13 April 2023 HINDI Murli Today | Brahma Kumaris

Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi

12 April 2023

Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.

Brahma Kumaris

आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन।  Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. SourceOfficial Murli blog to read and listen daily murlis. पढ़े: मुरली का महत्त्व

“मीठे बच्चे - आपस में अविनाशी ज्ञान रत्नों की लेन-देन करके एक दो की पालना करो, ज्ञान रत्नों का दान करते रहो''

प्रश्नः-

अपने आपको अपार खुशी में रखने का पुरुषार्थ क्या है?

उत्तर:-

खुशी में रहने के लिए विचार सागर मंथन करो। अपने आपसे बातें करना सीखो। अगर कर्मभोग आता है तो खुशी में रहने के लिए विचार करो – यह तो पुरानी जुत्ती है, हम तो 21 जन्मों के लिए निरोगी काया वाले बन रहे हैं, जन्म-जन्मान्तर के लिए यह कर्मभोग समाप्त हो रहा है। कोई भी बीमारी छूटती है, आ़फत हट जाती है तो खुशी होती है ना। ऐसे विचार कर खुशी में रहो।

♫ मुरली सुने (audio)➤

गीत:-

माता ओ माता..

ओम् शान्ति। यह है माताओं की महिमा। वन्दे मातरम्! हे माता! तुम शिवबाबा के भण्डारे से सबकी पालना करती हो। किस प्रकार की पालना? अविनाशी ज्ञान रत्नों की पालना करती हो अथवा ज्ञान अमृत के कलष से तुम्हारी पालना होती है। तुमको शिवबाबा के भण्डारे से अविनाशी ज्ञान रत्नों का खजाना मिलता है। वास्तव में महिमा शिवबाबा की ही है। वह करन-करावनहार है। माता है जगत अम्बा। जरूर और भी मातायें होंगी। तो यह महिमा माताओं की है। माता हमारी बहुत अच्छी पालना करती है। शिव बाबा के यज्ञ में जो रहने वाले हैं, उन्हों की भी पालना होती है और अविनाशी ज्ञान रत्नों से भी माताओं द्वारा पालना होती है। मैजारिटी माताओं की है। बहुत हैं जो भाई भी बहनों की पालना करते हैं। दोनों एक दो से ज्ञान रत्नों की लेन देन करते एक दो की पालना करते हैं। भाई बहन का, बहन भाई का बहुत रूहानी प्यार होता है। इस दुनिया में तो एक दो के दुश्मन भी होते हैं। एक दो को विकार ही देते हैं। यहाँ अविनाशी ज्ञान रत्नों का खजाना देते हैं। तुम हो बहन-भाई, ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ। तुम्हारा नाम भी बहुत भारी है। प्रजापिता ब्रह्मा के जरूर कुमार कुमारियाँ होंगे। यह बुद्धि से काम लिया जाता है। गीत में माताओं की महिमा है। जगत अम्बा सरस्वती है तो जरूर और भी बच्चे, बच्चियाँ होंगे। गोया फैमिली होगी। यह भी समझने की बात है ना। प्रजापिता लिखा हुआ है ना। ब्रह्मा को कहा जाता है प्रजापिता। तो जरूर कोई समय ब्रह्मा द्वारा प्रजा रची गई होगी। ब्रह्मा है साकारी सृष्टि का पिता। गाया हुआ है – प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मण कुल की रचना हुई। आदि सनातन पहले-पहले ब्राह्मण हो जाते हैं। वास्तव में आदि सनातन देवी-देवता धर्म कहना यह राँग है। वह तो है सतयुग का धर्म। यह आदि सनातन ब्राह्मणों का धर्म जो है वह प्राय:लोप हो गया है। देवता धर्म से भी पहले यह ब्राह्मण धर्म है, जिसको चोटी कहते हैं। इनको कहा जायेगा संगमयुगी आदि सनातन ब्राह्मण धर्म। कितना अच्छा राज़ है समझाने का।

