12 March 2023 HINDI Murli Today | Brahma Kumaris
Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi
11 March 2023
Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.
Brahma Kumaris
आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन। Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. Source: Official Murli blog to read and listen daily murlis. ➤ पढ़े: मुरली का महत्त्व
ब्राह्मण जन्म का आदि वरदान - स्नेह की शक्ति
♫ मुरली सुने (audio)➤
आज चारों ओर के सर्व बच्चों की स्नेह भरी स्मृतियाँ समर्थ बापदादा के पास स्नेह के सागर समान पहुँच गई। हर एक बच्चे के दिल में दिलाराम समाया हुआ है और दिलाराम के दिल में सर्व स्नेही बच्चे समाये हुए हैं। स्नेह बहुत बड़ी शक्ति है।
۰ स्नेह की शक्ति मेहनत को सहज कर देती है। जहाँ मोहब्बत है वहाँ मेहनत नहीं होती। मेहनत मनोरंजन बन जाती है। खेल लगता है।
۰ स्नेह की शक्ति देह और देह की दुनिया सेकेण्ड में भूला देती है। स्नेह में जो भुलाना चाहे वह भुला सकते हैं, जो याद करना चाहे उसमें समा जाते हैं।
۰ स्नेह की शक्ति सहज समर्पण करा देती है।
۰ स्नेह की शक्ति बाप समान बना देती है।
۰ स्नेह सदा हर समय परमात्म साथ का अनुभव कराता है।
۰ स्नेह सदा अपने ऊपर बाप की दुआओं का हाथ छत्रछाया समान अनुभव कराता है।
۰ स्नेह असम्भव को सम्भव इतना सहज कर देता जैसे कार्य हुआ ही पड़ा है।
۰ स्नेह निष्पल (हर समय) निश्चिन्त अनुभव कराता है।
۰ स्नेह हर कर्म में निश्चित विजयी स्थिति का अनुभव कराता है। ऐसे स्नेह की शक्ति अनुभव करते हो ना?
बापदादा जानते हैं कि अनेक जन्म अनेक प्रकार की मेहनत कर थकी हुई आत्मायें हैं। भिन्न-भिन्न बन्धनों में बन्धी हुई आत्मायें होने के कारण मेहनत करती रही हैं इसलिये बापदादा मेहनत से मुक्त होने के लिये सहज विधि ‘स्नेह की शक्ति’ सभी बच्चों को वरदान में देते हैं। अपने ब्राह्मण जीवन के आदि समय को याद करो। तो जन्मते ही सभी को स्नेह की शक्ति ने ही नया जीवन दिया। स्नेह की अनुभूति के लिये मेहनत की? मेहनत करनी पड़ी? सहज अनुभव किया ना। तो यह आदि जन्म की अनुभूति ही वरदान है। प्यार-प्यार में ही खो गये। सदा इस स्नेह के वरदान को स्मृति में रखो। मेहनत के समय इस वरदान द्वारा मेहनत को परिवर्तन कर सकते हो। बापदादा को बच्चों का मेहनत अनुभव करना अच्छा नहीं लगता। स्नेह के शक्ति की विस्मृति मेहनत अनुभव कराती है।
۰ कितनी भी बड़ी कैसी भी परिस्थिति हो प्यार से, स्नेह से परिस्थिति रूपी पहाड़ भी परिवर्तन हो पानी समान हल्का बन सकता है। पत्थर को पानी बना सकते हो। कैसा भी माया का विकराल रूप वा रॉयल रूप सामना करे तो सेकेण्ड में स्नेह के सागर में समा जाओ तो सामना करने की माया की शक्ति समाप्त हो जायेगी। आपके समाने की शक्ति छू-मंत्र नहीं लेकिन शिव-मंत्र बन जायेगी। सबके पास शिव-मंत्र की शक्ति है ना कि खो जाती है? शिव स्नेह में समा जाओ, सिर्फ डुबकी मारकर नहीं निकल आओ। थोड़ा समय स्मृति में रहते हो – मीठा बाबा, प्यारा बाबा, डुबकी लगाकर फिर निकल आते हो तो माया की नज़र पड़ जाती है। समा जाओ, तो माया की नज़र से दूर हो जायेंगे। और कुछ भी नहीं आए तो स्नेह की शक्ति जन्म का वरदान है। उस वरदान में खो जाओ। खो जाना नहीं आता है? स्नेह तो सहज है ना! सबको अनुभव है ना! कोई है जिसको ब्राह्मण जीवन में रूहानी स्नेह का अनुभव नहीं हो? है कोई?
