13 January 2023 HINDI Murli Today | Brahma Kumaris

Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi

January 12, 2023

Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.

Brahma Kumaris

आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन।  Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. SourceOfficial Murli blog to read and listen daily murlis. पढ़े: मुरली का महत्त्व

“मीठे बच्चे - यहाँ तुम्हें सुख-दु:ख, मान-अपमान.. सब सहन करना है, पुरानी दुनिया के सुखों से बुद्धि हटा देनी है, अपनी मत पर नहीं चलना है''

प्रश्नः-

देवताई जन्म से भी यह जन्म बहुत अच्छा है, कैसे?

उत्तर:-

इस जन्म में तुम बच्चे शिवबाबा के भण्डारे से खाते हो। यहाँ तुम अथाह कमाई करते हो, तुमने बाप की शरण ली है। इस जन्म में ही तुम अपना लोक-परलोक सुहेला (सुखी) करते हो। सुदामा मिसल दो मुट्ठी दे 21 जन्म की बादशाही लेते हो।

♫ मुरली सुने (audio)➤

गीत:-

चाहे पास हो चाहे दूर हो…

ओम् शान्ति। गीत का कितना अच्छा अर्थ है। बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं – चाहे हम इस तन से नजदीक हैं वा दूर हैं क्योंकि सम्मुख योग की शिक्षा दे रहे हैं। प्रेरणा से तो नहीं देंगे ना। चाहे मैं नजदीक हूँ, चाहे दूर हूँ – याद तो मुझे ही करना है। भगवान के पास जाने के लिए ही तो भक्ति करते हैं। बाप बैठ समझाते हैं कि हे जीव की आत्मायें, इस शरीर में निवास करने वाली आत्मायें, आत्माओं से परमपिता परमात्मा बैठ बात करते हैं। परमात्मा को आत्माओं से मिलना है जरूर, इसलिए जीव आत्मायें भगवान को याद करती हैं क्योंकि दु:खी हैं। सतयुग में तो कोई याद नहीं करते। अभी तुम बच्चे जानते हो हम बहुत पुराने भक्त हैं। जबसे हमको माया ने पकड़ा है, तब से भगवान की, शिव की याद शुरू हुई है क्योंकि शिवबाबा ने हमको स्वर्ग का मालिक बनाया था, तो उनका यादगार बनाकर भक्ति करते हैं। अब तुम जानते हो बाप सम्मुख आये हैं लेने के लिए, क्योंकि अब बाप के पास जाना है। जब तक यहाँ हैं तब तक पुराने शरीर को, पुरानी दुनिया को बुद्धि से भूलना है और योग में रहना है। तो इस योग अग्नि से पाप भस्म होंगे। इसमें मेहनत लगती है। पद भी तो जबरदस्त है। विश्व का मालिक बनना है। मनुष्य कहते हैं कि विश्व का मालिक तो शिवबाबा है। परन्तु नहीं, विश्व का मालिक मनुष्य ही बनते हैं। बाप बैठ बच्चों को विश्व का मालिक बनाते हैं। कहते हैं तुम ही विश्व के मालिक थे, फिर 84 जन्म लेते-लेते अब कौड़ी के भी मालिक नहीं रहे हो। पहला नम्बर जन्म और अभी का अन्तिम जन्म देखो कितना रात दिन का फ़र्क है। कोई को भी याद नहीं आ सकता, जब तक बाप आकर साक्षात्कार न कराये। ज्ञान बुद्धि से भी साक्षात्कार होता है। जो सयाने बच्चे हैं, नित्य बाप को याद करते हैं, उन्हों को बहुत मजा आयेगा। यहाँ तुम सब नई बातें सुनते हो। मनुष्य तो कुछ नहीं जानते हैं। वह तो गपोड़े लगाते रहते और दर-दर धक्के खाते रहते हैं। तुमको तो भटकने से छुड़ाया