बाबा ने समझाया है पहले जब कोई आते हैं तो उनको बाप का परिचय दो। यह है मुख्य। ब्राह्मणों की तो राजधानी है नहीं। लिखा जाता है सतयुगी डीटी वर्ल्ड सावरन्टी तुम्हारा ईश्वरीय जन्म सिद्ध अधिकार है। देवी-देवता धर्म तो बरोबर है। परन्तु उन्हों को यह राजधानी कब और कैसे मिलती है – वह भी समझाना पड़ता है, इसलिए त्रिमूर्ति चित्र सामने रखना जरूर है। इसमें लिखा हुआ है स्वर्ग की बादशाही जन्म सिद्ध अधिकार है। किस द्वारा? वह भी लिखना पड़े। यह बोर्ड बनवाकर हर एक अपने घर में लगा दें। जैसे गवर्मेन्ट के आफीसर्स के बोर्ड होते हैं ना। कोई पास बैज (मैडल्स) रहते हैं। सबकी अपनी-अपनी निशानी होती है। तुम्हारी भी निशानी होनी चाहिए। बाबा डायरेक्शन देते हैं, अमल में लाना तो बच्चों का काम है ना। तो कुछ विहंग मार्ग की सर्विस हो। यह बहुत मुख्य चीज़ है। डॉक्टर, बैरिस्टर आदि सबके घर में बोर्ड लगे हुए होते हैं ना। तुम्हारा भी बोर्ड लगा हुआ हो कि आकर समझो शिवबाबा ब्रह्मा द्वारा स्वर्ग की बादशाही कैसे देते हैं। तो मनुष्य देखकर वन्डर खायेंगे। अन्दर आयेंगे समझने लिए। फ्लैट के बाहर भी लगा सकते हो। जिसका जो धंधा है वह बोर्ड लगाना चाहिए। बच्चे कुछ करते नहीं तो सर्विस भी होती नहीं। एक तो माया का वार होता है। निश्चय नहीं कि हम बाबा पास जाते हैं। 84 जन्मों का पार्ट पूरा हुआ फिर नई दुनिया स्वर्ग में आकर वर्सा लेंगे। यह याद नहीं रहता है। बाबा कहते हैं भल कर्म करो फिर जितना समय मिले उसमें बाबा को याद करो। हम ढिंढोरा पीटते हैं – यह सबका अन्तिम जन्म है। पुनर्जन्म मृत्युलोक में फिर नहीं लेंगे। तुम भी जानते हो मृत्युलोक अभी खत्म होना है। पहले निर्वाणधाम स्वीट होम जाना है। ऐसे-ऐसे अपने साथ बातें करते रहना चाहिए, इसको विचार सागर मंथन कहा जाता है।

बाप कहते हैं तुम कर्मयोगी हो। क्या तुमको कछुए जैसा भी अक्ल नहीं है? वह भी शरीर निर्वाह अर्थ घास आदि खाकर कर्मेन्द्रियों को समेट शान्त में बैठ जाते हैं। तुम बच्चों को तो बाप की याद में रहना है। स्वदर्शन चक्र फिराना है। अपने को मास्टर बीजरूप समझना है। बीज में झाड़ का सारा ज्ञान है – इनकी उत्पत्ति कैसे होती है, पालना कैसे होती, ड्रामा का 84 का चक्र कैसे फिरता है। 84 के चक्र के लिए यह गोला बनाया जाता है, जो मनुष्यों को 84 जन्मों का ज्ञान आ जाए। बाप ने समझाया है तुम सिर्फ 84 जन्म लेते हो। जो आदि सनातन देवी-देवता धर्म वाले हैं अर्थात् जो ब्राह्मण से देवता बनते हैं उनके ही 84 जन्म होते हैं। तुम 84 जन्मों को जानते हो। ब्रह्मा की रात और ब्रह्मा का दिन कहते हैं, इसमें 84 जन्म आ जाते हैं। तो त्रिमूर्ति का बोर्ड बनाए लिखना चाहिए – यह ईश्वरीय जन्म सिद्ध अधिकार है। लेना हो तो आकर लो। अब नहीं तो कब नहीं। इस होवनहार महाभारत लड़ाई के पहले पुरुषार्थ करना है। यह बोर्ड बनाना बहुत सहज है। चाहे त्रिमूर्ति लगाओ वा शिव का लगाओ। नाम परमपिता परमात्मा शिव तो लगा हुआ है। वह है गीता का भगवान। गीता में है ही राजयोग की बातें। तब हम लिखते हैं दैवी स्वराज्य ईश्वरीय जन्म सिद्ध अधिकार है। यह है शिवबाबा और यह प्रजापिता ब्रह्मा, इन द्वारा वर्सा मिलता है। स्वर्ग में राजा-रानी बनते हैं। राम (शिव) क्या देते हैं, रावण क्या देते हैं – यह तुम जानते हो। आधाकल्प है रामराज्य, आधाकल्प है रावण राज्य। ऐसे नहीं परमात्मा ही दु:ख देते हैं, दु:ख देने वाला तो रावण 5 विकार हैं, जो ही विशश बनाते हैं। सतयुग है शिवालय। बच्चों को भिन्न-भिन्न प्रकार की समझानी रोज़ मिलती है। तो खुशी में रहना चाहिए ना। तुम जानते हो शिवबाबा पढ़ाते हैं। ऐसे नहीं कि साकार को याद करना है। शिवबाबा हमको ब्रह्मा द्वारा सहज राजयोग सिखाते हैं। शिवबाबा आते ही हैं प्रजापिता ब्रह्मा में। प्रजापिता ब्रह्मा और किसको कह नहीं सकते। ब्राह्मण भी जरूर चाहिए।

