14 November 2021 HINDI Murli Today | Brahma Kumaris

14 November 2021 HINDI Murli Today | Brahma Kumaris

Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi

13 November 2021

Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.

Brahma Kumaris

आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन।  Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. SourceOfficial Murli blog to read and listen daily murlis. पढ़े: मुरली का महत्त्व

वरदाता को राज़ी करने की सहज विधि

♫ मुरली सुने (audio)➤

आज वरदाता बाप अपने वरदानी बच्चों को देख हर्षित हो रहे हैं। वरदाता के बच्चे वरदानी सब बच्चे हैं लेकिन नम्बरवार हैं। वरदाता सभी बच्चों को वरदानों की झोली भरकरके देते हैं फिर नम्बर क्यों? वरदाता देने में नम्बरवार नहीं देते हैं क्योंकि वरदाता के पास अखुट वरदान हैं जो जितना लेने चाहे खुला भण्डार है। ऐसे खुले भण्डार से कई बच्चे सर्व वरदानों से सम्पन्न बनते हैं और कोई बच्चे यथा-शक्ति तथा सम्पन्न बनते हैं। सबसे ज्यादा झोली भरकर देने में भोलानाथ ‘वरदाता’ रूप ही है। पहले भी सुनाया है – दाता, भाग्य विधाता और वरदाता। तीनों में से वरदाता रूप से भोले भगवान कहा जाता है क्योंकि वरदाता बहुत जल्दी राज़ी हो जाते हैं। सिर्फ राज़ी करने की विधि जान जाते हो तो सिद्धि अर्थात् वरदानों की झोली से सम्पन्न रहना बहुत सहज है। सबसे सहज विधि वरदाता को राज़ी करने की जानते हो? उनको सबसे प्रिय कौन लगता है? उनको ‘एक’ शब्द सबसे प्रिय लगता, जो बच्चे एकव्रता आदि से अब तक हैं वही वरदाता को अति प्रिय हैं।

एकव्रता अर्थात् सिर्फ पतिव्रता नहीं, सर्व सम्बन्ध से एकव्रता। संकल्प में भी, स्वप्न में भी दूजा-व्रता न हो। एक-व्रता अर्थात् सदा वृत्ति में एक हो। दूसरा – सदा मेरा तो एक दूसरा न कोई – यह पक्का व्रत लिया हुआ हो। कई बच्चे एकव्रता बनने में बड़ी चतुराई करते हैं। कौन सी चतुराई? बाप को ही मीठी बातें सुनाते कि बाप, शिक्षक, सतगुरू का मुख्य सम्बन्ध तो आपके साथ है लेकिन साकार शरीरधारी होने के कारण, साकारी दुनिया में चलने के कारण कोई साकारी सखा वा सखी सहयोग के लिए, सेवा के लिए, राय-सलाह के लिए साकार में जरूर चाहिए क्योंकि बाप तो निराकार और आकार है इसलिए सेवा साथी है। और तो कुछ नहीं है क्योंकि निराकारी, आकारी मिलन मनाने के लिए स्वयं को भी आकारी, निराकारी स्थिति में स्थित होना पड़ता है। वह कभी-कभी मुश्किल लगता है इसलिए समय के लिए साकार साथी चाहिए। जब दिमाग में बहुत बातें भर जायेंगी तो क्या करेंगे? सुनने वाला तो चाहिए ना! एकव्रता आत्मा के पास ऐसी बोझ की बातें इकट्ठी नहीं होती जो सुनानी पड़े। एक तरफ बाप को बहुत खुश करते हो – बस, आप ही सदैव मेरे साथ रहते हो, सदा बाप मेरे साथ है, साथी है फिर उस समय कहाँ चला जाता है? बाप चला जाता या आप किनारे हो जाते हो? हर समय साथ है वा 6-8 घण्टा साथ है। वायदा क्या है? साथ हैं, साथ रहेंगे, साथ चलेंगे, यह वायदा पक्का है ना? ब्रह्मा बाप से तो इतना वायदा है कि सारे चक्र में साथ पार्ट बजायेंगे! जब ऐसा वायदा है, फिर भी साकार में कोई विशेष साथी चाहिए?

