप्त पुरुषार्थी हूँ! यह गुप्त हुआ? बहुत पत्र में भी लिखते हैं कि हम गुप्त पुरुषार्थियों को निमित्त बनी हुई दादियां नहीं जानती हैं। फिर यह भी लिखते हैं कि देख लेना आगे हम क्या करते, क्या होता है तो यह गुप्त रहे या प्रत्यक्ष किया? गुप्त पुरुषार्थी अपने को गुप्त रखें यह बहुत अच्छा। लेकिन वर्णन नहीं करो, दूसरा आपको बोले। जो अपने आपको ही कहें उनको क्या कहा जाता है? (मियां मिट्ठू) तो मियां मिट्ठू बनना बहुत सहज है ना!
तो क्या सुना? रूहानी रॉयल्टी। रॉयल आत्मायें सदा ही एक तो भरपूर-सम्पन्न रहती हैं और सम्पन्नता की निशानी वे सदा तृप्त आत्मा रहती हैं। तृप्त आत्मा हर परिस्थिति में, हर आत्माओं के सम्बन्ध-सम्पर्क में आते हुए, जानते हुए सन्तुष्ट रहती है। चाहे कोई कितना भी असन्तुष्ट करने की परिस्थितियां उनके आगे लाये लेकिन सम्पन्न, तृप्त आत्मा असन्तुष्ट करने वाले को भी सन्तुष्टता का गुण सहयोग के रूप में देगी। ऐसी आत्मा के प्रति रहमदिल बन शुभ भावना और शुभ कामना द्वारा उनको भी परिवर्तन करने का प्रयत्न करेंगे। रूहानी रॉयल आत्माओं का यही श्रेष्ठ कर्म है। जैसे स्थूल रॉयल आत्मायें कभी भी छोटी-छोटी बातों में, छोटी-छोटी चीजों में अपनी बुद्धि वा समय नहीं देतीं, देखते भी नहीं देखतीं, सुनते भी नहीं सुनती। ऐसे रूहानी रॉयल आत्मा किसी भी आत्मा की छोटी-छोटी बातों में, जो रॉयल नहीं हैं उनमें अपनी बुद्धि वा समय नहीं देगी। दुनिया वाले कहते हैं कि रॉयल्टी अर्थात् किसी भी हल्की बात में आंख नहीं डूबती। रूहानी रॉयल आत्माओं के मुख से कभी व्यर्थ वा साधारण बोल नहीं निकलेंगे, हर बोल युक्तियुक्त होगा। युक्तियुक्त का अर्थ है व्यर्थ भाव से परे अव्यक्त भाव, अव्यक्त भावना। इसको कहा जाता है रॉयल्टी।
इस समय की रॉयल्टी भविष्य की रॉयल फैमिली में आने के अधिकारी बनाती है। तो चेक करो वृत्ति रॉयल है? वृत्ति रॉयल अर्थात् सदा शुभ भावना, शुभ कामना की वृत्ति से हर एक आत्मा से व्यवहार में आये। रॉयल दृष्टि अर्थात् सदा फरिश्ता रूप से औरों को भी फरिश्ता रूप देखे। कृति अर्थात् कर्म में सदा सुख देना, सुख लेना – इस श्रेष्ठ कर्म के प्रमाण सम्पर्क में आये। ऐसे रॉयल बने हो? कि बनना है? ब्रह्मा बाप के बोल और चाल, चेहरे और चलन की रॉयल्टी को देखा। ऐसे फॉलो ब्रह्मा बाप। साकार को फॉलो करना तो सहज है ना! ब्रह्मा को फालो किया तो शिव बाप को फालो हो ही जायेगा। एक को तो फालो कर सकते हो ना। बाप समान बनने के प्वाइंट्स तो रोज़ सुनते हो! सुनना अर्थात् फालो करना। कॉपी करना तो सहज होता है ना कि कॉपी करना भी नहीं आता?
