13 March 2023 HINDI Murli Today | Brahma Kumaris
Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi
12 March 2023
Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.
Brahma Kumaris
आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन। Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. Source: Official Murli blog to read and listen daily murlis. ➤ पढ़े: मुरली का महत्त्व
“मीठे बच्चे - याद में रहते-रहते यह कलियुगी रात पूरी हो जायेगी, तुम बाप के पास चले जायेंगे फिर आयेंगे दिन में, यह भी वन्डरफुल यात्रा है''
प्रश्नः-
तुम बच्चों को स्वर्ग में जाने की इच्छा क्यों है?
उत्तर:-
क्योंकि तुम जानते हो जब हम स्वर्ग में जायें तब बाकी सब आत्माओं का कल्याण हो, सब अपने शान्तिधाम घर में जा सकें। तुम्हें कोई स्वर्ग में जाने का लोभ नहीं है। लेकिन तुम स्वर्ग की स्थापना कर रहे हो, इतनी मेहनत करते हो तो जरूर उस स्वर्ग के मालिक भी बनेंगे। बाकी तुम्हें कोई दूसरी इच्छा नहीं है। मनुष्यों को तो इच्छा रहती है – हमें भगवान का साक्षात्कार हो लेकिन वह तो तुम्हें स्वयं पढ़ा रहे हैं।
♫ मुरली सुने (audio)➤
गीत:-
रात के राही..
ओम् शान्ति। रात के राही का अर्थ तो बच्चे नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार जानते होंगे। अगर बच्चों का स्वदर्शन चक्र फिरता रहता है, स्मृति में रहते हैं तो वह समझ सकेंगे कि बरोबर हम दिन अर्थात् स्वर्ग के कितना नजदीक पहुंचे हैं। बच्चों को समझाया है – यह बेहद का दिन और रात है। ब्रह्मा की बेहद की रात कहा जाता है। शास्त्रों में कितना अच्छा नाम लिखा हुआ है। ऐसे नहीं कहा जायेगा कि लक्ष्मी-नारायण की भी रात होगी। नहीं। ब्रह्मा का दिन, ब्रह्मा की रात कहा जाता है। लक्ष्मी-नारायण तो वहाँ राज्य करते थे। फिर जरूर सृष्टि चक्र को फिरना है। लक्ष्मी-नारायण का राज्य फिर सतयुग में आना है। सतयुग के बाद त्रेता, द्वापर, कलियुग जरूर आना है। तो जरूर सतयुग में फिर वही राजा होना चाहिए। यह ज्ञान सिर्फ शिवबाबा ही ब्रह्मा द्वारा तुम बच्चों को देते हैं, इसलिए तुमको ही यह सृष्टि चक्र का ज्ञान है। देवताओं को नहीं है। तुम ब्राह्मणों की बुद्धि में यह चक्र फिरता है इसलिए नाम रखा है ब्रह्मा और ब्रह्माकुमार कुमारियों की रात। अभी तुम चल रहे हो दिन तरफ। सतयुग को दिन, कलियुग को रात कहा जाता है। तुम बच्चे जानते हो हमारी यह यात्रा कलियुग के अन्त और सतयुग आदि के संगम पर ही होती है। तुम बैठे कलियुग में हो तुम्हारी बुद्धि वहाँ है। आत्मा को समझना है हमको यह शरीर छोड़कर बाप के पास जाना है। शरीर तो अन्त में छोड़ेंगे जब मंजिल पूरी होगी अर्थात् बाप योग सिखाना बन्द करेंगे। पढ़ाई का अन्त होगा तब तक बाप सिखाते, पढ़ाते रहते हैं। बच्चे बाप की याद में रहते हैं। ऐसे याद में रहते-रहते रात पूरी हो जायेगी और तुम बाप के पास चले जायेंगे। फिर तुम आयेंगे दिन में। यह है तुम्हारी वन्डरफुल यात्रा। बाप दिन स्थापन करते हैं तुम ब्रह्माकुमार कुमारियों के लिए। अब दिन अर्थात् सतयुग आ रहा है। अभी तुम कलियुग रात में बैठे हो। निरन्तर बाप को याद करते रहो।
