13 Apr 2024 HINDI Murli Today | Brahma Kumaris

Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi

April 12, 2024

Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.

Brahma Kumaris

आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन।  Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. SourceOfficial Murli blog to read and listen daily murlis. पढ़े: मुरली का महत्त्व

“मीठे बच्चे - बाबा 21 जन्म के लिए तुम्हारी दिल ऐसी बहला देते हैं जो तुम्हें दिल बहलाने के लिए मेले-मलाखड़े आदि में जाने की दरकार नहीं''

प्रश्नः-

जो बच्चे अभी बाप के मददगार बनते हैं उनके लिए कौन-सी गैरन्टी है?

उत्तर:-

श्रीमत पर राजधानी स्थापन करने में मददगार बनने वाले बच्चों के लिए गैरन्टी है कि उन्हें कभी काल नहीं खा सकता। सतयुगी राजधानी में कभी अकाले मृत्यु नहीं हो सकती है। मददगार बच्चों को बाप द्वारा ऐसी प्राइज़ मिल जाती है जो 21 पीढ़ी तक अमर बन जाते हैं।

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ओम् शान्ति। बने बनाये सृष्टि चक्र अनुसार कल्प पहले मुआफिक शिव भगवानुवाच। अब अपना परिचय तो बच्चों को मिल गया। बाप का भी परिचय मिल गया। बेहद के बाप को तो जान लिया और बेहद के सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त को भी जान लिया। नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार कोई अच्छी रीति जान जाते हैं जो फिर समझा भी सकते हैं। कोई अधूरा, कोई कम। जैसे लड़ाई में भी कोई कमान्डर चीफ, कोई कैप्टन, कोई क्या बनते हैं। राजाई की माला में भी कोई साहूकार प्रजा, कोई गरीब प्रजा, नम्बरवार हैं। बच्चे जानते हैं बरोबर हम खुद श्रीमत पर सृष्टि पर श्रेष्ठ राजधानी स्थापन कर रहे हैं। जितनी-जितनी जो मेहनत करते हैं उतनी-उतनी बाप से प्राइज़ मिलती है। आजकल शान्ति के लिये राय देने वाले को भी प्राइज़ मिलती है। तुम बच्चों को भी प्राइज़ मिलती है। वह उनको नहीं मिल सकती। उनको हर चीज़ अल्पकाल के लिये मिलती है। तुम बाप की श्रीमत पर अपनी राजधानी स्थापन कर रहे हो। सो भी 21 जन्म, 21 पीढ़ी के लिये गैरन्टी है। वहाँ बचपन वा जवानी में काल खाता नहीं। यह भी जानते हो न मन, न चित्त था, हम ऐसे स्थान पर आकर बैठे हैं, जहाँ तुम्हारा यादगार भी खड़ा है। जहाँ 5 हज़ार वर्ष पहले भी सर्विस की थी। देलवाड़ा मन्दिर, अचलघर, गुरू शिखर हैं। सतगुरू भी ऊंचे ते ऊंच तुमको मिला है, जिसका यादगार बनाया हुआ है। अचलघर का भी राज़ तुम समझ गये हो। वह हुई घर की महिमा। तुम ऊंच ते ऊंच पद पाते हो अपने पुरूषार्थ से। यह है वन्डरफुल तुम्हारा जड़ यादगार। वहाँ ही तुम चैतन्य में आकर बैठे हो। यह सब है रूहानी कारोबार, जो कल्प पहले चली थी। उनका पूरा यादगार यहाँ है। नम्बरवन यादगार है। जैसे कोई बड़ा इम्तहान पास करते हैं तो उनके अन्दर खुशी, रौनक आ जाती है। फर्नीचर, पहरवाइस कितनी अच्छी रखते हैं। तुम तो विश्व के मालिक बनते हो। तुम्हारे से कोई भेंट कर नहीं सकता। यह भी स्कूल है। पढ़ाने वाले को भी तुम जान गये हो। भगवानुवाच, भक्ति मार्ग में जिसको याद करते हो, पूजा करते हो, कुछ भी पता नहीं पड़ता। बाप ही सम्मुख आकर सब राज़ समझाते हैं क्योंकि यह यादगार सब तुम्हारे पिछाड़ी की अवस्था के हैं। अभी रिजल्ट नहीं निकली है। जब तुम्हारी अवस्था सम्पूर्ण बन जाती है, उनका फिर भक्ति मार्ग में यादगार बनता है। जैसे रक्षाबन्धन का यादगार होता है। जब पूरी पक्की राखी बांध हम अपना राज्य भाग्य ले लेते हैं, तब फिर यादगार नहीं मनाते हैं। इस समय तुमको सभी मत्रों का अर्थ समझाया है। ओम् का अर्थ समझाया है। ओम् का अर्थ कोई लम्बा नहीं है। ओम् का अर्थ है अहम् आत्मा, मम शरीर। अज्ञान काल में भी तुम देह-अभिमान में रहते हो तो अपने को शरीर समझते हो। दिन-प्रतिदिन भक्ति मार्ग नीचे गिरता जाता है। तमोप्रधान बनता जाता है। हर चीज़ पहले सतोप्रधान होती है। भक्ति भी पहले सतोप्रधान थी। जब एक सत शिवबाबा को याद करते थे। थे भी बहुत थोड़े। दिन-प्रतिदिन वृद्धि बहुत होनी है। विलायत में जास्ती बच्चे पैदा करते हैं तो उनको इनाम मिलता है। बाप कहते हैं काम महाशत्रु है। सृष्टि की बहुत वृद्धि हो चुकी है, अब पवित्र बनो।

