14 July 2024 | HINDI Murli Today | Brahma Kumaris
Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi
13 July 2024
Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.
Brahma Kumaris
आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन। Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. Source: Official Murli blog to read and listen daily murlis. ➤ पढ़े: मुरली का महत्त्व
“बाप समान बनने के लिए दो बातों की दृढ़ता रखो - स्वमान में रहना है और सबको सम्मान देना है''
♫ मुरली सुने (audio)➤
आज बापदादा अपने प्यारे ते प्यारे, मीठे ते मीठे छोटे से ब्राह्मण परिवार कहो, ब्राह्मण संसार कहो, उसको ही देख रहे हैं। यह छोटा सा संसार कितना न्यारा भी है तो प्यारा भी है। क्यों प्यारा है? क्योंकि इस ब्राह्मण संसार की हर आत्मा विशेष आत्मा है। देखने में तो अति साधारण आत्मायें आती हैं लेकिन सबसे बड़े से बड़ी विशेषता हर एक ब्राह्मण आत्मा की यही है जो परम आत्मा को अपने दिव्य बुद्धि द्वारा पहचान लिया है। चाहे 90 वर्ष के बुजुर्ग हैं, बीमार हैं लेकिन परमात्मा को पहचानने की दिव्य बुद्धि, दिव्य नेत्र सिवाए ब्राह्मण आत्माओं के नामीग्रामी वी.वी.आई.पी. में भी नहीं है। यह सभी मातायें क्यों यहाँ पहुँची हैं? टांगे चलें, नहीं चलें लेकिन पहुँच तो गई हैं। तो पहचाना है तब तो पहुँची हैं ना! यह पहचानने का नेत्र, पहचानने की बुद्धि सिवाए आपके किसी को भी प्राप्त नहीं हो सकती। सभी मातायें यह गीत गाती हो ना – हमने देखा, हमने जाना…। माताओं को यह नशा है? हाथ हिला रही हैं, बहुत अच्छा। पाण्डवों को नशा है? एक दो से आगे हैं। न शक्तियों में कमी है, न पाण्डवों में कमी है। लेकिन बापदादा को यही खुशी है कि यह छोटा सा संसार कितना प्यारा है। जब आपस में भी मिलते हो तो कितनी प्यारी आत्मायें लगती हैं!
बापदादा देश-विदेश की सर्व आत्माओं द्वारा आज यही दिल का गीत सुन रहे थे – बाबा, मीठा बाबा हमने जाना, हमने देखा। यह गीत गाते-गाते चारों ओर के बच्चे एक तरफ खुशी में, दूसरे तरफ स्नेह के सागर में समाये हुए थे। जो भी चारों ओर के यहाँ साकार में नहीं हैं लेकिन दिल से, दृष्टि से बापदादा के सामने हैं और बापदादा भी साकार में दूर बैठे हुए बच्चों को सम्मुख ही देख रहे हैं। चाहे देश है, चाहे विदेश है, बापदादा कितने में पहुँच सकते हैं? चक्कर लगा सकते हैं? बापदादा चारों ओर के बच्चों को रिटर्न में अरब-खरब से भी ज्यादा याद-प्यार दे रहे हैं। चारों ओर के बच्चों को देख-देख सबके दिलों में एक ही संकल्प देख रहे हैं, सभी नयनों से यही कह रहे हैं कि हमें परमात्म 6 मास का होमवर्क याद है। आप सबको भी याद है ना? भूल तो नहीं गया? पाण्डवों को याद है? अच्छी तरह से याद है? बापदादा बार-बार क्यों याद दिलाता है? कारण? समय को देख रहे हो, ब्राह्मण आत्मायें स्वयं को भी देख रही हैं। मन जवान होता जाता है, तन बुजुर्ग होता जाता है। समय और आत्माओं की पुकार अच्छी तरह से सुनने में आ रही है! तो बापदादा देख रहे थे – आत्माओं की पुकार दिल में बढ़ती जा रही है, हे सुख-देवा, हे शान्ति-देवा, हे सच्ची खुशी-देवा थोड़ी सी अंचली हमें भी दे दो। सोचो, पुकार करने वालों की लाइन कितनी बड़ी है! आप सभी सोचते हो – बाप की प्रत्यक्षता जल्दी से जल्दी हो जाए लेकिन प्रत्यक्षता किस कारण से रुकी हुई है? जब आप सभी भी यही संकल्प करते हो और दिल की चाहना भी रखते हो, मुख से कहते भी हो – हमें बाप समान बनना है। बनना है ना? है बनना? अच्छा, फिर बनते क्यों नहीं हो? बापदादा ने बाप समान बनने को कहा है, क्या बनना है, कैसे बनना है, समान शब्द में यह दोनों क्वेश्चन उठ नहीं सकते। क्या बनना है? उत्तर है ना – बाप समान बनना है। कैसे बनना है?