बापदादा आज मुस्करा रहे थे कि मधुबन में आते हैं तो विशेष गुरूवार के दिन क्या करते हैं? एक तो भोग लगाते हैं। और क्या करते हैं जो सिर्फ मधुबन में ही करते हैं? जीते-जी मरने का भोग। आप सबने जीते-जी मरने का भोग लगा लिया है? बापदादा मुस्करा रहे थे कि ‘जीते-जी मरना’ कहकर मनाना तो सहज है – स्टेज पर बैठ गये, तिलक लगा लिया, मर गये! लेकिन जीते-जी मरना अर्थात् पुराने संस्कारों से मरना। पुराने संस्कार, पुराने संसार की आकर्षण से मरना, यह है जीते जी मरना। भोग लगा दिया, भण्डारी में जमा कर दिया और जीते जी मरना हो गया – यह तो बहुत सहज है। लेकिन मर गये? बापदादा सोच रहे थे कि पुराने संसार और पुराने संस्कार – इससे सदा के लिए संकल्प और स्वप्न में भी मरना मनाना, ऐसा जीते-जी मरना कौन और कब मनायेंगे? अगर स्टेज पर बिठाते हैं तो सब के सब बैठ जाते हैं। स्टेज पर बैठना यह तो कॉमन (आम) बात है। लेकिन बुद्धि को बिठाना इसको कहा जाता है यथार्थ जीते जी मरना मनाना। जब मर गये, मरना अर्थात् परिवर्तन होना। तो ऐसा जीते जी मरना, उसके लिए कितने तैयार होंगे? कि सेन्टर पर जाकर के कहेंगे कि क्या करें, चाहते नहीं थे लेकिन हो गया? यहाँ तो जीते जी मरना मनाकर जाते हैं, फिर जब कोई बात सामने आती है तो जिंदा हो जाते हो। ऐसे नहीं करना।
यादगार में भी दिखाते हैं कि रावण का एक सिर खत्म करते थे तो दूसरा आ जाता था। यहाँ भी एक बात पूरी होती तो दूसरी पैदा हो जाती, फिर समझते – हमने तो रावण को मार दिया, फिर यह कहाँ से आ गया? लेकिन मूल फाउण्डेशन को समाप्त न करने के कारण एक रूप बदल दूसरे रूप में आ जाते हैं। फाउण्डेशन को खत्म कर दो तो रूप बदलकर के माया वार नहीं करेगी, सदा के लिए विदाई ले जायेगी। समझा, क्या बनना है? रूहानी रॉयल्टी वाले। सदैव यह चेक करो कि हर कर्म रूहानी रॉयल परिवार के प्रमाण है? जब 99 परसेन्ट बोल, कर्म और संकल्प रॉयल्टी के हों तब समझो भविष्य में भी रॉयल फैमिली में आयेंगे। ऐसे नहीं सोचना हम तो आ ही जायेंगे। चलो, सम्पन्न नहीं बने हैं तो एक परसेन्ट फ्री देते हैं। लेकिन 99 परसेन्ट रॉयल्टी के संस्कार, बोल और संकल्प नेचुरल होने चाहिए। बार-बार युद्ध नहीं करनी पड़े, नेचुरल संस्कार हो जाएं। अच्छा!
चारों ओर के रूहानी रॉयल्टी वाली रॉयल आत्माओं को, सदा प्योरिटी द्वारा रॉयल्टी अनुभव कराने वाली आत्माओं को, सदा फरिश्ता स्वरूप के संस्कार को प्रैक्टिकल में लाने वाली आत्माओं को, सदा ब्रह्मा बाप को फॉलो करने वाली आत्माओं को, सदा श्रेष्ठ ब्राह्मण संसार में ब्राह्मण संस्कार अनुभव करने वाले रूहानी रॉयल परिवार को बापदादा का याद, प्यार और नमस्ते।
अव्यक्त बापदादा से पर्सनल मुलाकात – सेवा में बिजी रहो तो सहज मायाजीत बन जायेंगे
