15 March 2025 | HINDI Murli Today | Brahma Kumaris
Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi
14 March 2025
Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.
Brahma Kumaris
आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन। Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. Source: Official Murli blog to read and listen daily murlis. ➤ पढ़े: मुरली का महत्त्व
“मीठे बच्चे - अब वापिस घर जाना है इसलिए देह सहित देह के सब सम्बन्धों को भूल एक बाप को याद करो, यही है सच्ची गीता का सार''
प्रश्नः-
तुम बच्चों का सहज पुरूषार्थ क्या है?
उत्तर:-
♫ मुरली सुने (audio)➤
ओम् शान्ति। मीठे-मीठे रूहानी बच्चों प्रति रूहानी बाप फिर से समझा रहे हैं। रोज़-रोज़ समझानी देते हैं। बच्चे तो समझते हैं बरोबर हम गीता का ज्ञान पढ़ रहे हैं – कल्प पहले मुआफिक। परन्तु श्रीकृष्ण नहीं पढ़ाते, परमपिता परमात्मा हमको पढ़ाते हैं। वही हमको फिर से राजयोग सिखा रहे हैं। तुम अभी डायरेक्ट भगवान से सुन रहे हो। भारतवासियों का सारा मदार गीता पर ही है, उस गीता में भी लिखा हुआ है कि रूद्र ज्ञान यज्ञ रचा। यह यज्ञ भी है तो पाठशाला भी है। बाप जब सच्ची गीता आकर सुनाते हैं तो हम सद्गति को पाते हैं। मनुष्य यह नहीं समझते। बाप जो सर्व का सद्गति दाता है, उनको ही याद करना है। गीता भल पढ़ते आये हैं परन्तु रचयिता और रचना को न जानने कारण नेती-नेती करते आये हैं। सच्ची गीता तो सच्चा बाप ही आकर सुनाते हैं, यह है विचार सागर मंथन करने की बातें। जो सर्विस पर होंगे उनका अच्छी रीति ध्यान जायेगा। बाबा ने कहा है – हर चित्र में जरूर लिखा हुआ हो ज्ञान सागर पतित-पावन, गीता ज्ञान दाता परमप्रिय परमपिता, परमशिक्षक, परम सतगुरू शिव भगवानुवाच। यह अक्षर तो जरूर लिखो जो मनुष्य समझ जाएं – त्रिमूर्ति शिव परमात्मा ही गीता का भगवान है, न कि श्रीकृष्ण। ओपीनियन भी इस पर लिखाते हैं। हमारी मुख्य है गीता। बाप दिन प्रतिदिन नई-नई प्वाइंट्स भी देते रहते हैं। ऐसे नहीं आना चाहिए कि आगे क्यों नहीं बाबा ने कहा? ड्रामा में नहीं था। बाबा की मुरली से नई-नई प्वाइंट्स निकालनी चाहिए। लिखते भी हैं राइज़ और फाल। हिन्दी में कहते हैं भारत का उत्थान और पतन। राइज़ अर्थात् कन्स्ट्रक्शन ऑफ डीटी डिनायस्टी, 100 परसेन्ट प्योरिटी, पीस, प्रासपर्टी की स्थापना होती है फिर आधाकल्प बाद फाल होता है। डेविल डिनायस्टी का फाल। राइज़ एण्ड कन्स्ट्रक्शन डीटी डिनायस्टी का होता है। फाल के साथ डिस्ट्रक्शन लिखना है।