तुम बच्चे सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त को अब बाप द्वारा जान चुके हो। सतयुग में भक्ति का नाम निशान नहीं है। अभी तो कितनी धूमधाम है, मेले मलाखड़े बहुत लगते हैं, जो मनुष्य जाकर दिल को बहलायें। तुम्हारा दिल तो बाप आकर बहलाते हैं 21 जन्मों के लिये। जो तुम सदैव बहलते रहते हो। तुमको कभी मेले आदि में जाने का ख्याल भी नहीं आयेगा। कहाँ भी मनुष्य जाते हैं सुख के लिये। तुमको कहाँ पहाड़ों पर जाने की दरकार नहीं। यहाँ देखो कैसे मनुष्य मरते हैं। मनुष्य तो सतयुग-कलियुग, स्वर्ग-नर्क को भी नहीं जानते। तुम बच्चों को तो पूरा ज्ञान मिला है। बाप नहीं कहते हैं कि मेरे साथ तुमको रहना है। तुमको घरबार भी सम्भालना है। बच्चे जुदा तब होते हैं जब कोई खिटखिट होती है। फिर भी तुम बाप के संग रह नहीं सकते हो। सब सतोप्रधान बन नहीं सकते। कोई सतो, कोई रजो, कोई तमो अवस्था में भी हैं। सब इकट्ठे रह नहीं सकेंगे। यह राजधानी बन रही है। जो जितना-जितना बाप को याद करेंगे, उस अनुसार राजधानी में पद पायेंगे। मुख्य बात है ही बाप को याद करने की। बाप स्वयं बैठ ड्रिल सिखलाते हैं। यह है डेड साइलेन्स। तुम यहाँ जो कुछ देखते हो, उनको देखना नहीं है। देह सहित सबका त्याग करना है। तुम क्या देखते हो? एक तो अपने घर को और पढ़ाई अनुसार जो पद पाते हो, उस सतयुगी राजाई को भी तुम ही जानते हो, जब सतयुग है तो त्रेता नहीं, त्रेता है तो द्वापर नहीं, द्वापर है तो कलियुग नहीं। अब कलियुग भी है, संगमयुग भी है। भल तुम बैठे पुरानी दुनिया में हो परन्तु बुद्धि से समझते हो हम संगमयुगी हैं। संगमयुग किसको कहा जाता है – यह भी तुम जानते हो। पुरूषोत्तम वर्ष, पुरूषोत्तम मास, पुरूषोत्तम दिन भी इस पुरूषोत्तम संगम पर ही होता है। पुरूषोत्तम बनने की घड़ी भी इस पुरूषोत्तम युग में ही है। यह बहुत छोटा लीप युग है। तुम लोग बाजोली खेलते हो, जिससे तुम स्वर्ग में जाते हो। बाबा ने देखा है कैसे साधू लोग अथवा कोई-कोई बाजोली खेलते-खेलते यात्रा पर जाते हैं। बड़ी कठिनाई उठाते हैं। अब इसमें कठिनाई की बात नहीं। यह है योगबल की बातें। क्या याद की यात्रा तुम बच्चों को कठिन लगती है? नाम तो बहुत सहज रखा है। कहाँ सुनकर डर न जायें। कहते हैं बाबा हम योग में रह नहीं सकते। बाबा फिर हल्का कर देते हैं। यह है बाप की याद। याद तो सब चीज़ों को किया जाता है। बाप कहते हैं अपने को आत्मा समझो। तुम बच्चे हो ना। यह तुम्हारा बाप भी है, माशूक भी है। सब आशिक उनको याद करते हैं, एक बाप अक्षर भी काफी है। भक्ति मार्ग में तुम मित्र-सम्बन्धियों को याद करते, फिर भी हे प्रभू, हे ईश्वर जरूर कहते हो। सिर्फ पता नहीं कि वह क्या चीज़ है। आत्माओं का बाप तो परमात्मा है। इस शरीर का बाप तो देहधारी है। आत्माओं का बाप अशरीरी है। वह कभी पुनर्जन्म में नहीं आते। और सभी पुनर्जन्म में आते हैं, इसलिये बाप को ही याद करते हैं। जरूर कभी सुख दिया है। उनको कहा जाता है दु:ख हर्ता, सुख कर्ता, परन्तु उनके नाम, रूप, देश, काल को नहीं जानते हैं। जितने मनुष्य उतनी बातें। अनेक मत हो गई हैं।

