12 November 2023 HINDI Murli Today | Brahma Kumaris

Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi

9 November 2023

Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.

Brahma Kumaris

आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन।  Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. SourceOfficial Murli blog to read and listen daily murlis. पढ़े: मुरली का महत्त्व

“ब्राह्मण जीवन की पर्सनैलिटी - सब प्रश्नों से पार सदा प्रसन्नचित्त रहना''

♫ मुरली सुने (audio)➤

आज सर्व प्राप्ति दाता, बापदादा अपने सर्व प्राप्ति स्वरूप बच्चों को देख रहे हैं। बापदादा द्वारा प्राप्तियाँ तो बहुत हुई हैं, जिसका अगर वर्णन करो तो बहुत हैं लेकिन लम्बी लिस्ट बताने के बजाए यही वर्णन करते हो कि ‘अप्राप्त नहीं कोई वस्तु इस ब्राह्मण जीवन में।’ तो बापदादा देख रहे हैं कि प्राप्तियाँ तो बहुत हैं, लम्बी लिस्ट है ना! तो जिसको सर्व प्राप्तियाँ हैं उसकी निशानी प्रत्यक्ष जीवन में क्या दिखाई देगी-वह जानते हो ना? सर्व प्राप्तियों की निशानी है – सदा उसके चेहरे और चलन में प्रसन्नता की पर्सनैलिटी दिखाई देगी। पर्सनैलिटी ही किसी को भी आकर्षित करती है। तो सर्व प्राप्तियों की निशानी – प्रसन्नता की पर्सनैलिटी है, जिसको सन्तुष्टता भी कहते हैं। लेकिन आजकल चेहरे पर जो सदा प्रसन्नता की झलक देखने में आवे, वह नहीं दिखाई देती। कभी प्रसन्नचित्त और कभी प्रश्नचित्त। दो प्रकार के हैं, एक हैं – जरा सा परिस्थिति आई तो प्रश्नचित्त – क्यों, क्या, कैसे, कब… यह प्रश्नचित्त और प्राप्ति स्वरूप सदा प्रसन्नचित्त होंगे। उसको कभी भी किसी भी बात में क्वेश्चन (प्रश्न) नहीं होगा क्योंकि सर्व प्राप्तियों से सम्पन्न है। तो यह क्यों, क्या जो है वह हलचल है, जो सम्पन्न होता है उसमें हलचल नहीं होती है। जो खाली होता है, उसमें हलचल होती है। तो अपने आपसे पूछो कि मैं सदा प्रसन्नचित्त रहती वा रहता हूँ? कभी-कभी नहीं सदा? 10 वर्ष वाले तो सदा होंगे या नहीं? हाँ नहीं करते, सोच रहे हैं? प्रसन्नता अगर कम होती है तो उसका कारण प्राप्ति कम और प्राप्ति कम का कारण, कोई न कोई इच्छा है। इच्छा का फाउण्डेशन ईर्ष्या और अप्राप्ति है। बहुत सूक्ष्म इच्छायें अप्राप्ति के तरफ खींच लेती हैं, फिर रॉयल रूप में यही कहते हैं कि मेरी इच्छा नहीं है, लेकिन हो जाए तो अच्छा है। लेकिन जहाँ अल्पकाल की इच्छा है, वहाँ अच्छा हो नहीं सकता। तो चेक करो चाहे ज्ञान के जीवन में, ज्ञान के रॉयल रूप की इच्छायें, चाहे मोटे रूप की इच्छायें, अभी देखा जाता है कि मोटे रूप की इच्छायें समाप्त हुई हैं लेकिन रॉयल इच्छायें ज्ञान के बाद सूक्ष्म रूप में रही हुई हैं, वह चेक करो क्योंकि बापदादा अभी सभी बच्चों को बाप समान सम्पन्न, सम्पूर्ण बनाने चाहते हैं। जिससे प्यार होता है, उसके समान बनना कोई मुश्किल बात नहीं होती है।