۰ स्नेह ही सहज योग है, स्नेह में समाना ही सम्पूर्ण ज्ञान है।
۰ आज के दिन का महत्व भी स्नेह है।
अमृतवेले से विशेष किस लहर में लहरा रहे हो? बापदादा के स्नेह में ही लहरा रहे हो। सर्व आत्माओं के अन्दर एक बाप के सिवाय और कुछ याद रहा? सहज याद रही ना? कि मेहनत करनी पड़ी? तो सहज कैसे बनी? स्नेह के कारण। तो क्या सिर्फ आज का दिन स्नेह का है? संगमयुग है ही परमात्म स्नेह का युग। तो युग के महत्व को जान स्नेह की अनुभूतियों को अनुभव करो। स्नेह का सागर स्नेह के हीरे-मोतियों की थालियाँ भरकर दे रहे हैं। तो अपने को सदा भरपूर करो। थोड़े से अनुभव में खुश नहीं हो जाओ। सम्पन्न बनो। भविष्य में तो स्थूल हीरे-मोतियों से सजेंगे। ये परमात्म प्यार के हीरे-मोती अनमोल हैं, तो इससे सदा सजे सजाये रहो।
चारों ओर के बच्चों की याद, स्नेह के गीत बापदादा सदा भी सुनते रहते हैं लेकिन आज विशेष स्नेह स्वरूप बच्चों को स्नेह के रिटर्न में सदा स्नेही भव, सदा स्नेह के वरदान द्वारा सहज उड़ती कला का विशेष फिर से वरदान दे रहे हैं। सदा जैसे छोटे बच्चे होते हैं, कोई भी मुश्किल बात आयेगी वा कोई भी परिस्थिति आयेगी तो मात-पिता की गोदी में समा जायेंगे, ऐसे सेकेण्ड में स्नेह की गोदी में समा जाओ तो मेहनत से बच जायेंगे। सेकेण्ड में उड़ती कला द्वारा बापदादा के पास पहुँच जाओ तो कैसे भी स्वरूप में आई हुई माया दूर से भी आपको छू नहीं सकेगी क्योंकि परमात्म छत्रछाया के अन्दर तो क्या लेकिन दूर से भी माया की छाया आ नहीं सकती। तो बच्चा बनना अर्थात् माया से बचना। बच्चा बनना तो अच्छा है ना। बच्चा बनने का अर्थ ही है स्नेह में समा जाना। अच्छा!
चारों ओर के दिलाराम के दिल में समाये हुए बच्चों को, सदा मेहनत को मोहब्बत में परिवर्तन करने वाली शक्तिशाली आत्माओं को, सदा परमात्म स्नेह के संगमयुग को महान् अनुभव करने वाली श्रेष्ठ आत्माओं को, सदा स्नेह की शक्ति से बाप के साथ और दुआओं के हाथ को अनुभव कर औरों को भी कराने वाली विशेष आत्माओं को, सदा स्नेह के सागर में समाये हुए समान बच्चों को स्नेह के सागर बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
दादियों से मुलाकात – आज के दिन क्या-क्या याद आया? विशेष विल पॉवर के हाथ याद आये? विल पॉवर सब कार्य सहज करा देती है। ब्रह्मा बाप ज्यादा याद आया या बाप-दादा दोनों याद रहे? फिर भी ब्रह्मा बाप की याद के चरित्र सभी को विशेष याद आते रहे। ब्रह्मा बाप ब्रह्मा बना ही तब जब बाप-दादा कम्बाइण्ड हुए। परमात्म प्रवेशता के साथ ही ब्रह्मा का कर्तव्य शुरू हुआ। इस अव्यक्त स्वरूप के अव्यक्त रूप के चरित्र भी न्यारे और प्यारे हैं। 25 वर्ष की सेवा की हिस्ट्री आदि से याद करो, कितनी तीव्र गति की हिस्ट्री है। अव्यक्त होना अर्थात् तीव्र गति से सर्व कार्य होना। समय का परिवर्तन भी फास्ट और सेवा की वृद्धि की गति भी फास्ट। फास्ट हुई है ना! इसलिये अव्यक्त होने से समय को भी तीव्र गति मिली है तो सेवा को भी तीव्र गति मिली है। अव्यक्त पार्ट में आने वाली आत्माओं को भी पुरुषार्थ में तीव्र गति का भाग्य सहज मिला हुआ है। अव्यक्त पार्ट में आई हुई आत्माओं को लास्ट सो फास्ट, फास्ट सो फर्स्ट का वरदान प्राप्त है। (सभा से)
वरदान को कार्य में लगाओ, सिर्फ स्मृति तक नहीं। समय प्रमाण वरदान को स्वरूप में लाओ। वरदान को स्वरूप में लाने से स्वत: ही फास्ट गति का अनुभव करेंगे। अव्यक्त पालना सहज ही शक्तिशाली बनाने वाली है इसलिये जितना आगे बढ़ना चाहो, बढ़ सकते हो। बापदादा और निमित्त आत्माओं की आप सबके ऊपर विशेष सदा आगे उड़ने की दुआएं हैं। ऐसे है ना? दादियों की भी दुआएं हैं। सिर्फ फायदा ले लो। मिलता बहुत है, यूज़ कम करते हो। सिर्फ बुद्धि में किनारे रखते नहीं रहो, खाओ, खर्च करो। आता है यूज़ करना, खर्च करना आता है कि सम्भाल कर रखते हो? बहुत अच्छा, बहुत अच्छा ये सम्भाल कर रखना है। अच्छाई को स्वयं प्रति और दूसरों के प्रति कार्य में लगाओ। यहाँ खर्चना अर्थात् बढ़ाना है। जैसे आजकल का फैशन है ना, जो अमूल्य चीज़ होती है वह कहाँ रखते हैं? (लॉकर में) यूज़ नहीं करते, लॉकर में रखते हुए खुश होते हैं। तो कई बार ऐसे करते हैं पॉइन्ट बड़ी अच्छी है, विधि बड़ी अच्छी है, सिर्फ बुद्धि के लॉकर में देखकर खुश हो जाते हैं। तो आप सभी लॉकर में रखते हो या यूज़ करते हो? अच्छा!