बाप कितना प्रेम से पढ़ाते हैं। वह है ईश्वर, शान्ति देने वाला। कितना उनसे सुख मिलता है। एक ही गीता सुनाकर पतितों को पावन बना देते हैं। प्रवृत्ति मार्ग भी चाहिये ना। मनुष्यों ने कल्प की आयु लाखों वर्ष कह दी है, फिर तो अनगिनत मनुष्य हो जाते। कितनी भूल की है। यह नॉलेज तुमको अभी मिलती है फिर प्राय: लोप हो जाती है। चित्र तो हैं, जिनकी पूजा होती है। परन्तु अपने को देवता धर्म का समझते नहीं हैं। जो जिनकी पूजा करते हैं, वह उस धर्म के हैं ना। यह समझ नहीं सकते कि हम आदि सनातन देवी-देवता धर्म के हैं। उनकी ही वंशावली हैं। यह बाप ही समझाते हैं। बाप कहते हैं तुम पावन थे, फिर तमोप्रधान बन पड़े हो, अब पावन सतोप्रधान बनना है। क्या गंगा स्नान से बनेंगे? पतित-पावन तो बाप है। वह जब आकर रास्ता बताये तब तो पावन बनें। पुकारते रहते हैं परन्तु जानते कुछ भी नहीं। आत्मा पुकारती है आरगन्स द्वारा कि हे पतित-पावन बाबा हमको आकर पावन बनाओ। सब पतित हैं, काम चिता पर जलते रहते हैं। यह खेल ही ऐसा बना हुआ है। फिर बाप आकर सबको पावन बना देते हैं। यह बाप संगम पर ही समझाते हैं। सतयुग में होता है एक धर्म, बाकी सब वापिस चले जाते हैं। तुम ड्रामा को समझ गये हो, जो और कोई नहीं जानते हैं। इस रचना का आदि, मध्य, अन्त क्या है, ड्युरेशन कितना है, यह तुम ही जानते हो। वह सब हैं शूद्र, तुम हो ब्राह्मण। तुम भी जानते हो नम्बर-वार पुरूषार्थ अनुसार। कोई ग़फलत करते हैं तो उनके रजिस्टर से दिखाई पड़ता है कि पढ़ाई कम की है। कैरेक्टर्स का रजिस्टर होता है। यहाँ भी रजिस्टर होना चाहिए। यह है याद की यात्रा, जिसका कोई को भी पता नहीं है। सबसे मुख्य सब्जेक्ट है याद की यात्रा। अपने को आत्मा समझ बाप को याद करना है। आत्मा मुख से कहती है हम एक शरीर छोड़ दूसरा लेते हैं। यह सब बातें यह ब्रह्मा बाबा नहीं समझाते हैं। परन्तु ज्ञान सागर परमपिता परमात्मा इस रथ में बैठकर सुनाते हैं। कहा जाता है गऊ मुख। मन्दिर भी यहाँ बना हुआ है, जहाँ तुम बैठे हो। जैसे तुम्हारी सीढ़ी है, वैसे वहाँ भी सीढ़ी है। तुमको चढ़ने में थकावट नहीं होती है।