तो बापदादा से सबका बहुत प्यार है या प्यार है? (बहुत प्यार है) पक्का? तो प्यार के पीछे त्याग करना या परिवर्तन करना क्या बड़ी बात है? (नहीं)। तो पूरा त्याग किया है? जो बाप कहता है, जो बाप चाहता है वह किया है? सदा किया है? कभी-कभी से काम नहीं चलेगा। सदा का राज्य भाग्य प्राप्त करना है या कभी-कभी का? सदा का चाहिए ना? तो सदा प्रसन्नता, और कोई भी भाव चेहरे पर वा चलन में दिखाई नहीं दे। कभी-कभी कहते हैं ना आज बहन जी या भाई जी का मूड और है। आप भी कहते हो आज मेरा मूड और है। तो इसको क्या कहेंगे? सदा प्रसन्नता हुई? कई बच्चे प्रशंसा के आधार पर प्रसन्नता अनुभव करते हैं लेकिन वह प्रसन्नता अल्पकाल की है। आज है कुछ समय के बाद समाप्त हो जायेगी। तो यह भी चेक करो कि मेरी प्रसन्नता प्रशंसा के आधार पर तो नहीं है? जैसे आजकल मकान बनाते हैं ना तो सीमेंट के साथ रेत की मात्रा ज्यादा डाल देते हैं, मिक्स करते हैं। तो यह भी ऐसा ही है जो फाउण्डेशन मिक्स है। यथार्थ नहीं है। तो जरा सा परिस्थिति का तूफान आता है वा किसी भी प्रकार की हलचल होती है तो प्रसन्नता को समाप्त कर देती है। तो ऐसा फाउण्डेशन तो नहीं है?

बापदादा ने पहले भी सुनाया है, अब फिर से अण्डरलाइन कर रहे हैं कि रॉयल रूप की इच्छा का स्वरूप नाम, मान और शान है। आधार सर्विस का लेते हैं, सर्विस में नाम हो। लेकिन जो नाम के पीछे सेवा करते हैं, उनका नाम अल्पकाल के लिए तो हो जाता है कि बहुत अच्छा सर्विसएबुल है, बहुत अच्छा आकर्षण करने वाले हैं लेकिन नाम के आधार पर सेवा करने वाले का ऊंच पद में नाम पीछे हो जाता हैक्योंकि कच्चा फल खा लिया, पका ही नहीं। तो पक्का फल कहाँ खायेंगे, कच्चा खा लिया। अभी-अभी सेवा की, अभी-अभी नाम पाया तो यह कच्चा फल है, या इच्छा रखी कि सेवा तो मैंने बहुत की, सबसे ज्यादा सेवा के निमित्त मैं हूँ, ये नाम के आधार पर सेवा हुई – इसे कहेंगे कच्चा फल खाने वाले। तो कच्चे फल में ताकत होती है क्या? वा सेवा की, तो सेवा के रिजल्ट में मेरे को मान मिलना चाहिए। यह मान नहीं है लेकिन अभिमान है। जहाँ अभिमान है वहाँ प्रसन्नता रह नहीं सकती। सबसे बड़ा शान बापदादा के दिल में शान प्राप्त करो। आत्माओं के दिल में अगर शान मिल भी गया तो आत्मा स्वयं ही लेने वाली है, मास्टर दाता है, दाता नहीं। तो शान चाहिए तो सदा बापदादा के दिल में अपना शान प्राप्त करो। ये सब रॉयल इच्छायें प्राप्ति स्वरूप बनने नहीं देती हैं, इसलिए प्रसन्नता की पर्सनैलिटी सदा चेहरे और चलन में दिखाई नहीं देती है। किसी भी परिस्थिति में प्रसन्नता की मूड परिवर्तन होती है तो सदाकाल की प्रसन्नता नहीं कहेंगे। ब्राह्मण जीवन की मूड सदा चियरफुल और केयरफुल। मूड बदलना नहीं चाहिए। फिर रॉयल रूप में कहते हैं आज मुझे बड़ी एकान्त चाहिए। क्यों चाहिए? क्योंकि सेवा वा परिवार से किनारा करना चाहते हैं, और कहते हैं शान्ति चाहिए, एकान्त चाहिए। आज मूड मेरा ऐसा है। तो मूड नहीं बदली करो। कारण कुछ भी हो, लेकिन आप कारण को निवारण करने वाले हो, कि कारण में आने वाले हो? निवारण करने वाले। ठेका क्या लिया है? कांट्रेक्टर हो ना? तो क्या कॉन्ट्रैक्ट लिया है? कि प्रकृति की मूड भी चेंज करेंगे। प्रकृति को भी चेंज करना है ना? तो प्रकृति को परिवर्तन करने वाले अपने मूड को नहीं परिवर्तन कर सकते? मूड चेंज होती है कि नहीं? कभी-कभी होती है? फिर कहेंगे सागर के किनारे पर जाकर बैठते हैं, ज्ञान सागर नहीं, स्थूल सागर। फॉरेनर्स ऐसे करते हैं ना? या कहेंगे आज पता नहीं अकेला, अकेला लगता है। तो बाप का कम्बाइण्ड रूप कहाँ गया? अलग कर दिया? कम्बाइण्ड से अकेले हो गये, क्या इसी को प्यार कहा जाता है? तो किसी भी प्रकार का मूड, एक होता है – मूड ऑफ, वह है बड़ी बात, लेकिन मूड परिवर्तन होना यह भी ठीक नहीं। मूड ऑफ वाले तो बहुत भिन्न-भिन्न प्रकार के खेल दिखाते हैं, बापदादा देखते हैं, बड़ों को बहुत खेल दिखाते हैं या अपने साथियों को बहुत खेल दिखाते हैं। ऐसा खेल नहीं करो क्योंकि बापदादा का सभी बच्चों से प्यार है। बापदादा यह नहीं चाहता कि जो विशेष निमित्त हैं, वह बाप समान बन जाएं और बाकी बने या नहीं बनें, नहीं। सबको समान बनाना ही है, यही बापदादा का प्यार है। तो प्यार का रेसपाण्ड देने आता है कि नाज़-नखरे से रिटर्न करते हो? कभी नाज़-नखरे दिखाते और कभी समान बनके दिखाते हैं। अभी वह समय समाप्त हुआ।