बाप आकर सच बतलाते हैं। गाया भी जाता है सेकेण्ड में राज्य-भाग्य। बच्चे कहते हैं हम शिवबाबा के बच्चे हैं। वह है ही स्वर्ग का रचयिता। तो जरूर हमको स्वर्ग की राजाई देंगे और क्या देंगे? बाबा कैसा वन्डरफुल है! एक सेकेण्ड में जीवनमुक्ति जनक को मिली – यह भी गाया हुआ है। तुम जानते हो अब हम शिवबाबा के बने हैं। शिवबाबा को जरूर याद करना है। जब बाप की गोद ली है, जिससे स्वर्ग का वर्सा मिलता है – उनको और वर्से को याद करना है। जैसे बच्चे धर्म की गोद लेते हैं तो जानते हैं पहले हम फलाने का बच्चा था, अब फलाने का हूँ। उनसे दिल हटती जायेगी और इनसे जुटती जायेगी। यहाँ भी तुम कहेंगे हम शिवबाबा के एडाप्टेड बच्चे हैं। फिर उस बाप को याद करने से फायदा ही क्या। मोस्ट बील्वेड बाप, इतनी बड़ी सम्पत्ति देने वाला है। बाप ही मेहनत करके बच्चों को लायक बनाते हैं। ऐसे बाप को तुम घड़ी-घड़ी भूल जाते हो और तो सब तुमको दु:ख देने वाले हैं फिर भी उन्हों को याद करते हो और मुझ बाप को तुम भूल जाते हो। रहो भल अपने घर में परन्तु बाबा को याद करो। इसमें मेहनत चाहिए, तब ही पाप विनाश होंगे। यह तो सारा कब्रिस्तान बनना है। बच्चे मेरे बने गोया विश्व के मालिक बने। तुम जानते हो बाबा के बने हैं फिर स्वर्ग के मालिक हम अवश्य बनेंगे। खुशी का पारा चढ़ना चाहिए। यह भी जानते हो यह पुराना शरीर है। कर्मभोग भोगना पड़ता है। बाबा मम्मा भी खुशी से कर्मभोग भोगते हैं। फिर भविष्य 21 जन्म का सुख कितना भारी है। यह तो पुरानी जुत्ती है, अभी कर्मभोग भोगते रहेंगे फिर 21 जन्म लिए इनसे छूट जायेंगे। कोई बीमारी छूटती जाती है तो खुशी होती है ना। कोई आ़फत आती फिर हट जाती है तो खुशी होती है ना। तुम भी जानते हो अब जन्म-जन्मान्तर की आ़फतें आ रही हैं। अभी हम बाबा पास जाते हैं। यह है विचार सागर मंथन कर पाइन्ट्स निकालना। बाबा राय तो बतलाते हैं। ऐसे-ऐसे अपने से बातें करो। हमने 84 जन्मों का चक्र पूरा किया, अब बाबा पास जाते हैं। फिर बाबा से वर्सा पायेंगे। साक्षात्कार भी करते हैं। इसमें परोक्ष और अपरोक्ष है। जैसे मम्मा को कोई साक्षात्कार नहीं हुआ। बाबा ने विनाश और स्थापना का साक्षात्कार किया, इनको भविष्य का साक्षात्कार एक्यूरेट हुआ है। परन्तु पहले यह समझ में नहीं आता कि हम यह विष्णु बनेंगे। पीछे समझते गये। इस विकारी गृहस्थ धर्म से अब निर्विकारी गृहस्थ धर्म में जाते हैं तत् त्वम्। तुम भी बाबा की पढ़ाई से ऐसे बनते हो। रेस करनी चाहिए। बाकी गीत में है मम्मा की महिमा। तो तुम जान गये हो जगत अम्बा किसको कहा जाता है। वास्तव में मात-पिता कौन है? वह तो निराकार बुद्धि में है। पिता तो गॉड फादर ठीक है। वह निराकार है। माता तो निराकार हो न सके। फादर निराकारी है, जरूर वर्सा देंगे। तो यहाँ आना पड़े ना, जो अपना परिचय दे। तो इनको मात-पिता बनना पड़े। तो यह बड़ी माता हो गई। दादा है निराकार। कितनी वण्डरफुल बातें हैं! दादी (ग्रेण्ड मदर) तो