बाप ने समझाया है सभी को मरना है जरूर। मनुष्य पूछते हैं कब मरना है? कब विनाश होगा? अब दिव्य दृष्टि से विनाश का साक्षात्कार किया हुआ है। फिर इन आंखों से देखना जरूर है और स्थापना, जिसका साक्षात्कार करते हैं वह भी इन आंखों से देखना है। मुख्य जिस ब्रह्मा का दिन और रात गाया हुआ है उनको ही स्थापना और विनाश का साक्षात्कार हुआ है। तो जो दिव्य दृष्टि से देखा है वह प्रैक्टिकल जरूर होगा। भक्ति मार्ग में जो कुछ साक्षात्कार होता है वह दिव्य दृष्टि से देखते हैं। तुम भी दिव्य दृष्टि से देखते हो। तुमको किसी चीज़ की इच्छा नहीं रहती है। संन्यासी लोगों को इच्छा रहती है – परमपिता परमात्मा को देखने की। यहाँ तुम बच्चों को तो परमपिता परमात्मा खुद बैठ पढ़ाते हैं। तुमको इच्छा है स्वर्ग में जाने की। बच्चे जानते हैं कि हम स्वर्ग में जायेंगे तो सभी का कल्याण हो जायेगा। अभी तुम बच्चे जानते हो बेहद का बाप जो मनुष्य सृष्टि का रचयिता, बीजरूप है वो झाड के आदि, मध्य, अन्त को जानते हैं। हम उस बाप को और उनके वर्से को जानते हैं। जैसे वह झाड होते हैं, जानते हैं यह आंब का झाड है। बीज बोने से पहले दो चार पत्ते निकलते हैं फिर झाड बड़ा होता जाता है तो वह है जड़ बीज। यह बाप है मनुष्य सृष्टि का चैतन्य बीजरूप, उसे ही नॉलेजफुल कहा जाता है।
बच्चे जानते हैं यह पाठशाला है, जिसमें यह विद्या (पढ़ाई) मिल रही है और तुम योग भी सीख रहे हो। इस विद्या से तुम भविष्य प्रिन्स-प्रिन्सेज बनते हो। आत्मा पवित्र जरूर चाहिए। अभी तो सब अपवित्र हैं। परन्तु कोई को पतित कहो तो मानेंगे नहीं। कहते हैं कृष्णपुरी में भी एक दो को दु:ख देने वाले कंस, जरासन्धी आदि थे। एक दो को सुख देने वाले को पावन कहा जाता है। स्वर्ग में कोई दु:ख देता नहीं। वहाँ तो शेर बकरी इकट्ठे जल पीते हैं। किसको दु:ख नहीं देते। परन्तु यह बातें कोई समझते थोड़ेही हैं। जो शास्त्र पढ़े हैं वही बातें बुद्धि में आ जाती हैं। देवताओं के पुजारी अपने को खुद ही चमाट मारते हैं। हिन्दुओं ने आपेही अपने को चमाट मारी है। अपने देवताओं की बैठ निंदा की है। क्राइस्ट, बुद्ध आदि की कितनी महिमा करते हैं। देवताओं की बैठ निंदा करते हैं। यह धर्म की ग्लानी हुई ना। गीता में भी कहते हैं यदा यदाहि धर्मस्य…..नाम भी भारत का है। भारत ही भ्रष्ट और श्रेष्ठ बनता है। श्रेष्ठ थे लक्ष्मी-नारायण। भ्रष्ट मनुष्य, श्रेष्ठ को माथा टेकते हैं। संन्यासी भी पवित्र रहते हैं, परन्तु भगवान को जानते नहीं। अपने को ही भगवान कह देते हैं। बाकी दूसरे जो भी गुरू आदि हैं पतित हैं, विकार में भी जाते हैं। पतित कहा जाता है विकारी को। वह पावन को नमस्कार करते हैं। संन्यासियों को गुरू करते हैं तो भी इसलिए कि हमको आप समान पावन बनायें। आजकल संन्यासी तो कोई मुश्किल बनते हैं, फिर गृहस्थी को गुरू करने से क्या प्राप्ति होगी? जबकि वे खुद ही पतित हैं। परन्तु नई आत्मायें आती हैं तो उन्हों की कुछ महिमा निकलती है। किसको पुत्र मिला, किसको धन मिला तो खुश हो जाते हैं। फिर एक दो को देख सब गुरू करते रहेंगे। वास्तव में गुरू किया