फॉलो फादर – फुटस्टेप फादर-मदर। निराकार बाप, साकार ब्रह्मा मदर। क्या फॉलो करना भी नहीं आता? फॉलो तो आज-कल के जमाने में अंधे भी कर लेते हैं। देखा है, आजकल वह लकड़ी के आवाज पर, लकड़ी को फॉलो करते-करते कहाँ के कहाँ पहुँच जाते हैं। आप तो मास्टर सर्वशक्तिवान हैं, त्रिनेत्री हैं, त्रिकालदर्शी हैं। फॉलो करना आपके लिए क्या बड़ी बात है! बड़ी बात है क्या? बोलो बड़ी बात है? है नहीं लेकिन हो जाती है। बापदादा सब जगह चक्कर लगाते हैं, सेन्टर पर भी, प्रवृत्ति में भी। तो बापदादा ने देखा है, हर एक ब्राह्मण आत्मा के पास, हर एक सेन्टर पर, हर एक की प्रवृत्ति के स्थान पर जहाँ-तहाँ ब्रह्मा बाप के चित्र बहुत रखे हुए हैं। चाहे अव्यक्त बाप के, चाहे ब्रह्मा बाप के, जहाँ तहाँ चित्र ही चित्र दिखाई देते हैं। अच्छी बात है। लेकिन बापदादा यह सोचते हैं कि चित्र को देख चरित्र तो याद आते हैं ना! या सिर्फ चित्र ही देखते हो? चित्र को देख प्रेरणा तो मिलती है ना! तो बापदादा और तो कुछ कहते नहीं हैं सिर्फ एक ही शब्द कहते हैं – फॉलो करो, बस। सोचो नहीं, ज्यादा प्लैन नहीं बनाओ, यह नहीं वह करें, ऐसा नहीं वैसा, वैसा नहीं ऐसा। नहीं। जो बाप ने किया, कॉपी करना है, बस। कॉपी करना नहीं आता? आजकल तो साइन्स ने फोटोकापी की भी मशीनें निकाल ली हैं। निकाली है ना! यहाँ फोटोकापी है ना? तो यह ब्रह्मा बाप का चित्र रखते हैं। भले रखो, अच्छी तरह से रखो, बड़े बड़े रखो। लेकिन फोटो-कापी तो करो ना!