बापदादा के पास सबकी जन्मपत्री रहती है। बाप के आगे तो कहेंगे आप ही साथी हो। जब परिस्थिति आती है फिर बाप को ही समझाने लगते कि यह तो होगा ही, इतना तो चाहिए ही… इसको एकव्रता कहेंगे? साथी हैं तो सब साथी हैं, कोई विशेष नहीं। इसको कहते हैं एकव्रता। तो वरदाता को ऐसे बच्चे अति प्रिय हैं। ऐसे बच्चों की हर समय की सर्व जिम्मेवारियां वरदाता बाप स्वयं अपने ऊपर उठाते हैं। ऐसी वरदानी आत्मायें हर समय, हर परिस्थिति में वरदानों के प्राप्ति सम्पन्न स्थिति अनुभव करती हैं और सदा सहज पार करती हैं और पास विद आनर बनती हैं। जब वरदाता सर्व जिम्मेवारियां उठाने के लिए एवररेडी हैं फिर अपने ऊपर जिम्मेवारी का बोझ क्यों उठाते हो? अपनी जिम्मेवारी समझते हो तब परिस्थिति में पास विद आनर नहीं बनते लेकिन धक्के से पास होते हो। किसी के साथ का धक्का चाहिए। अगर बैटरी फुल चार्ज नहीं होती तो कार को धक्के से चलाते हैं ना। तो धक्का अकेला तो नहीं देंगे, साथ चाहिए इसलिए वरदानी नम्बरवार बन जाते हैं। तो वरदाता को एक शब्द प्यारा है – ‘एकव्रता’। एक बल एक भरोसा। एक का भरोसा दूजे का बल – ऐसा नहीं कहा जाता। एक बल एक भरोसा ही गाया हुआ है। साथ-साथ एकमत, न मनमत न परमत, एकरस – न और कोई व्यक्ति, न वैभव का रस। ऐसे ही एकता, एकान्त-प्रिय। तो एक शब्द ही प्रिय हुआ ना। ऐसे और भी निकालना।

बाप इतना भोला है जो एक में ही राज़ी हो जाता है। ऐसे भोलानाथ वरदाता को राज़ी करना क्या मुश्किल लगता है? सिर्फ एक का पाठ पक्का करो। 5-7 में जाने की जरूरत नहीं है। वरदाता को राज़ी करने वाले अमृतवेले से रात तक हर दिनचर्या के कर्म में वरदानों से ही पलते हैं, चलते हैं और उड़ते हैं। ऐसे वरदानी आत्माओं को कभी कोई मुश्किल चाहे मन से, चाहे सम्बन्ध-सम्पर्क से अनुभव नहीं होगी। हर संकल्प में, हर सेकण्ड, हर कर्म में, हर कदम में वरदाता और वरदान सदा समीप, सम्मुख साकार रूप में अनुभव होगा। वह ऐसे अनुभव करेगा जैसे साकार में बात कर रहे हैं। उनको मेहनत अनुभव नहीं होगी। ऐसी वरदानी आत्मा को यह विशेष वरदान प्राप्त होता है जो वह निराकार, आकार को जैसे साकार अनुभव कर सकते हैं! ऐसे वरदानियों के आगे हजूर सदा हाजिर है, सुना? वरदाता को राज़ी करने की विधि और सिद्धि – सेकण्ड में कर सकते हो? सिर्फ एक में दो नहीं मिलाना, बस। फिर सुनायेंगे एक के पाठ का विस्तार।

बापदादा के पास सभी बच्चों के चरित्र भी हैं तो चतुराई भी है। रिजल्ट तो सारी बापदादा के पास है ना। चतुराई की बातें भी बहुत इकट्ठी हैं। नई-नई बातें सुनाते हैं। सुनते रहते हैं। सिर्फ बापदादा नाम नहीं लेते हैं इसलिए समझते हैं बाप को मालूम नहीं पड़ता। फिर भी चांस देते रहते हैं। बाप समझते हैं बच्चे रीयल समझ से भोले हैं। तो ऐसे भोले नहीं बनो। अच्छा।

विदेश का भी चक्र लगाकर बच्चे पहुंच गये हैं (जानकी दादी, डा.निर्मला और जगदीश भाई विदेश का चक्र लगाकर आये हैं)