जाता है। बाप कहते हैं तुम आत्मा हो, मुझ बाप को याद करते रहो। बुद्धि में यही विचार रहे कि हम आत्माओं को बाबा के पास जाना है, यह सृष्टि जैसे हमारे लिए है नहीं। यह पुरानी सृष्टि तो खत्म हो जायेगी। फिर हम स्वर्ग में आकर नये महल बनायेंगे। दिन-रात बुद्धि में यह चलना चाहिए। बाप अपना अनुभव सुनाते हैं। रात को सोता हूँ, तो यही ख्यालात चलते हैं। यह नाटक अब पूरा होता है, यह पुराना चोला छोड़ना है। हाँ विकर्मों का बोझा बहुत है, इसलिए निरन्तर बाबा को याद करना है। अपनी अवस्था को दर्पण में देखना है – हमारी बुद्धि सबसे हटी हुई है? धन्धे आदि में रहते हुए भी बुद्धि से काम ले सकते हो। बाबा के ऊपर कितना ओना है। कितने ढेर बच्चे हैं। उन्हों का ख्याल रखना पड़ता है। बच्चों को पनाह (शरण) देनी है। दु:खी तो बहुत हैं ना! हंगामें में कितने दु:खी हो मरते हैं। यह समय बहुत खराब है। तो बच्चों को शरण देने के लिए यह मकान बन रहे हैं। यहाँ तो सब अपने बच्चे ही रहते हैं। कोई डर नहीं और फिर योगबल भी रहता है। बच्चों ने साक्षात्कार भी किया है, जो बाप को अच्छी रीति याद करते हैं तो बाप उन्हों की रक्षा भी करता है। दुश्मन को भयंकर रूप दिखाकर भगा देते हैं। तुमको जब तक शरीर है, तब तक योग में रहना है। नहीं तो सजायें खानी पड़ेंगी। बड़े आदमी का बच्चा सजा खाता है तो उनका काँध नीचे हो जाता है। तुमको भी काँध नीचे करना पड़ेगा। बच्चों के लिए तो और कड़ी सजायें हैं। कोई ऐसे भी हैं जो कहते अभी तो माया का सुख ले लेवें, जो होगा सो देखा जायेगा। बहुतों को इस पुरानी दुनिया के सुख मीठे लगते हैं। यहाँ तो सुख-दु:ख, मान-अपमान… सब सहन करना पड़ता है। ऊंच प्राप्ति अगर चाहते हो तो फालो करना चाहिए, माँ बाप के फरमान पर चलना चाहिए। अपनी मत माना रावण की मत। सो तो तकदीर को लकीर लगाने की ही निकलेगी। बाप से पूछेंगे तो बाबा झट कहेंगे – यह आसुरी मत है। श्रीमत नहीं है। कदम-कदम पर श्रीमत चाहिए। देखना है कहाँ उल्टा काम कर बाप की निंदा तो नहीं कराते? देवी-देवता तब बनेंगे जब ऐसे लक्षण होंगे। ऐसे नहीं वहाँ ऑटोमेटिकली लक्षण आ जायेंगे। यहाँ बहुत मीठी चलन चाहिए। अगर समझो शिवबाबा ने नहीं, ब्रह्मा बाबा ने कहा तो भी रेसपान्सिबुल यह रहेगा ना! अगर कुछ नुकसान भी हुआ तो हर्जा नहीं। यह ड्रामा में था तो तुम्हारे पर कोई दोष नहीं। अवस्था बहुत अच्छी चाहिए। भल तुम यहाँ बैठे हो, बुद्धि में यही रहे कि हम ब्रह्माण्ड के मालिक वहाँ के रहने वाले हैं। इस रीति घर में रहते, धन्धा करते, उपराम होते जायेंगे। जैसे संन्यासी गृहस्थ से उपराम हो जाते हैं। तुम तो सारी पुरानी दुनिया से उपराम होते हो। उस हठयोग संन्यास और इस संन्यास में रात दिन का फ़र्क है। यह राजयोग बाप सिखलाते हैं। संन्यासी सिखला न सकें क्योंकि मुक्ति-जीवनमुक्ति दाता है ही एक। सभी की मुक्ति अब होनी है क्योंकि सब वापिस जाने हैं। साधू लोग साधना करते हैं कि हम वापिस जायें। यहाँ दु:खी हैं। कोई फिर कहते हैं हम ज्योति-ज्योत में समायें। अनेक मत हैं।