तुम्हारा सारा मदार गीता पर है। बाप ही आकर सच्ची गीता सुनाते हैं। बाबा रोज़ इस पर ही समझाते हैं। बच्चे तो आत्मा ही हैं। बाप कहते हैं इन देह के सारे पसारे (विस्तार) को भूल अपने को आत्मा समझो। आत्मा शरीर से अलग हो जाती है तो सब सम्बन्ध भूल जाती है। तो बाप भी कहते हैं देह के सब सम्बन्ध छोड़ अपने को आत्मा समझ मुझ बाप को याद करो। अभी घर जाना है ना! आधाकल्प वापिस जाने के लिए ही इतनी भक्ति आदि की है। सतयुग में तो कोई वापिस जाने का पुरूषार्थ नहीं करते हैं। वहाँ तो सुख ही सुख है। गाते भी हैं दु:ख में सिमरण सब करें, सुख में करे न कोई। परन्तु सुख कब है, दु:ख कब है – यह नहीं समझते हैं। हमारी सब बातें हैं गुप्त। हम भी रूहानी मिलेट्री हैं ना। शिवबाबा की शक्ति सेना हैं। इनका अर्थ भी कोई समझ न सके। देवियों आदि की इतनी पूजा होती है परन्तु कोई की भी बायोग्रॉफी को नहीं जानते हैं। जिनकी पूजा करते हैं, उनकी बायोग्रॉफी को जानना चाहिए ना। ऊंच ते ऊंच शिव की पूजा है फिर ब्रह्मा-विष्णु-शंकर की फिर लक्ष्मी-नारायण, राधे-कृष्ण के मन्दिर हैं। और तो कोई है नहीं। एक ही शिवबाबा पर कितने भिन्न-भिन्न नाम रख मन्दिर बनाये हैं। अभी तुम्हारी बुद्धि में सारा चक्र है। ड्रामा में मुख्य एक्टर्स भी होते हैं ना। वह है हद का ड्रामा। यह है बेहद का ड्रामा। इसमें मुख्य कौन-कौन हैं, यह तुम जानते हो। मनुष्य तो कह देते हैं राम जी संसार बना ही नहीं है। इस पर भी एक शास्त्र बनाया है। अर्थ कुछ भी नहीं समझते।
बाप ने तुम बच्चों को बहुत सहज पुरूषार्थ सिखाया है। सबसे सहज पुरूषार्थ है – तुम बिल्कुल चुप रहो। चुप रहने से ही बाप का वर्सा ले लेंगे। बाप को याद करना है। सृष्टि चक्र को याद करना है। बाप की याद से तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। तुम निरोगी बनेंगे। आयु बड़ी होगी। चक्र को जानने से चक्रवर्ती राजा बनेंगे। अभी हो नर्क के मालिक फिर स्वर्ग के मालिक बनेंगे। स्वर्ग के मालिक तो सब बनते हैं फिर उसमें है पद। जितना आपसमान बनायेंगे उतना ऊंच पद मिलेगा। अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान ही नहीं करेंगे तो रिटर्न में क्या मिलेगा। कोई साहूकार बनते हैं तो कहा जाता है इसने पास्ट जन्म में दान-पुण्य अच्छा किया है। अभी बच्चे जानते हैं रावण राज्य में तो सब पाप ही करते हैं, सबसे पुण्य आत्मा हैं श्री लक्ष्मी-नारायण। हाँ, ब्राह्मणों को भी ऊंच रखेंगे जो सबको ऊंच बनाते हैं। वह तो प्रालब्ध है। यह ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण कुल भूषण श्रीमत पर यह श्रेष्ठ कर्तव्य करते हैं। ब्रह्मा का नाम है मुख्य। त्रिमूर्ति ब्रह्मा कहते हैं ना। अभी तो तुमको हर बात में त्रिमूर्ति शिव कहना पड़े। ब्रह्मा द्वारा स्थापना, शंकर द्वारा विनाश – यह तो गायन है ना। विराट रूप भी बनाते हैं, परन्तु उसमें न शिव को दिखाते हैं, न ब्राह्मणों को दिखाते हैं। यह भी तुम बच्चों को समझाना है। तुम्हारे में भी यथार्थ रीति मुश्किल कोई की बुद्धि में बैठता है। अथाह प्वाइंट्स हैं ना, जिसको टॉपिक्स भी कहते हैं। कितनी टॉपिक्स मिलती हैं। सच्ची गीता भगवान के द्वारा सुनने से मनुष्य से देवता, विश्व के मालिक बन जाते हैं। टॉपिक कितनी अच्छी