12 October 2022 HINDI Murli Today | Brahma Kumaris
Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi
11 October 2022
Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.
Brahma Kumaris
आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन। Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. Source: Official Murli blog to read and listen daily murlis. ➤ पढ़े: मुरली का महत्त्व
“मीठे बच्चे - तुम्हें रूहानी कमाई में बहुत-बहुत ध्यान देना है, सिर पर विकर्मो का बोझा बहुत है, इसलिए समय वेस्ट नहीं करना है''
प्रश्नः-
जिन बच्चों का ध्यान रूहानी कमाई में होगा, उनकी निशानी क्या होगी?
उत्तर:-
वह कभी भी झरमुई झगमुई में अपना समय बरबाद नहीं करेंगे। शरीर निर्वाह करते हुए भी रूहानी कमाई में समय लगायेंगे। सुबह उठकर बहुत-बहुत प्यार से बाप को याद करेंगे। याद से आत्मा उड़ती रहेगी। 2. वह बाप समान रहमदिल बन अपने ऊपर और सर्व के ऊपर रहम करेंगे। सबको बाप का परिचय देंगे।
♫ मुरली सुने (audio)➤
गीत:-
तुम्हीं हो माता पिता तुम्हीं हो…..
ओम् शान्ति। बच्चों ने गीत में मात-पिता की महिमा सुनी, जैसे कोई घर में बच्चे रहते हैं तो मात-पिता, दादा होता है ना। दादे से वर्सा मिलता है – बाप द्वारा, क्योंकि दादे की मिलकियत बड़ों की मिलकियत होती है। तो यह भी सबसे बड़ा है। दुनिया वालों को तो पता ही नहीं। बच्चों को पता है। तुम्हीं हो माता पिता … तो यह दादे के लिए शब्द हैं। तो उनका परिचय देना पड़े। चाहे सम्मुख हो, चाहे चित्रों द्वारा, चाहे प्रोजेक्टर द्वारा तो दादे का परिचय देना बहुत जरूरी है। जिस्मानी दादा साकार होता है। अब तुम्हारी बुद्धि में पहले कौन आया? दादा। भल प्रोजेक्टर द्वारा समझाओ, वह भी नम्बरवार चित्र दिखाना है। पहले-पहले परमपिता परमात्मा की समझानी देनी है। तो परमपिता परमात्मा से तुम्हारा क्या सम्बन्ध है? और फिर प्रजापिता ब्रह्मा से क्या सम्बन्ध है? तो पहले-पहले शिव का चित्र दिखाना चाहिए फिर है लिखत, जो प्रदर्शनी पर समझाते हैं वा मैगजीन भी बनाते हैं तो पहले-पहले परिचय देना है। गीता में लिखा हुआ है भगवानुवाच। तो पहले भगवान का परिचय देना चाहिए। तुम सबकी बुद्धि चली गई है ऊपर। सबसे ऊंचा है परमपिता परमात्मा निराकार शिवबाबा। फिर ब्रह्मा, विष्णु, शंकर फिर यहाँ आओ तो जैसे घर में मात-पिता और दादा बैठे होते हैं। वह है हद का, यह है बेहद का। चित्र सहित सारी लिखते होनी चाहिए। फ़र्क भी बताना चाहिए कि अनेक मनुष्य हठयोग सिखाते आये हैं और एक परमात्मा राजयोग सिखाते हैं, जिससे मुक्ति जीवनमुक्ति मिल रही है। यहाँ है ही एक निराकार परमपिता परमात्मा शिव भगवानुवाच की बात। जैसे लौकिक माँ-बाप, दादा बच्चों की बुद्धि में याद पड़ते हैं। हूबहू तुम्हारी बुद्धि में भी ऐसे है। यह सिर्फ पारलौकिक है, वह है लौकिक। तुमको निश्चय है कि यह है शिवबाबा। हमारा बाप है तो उनको याद करना चाहिए, परन्तु बच्चे भूल जाते हैं। टाइम बहुत वेस्ट करते हैं। वेस्ट टाइम नहीं करना चाहिए क्योंकि विकर्मों का बोझा सिर पर बहुत है। आत्मा