तो बापदादा आज चारों ओर का चक्कर लगाते यह देख रहे थे, चित्र से प्यार है या चरित्र से प्यार है? संकल्प भी है, उमंग भी है, लक्ष्य भी है, बाकी क्या चाहिए? बापदादा ने देखा, कोई भी चीज़ को अच्छी तरह से मजबूत करने के लिए चार ही कोनों से उसको पक्का किया जाता है। तो बापदादा ने देखा तीन कोने तो पक्के हैं, एक कोना और पक्का होना है। संकल्प भी है, उमंग भी है, लक्ष्य भी है, किसी से भी पूछो क्या बनना है? हर एक कहता है, बाप समान बनना है। कोई भी यह नहीं कहता है – बाप से कम बनना है, नहीं। समान बनना है। अच्छी बात है। एक कोना मजबूत करते हो लेकिन चलते-चलते ढीला हो जाता है, वह है दृढ़ता। संकल्प है, लक्ष्य है लेकिन कोई पर-स्थिति आ जाती है, साधारण शब्दों में उसको आप लोग कहते हैं बातें आ जाती हैं, वह दृढ़ता को ढीला कर देती हैं। दृढ़ता उसको कहा जाता है – मर जायें, मिट जायें लेकिन संकल्प न जाये। झुकना पड़े, जीते जी मरना पड़े, अपने को मोड़ना पड़े, सहन करना पड़े, सुनना पड़े लेकिन संकल्प नहीं जाये। इसको कहा जाता है दृढ़ता। जब छोटे-छोटे बच्चे ओम निवास में आये थे तो ब्रह्मा बाबा उन्हों को हँसी-हँसी में याद दिलाता था, पक्का बनाता था कि इतना-इतना पानी पियेंगे, इतनी मिर्ची खायेंगे, डरेंगे तो नहीं। फिर हाथ से ऐसे आंख के सामने करते हैं…। तो ब्रह्मा बाप छोटे-छोटे बच्चों को पक्का करते थे, चाहे कितनी भी समस्या आ जाए, संकल्प की आंख हिले नहीं। वह तो लाल मिर्ची और पानी का मटका था, छोटे बच्चे थे ना। आप तो सभी अभी बड़े हो, तो बापदादा आज भी बच्चों से पूछते हैं कि आपका दृढ़ संकल्प है? संकल्प में दृढ़ता है कि बाप समान बनना ही है? बनना है नहीं, बनना ही है। अच्छा, इसमें हाथ हिलाओ। टी.वी. वाले निकालो। टी.वी. काम में आनी चाहिए ना! बड़ा-बड़ा हाथ करो। अच्छा, मातायें भी उठा रही हैं। पीछे वाले और ऊंचा हाथ करो। बहुत अच्छा। कैबिन वाले नहीं उठा रहे हैं। कैबिन वाले तो निमित्त हैं। अच्छा। थोड़ी घड़ी के लिए तो हाथ उठाके बापदादा को खुश कर दिया।
अभी बापदादा सिर्फ एक ही बात बच्चों से कराना चाहते हैं, कहना नहीं चाहते, कराना चाहते हैं। सिर्फ अपने मन में दृढ़ता लाओ, थोड़ी सी बात में संकल्प को ढीला नहीं कर दो। कोई इनसल्ट करे, कोई घृणा करे, कोई अपमान करे, निंदा करे, कभी भी कोई दु:ख दे लेकिन आपकी शुभ भावना मिट नहीं जाए। आप चैलेन्ज करते हो हम माया को, प्रकृति को परिवर्तन करने वाले विश्व परिवर्तक हैं, अपना आक्यूपेशन तो याद है ना? विश्व परिवर्तक तो हो ना! अगर कोई अपने संस्कार के वश आपको दु:ख भी दे, चोट लगाये, हिलाये, तो क्या आप दु:ख की बात को सुख में परिवर्तन नहीं कर सकते हो? इनसल्ट को सहन नहीं कर सकते हो? गाली को गुलाब नहीं बना सकते हो? समस्या को बाप समान बनने के संकल्प में परिवर्तन नहीं कर सकते हो? आप सबको याद है – जब आप ब्राह्मण जन्म में आये और निश्चय किया, चाहे आपको एक सेकेण्ड लगा या एक मास लगा लेकिन जब से आपने निश्चय किया, दिल ने कहा “मैं बाबा का, बाबा मेरा।” संकल्प किया ना, अनुभव किया ना! तब से आपने माया को चैलेन्ज किया कि मैं मायाजीत