है। परन्तु समझाने का भी अक्ल चाहिए ना। यह बात क्लीयर लिखनी चाहिए जो मनुष्य समझें और पूछें। कितना सहज है। एक-एक ज्ञान की प्वाइंट्स लाखों-करोड़ों रूपयों की है, जिससे तुम क्या से क्या बनते हो! तुम्हारे कदम-कदम में पदम हैं इसलिए देवताओं को भी पदम का फूल दिखाते हैं। तुम ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मणों का नाम ही गुम कर दिया है। वह ब्राह्मण लोग कच्छ में कुरम, गीता लेते हैं। अभी तुम हो सच्चे ब्राह्मण, तुम्हारे कच्छ (बुद्धि) में है सत्यम्। उनके कच्छ में है कुरम। तो तुमको नशा चढ़ना चाहिए – हम तो श्रीमत पर स्वर्ग बना रहे हैं, बाप राजयोग सिखला रहे हैं। तुम्हारे पास कोई पुस्तक नहीं है। लेकिन यह सिम्पुल बैज ही तुम्हारी सच्ची गीता है, इसमें त्रिमूर्ति का भी चित्र है। तो सारी गीता इसमें आ जाती है। सेकेण्ड में सारी गीता समझाई जाती है। इस बैज द्वारा तुम सेकेण्ड में किसको भी समझा सकते हो। यह तुम्हारा बाप है, इनको याद करने से तुम्हारे पाप विनाश होंगे। ट्रेन में जाते, चलते फिरते कोई भी मिले, तुम उनको अच्छी रीति समझाओ। कृष्णपुरी में तो सब जाना चाहते हैं ना। इस पढ़ाई से यह बन सकते हैं। पढ़ाई से राजाई स्थापन होती है। और धर्म स्थापक कोई राजाई नहीं स्थापन करते। तुम जानते हो – हम राजयोग सीखते हैं भविष्य 21जन्म के लिए। कितनी अच्छी पढ़ाई है। सिर्फ रोज़ एक घण्टा पढ़ो। बस। वह पढ़ाई तो 4-5 घण्टे के लिए होती है। यह एक घण्टा भी बस है। सो भी सवेरे का टाइम ऐसा है जो सबको फ्री है। बाकी कोई बांधेले आदि हैं, सवेरे नहीं आ सकते हैं तो और टाइम रखे हैं। बैज लगा हुआ हो, कहाँ भी जाओ, यह पैगाम देते जाओ। अखबारों में तो बैज डाल नहीं सकते हैं, एक तरफ का डाल सकेंगे। मनुष्य ऐसे तो समझ भी नहीं सकेंगे, सिवाए समझाने। है बहुत सहज। यह धंधा तो कोई भी कर सकते हैं। अच्छा, खुद भल याद न भी करे, दूसरों को याद दिलावें। वह भी अच्छा है। दूसरे को कहेंगे देही-अभिमानी बनो और खुद देह-अभिमानी होंगे तो कुछ न कुछ विकर्म होता रहेगा। पहले-पहले तूफान आते हैं मन्सा में, फिर कर्मणा में आते हैं। मन्सा में बहुत आयेंगे, उस पर फिर बुद्धि से काम लेना है, बुरा काम कभी करना नहीं है। अच्छा कर्म करना है। संकल्प अच्छे भी होते हैं, बुरे भी आते हैं। बुरे को रोकना चाहिए। यह बुद्धि बाप ने दी है। दूसरा कोई समझ न सके। वह तो रांग काम ही करते रहते हैं। तुमको अभी राइट काम ही करना है। अच्छे पुरूषार्थ से राइट काम होता है। बाप तो हर बात बहुत अच्छी रीति समझाते रहते हैं। अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार :
1) यह एक-एक अविनाशी ज्ञान का रत्न लाखों-करोड़ों रूपयों का है, इन्हें दान कर कदम-कदम पर पदमों की कमाई जमा करनी है। आप समान बनाकर ऊंच पद पाना है।
2) विकर्मों से बचने के लिए देही-अभिमानी रहने का पुरूषार्थ करना है। मन्सा में कभी बुरे संकल्प आयें तो उन्हें रोकना है। अच्छे संकल्प चलाने हैं। कर्मेन्द्रियों से कभी कोई उल्टा कर्म नहीं करना है।