अच्छी रिजल्ट है और सदा ही सेवा की सफलता में वृद्धि होनी ही है। यू.एन. का भी विशेष सेवा के कार्य में सम्बन्ध है। नाम उन्हों का, काम तो आपका हो ही रहा है। आत्माओं को सहज सन्देश पहुंच जाए – यह काम आपका हो रहा है। तो वहाँ का भी प्रोग्राम अच्छा हुआ। रसिया भी रहा हुआ था, उनको भी आना ही था। बापदादा ने तो पहले ही सफलता का यादप्यार दे दिया था। भारत के एम्बेसडर बनकर गये तो भारत का नाम बाला हुआ ना! चक्रवर्ती बन चक्र लगाने में मजा आता है ना! कितनी दुआयें जमा करके आये! निर्मल आश्रम (डा.निर्मला) भी चक्र ही लगाती रहती है। वैसे तो सब सेवा में लगे हुए हैं लेकिन समय के प्रमाण विशेष सेवा होती तो विशेष सेवा की मुबारक देते हैं। सेवा के बिना तो रह नहीं सकते हो। लण्डन, अमेरिका, अफ्रीका और आस्ट्रेलिया – आप लोगों ने यह 4 ज़ोन बनाये हैं ना। पांचवा है भारत। भारत वालों को पहले चांस मिला है मिलने का। जो करके आये और जो आगे करेंगे – सब अच्छा है और सदा ही अच्छा रहेगा। चारों ही ज़ोन के सभी डबल विदेशी बच्चों को आज विशेष यादप्यार दे रहे हैं। रसिया भी एशिया में आ जाता है। सेवा का रेसपान्ड अच्छा मिल रहा है। हिम्मत भी अच्छी है तो मदद भी मिल रही है और मिलती रहेगी। भारत में भी अभी विशाल प्रोग्राम करने का प्लैन बना रहे हैं। एक एक को विशेषता और सेवा की लगन में मगन रहने की मुबारक और यादप्यार। अच्छा।

सर्व बच्चों को सदा सहज चलने की सिद्धि को प्राप्त करने की सहज युक्ति जो सुनाई, इसी विधि को सदा प्रयोग में लाने वाले प्रयोगी और सहजयोगी, सदा वरदाता के वरदानों से सम्पन्न वरदानी बच्चों को, सदा एक का पाठ हर कदम में साकार स्वरूप में लाने वाले, सदा निराकार आकार बाप को साथ की अनुभूति से सदा साकार स्वरूप में हाजिर अनुभव करने वाले, ऐसे सदा वरदानी बच्चों को बापदादा का दाता, भाग्य विधाता और वरदाता का यादप्यार और नमस्ते।

दादी जानकी से:- जितना सभी को बाप का प्यार बांटते हैं उतना ही और प्यार का भण्डार बढ़ता जाता है। जैसे हर समय प्यार की बरसात हो रही है – ऐसे ही अनुभव होता है ना! एक कदम में प्यार दो और बार-बार प्यार लो। सबको प्यार ही चाहिए। ज्ञान तो सुन लिया है ना! तो एक ऐसे बच्चे हैं जिनको प्यार चाहिए और दूसरे हैं जिनको शक्ति चाहिए। तो क्या सेवा की? यही सेवा की ना – किसको प्यार दिया बाप द्वारा और किसको शक्ति बाप से दिलाई। ज्ञान के राज़ों को तो जान गये हैं। अभी चाहिए उन्हों में उमंग-उत्साह सदा बना रहे, वह नीचे ऊपर होता है। फिर भी बापदादा डबल विदेशी बच्चों को आफरीन (शाबास) देते हैं – भिन्न धर्म में चले तो गये ना! भिन्न देश, भिन्न रस्म-फिर भी चल रहे हैं और कई तो वारिस भी निकले हैं। अच्छा!