अभी डायमण्ड जुबली मना रहे हो ना? तो 60 साल के बाद वैसे भी वानप्रस्थ शुरू होता है। तो अभी छोटे बच्चे नहीं हो, अभी वानप्रस्थ अर्थात् सब कुछ जानने वाले, अनुभवी आत्मायें हो, नॉलेजफुल हो, पॉवरफुल हो, सक्सेसफुल हो। जैसे सदा नॉलेजफुल हो ऐसे पॉवरफुल और सक्सेसफुल भी हो ना? कभी-कभी सक्सेसफुल क्यों नहीं होते, उसका कारण क्या है? वैसे सफलता आप सबका जन्म सिद्ध अधिकार है। कहते हो ना? सिर्फ कहते हो या मानते भी हो? तो क्यों नहीं सफलता होती है, कारण क्या है? जब अपना जन्म सिद्ध अधिकार है, तो अधिकार प्राप्त होने में, अनुभव होने में कमी क्यों? कारण क्या? बापदादा ने देखा है – मैजॉरिटी अपने कमजोर संकल्प पहले ही इमर्ज करते हैं, पता नहीं होगा या नहीं! तो यह अपना ही कमजोर संकल्प प्रसन्नचित्त नहीं लेकिन प्रश्नचित्त बनाता है। होगा, नहीं होगा? क्या होगा? पता नहीं… यह संकल्प दीवार बन जाती है और सफलता उस दीवार के अन्दर छिप जाती है। निश्चयबुद्धि विजयी – यह आपका स्लोगन है ना! जब यह स्लोगन अभी का है, भविष्य का नहीं है, वर्तमान का है तो सदा प्रसन्नचित्त रहना चाहिए या प्रश्नचित्त? तो माया अपने ही कमजोर संकल्प की जाल बिछा लेती है और अपने ही जाल में फँस जाते हो। विजयी हैं ही – इससे इस कमजोर जाल को समाप्त करो। फँसो नहीं, लेकिन समाप्त करो। समाप्त करने की शक्ति है? धीरे-धीरे नहीं करो, फट से सेकेण्ड में इस जाल को बढ़ने नहीं दो। अगर एक बार भी इस जाल में फँस गये ना तो निकलना बहुत मुश्किल है। विजय मेरा बर्थराइट है, सफलता मेरा बर्थराइट है। यह बर्थराइट, परमात्म बर्थराइट है, इसको कोई छीन नहीं सकता – ऐसा निश्चयबुद्धि, सदा प्रसन्नचित्त सहज और स्वत: रहेगा। मेहनत करने की भी जरूरत नहीं।