में खाद पड़ गई है। तो लिखना चाहिए परमात्मा कौन है? परमात्मा के चित्र और श्रीकृष्ण के चित्र पर घड़ी-घड़ी समझाना चाहिए। स्वर्ग और नर्क के गोले बड़े अच्छे मशहूर हैं। नर्क के गोले पर लिख देना चाहिए कि यह है रावण राज्य, भ्रष्टाचारी दुनिया और स्वर्ग के गोले पर लिखो कि यह है श्रेष्ठाचारी दुनिया, तो टाइम लिखना चाहिए स्वर्ग इतना समय, नर्क इतना समय। देखो चढ़ती कला, उतरती कला का भी चित्र है क्योंकि उतरती कला में 5 हजार वर्ष और चढ़ती कला एक सेकेण्ड में, तो यह जम्प हो गया। यह मुख्य बात समझाने की है, फिर है विराट रूप, जिसमें ब्राह्मण चोटी ईश्वरीय सम्प्रदाय हैं। ब्रह्मा मुख द्वारा रचा हुआ तुम्हारा ब्राह्मण कुल मशहूर है, सर्वोत्तम है। तो सबको समझाने के लिए यह चित्र बहुत जरूरी हैं। वैरायटी धर्मों का झाड़ है, वह भी अच्छा है। बच्चों को स्वदर्शन चक्रधारी बनना है। तो चक्र का भी ज्ञान देना है कि चक्र कैसे फिरता है। ब्रह्मा-सरस्वती का हीरो हीरोइन का पार्ट कैसे है। तो गोले का भी चित्र बड़ा होना चाहिए। बहुत में बहुत एक डेढ़ घण्टा प्रोजेक्टर दिखाना चाहिए क्योंकि मनुष्य इन बातों में थक जाते हैं। स्टोरी तो कोई नहीं – यह तो ज्ञान की बात है। पहले जब लिखे तब अन्दर में आ सके। तो दिखाने के लिए टिकट रखना चाहिए। पैसे वाली टिकेट नहीं, परन्तु एन्ट्रीपास हो, बड़े-बड़े आदमियों को तो निमंत्रण दे बुलाना चाहिए क्योंकि बड़ों-बड़ों से ओपीनियन लिखाना है। झुण्ड के झुण्ड में कैसे लिखायेंगे और कैसे दिखायेंगे क्योंकि समझाना भी है इसलिए पहले-पहले बड़े आदमियों को बुलाकर लिखाना है फिर जनरल कर देना चाहिए। प्रदर्शनी में भी ऐसे तो प्रोजेक्टर में भी ऐसे, मैगजीन में भी इन अच्छे-अच्छे चित्रों को बनाकर साथ-साथ समझानी लिखो फिर किसको प्रेजेन्ट दे देना चाहिए। हठयोग और राजयोग का कान्ट्रास्ट भी अच्छी तरह लिखना चाहिए। हठयोग भी एक प्रकार की हिंसा है क्योंकि शरीर को कष्ट देते हैं, तकलीफ देते हैं। तुम्हारा यह है अहिंसक योग जो अति सहज है। चलते-फिरते बाप को याद करते रहो। हिंसक और अहिंसक को भी सिद्ध करना है। कई तो शरीर की तन्दरूस्ती के लिए क्रिया करते हैं। वह कोई फिर परमात्मा से नहीं मिलते, हठयोग को भी योग कह देते हैं। योगाश्रम है ना। यह है फिर सहज राजयोग। ईश्वर का सिखाया हुआ योग। तो यह बहुत अच्छी तरह से समझाना चाहिए। जिनका बुद्धियोग सारा दिन झरमुई, झगमुई में होगा वह क्या समझा सकेंगे। जिनकी बुद्धि में होगा कि सर्विस करनी है, वह करेंगे। 8 घण्टा धन्धा किया फिर यह कमाई करनी चाहिए। वह है जिस्मानी कमाई, यह है रूहानी कमाई। तो इस कमाई में बहुत ध्यान देना चाहिए। योग में बहुत प्रैक्टिस करनी चाहिए। सुबह उठ बाप को बड़े प्यार से याद करना चाहिए। जिनको बाप एक दो नम्बर में रखते, वह भी याद नहीं करते हैं। भाषण तो बहुत अच्छा कर लेते हैं परन्तु याद में नहीं रहते। आत्मा तो याद से ही उड़ेगी, ज्ञान से थोड़ेही उड़ेगी। ध्यान में भी याद से ही जाते हैं। ज्ञान की तो इसमें कोई बात ही नहीं। ध्यान तो एक पाई पैसे की बात हो जाती है। कईयों