महाराष्ट्र – पूना ग्रुप :- सभी महान आत्मायें बन गये ना! पहले सिर्फ अपने को महाराष्ट्र निवासी कहलाते थे, अभी स्वयं महान् बन गये। बाप ने आकर हर एक बच्चे को महान् बना दिया। विश्व में आपसे महान् और कोई है? सबसे नीचे भारतवासी गिरे और उसमें भी जो 84जन्म लेने वाली ब्राह्मण आत्मायें हैं, वह नीचे गिरी। तो जितना नीचे गिरे उतना अभी ऊंचा उठ गये इसलिए कहते हैं ब्राह्मण अर्थात् ऊंची चोटी। जो ऊंचाई का स्थान होता है उसको चोटी कहा जाता है। पहाड़ों की ऊंचाई को भी चोटी कहते हैं तो यह खुशी है कि क्या से क्या बन गये। पाण्डवों को ज्यादा खुशी है या शक्तियों को? (शक्तियों को) क्योंकि शक्तियों को बहुत नीचे गिरा दिया था। द्वापर से लेकर पुरुष तन ने ही कोई न कोई पद प्राप्त किया। धर्म में भी अभी-अभी फीमेल्स भी महामंडलेश्वरियां बनी हैं। नहीं तो महामंडलेश्वर ही गाये जाते थे। जब से बाप ने माताओं को आगे किया है तब से उन्होंने भी 2-4 मंडलेश्वरियां रख दी हैं। नहीं तो धर्म के कार्य में माताओं को कभी भी आसन नहीं देते थे। इसीलिए माताओं को ज्यादा खुशी है और पाण्डवों का भी गायन है। पाण्डवों ने जीत प्राप्त कर ली। नाम पाण्डवों का आता है लेकिन पूजन ज्यादा शक्तियों का होता है। पहले गुरूओं का कर चुके हैं, अभी शक्तियों का करते हैं। जागरण गणेश वा हनूमान का नहीं करते, शक्तियों का करते हैं क्योंकि शक्तियां अभी खुद जग गई हैं। तो शक्तियाँ अपने शक्ति रूप में रहती हैं ना! या कभी-कभी कमजोर बन जाती हैं! माताओं को देह के सम्बन्ध का मोह कमजोर करता है। थोड़ा-थोड़ा बाल बच्चों में, पोत्रे-धोत्रों में मोह होता है। और पाण्डवों को कौन सी बात कमजोर करती हैं? पाण्डवों में अहंकार के कारण क्रोध जल्दी आता है। लेकिन अब तो जीत हो गई ना! अब तो शान्त स्वरूप पाण्डव हो गये और मातायें निर्मोही हो गई। दुनिया कहे कि माताओं में मोह होता है और आप चैलेन्ज करो कि हम मातायें निर्मोही हैं। ऐसे ही पाण्डव भी शान्त स्वरूप, कोई भी आये तो यह कमाल के गीत गाये कि यह सब इतने शान्त स्वरूप बन गये हैं जो क्रोध का अंश मात्र भी दिखाई नहीं देता। नैन-चैन तक भी नहीं आवे। कई ऐसे कहते हैं – क्रोध तो नहीं है, थोड़ा जोश आता है। तो वह क्या हुआ! वह भी क्रोध का ही अंश हुआ ना। तो पाण्डव विजयी हैं अर्थात् बिल्कुल संकल्प में भी शान्त, बोल और कर्म में भी शान्त स्वरूप। मातायें सारे विश्व के आगे अपना निर्मोही रूप दिखाओ। लोग तो समझते हैं यह असम्भव है और आप कहते हो-सम्भव भी है और बहुत सहज भी है। लक्ष्य रखो तो लक्षण जरूर आयेंगे। जैसी स्मृति वैसी स्थिति हो जायेगी। धरनी में मात-पिता के प्यार का पानी पड़ा हुआ है, इसलिए फल सहज निकल रहा है। अच्छा है। बापदादा सेवा और स्व-उन्नति दोनों को देखकरके खुश होते हैं सिर्फ सेवा को देख करके नहीं। जितनी सेवा में वृद्धि उतनी स्वउन्नति में भी – दोनों साथ-साथ हों। कोई इच्छा नहीं, जबआपेही सब मिलता है तो इच्छा क्या रखें! बिना कहे बिना मांगे इतना मिल गया है जो मांगने की इच्छा की आवश्यकता नहीं। तो ऐसे सन्तुष्ट हो ना! यही टाइटल अपना स्मृति में रखना कि सन्तुष्ट हैं और सर्व को सन्तुष्ट कर प्राप्ति स्वरूप बनाने वाले हैं। तो सन्तुष्ट रहना और सन्तुष्ट करना – यह है विशेष वरदान। असन्तुष्टता का नाम निशान नहीं। अच्छा।