असफलता का दूसरा कारण क्या है? आप लोग दूसरों को भी कहते हो कि समय, संकल्प, सम्पत्ति सब सफल करो। तो सफल करना अर्थात् सफलता पाना। सफल करना ही सफलता का आधार है। अगर सफलता नहीं मिलती तो जरूर कोई न कोई खजाने को सफल नहीं किया है, तब सफलता नहीं मिली। खजानों की लिस्ट तो जानते हो ना तो चेक करो – कौन सा खजाना सफल नहीं किया, व्यर्थ गँवाया? तो स्वत: ही सफलता प्राप्त हो जायेगी। यह वर्सा भी है तो वरदान भी है – सफल करो और सफलता पाओ। तो सफल करना आता है कि नहीं? तो सफलता मिलती है? सफल करना है बीज और सफलता है फल। अगर बीज अच्छा है तो फल नहीं मिले यह हो नहीं सकता। सफल करने के बीज में कुछ कमी है तब सफलता का फल नहीं मिलता। तो क्या करना है? सदा प्रसन्नता की पर्सनैलिटी में रहो। प्रसन्नचित्त रहने से बहुत अच्छे अनुभव करेंगे। वैसे भी कोई को प्रसन्नचित्त देखते हो तो कितना अच्छा लगता है! उसके संग में रहना, उसके साथ बात करना, बैठना कितना अच्छा लगता है! और कोई प्रश्नचित्त वाला आ जाए तो तंग हो जायेंगे। तो यह लक्ष्य रखो – क्या बनना है? प्रश्नचित्त नहीं, प्रसन्नचित्त।

आज सीज़न का लास्ट दिन है, तो लास्ट में क्या किया जाता है? कोई यज्ञ भी रचते हैं तो लास्ट में क्या करते हैं? स्वाहा करते हैं। तो आप क्या करेंगे? प्रश्नचित्त को स्वाहा करो। यह क्यों होता है? यह क्या होता है?… नहीं। नॉलेजफुल हो ना तो क्यों, क्या नहीं। तो आज से यह व्यर्थ प्रश्न स्वाहा। आपका भी टाइम बचेगा और दूसरों का भी टाइम बचेगा। दादियों का भी टाइम इसमें जाता है, यह क्यों, यह क्या, यह कैसे! तो यह समय बचाओ, अपना भी और दूसरों का भी। बचत का खाता जमा करो। फिर 21 जन्म आराम से खाओ, पियो, मौज करो, वहाँ जमा नहीं करना पड़ेगा। तो स्वाहा किया कि सोचेंगे? सोचना है, भले सोच लो। अपने से पूछ लो यह कैसे होगा, यह कर सकेंगे या नहीं? यह एक मिनट में सोच लो, पक्का काम कर लो। अपने से जितने भी प्रश्न पूछने हों वह एक मिनट में पूछ लो। पूछ लिया? स्वाहा भी कर लिया या सिर्फ प्रश्न पूछ लिया? आगे के लिए प्रश्न खत्म। (एक मिनट साइलेन्स के बाद) खत्म किया? (हाँ जी) ऐसे ही नहीं हाँ कर लेना। जब बहुतकाल का अनुभव है कि प्रश्नचित्त अर्थात् परेशान होना और परेशान करना। अच्छी तरह से अनुभव है ना? तो अपने निश्चय और जन्म सिद्ध अधिकार की शान में रहो तो परेशान नहीं होंगे। जब इस शान से परे होते हो, तभी परेशान होते हो। समझा! अच्छी तरह से समझा कि अभी कहेंगे – हाँ, समझा और फॉरेन में जायेंगे तो कहेंगे मुश्किल है? ऐसे तो नहीं? अच्छा।