को तो फट से श्रीकृष्ण का साक्षात्कार हो जाता है। कई बच्चियां लिखती हैं कि बाबा हमने आपको पहचाना है। वह ध्यान में ब्रह्मा को भी देखती हैं और प्रेरणा भी मिलती है। तो फिर उनको निश्चय हो जाता है। जिसने बाबा को कभी देखा भी नहीं है वह भी लिखती हैं हम बाबा को बहुत याद करते हैं। हम आपसे वर्सा लेकर ही छोड़ेंगे। आप तो जानते हैं हम याद करते हैं। जब कहती हैं आप… तो शिवबाबा ही याद आता है। तो बांधेली बच्चियां बहुत याद करती हैं, उतना सामने वाले भी याद नहीं करते। एक बात है याद की। फिर गांधी जी कहते थे कि रामराज्य हो। अभी तो रावणराज्य है। इस पर तुम समझा सकते हो। चढ़ती कला तो परमात्मा ही करा सकते हैं। बाकी तो सब एक दो को गिराते ही रहते हैं। देवतायें भी गिरते जाते हैं। भल सुख में ही हैं परन्तु कला तो कम होती जाती है ना। जूँ की तरह गिरते जाते हैं क्योंकि ड्रामा भी जूँ के मिसल चलता ही रहता है। तो चढ़ती कला एक के ही द्वारा होती है। समझाने के लिए प्रोजेक्टर बहुत अच्छा है। सेन्टर भी बहुत बढ़ते जायेंगे। बाबा कहते हैं कि हर एक भाषा में स्लाईड्स बनाते जाओ। परन्तु काम करने वाला ऐसा कोई है नहीं। बाबा युक्ति तो बता देते हैं। परन्तु काम करने वाला चाहिए तो सर्विस बहुत बढ़ सकती है।
बच्चों को अपने भाई-बहिनों पर बहुत रहम करना चाहिए। बाबा रहमदिल है ना। मेरा आना भी भारत में ही होता है, और जगह आना मेरा नहीं होता। शिवजयन्ती भी भारत में मनाई जाती है। परन्तु जानते नहीं हैं, समझो क्राइस्ट की जयन्ती मनाते हैं तो उनके कर्तव्य को जानते हैं। परन्तु शिव का कर्तव्य नहीं जानते। वही पतित-पावन है। भारत बड़े ते बड़ा तीर्थ है। गीता में श्रीकृष्ण का नाम डालने से इतने बड़े तीर्थ भारत की महिमा गुम हो गई है। देखो, मुहम्मद गजनवी ने मन्दिर लूटा था, अगर उनको यह मालूम होता कि यह हमारे बाबा का मन्दिर है तो लूटते थोड़ेही। अल्लाह के मन्दिर को कौन लूटेगा, जिसने स्वर्ग की स्थापना की। अगर शिवबाबा को जाने तो कभी मन्दिर को हाथ न लगायें। भल वह शिव को माथा टेकते हैं परन्तु जान गये तो कभी न लूटें। सिर्फ गीता में श्रीकृष्ण का नाम डालने से यह सब कुछ हुआ है। गीता खण्डन होने से देखो क्या हाल हुआ है। अगर शिव का नाम होता कि वही गति सद्गति दाता है। यह एक की ही महिमा है। अगर वह न आता तो पावन कैसे बनते? भारत को कैसे स्वर्ग बना सकते। यह गुप्त बात है ना। जानते हैं हम दुर्गति में थे। अब यहाँ बैठे हैं परन्तु जा रहे हैं। बच्चों को बहुत खुशी होनी चाहिए कि हम अपने लिए राजाई स्थापन कर रहे हैं, तो औरों को भी रास्ता दिखाकर प्रजा बनानी चाहिए। बड़ी मेहनत करनी चाहिए। है तो बहुत सहज। सिर्फ बाप और वर्से को याद करो। स्वर्ग को याद करो, यह तो नर्क है। हम सो का अर्थ भी बाबा ने समझाया है, हम सो देवता, हम सो क्षत्रिय…… और कोई तो इन सब बातों को समझते नहीं। तो विराट रूप में यह समझाना है कि हम सो देवता…. बनते हैं। अभी हम स्वर्ग में गये कि गये। बहुत लोग पूछते हैं कितनी देरी है? बाबा कहते हैं तुम अब तैयार कहाँ हुए हो जो स्वर्ग में जा सको। ड्रामा