बनूंगा, बनूंगी। यह चैलेन्ज माया को किया था? मायाजीत बनना है कि नहीं? मायाजीत आप ही हैं ना या अभी दूसरे आने हैं? जब माया को चैलेन्ज किया तो यह समस्यायें, यह बातें, यह हलचल माया के ही तो रॉयल रूप हैं। माया और तो कोई रूप में आयेगी नहीं। इन रूपों में ही मायाजीत बनना है। बात नहीं बदलेगी, सेन्टर नहीं बदलेगा, स्थान नहीं बदलेगा, आत्मायें नहीं बदलेंगी, हमें बदलना है। आपका स्लोगन तो सबको बहुत अच्छा लगता है – बदलके दिखाना है, बदला नहीं लेना है, बदलना है। यह तो पुराना स्लोगन है। नये-नये रूप, रॉयल रूप बनके माया और भी आने वाली है, घबराओ नहीं। बापदादा अण्डरलाइन कर रहा है – माया ऐसे, ऐसे रूप में आनी है, आ रही है। जो महसूस ही नहीं करेंगे कि यह माया है, कहेगे नहीं दादी आप समझती नहीं हो, यह माया नहीं है। यह तो सच्ची बात है। और भी रॉयल रूप में आने वाली है, डरो मत। क्यों? देखो, कोई भी दुश्मन चाहे हार खाता है, चाहे जीत होती है, जो भी उनके पास छोटे मोटे शस्त्र अस्त्र होंगे, यूज़ करेगा या नहीं करेगा? करेगा ना? तो माया की भी अन्त तो होनी है लेकिन जितना अन्त समीप आ रहा है, उतना वह नये-नये रूप से अपने अस्त्र शस्त्र यूज़ कर रही है, करेगी भी। फिर आपके पांव में झुकेगी। पहले आपको झुकाने की कोशिश करेगी, फिर खुद झुक जायेगी। सिर्फ इसमें आज बापदादा एक ही शब्द बार-बार अण्डरलाइन करा रहा है। “बाप समान बनना है” – अपने इस लक्ष्य के स्वमान में रहो और सम्मान देना अर्थात् सम्मान लेना, लेने से नहीं मिलेगा, देना अर्थात् लेना है। सम्मान दे – यह यथार्थ नहीं है, सम्मान देना ही लेना है। स्वमान बॉडी-कॉन्सेस का नहीं, ब्राह्मण जीवन का स्वमान, श्रेष्ठ आत्मा का स्वमान, सम्पन्नता का स्वमान। तो स्वमान और सम्मान लेना नहीं है लेकिन देना ही लेना है – इन दो बातों में दृढ़ता रखो। आपकी दृढ़ता को कोई कितना भी हिलाये, दृढ़ता को ढीला नहीं करो। मजबूत करो, अचल बनो। तब यह जो बापदादा से प्रॉमिस किया है, 6 मास का। प्रॉमिस तो याद है ना। यह नहीं देखते रहना कि अभी तो 15 दिन पूरा हुआ है, साढ़े पांच मास तो पड़े हैं। जब रूहरिहान करते हैं ना – अमृतवेले रूहरिहान तो करते हैं, तो बापदादा को बहुत अच्छी-अच्छी बातें सुनाते हैं। अपनी बातें जानते तो हो ना? तो अब दृढ़ता को अपनाओ। उल्टी बातों में दृढ़ता नहीं रखना। क्रोध करना ही है, मुझे दृढ़ निश्चय है, ऐसे नहीं करना। क्यों? आजकल बापदादा के पास रिकॉर्ड में मैजारिटी क्रोध के भिन्न-भिन्न प्रकार की रिपोर्ट पहुँचती है। महारूप में कम है लेकिन अंश रूप में भिन्न-भिन्न प्रकार का क्रोध का रूप ज्यादा है। इस पर क्लास कराना – क्रोध के कितने रूप हैं? फिर क्या कहते हैं, हमारा न भाव था, न भावना थी, ऐसे ही कह दिया। इस पर क्लास कराना।