बाबा ने समझाया है कि कोई-कोई बच्चे हैं जिन्हों को पुराने सम्बन्धी भी याद आते हैं। उस दुनिया के सुखों की आश हुई और यह मरा। फिर उसका पैर यहाँ ठहर न सके। माया बहुत लालच देती है। एक कहावत है “भगवान को याद करो नहीं तो बाज आ जायेगा” यह माया भी बाज मिसल वार करती है। अब जबकि बाप आये हैं तो अभी भी पुरुषार्थ कर ऊंच पद नहीं पाया तो कल्प-कल्पान्तर भी नहीं पायेंगे। यहाँ बाप के पास तो तुमको कोई दु:ख नहीं है, तो पुरानी दु:ख की दुनिया को भूलना चाहिए ना। सारे दिन का पोतामेल देखना चाहिए। कितना समय बाप को याद किया? किसको जीयदान दिया? बाप ने तुमको भी जीयदान दिया है ना। सतयुग त्रेता तक तुम अमर रहते हो। यहाँ कोई मरता है तो कितना रोते पीटते हैं। स्वर्ग में दु:ख का नाम नहीं। समझेंगे पुरानी खाल छोड़ नई लेते हैं। यह मिसाल भी तुमसे लगता है और कोई यह मिसाल दे नहीं सकते। वह थोड़ेही पुरानी खाल को भूलते हैं। वह तो पैसे इकट्ठे करते रहते। यहाँ तुम जो बाप को देते हो तो बाप खुद थोड़ेही खाते वा अपने पास रखते हैं। उनसे बच्चों की ही परवरिश करते हैं इसलिए यह सच्चा-सच्चा शिवबाबा का भण्डारा है, इस भण्डारे से खाने वाले यहाँ भी सुखी तो जन्म-जन्मान्तर सुखी रहते हैं।

तुम्हारा यह जन्म बहुत दुर्लभ है। देवताई जन्म से भी तुम यहाँ सुखी हो क्योंकि बाप की शरण में हो। यहाँ से ही तुम अथाह कमाई करते हो जो फिर जन्म-जन्मान्तर भोगेंगे। सुदामें को भी दो मुट्ठी के बदले 21 जन्मों के लिए महल मिल गये। यह लोक भी सुहैला (सुखी) तो परलोक भी सुहैला, जन्म-जन्मान्तर के लिए इसलिए यह जन्म बहुत अच्छा है। कोई कहते जल्दी विनाश हो तो हम स्वर्ग में चलें। परन्तु अभी तो बहुत खजाना बाप से लेना है। अभी राजधानी कहाँ बनी है। फिर जल्दी विनाश कैसे करायेंगे! बच्चे अभी लायक कहाँ बने हैं! अभी तो बाप पढ़ाने के लिए आते रहते हैं। बाबा की सर्विस तो अपरमअपार है। बाप की महिमा भी अपरमअपार है। जितना ऊंच हूँ, सर्विस भी उतनी ऊंच करता हूँ, तब तो मेरी यादगार है। ऊंच ते ऊंच बाबा की गद्दी है जो जितना पुरुषार्थ करते हैं, वह अपना भाग्य बनाते हैं। यह है अविनाशी ज्ञान रत्नों की कमाई, जो वहाँ अथाह धन बन जाता है। तो बच्चों को पुरुषार्थ बहुत अच्छा करना है। बाप को यहाँ भी याद करो तो वहाँ भी याद करो। सीढ़ी तो है ना। दिल दर्पण में देखना है मैं कितना बाप का सपूत बच्चा हूँ। अन्धों को रास्ता बताता हूँ। अपने से बातें करने में खुशी होती है। जैसे बाबा अनुभव बताते हैं – सोता हूँ तो भी बातें करता हूँ। बाबा आपकी तो कमाल है। भक्ति मार्ग में फिर हम आपको भूल ही जायेंगे। इतना वर्सा आपसे पाते हैं फिर सतयुग में यह भूल जायेंगे। फिर भक्ति मार्ग में आपका यादगार बनायेंगे। परन्तु आपका आक्यूपेशन बिल्कुल भूल जाते हैं। जैसे बुद्धू, अज्ञानी बन जाते हैं। अब बाप ने कितना ज्ञानी बनाया है। रात दिन का फ़र्क है। ईश्वर सर्वव्यापी है, यह कोई ज्ञान थोड़ेही है। ज्ञान तो सृष्टि चक्र का चाहिए। अब हम 84 का चक्र पूरा कर वापिस जाते हैं फिर हमको जीवन-मुक्ति में आना है। ड्रामा से बाहर थोड़ेही निकल सकते हैं। हम हैं ही जीवनमुक्ति के राही। अच्छा !