तुम यहाँ आये हो बाप से पढ़कर रिफ्रेश होने के लिये। वहाँ गोरखधन्धा बहुत रहता है। शान्ति से सुन भी नहीं सकेंगे। संकल्प चलता रहेगा – कोई देख न ले, जल्दी घर जाऊं। कितना ओना (चिंता) रहता है। यहाँ कोई भी ओना नहीं, जैसे हॉस्टल में रहते हैं। यहाँ ईश्वरीय परिवार है। शान्तिधाम में भाई-भाई रहते हैं। यहाँ हैं भाई-बहन क्योंकि यहाँ पार्ट बजाना है तो भाई-बहन चाहिये। सतयुग में भी तुम ही आपस में भाई-बहन थे। उनको कहा जाता है अद्वेत राजधानी। वहाँ लड़ाई-झगड़ा कुछ भी नहीं होता। तुम बच्चों को पूरी नॉलेज मिली है कि हम 84 जन्म लेते हैं। जिसने जास्ती भक्ति की है, उनका हिसाब भी बाप ने बताया है। तुम ही शिव की अव्यभिचारी भक्ति करना शुरू करते हो। फिर वृद्धि होती जाती है। वह है सब भक्ति। ज्ञान तो एक ही होता है। तुम जानते हो हमको शिवबाबा पढ़ाते हैं। यह ब्रह्मा तो कुछ भी नहीं जानते थे। जो ग्रेट-ग्रेट ग्रैण्ड फादर था वह इस समय यह बने हैं फिर मालिक बनते हैं, तत् त्वम्। एक तो मालिक नहीं बनेंगे ना। तुम भी पुरूषार्थ करते हो। यह है बेहद का स्कूल। इसकी ब्रान्चेज ढेर होंगी। गली-गली घर-घर में हो जायेंगी। कहते हैं हमने अपने घर में चित्र रखे हैं, मित्र-सम्बन्धी आदि आते हैं तो उनको समझाते हैं। जो इस झाड़ के पत्ते होंगे वह आ जायेंगे। उन्हों के कल्याण के लिये तुम करते हो। चित्रों पर समझाना सहज होगा। शास्त्र तो ढेर पढ़े हैं, अब सब भूलने हैं। बाप है पढ़ाने वाला, वही सच्चा ज्ञान सुनाते हैं। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार :

1) डेड साइलेन्स की ड्रिल करने के लिये यहाँ जो कुछ इन आंखों से दिखाई देता है, उसे नहीं देखना है। देह सहित बुद्धि से सबका त्याग कर अपने घर और राज्य की स्मृति में रहना है।

2) अपने कैरेक्टर्स का रजिस्टर रखना है। पढ़ाई में कोई ग़फलत नहीं करनी है। इस पुरूषोत्तम संगमयुग पर पुरूषोत्तम बनना और बनाना है।

वरदान:-

जब भी कोई देवी या देवता की मूर्ति बनाते हैं तो उसमें चेहरा सदा हर्षित दिखाते हैं। तो आपके इस समय के हर्षितमुख रहने का यादगार चित्रों में भी दिखाते हैं। हर्षितमुख अर्थात् सदा सर्व प्राप्तियों से भरपूर। जो भरपूर होता है वही हर्षित रह सकता है। अगर कोई भी अप्राप्ति होगी तो हर्षित नहीं रहेंगे। कोई कितना भी हर्षित रहने की कोशिश करे, बाहर से हंसेंगे लेकिन दिल से नहीं। आप तो दिल से मुस्कराते हो क्योंकि सर्व प्राप्तियों से भरपूर हर्षितचित है।

स्लोगन:-

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