टीचर्स बहुत आई हैं ना? (1200 टीचर्स हैं) 1200 ही दृढ़ संकल्प कर लें तो कल ही परिवर्तन हो सकता है। फिर इतने एक्सीडेंट नहीं होंगे, बच जायेंगे सभी। टीचर्स हाथ उठाओ। बहुत हैं। टीचर अर्थात् निमित्त फाउण्डेशन। अगर फाउण्डेशन पक्का अर्थात् दृढ़ रहा तो झाड़ तो आपेही ठीक हो जायेगा। आजकल चाहे संसार में, चाहे ब्राह्मण संसार में हर एक को हिम्मत और सच्चा प्यार चाहिए। मतलब का प्यार नहीं, स्वार्थ का प्यार नहीं। एक सच्चा प्यार और दूसरी हिम्मत, मानो 95 परसेन्ट किसने संस्कार के वश, परवश होके नीचे-ऊपर कर भी लिया लेकिन 5 परसेन्ट अच्छा किया, फिर भी अगर आप उसके 5 परसेन्ट अच्छाई को लेकर पहले उसमें हिम्मत भरो, यह बहुत अच्छा किया फिर उसको कहो बाकी यह ठीक कर लेना, उसको फील नहीं होगा। अगर आप कहेंगी यह क्यों किया, ऐसा थोड़ेही किया जाता है, यह नहीं करना होता है, तो पहले ही बिचारा संस्कार के वश है, कमजोर है, तो वह नरवश हो जाता है। प्रोग्रेस नहीं कर सकता है। 5 परसेन्ट की पहले हिम्मत दिलाओ, यह बात बहुत अच्छी है आपमें। यह आप बहुत अच्छा कर सकते हैं, फिर उसको अगर समय और उसके स्वरूप को समझकर बात देंगे तो वह परिवर्तन हो जायेगा। हिम्मत दो, परवश आत्मा में हिम्मत नहीं होती है। बाप ने आपको कैसे परिवर्तन किया? आपकी कमी सुनाई, आप विकारी हो, आप गन्दे हो, कहा? आपको स्मृति दिलाई आप आत्मा हो और इस श्रेष्ठ स्मृति से आपमें समर्थी आई, परिवर्तन किया। तो हिम्मत से स्मृति दिलाओ। स्मृति समर्थी स्वत: ही दिलायेगी। समझा। तो अभी तो समान बन जायेंगे ना? सिर्फ एक अक्षर याद करो – फॉलो फादर-मदर। जो बाप ने किया, वह करना है। बस। कदम पर कदम रखना है। तो समान बनना सहज अनुभव होगा।
ड्रामा छोटे-छोटे खेल दिखाता रहता है। आश्चर्य की मात्रा तो नहीं लगाते? अच्छा।
अनेक बच्चों के कार्ड, पत्र, दिल के गीत बापदादा के पास पहुँच गये हैं। सभी कहते हैं हमारी भी याद देना, हमारी भी याद देना। तो बाप भी कहते हैं हमारी भी यादप्यार दे देना। याद तो बाप भी करते, बच्चे भी करते, क्योंकि इस छोटे से संसार में है ही बापदादा और बच्चे और विस्तार तो है ही नहीं। तो कौन याद आयेगा? बच्चों को बाप, बाप को बच्चे। तो देश-विदेश के बच्चों को बापदादा भी बहुत-बहुत-बहुत-बहुत याद-प्यार देते हैं। अच्छा।
चारों ओर के ब्राह्मण संसार की विशेष आत्माओं को, सदा दृढ़ता द्वारा सफलता प्राप्त करने वाले सफलता के सितारों को, सदा स्वयं को सम्पन्न बनाए आत्माओं की पुकार को पूर्ण करने वाली सम्पन्न आत्माओं को, सदा निर्बल को, परवश को अपने हिम्मत के वरदान द्वारा हिम्मत दिलाने वाली, बाप के मदद के पात्र आत्माओं को, सदा विश्व परिवर्तक बन स्व परिवर्तन से माया, प्रकृति और कमजोर आत्माओं को परिवर्तन करने वाली परिवर्तक आत्माओं को, बापदादा का चारों ओर के छोटे से संसार की सर्व आत्माओं को सम्मुख आई हुई श्रेष्ठ आत्माओं को अरब-खरब गुणा यादप्यार और नमस्ते।
वरदान:-
माया तो लास्ट घड़ी तक आयेगी लेकिन माया का काम है आना और आपका काम है दूर से भगाना। माया आवे और आपको हिलाये फिर आप भगाओ, यह भी टाइम वेस्ट हुआ, इसलिए साइलेन्स के साधनों से आप दूर से ही पहचान लो कि ये माया है। उसे पास में आने न दो। अगर सोचते हो क्या करूं, कैसे करूं, अभी तो पुरुषार्थी हूँ …तो यह भी माया की खातिरी करते हो, फिर तंग होते हो इसलिए दूर से ही परखकर भगा दो तो मायाजीत बन जायेंगे।
स्लोगन:-
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