सदा अपनी शक्तिशाली वृत्ति से वायुमण्डल को परिवर्तन करने वाली विश्व-परिवर्तक आत्माएं हो ना। इस ब्राह्मण जीवन का विशेष आक्यूपेशन क्या है? अपनी वृत्ति से, वाणी से और कर्म से विश्व-परिवर्तन करना। तो सभी ऐसी सेवा करते हो? या टाइम नहीं मिलता है? वाणी के लिए समय नहीं है तो वृत्ति से, मन्सा-सेवा से परिवर्तन करने का समय तो है ना। सेवाधारी आत्माएं सेवा के बिना रह नहीं सकतीं। ब्राह्मण जन्म है ही सेवा के लिए। और जितना सेवा में बिजी रहेंगे उतना ही सहज मायाजीत बनेंगे। तो सेवा का फल भी मिल जाये और मायाजीत भी सहज बन जाय़ें डबल फायदा है ना। जरा भी बुद्धि को फुर्सत मिले तो सेवा में जुट जाओ। वैसे भी पंजाब-हरियाणा में सेवा-भाव ज्यादा है। गुरुद्वारों में जाकर सेवा करते हैं ना। वह है स्थूल सेवा और यह है रूहानी सेवा। सेवा के सिवाए समय गँवाना नहीं है। निरन्तर योगी, निरन्तर सेवाधारी बनो – चाहे संकल्प से करो, चाहे वाणी से, चाहे कर्म से। अपने सम्पर्क से भी सेवा कर सकते हो। चलो, मन्सा-सेवा करना नहीं आवे लेकिन अपने सम्पर्क से, अपनी चलन से भी सेवा कर सकते हो। यह तो सहज है ना। तो चेक करो कि सदा सेवाधारी हैं वा कभी-कभी के सेवाधारी हैं? अगर कभी-कभी के सेवाधारी होंगे तो राज्य-भाग्य भी कभी-कभी मिलेगा। इस समय की सेवा भविष्य प्राप्ति का आधार है। कभी भी कोई यह बहाना नहीं दे सकते कि चाहते थे लेकिन समय नहीं है। कोई कहते हैं शरीर नहीं चलता है, टांगें नहीं चलती हैं, क्या करें? कोई कहते हैं कमर नहीं चलती, कोई कहते हैं टांगे नहीं चलती। लेकिन बुद्धि तो चलती है ना! तो बुद्धि द्वारा सेवा करो। आराम से पलंग पर बैठकर सेवा करो। अगर कमर टेढ़ी है तो लेट जाओ लेकिन सेवा में बिजी रहो।
बिजी रहना ही सहज पुरुषार्थ है। मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। बार-बार माया आवे और भगाओ तो मेहनत होती है, युद्ध होती है। बिजी रहने वाले युद्ध से छूट जाते हैं। बिजी रहेंगे तो माया की हिम्मत नहीं होगी आने की। और जितना अपने को बिजी रखेंगे उतना ही आपकी वृत्ति से वायुमण्डल परिवर्तन होता रहेगा। कोई भी ब्राह्मण आत्मा यह नहीं सोच सकती कि क्या करें, वायुमण्डल बहुत खराब है। खराब है तब तो परिवर्तन करते हो। खराब ही नहीं होगा तो क्या करेंगे? अच्छे को बदलेंगे क्या? तो विश्व-परिवर्तक का काम है बुरे को अच्छा बनाना। तो बुरा तो होगा ही, बुरे को अच्छा बनाने वाले आप हो! विश्व-परिवर्तन का कार्य किया है, तब तो अब तक भी आपका गायन है। शक्तियों के गायन में आपकी कितनी महिमा करते हैं! तो अपनी महिमा सुनते हुए खुशी होती है ना! अच्छा।
वरदान:-
जैसे साकार दुनिया में कहते हैं कि ताजा फल खाओ तो तन्दरूस्त रहेंगे। हेल्दी रहने का साधन फल बताते हैं और आप बच्चे तो हर सेकण्ड प्रत्यक्ष फल खाने वाले हो इसलिए यदि आपसे कोई पूछे कि आपका हालचाल क्या है? तो बोलो – हाल है खुशहाल और चाल है फरिश्तों की, हम हेल्दी भी हैं, वेल्दी भी हैं तो हैपी भी हैं। ब्राह्मण कभी उदास हो नहीं सकते।
स्लोगन:-
सूचनाः- आज मास का तीसरा रविवार है, सायं 6.30 से 7.30 बजे तक सभी भाई बहिनें एक ही शुद्ध संकल्प “परिवर्तन” का लेते हुए विश्व परिवर्तन के महान कार्य में सहयोगी बनें। अनुभव करें कि बापदादा के मस्तक से शक्तिशाली किरणें निकल कर मेरी भृकुटी पर आ रही हैं और वही किरणें मेरे द्वारा अपने निजी संस्कारों का परिवर्तन करते हुए संसार परिवर्तन का कार्य कर रही हैं।
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