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

रात्रि क्लास – 16-12-68

किसको बाबा बच्ची कहते हैं, किसको माइयाँ कहते हैं; ज़रूर कुछ फ़र्क होगा। कोई की सर्विस से खुशबू आती है, कोई तो जैसे अक के फूल हैं। यह तो बाप ने समझाया है तुम जैसे हमारे साथ आये हो। ऊपर से बाप भी आये हैं विश्व को पावन बनाने। तुम्हारा भी यह कर्तव्य है। वहाँ से जो पहले आते हैं वह है पवित्र। नये आते वह ज़रूर खुशबू देते होंगे। बगीचे से भी भेंट करते हैं। जैसी सर्विस वैसा खुशबूदार फूल। विवेक कहता है शिव बाबा का बच्चा कहलाया और हकदार बना। तो वह खुशबू आनी चाहिए। हकदार है तब तो सभी को नमस्ते करते हैं। तुम विश्व के मालिक बेशक रहते हो, परन्तु पढ़ाई में फर्क तो बहुत रहता है। यह होना भी है ज़रूर। बच्चों को निश्चय हो जाता है यह बाबा है, और चक्र भी बुद्धि में है। तो बाप कहते हैं और जास्ती क्यों बतायें। बाप बिगर स्वदर्शन चक्रधारी कोई बना न सके। बनते हैं इशारे से। जो कल्प पहले बने हैं वही बनते हैं। ढेर के ढेर बच्चे आते हैं। पवित्रता के ऊपर कितने अत्याचार होते हैं! जिस द्वारा बाप गीता सुनाते हैं उनको कितनी गालियाँ देते हैं। शिवबाबा को भी गाली देते हैं। कच्छ, मच्छ अवतार कहना भी तो गाली है ना! न जानने के कारण बाप पर, तुम्हारे पर कितने कलंक लगाते हैं! बच्चे कितना माथा मारते हैं। पढ़ाई से कोई तो बहुत साहूकार हो जाते हैं, कितना कमाते हैं! एक-एक आपरेशन के दो हज़ार, 4 हज़ार मिल जाते हैं। कोई तो कुटुम्ब की पालना भी नहीं कर सकते। फिक्र है ना। कोई जन्म-जन्मान्तर बादशाही लेते हैं। कोई जन्म-जन्मान्तर के लिये ग़रीब बनते हैं। बाप कहते हैं तुमको समझदार बनाते हैं। अभी तुम सभी बात में कहेंगे ड्रामा है। सभी का पार्ट है। जो पास्ट हुआ सो ड्रामा। होता वही है जो ड्रामा में है। ड्रामा अनुसार जो कुछ होता है ठीक है। तुम कितना भी समझाओ, समझते ही नहीं हैं, इसमें मैनर्स भी अच्छे चाहिए। हरेक अपने अन्दर में देखे कोई खामी तो नहीं है? माया बहुत कड़ी है। उनको कैसे भी निकालना है। सभी खामियाँ निकालनी है। बाप कहते हैं बाँधेलियाँ सभी से जास्ती याद में रहती हैं। वही अच्छा पद पाती हैं। जितना जास्ती मार खाती हैं उतना जास्ती याद में रहती हैं। हाय शिवबाबा निकलेगा। ज्ञान से शिवबाबा को याद करते हैं। उन्हों का चार्ट अच्छा