जाता है सद्गति के लिए। वह जरूर 5 विकारों का संन्यास किया हुआ पवित्र चाहिए। बाकी गृहस्थी गुरू करने से क्या फायदा? बड़े-बड़े गृहस्थी गुरू हैं जिनके हजारों फालोअर्स हैं। कोई एक ने गुरू किया तो वह गद्दी चली आती है। शिष्य लोग उनके पांव धोकर पीते हैं, इसको अन्धश्रधा कहा जाता है। मनुष्य भल गाते हैं कि हे भगवान अंधों की लाठी तू.. परन्तु इसका अर्थ भी नहीं समझते। अन्धा (बुद्धिहीन) बनाती है माया रावण। सब पत्थरबुद्धि बन जाते हैं इसलिए बाप कहते हैं यह जो भी शास्त्र आदि हैं इन सबका सार मैं आकर सुनाता हूँ। नारद का मिसाल देते हैं, उनको कहा तुम अपनी शक्ल तो देखो – लक्ष्मी को वरने लायक हो? लक्ष्मी तो स्वर्ग में होगी। अभी तुम जानते हो हमें पुरुषार्थ कर भविष्य लक्ष्मी को वा नारायण को वरना है। तो यह भी यहाँ की बात है। शक्ल मनुष्य की है, सीरत बन्दर की है। बाप कहते हैं अपनी शक्ल तो देखो। मनुष्य तुमको कहेंगे तुम स्वर्ग का मालिक बनने का भी लोभ रखते हो ना। उनको समझाना है अरे हम तो सारी सृष्टि को स्वर्ग बनाते हैं। इतनी मेहनत करते हैं तो जरूर मालिक भी हमको बनना पड़ेगा ना। कोई तो राज्य करेंगे ना।
बाबा ने समझाया है नम्बरवन है काम महाशत्रु, जो मनुष्य को आदि, मध्य, अन्त दु:ख देता है। यह आधाकल्प का कड़ा दुश्मन है। भल ड्रामा में सुख और दु:ख है परन्तु दु:ख में ले जाने वाला भी तो है। वह है रावण। आधाकल्प रावणराज्य चलता है। यह बातें तुम बच्चे ही जानते हो। तुम्हारे में भी नम्बरवार हैं। अब देखो कहते हैं कैलाश पर्वत पर शंकर पार्वती रहते हैं। प्रेजीडेंट आदि भी अमरनाथ, कैलाश पर्वत पर जाते हैं। परन्तु इतना भी समझते नहीं कि वहाँ शंकर पार्वती कहाँ से आये? क्या पार्वती दुर्गति में थी जो उनको बैठ कथा सुनाई? सूक्ष्मवतन में तो दुर्गति का प्रश्न ही नहीं। कितना दूर-दूर जाकर मनुष्य धक्के खाते हैं। यह है भक्ति मार्ग। दु:ख तो मनुष्यों को पाना ही है। प्राप्ति है अल्पकाल की। वह कौन सी प्राप्ति है? तीर्थों पर जितना समय रहते हैं उतना समय पवित्र रहते हैं। कोई तो शराब बिगर रह नहीं सकते, तो छिपाकर भी शराब की बोतल ले जाते हैं। फिर वह कोई तीर्थ थोड़ेही हुआ। वहाँ भी कितना गंद लगा पड़ा है, बात मत पूछो। विकारी मनुष्यों को विकार भी वहाँ मिलता है। मनुष्यों को ज्ञान नहीं है तो समझते हैं भक्ति अच्छी है, उनसे ही भगवान मिलेगा। आधा-कल्प भक्ति के धक्के खाने पड़ते हैं। आधाकल्प के बाद जब भक्ति पूरी होती है तो फिर भगवान आते हैं। बाबा को तरस पड़ता है। ऐसे नहीं कि भक्ति से भगवान को पाते हैं। ऐसा होता तो फिर भगवान को पुकारते क्यों? याद क्यों करते? भगवान कब मिलता है, यह समझते नहीं हैं। भक्ति से श्रीकृष्ण का साक्षात्कार हुआ तो बस, समझते उनको भगवान मिल गया। वैकुण्ठवासी हुआ। श्रीकृष्ण का दर्शन हुआ बस चला गया श्रीकृष्णपुरी। परन्तु जाता कोई नहीं। तो भक्ति मार्ग में अन्धश्रधा बहुत है। तुम बच्चे अभी समझ गये हो। बाप साधारण तन में आते हैं तब तो गाली खाते हैं। नहीं तो भला किस तन में आये? श्रीकृष्ण के तन में तो गाली खा न सके। परन्तु श्रीकृष्ण पतित दुनिया में पावन