गुजरात ग्रुप :- ब्राह्मण जीवन में लास्ट जन्म होने के कारण शरीर से चाहे कितने भी कमजोर हैं या बीमार हैं, चल सकते हैं वा नहीं भी चल सकते हैं लेकिन मन की उड़ान के लिए पंख दे दिये हैं, शरीर से चल नहीं सकते लेकिन मन से उड़ तो सकते हैं ना! क्योंकि बापदादा जानते हैं कि 63 जन्म भटकते-भटकते कमजोर हो गये। शरीर तमोगुणी हो गये हैं। तो कमजोर हो गये, बीमार हो गये। लेकिन मन सबका दुरुश्त है। शरीर में तन्दुरुश्त नहीं भी लेकिन मन में तो बीमार कोई नहीं है ना। मन सबका पंखों से उड़ने वाला है। पावरफुल मन की निशानी – सेकेण्ड में जहाँ चाहें वहाँ पहुंच जायें। ऐसे पावरफुल हो या कभी कमजोर हो जाते हो। मन को जब उड़ना आ गया, प्रैक्टिस हो गई तो सेकेण्ड में जहाँ चाहे वहाँ पहुंच सकता है। अभी-अभी साकार वतन में, अभी-अभी परमधाम में एक सेकण्ड की रफ्तार है। तो ऐसी तेज रफ्तार है? सदा अपने भाग्य के गीत गाते उड़ते रहो। सदैव अमृतवेले अपने भाग्य की कोई-न-कोई बात स्मृति में रखो, अनेक प्रकार के भाग्य मिले हैं, अनेक प्रकार की प्राप्तियां हुई हैं, कभी किसी प्राप्ति को सामने रखो, कभी किसी प्राप्ति को रखो तो बहुत रमणीक पुरुषार्थ रहेगा। कभी पुरुषार्थ में अपने को बोर नहीं समझेंगे, नवीनता अनुभव करेंगे। नहीं तो कई बच्चे कहते हैं। बस, आत्मा हूँ, शिवबाबा का बच्चा हूँ, यह तो सदैव कहते ही रहते हैं। लेकिन मुझ आत्मा को बाप ने क्या-क्या भाग्य दिया है, क्या-क्या टाइटल दिये हैं, क्या-क्या खजाना दिया है, ऐसे भिन्न-भिन्न स्मृतियां रखो। लिस्ट निकालो, स्मृतियों की कितनी बड़ी लिस्ट है! कभी खजानों की स्मृतियां रखो, कभी शक्तियों की स्मृतियां रखो, कभी गुणों की रखो, कभी ज्ञान की रखो, कभी टाइटल की रखो। वैरायटी में सदैव मनोरंजन हो जाता है। कभी भी मनोरंजन का प्रोग्राम होगा तो वैरायटी डांस होगी, वैरायटी खाना होगा, वैरायटी लोगों से मिलना होगा। तब तो मनोरंजन होता है ना! तो यह भी सदा मनोरंजन में रहने के लिए वैरायटी प्रकार की बातें सोचो। अच्छा!

वरदान:-

पुरुषार्थ का मुख्य आधार कैचिंग पावर है। जैसे साइंसदान बहुत पहले के साउण्ड को कैच करते हैं ऐसे आप साइलेन्स की शक्ति से अपने आदि दैवी संस्कार कैच करो, इसके लिए सदैव यही स्मृति रहे कि मैं यही था और फिर बन रहा हूँ। जितना उन संस्कारों को कैच करेंगे उतना उसका स्वरूप बनेंगे। 5 हजार वर्ष की बात इतनी स्पष्ट अनुभव में आये जैसे कल की बात है। अपनी स्मृति को इतना श्रेष्ठ और स्पष्ट बनाओ तब शक्तिशाली बनेंगे।

स्लोगन:-

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