रहता है। ऐसे जो मार खाकर आते हैं वह सर्विस में भी अच्छे लग जाते हैं। अपना जीवन ऊंच बनाने लिये अच्छी सर्विस करते हैं। सर्विस न करें तो दिल खाती है। दिल टपकती है हम जावें सर्विस पर। भल समझते हैं सेन्टर छोड़कर जाना पड़ता है, परन्तु प्रदर्शनी में सर्विस बहुत है तो सेन्टर की भी परवाह न कर यह भागना चाहिए। जितना हम दान करेंगे उतना बल भी भरता रहेगा। दान भी ज़रूर करना है ना। यह हैं अविनाशी ज्ञान रत्न, जिनके पास होंगे वही दान करेंगे। बच्चों को अब सारी सृष्टि के आदि, मध्य, अन्त का ज्ञान याद आ जाना चाहिए। सारा चक्र फिरना चाहिए। बाप भी इस सृष्टि के आदि, मध्य, अन्त को जानने वाला है। ज़रूर ज्ञान का सागर है। सृष्टि के चक्र को जानने वाला है। यह दुनिया के लिए बिल्कुल नया ज्ञान है, जो कब पुराना बनता ही नहीं है। वण्डरफुल नॉलेज है ना जो बाप ही बताते हैं। कोई कितना भी साधू-महात्मा हो सीढ़ी चढ़कर ऊपर तो जाता ही नहीं। सिवाय बाप के मनुष्य गति-सद्गति दे न सके। न मनुष्य, न देवता दे सकते हैं। स़िर्फ एक बाप ही दे सकते हैं। दिन-प्रतिदिन वृद्धि होनी ही है। बाबा ने कहा था प्रभात-फेरी में यह लक्ष्मी-नारायण का चित्र, सीढ़ी ट्रान्सलाइट का भी होना चाहिए। बिजली की ऐसी कोई चीज़ हो जिससे चमक आती रहे। स्लोगन भी बोलते जाओ। राजयोग परमपिता परमात्मा ही सिखा रहे हैं भागीरथ द्वारा। और कोई भी यह राजयोग सिखला नहीं सकते, ऐसा-ऐसा आवाज़ बहुत सुनेंगे। अच्छा! मीठे-मीठे बच्चों को गुडनाईट।

धारणा के लिए मुख्य सार :

1) यह नाटक अब पूरा हो रहा है इसलिए इस पुरानी दुनिया से उपराम रहना है। श्रीमत पर अपनी तकदीर ऊंच बनानी है। कभी कोई उल्टा कर्म नहीं करना है।

2) अविनाशी ज्ञान रत्नों की कमाई करनी और करानी है। एक बाप की याद में रह सपूत बच्चा बन अनेकों को रास्ता बताना है।

वरदान:-

जैसे बाप का सबसे बड़े से बड़ा टाइटल है वर्ल्ड सर्वेन्ट। वैसे बच्चे भी वर्ल्ड सर्वेन्ट अर्थात् सेवाधारी हैं। सेवाधारी अर्थात् त्यागी और तपस्वी। जहाँ त्याग और तपस्या है वहाँ भाग्य तो उनके आगे दासी के समान आता ही है। सेवाधारी देने वाले होते हैं, लेने वाले नहीं इसलिए सदा निर्विघ्न रहते हैं। तो सेवाधारी समझकर त्याग और तपस्या का वातावरण बनाने से सदा विघ्न-विनाशक रहेंगे।

स्लोगन:-

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