बनाने आये, यह हो नहीं सकता। श्रीकृष्ण को पतित-पावन कहते भी नहीं हैं। मनुष्य यह भी समझते नहीं कि पतित-पावन कौन है, कैसे आते हैं इसलिए कोई को भी विश्वास नहीं बैठता है। शास्त्रों में तो है नहीं कि कैसे ब्रह्मा तन में आते हैं। कहते भी हैं ब्रह्मा मुख द्वारा सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी धर्म की स्थापना होती है। फिर भूल जाते हैं कि कब होती, कैसे होती? प्रजापिता ब्रह्मा तो जरूर यहाँ कल्प के संगम पर होना चाहिए तब तो ब्राह्मणों की नई सृष्टि रची जाए। मनुष्य बहुत मूंझे हुए हैं, उनको रास्ता बताना है। बाप कितनी भारी सर्विस आकर करते हैं। तुम समझते हो हम 5 विकारों से एकदम बन्दर से भी बदतर होते गये हैं। हम सो देवता थे फिर एकदम क्या बन गये! ऐसों को फिर बाप कितना ऊंच आकर बनाते हैं। तो बाप को कितना लव करना चाहिए। यह बाप सुनाते हैं या दादा सुनाते हैं? यह भी कितने बच्चों को पता नहीं लगता। बाप कहते हैं विचार करो मैं सदैव रथ पर हाजिर रह सकता हूँ? यह तो हो नहीं सकता। मैं तो आता ही हूँ सर्विस पर।
बाबा के पास समाचार आया था – कोई ने पूछा क्या मनुष्य किसको सुख दे सकते हैं? यह मनुष्य के हाथ में है? तो एक ने कहा कि नहीं, ईश्वर ही है जो मनुष्य को सुख दे सकता है। मनुष्य के हाथ में कुछ भी नहीं है। तो कोई बच्चे ने फिर समझाया है कि मनुष्य ही सुख देता है, मनुष्य ही सब कुछ करता है। ईश्वर के हाथ में कुछ नहीं हैं। अरे, तुम थोड़ेही कुछ देते हो। ईश्वर के हाथ में ही तो है ना। समझाना चाहिए – श्रीमत पर चलना है। परमपिता की श्रीमत बिगर कोई सुख दे न सके। अपनी बड़ाई नहीं करनी चाहिए। हम श्रीमत पर सारे सृष्टि को स्वर्ग बनाते हैं। तो देखो कितनी भारी भूल बच्चों की होती है। वह कहते ईश्वर के हाथ में है। बी.के. कहते कि मनुष्य के हाथ में है। वास्तव में है तो बाप के ही हाथ में। श्रीमत बिगर कुछ कर नहीं सकते। मनुष्य बिल्कुल बर्थ नाट ए पेनी बन जाते हैं। बाप कहते हैं रावण मनुष्य को पत्थरबुद्धि बना देते हैं। मैं आकर तुमको पारस बुद्धि बनाता हूँ। महिमा सारी बाप की करनी है। हम श्रीमत पर चल रहे हैं। ईश्वर बिगर मनुष्य को कोई श्रेष्ठ बना नहीं सकता। अच्छा!
ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण कुल भूषण स्वदर्शन चक्रधारी मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार :
1) बाप जो इतनी सर्विस करते हैं, हमें इतना ऊंच देवता बनाते हैं, ऐसे बाप से दिल का सच्चा लव रखना है। देवताओं समान सबको सुख देना है।
2) एक बाप की सदा महिमा करनी है। अपनी बड़ाई नहीं दिखानी है।
वरदान:-
कई बच्चे कहते हैं योग कभी लगता है कभी नहीं लगता, इसका कारण है – न्यारे पन की कमी। न्यारे न होने के कारण प्यार का अनुभव नहीं होता और जहाँ प्यार नहीं वहाँ याद नहीं। जितना ज्यादा प्यार उतनी सहज याद इसलिए संबंध के आधार पर पार्ट नहीं बजाओ, सेवा के संबंध से पार्ट बजाओ तो न्यारे रहेंगे। कमल पुष्प समान पुरानी दुनिया के वातावरण से न्यारे और बाप के प्यारे बनो तो सहजयोगी बन जायेंगे।
स्लोगन:-
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