तो बना हुआ है। जितनी-जितनी स्थापना होती जा रही है तो विनाश ज्वाला भी धीरे-धीरे बढ़ती जा रही है। धर्मों में झगड़ा शुरू होता जा रहा है। पहले पार्टीशन थोड़ेही था। तुम जानते हो पहले एक देवता धर्म था। गीत है ना – आप मिले तो हम स्वर्ग का राज्य, योग बल से ले रहे हैं। बाहुबल से कोई ले नहीं सकता। उनके पास बाहुबल है। रशिया, अमेरिका आपस में मिल जाएं तो सारा राज्य ले सकते हैं। परन्तु ऐसा होता नहीं है। जब देवताओं का राज्य है तो वहाँ क्रिश्चयिन, बौद्धी नहीं होते। अब देवता धर्म की स्थापना हो रही है। भारत अविनाशी खण्ड है। बाप भी यहाँ आये हैं ना। ड्रामा में ऐसे ही है कि योगबल से राजाई मिलती है। भारत का प्राचीन योग मशहूर है, परन्तु योग सिखाया किसने और कैसे, वह नहीं जानते। श्रीकृष्ण ने तो योग नहीं सिखाया। परमपिता परमात्मा ही योग सिखला रहे हैं। यह कितनी अटपटी बात है जो बुद्धि से खिसक जाती है। कई तो जानते भी छोड़ देते हैं। तब बाप कहते हैं समझदार देखना हो तो यहाँ देखो… समझदार वर्सा लेते हैं। बेसमझ छोड़ देते हैं। स्वर्ग का वर्सा गँवा देते हैं। महान मूर्ख, महान सुजान देखना हो तो यहाँ देखो। स्वर्ग में वह भी जायेंगे परन्तु प्रजा में जायेंगे। तुम जानते हो सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी प्रजा कैसे बनती है। बाप की गोद यहाँ मिलती है। मूलवतन में गोद का हिसाब नहीं है। बच्चा जब पैदा होता है तो गुरू की गोद में देते हैं। समझते हैं गुरू की गोद में नहीं गया तो दुर्गति को पायेगा। छोटे बच्चे को भी गुरू करा देते हैं। गुरू बिगर गति नहीं, यह गुरूओं ने समझाया है। पता नहीं कब शरीर छूट जाए। वहाँ तो जन्म ले फिर गुरू के पास जाते हैं। यहाँ तीनों कम्बाइन्ड हैं। यह कोई शास्त्रों में लिखा नहीं है कि वही बाप टीचर गुरू की गोद है। बाप ने पूछा शिवबाबा को बाप है? कहते हैं हाँ। अच्छा शिवबाबा को टीचर है? गुरू है? नहीं। सिर्फ माँ बाप मिलते हैं। यह गुह्य हिसाब है। बाप बच्चों पर बच्चे बाप पर बलिहार जाते हैं। लौकिक में बच्चे बाप पर बलिहार नहीं जाते हैं, बाप जाते हैं। तो यह समझने की बात है कि बरोबर परमात्मा बाप, टीचर, सतगुरू है, उनसे ही वर्सा मिलता है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार :
1) स्वदर्शन चक्रधारी बनना है। हम ब्राह्मण चोटी हैं, ईश्वरीय सम्प्रदाय के हैं, इस नशे में रहना है।
2) अपना समय बाप की याद में सफल करना है। रूहानी सर्विस में बिजी रहना है। बाप पर पूरा-पूरा बलिहार जाना है।
वरदान:-
तपस्वी सदा आसनधारी होते हैं, वे कोई न कोई आसन पर बैठकर तपस्या करते हैं। आप तपस्वी बच्चों का आसन है – एकरस स्थिति, फरिश्ता स्थिति। इन्हीं श्रेष्ठ स्थितियों के आसन पर स्थित होकर तपस्या करो। जैसे स्थूल आसन पर शरीर बैठता है ऐसे श्रेष्ठ स्थिति के आसन पर मन-बुद्धि को बिठा दो और जितना समय चाहो, जब चाहो-आसन पर बैठ जाओ। इस समय श्रेष्ठ स्थिति के आसन पर बैठने वालों को भविष्य में राज्य का सिंहासन प्राप्त होता है।
स्लोगन:-
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