वरदान:- |
जो बच्चे सदा बापदादा के संग में रहते हैं – उन्हें संग का रंग ऐसा लगता है जो हर एक के चेहरे पर रूहानियत का प्रभाव दिखाई देता है। जिस रूहानियत में रहने से फरिश्ते पन का मेकप स्वत: हो जाता है। जैसे मेकप करने के बाद कोई कैसा भी हो लेकिन बदल जाता है, मेकप करने से सुन्दर लगता है। यहाँ भी फरिश्ते पन के मेकप से चमकने लगेंगे और यह रूहानी मेकप सर्व का स्नेही बना देगा।
स्लोगन:-
मातेश्वरी जी के अनमोल महावाक्य
“कर्म-बन्धन तोड़ने का पुरुषार्थ”
बहुत मनुष्य प्रश्न पूछते हैं कि हमें क्या करना है, कैसे अपना कर्म-बन्धन तोड़ें? अब हरेक की जन्मपत्री को तो बाप जानता है। बच्चे का काम है एक बार अपनी दिल से बाप को समर्पित हो जाये, अपनी जवाबदारी उनके हाथ में दे देवे। फिर वो हरेक को देख राय देगा कि तुमको क्या करना है, सहारा भी प्रैक्टिकल में लेना है, बाकी ऐसे नहीं सिर्फ सुनते रहो और अपनी मत पर चलते चलो। बाप साकार है तो बच्चे को भी स्थूल में पिता, गुरु, टीचर का सहारा लेना है। ऐसे भी नहीं आज्ञा मिले और पालन न कर सके तो और ही अकल्याण हो जाये। तो फरमान पालन करना भी हिम्मत चाहिए, चलाने वाला तो रमज़बाज़ है, वो जानता है इसका कल्याण किसमें है, तो वह ऐसे डायरेक्शन देगा कि कैसे कर्म-बन्धन तोड़ो। कोई को फिर यह ख्याल में नहीं आना चाहिए कि फिर बच्चों आदि का क्या हाल होगा? इसमें कोई घरबार छोड़ने की बात नहीं है, यह तो थोड़े से बच्चों का इस ड्रामा में पार्ट था तोड़ने का, अगर यह पार्ट न होता तो तुम्हारी जो अब सेवा हो रही है फिर कौन करे? अब तो छोड़ने की बात हीं नहीं है, मगर परमात्मा का हो जाना है, डरो नहीं, हिम्मत रखो। बाकी जो डरते हैं वो न खुद खुशी में रहते हैं, न फिर बाप के मददगार बनते हैं। यहाँ तो उनके साथ पूरा मददगार बनना है, जब जीते जी मरेंगे तब ही मददगार बन सकते हैं। कहाँ भी अटक पड़ेंगे तो फिर वो मदद देकर पार करेगा। तो बाबा के साथ मन्सा-वाचा-कर्मणा मददगार होना है, इसमें जरा भी मोह की रग होगी तो वो गिरा देगी। तो हिम्मत रखो आगे बढ़ो। कहाँ हिम्मत में कमजोर होते हैं तो मूँझ पड़ते हैं इसलिए अपनी बुद्धि को बिल्कुल पवित्र बनाना है, विकार का जरा भी अंश न हो, मंजिल कोई दूर है क्या! मगर चढ़ाई थोड़ी टेढी-बांकी है, लेकिन समर्थ का सहारा लेंगे तो न डर है, न थकावट है। अच्छा। ओम् शान्ति।
अव्यक्त इशारे – सत्यता और सभ्यता रूपी क्लचर को अपनाओ
आपका बोल और स्वरूप दोनों साथ-साथ हों – बोल स्पष्ट भी हों, उसमें स्नेह भी हो, नम्रता मधुरता और सत्यता भी हो लेकिन स्वरूप की नम्रता भी हो, इसी रूप से बाप को प्रत्यक्ष कर सकेंगे। निर्भय हो लेकिन बोल मर्यादा के अन्दर हों, फिर आपके शब्द कड़े नहीं, मीठे लगेंगे।
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