कोई बन न सके। यह ब्रह्मा तो मेल हो गया क्योंकि मुख वंशावली है। बाप कहते हैं कितना गुह्य राज़ है, जो कि समझाता हूँ। कोई की बुद्धि में बैठ नहीं सकता कि मात-पिता कौन है। वह समझते हैं कृष्ण के लिए। फ़र्क सिर्फ यह किया है, इसको कहा जाता है एकज़ भूल। कोई तो कारण बनना चाहिए ना। क्या भूल होती है जो भारत इतना दु:खी होता है। अभी तुम जानते हो किसने भुलाया, कारण क्या हुआ जो भूल गये। बरोबर माया रावण ने बेमुख किया है। जैसे बाबा करन-करावनहार है वैसे माया भी करन-करावनहार है। बाप करन-करावनहार सुख-दाता है, वह करन-करावनहार दु:ख दाता है। माया बाप से बेमुख कर देती है। अब बाप खुद कहते हैं हे आत्मायें निरन्तर मुझ बाप को याद करो। तुम हमारे बच्चे हो। तुमको वर्सा लेना है सिर्फ मुझे याद करो। तुम्हारे विकर्म विनाश हो जायेंगे। यह बेहद के बाप से मत मिलती है ब्रह्मा द्वारा, गुरू ब्रह्मा तो मशहूर है। वह फिर कह देते ईश्वर सर्वव्यापी है, बेअन्त है। आगे हम भी समझते थे यह ठीक कहते हैं। अभी समझते हैं कि यह तो रावण माया ने कहलवाया है। एक तरफ कहते नाम रूप से न्यारा है और फिर कहते सर्वव्यापी है। दो बात इक्ट्ठी हो न सकें। बस, गुरू ने जो कहा सो मान लिया। माया भूल कराती, नीचे गिराती है, फिर बाबा अभुल बनाते हैं ऊंच चढ़ाने लिए। बाबा तदबीर तो बहुत अच्छी कराते हैं फिर अपनी तकदीर बनानी है। बाप को याद करना है। यह तो सहज है। कन्या की जब सगाई हो जाती है तो उनके पीछे एकदम चटक पड़ती है ना। वैसे अब तुम्हारी सगाई होती है शिवबाबा से, तो उनको चटक पड़ना चाहिए। बाप कहते हैं तुम मुझे याद करो। तुम्हारी आत्मा पवित्र बनेगी तो तुम मेरे साथ चलोगे। मैं तुम्हें नैनों की पलकों पर ले चलूँगा। सिर्फ तुम मुझे याद करो तो मैं गैरन्टी करता हूँ तुम पापों से मुक्त हो जायेंगे। एम आब्जेक्ट बिगर पुरुषार्थ कैसे करेंगे। यहाँ अन्धश्रद्धा की बात नहीं। यह शिवबाबा की कॉलेज है। वह है स्वर्ग का रचयिता। अमरलोक के लिए पढ़ा रहे हैं। अब तो मृत्युलोक है। मृत्युलोक खत्म हो जायेगा, फिर सतयुग जरूर आयेगा। यह चक्र फिरता ही आता है। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार :

1) कछुए मिसल सब कर्मेन्द्रियों को समेट बाप और वर्से को याद करना है। कर्मयोगी बनना है। अपने आपसे बातें करनी है।

2) आपस में ज्ञान रत्नों की लेन-देन कर एक दो की पालना करनी है। सबसे रूहानी प्यार रखना है।

वरदान:-

साधना अर्थात् शक्तिशाली याद। बाप के साथ दिल का सच्चा संबंध। जैसे योग में शरीर से एकाग्र होकर बैठते हो ऐसे दिल, मन-बुद्धि सब एक बाप की तरफ बाप के साथ-साथ बैठ जाए – यही है यथार्थ साधना। अगर ऐसी साधना नहीं तो फिर आराधना चलती है। कभी याद करते कभी फरियाद करते। वास्तव में याद में फरियाद की आवश्यकता नहीं, जिसका दिल से बाप के साथ संबंध है वह निरन्तर योगी बन जाता है।

स्लोगन:-

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