एक सेकेण्ड में अशरीरी बनना – यह पाठ पक्का है? अभी-अभी विस्तार, अभी-अभी सार में समा जाओ। (बापदादा ने ड्रिल कराई) अच्छा-इस अभ्यास को सदा साथ रखना।

चारों ओर के सर्व प्रश्नचित्त से परिवर्तन होने वाले, सदा प्रसन्नचित्त के पर्सनैलिटी वाले श्रेष्ठ आत्मायें, सदा अपने विजय और जन्म सिद्ध अधिकार के स्मृति में रहने वाले, स्मृति स्वरूप विशेष आत्मायें, सदा सफल करने से सहज सफलता का अनुभव करने वाले, बाप के समीप आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते। जो डबल विदेश के चारों ओर के 10 वर्ष वाले बच्चे हैं उन्हों को विशेष मुबारक और याद-प्यार।

दादियों से:- बापदादा को आप परिवार के सिरताज निमित्त आत्माओं के लिए “सदा जीते रहो, उड़ते रहो और उड़ाते रहो” – यह संकल्प सदा रहता है। अपने योग की तपस्या के शक्ति से शरीरों को चला तो रहे हो लेकिन आपसे ज्यादा बापदादा को ओना रहता है इसलिए समय प्रमाण फास्ट चक्कर नहीं लगाओ। आराम से जाओ और आओ क्योंकि दुनिया की परिस्थितियाँ भी फास्ट बदल रही हैं इसलिए सेवा की बापदादा मना नहीं करते हैं, लेकिन बैलेन्स। सभी के प्राण आपके शरीरों में हैं, तन ठीक है तो सेवा भी अच्छी होती जायेगी इसलिए सेवा खूब करो लेकिन ज्यादा धक्का नहीं लगाओ, थोड़ा धक्का लगाओ। ज्यादा धक्का लगाने से क्या होता है? बैटरी स्लो हो जाती है इसलिए बैलेन्स अभी से रखना आवश्यक है। ऐसे नहीं सोचो यह वर्ष तो कर लें, दूसरा वर्ष पता नहीं क्या है? नहीं। जीना है और उड़ाना है। अभी तो आपका पार्ट है ना? तो अपने पार्ट को समझकर धक्का लगाओ लेकिन बैलेन्स में धक्का लगाओ। ठीक है। फास्ट नहीं बनाओ, दो दिन यहाँ है तो तीसरे दिन वहाँ हैं, नहीं। अभी वह टाइम नहीं है, जब ऐसा टाइम आयेगा तो एक दिन में चार-चार स्थान पर भी जाना पड़ेगा लेकिन अभी नहीं। अच्छा।

वरदान:-

जैसे दीपावली पर विशेष सफाई और कमाई का ध्यान रखते हैं। ऐसे आप भी सब प्रकार की सफाई और कमाई का लक्ष्य रख सन्तुष्ट आत्मा बनो। सन्तुष्टता द्वारा ही सर्व दिव्य गुणों का आह्वान कर सकेंगे फिर अवगुणों की आहुति स्वत: हो जायेगी। अन्दर जो कमजोरियाँ, कमियां, निर्बलता, कोमलता रही हुई है, उन्हें समाप्त कर अब नया खाता शुरू करो और नये संस्कारों के नये वस्त्र धारण कर सच्ची दीपावली मनाओ।

स्लोगन:-

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