पाण्डव सेना का क्या हाल है? (अच्छा है) सिर्फ अच्छा-अच्छा कहने वाले तो नहीं ना। ऐसी सेना तैयार हो जो सेकेण्ड में जो ऑर्डर मिले कर ले। ऐसे तैयार है? शक्ति सेना तैयार है? शक्तियों की सेवा अपनी है, पाण्डवों की सेवा अपनी है। पाण्डवों के सहयोग के बिना भी शक्तियां नहीं चल सकती, शक्तियों के सहयोग के बिना भी पाण्डव नहीं चल सकते।
(दादी जी ने मैक्सिको की कॉन्फ्रेन्स का समाचार बापदादा को सुनाया)
अच्छा है साइन्स वाले तो काम में लगे ही हैं। प्रयोग करने में साइन्स वाले होशियार होते हैं ना। तो एक भी अच्छी तरह से योगी और प्रयोगी बन गया तो बड़े से बड़े माइक का काम करेगा।
(लॉस एंजिलिस में भूकम्प आया है) ये समय के तीव्र गति की निशानियां समय प्रति समय प्रकृति दिखा रही है। अच्छा!
अव्यक्त बापदादा की पर्सनल मुलाकात – फल की इच्छा छोड़ रहमदिल बन शुभ भावना का बीज डालते चलो
बापदादा द्वारा सर्व बच्चों को इस संगमयुग पर विशेष कौन-सा ख़ज़ाना मिला हुआ है? ख़ज़ाने तो बहुत हैं लेकिन विशेष ख़ज़ाना खुशी का ख़ज़ाना है। तो खुशी का ख़ज़ाना कितना श्रेष्ठ मिला है। तो यह सदा साथ रहता है या कभी किनारे भी हो जाता है? जब अनगिनत मिलता है तो हर समय ख़ज़ाने को कार्य में लगाना चाहिए ना। लोग किनारे इसीलिए रखते हैं कि आइवेल में काम में आयेगा। लेकिन आपके पास तो अथाह है। इस जन्म की तो बात छोड़ो लेकिन अनेक जन्म यह खुशी का ख़ज़ाना साथ रहेगा। अनगिनत है तो यूज़ करो ना। बापदादा ने पहले भी सुनाया है कि प्राण चले जायें लेकिन खुशी नहीं जाये इसलिये खुशी को कभी भी किनारे नहीं रखो और ही महादानी बनो क्योंकि वर्तमान समय और कुछ भी मिल सकता है लेकिन सच्ची खुशी नहीं मिल सकती। अल्पकाल की खुशी प्राप्त करने के लिये लोग कितना समय वा धन खर्च करते हैं फिर भी सच्ची खुशी नहीं मिलती। तो ऐसे आवश्यकता के समय आप आत्माओं को महादानी बनना है। कैसी भी अशान्त आत्मा, दु:खी आत्मा हो अगर उसको खुशी की अनुभूति करा दो तो कितनी दिल से दुआयें देगी। आप दाता के बच्चे हो तो फराखदिली से बांटो, बांटना तो आता है ना? तो क्यों नहीं बांटते हो? समय को देख रहे हो? दिल से रहम आना चाहिये। जो अशान्ति-दु:ख में भटक रहे हैं वो आपका परिवार है ना। परिवार को सहयोग दिया जाता है ना। तो वर्तमान समय महादानी बनने के लिये विशेष रहमदिल के गुण को इमर्ज करो। आपके जड़ चित्र वरदान दे रहे हैं। तो आप भी चैतन्य में रहम दिल बन बांटते जाओ क्योंकि परवश आत्मायें हैं। कभी भी ये नहीं सोचो कि ये तो सुनने वाले नहीं हैं, ये तो चलने वाले नहीं हैं। नहीं, आप रहम-दिल बनो, देते जाओ। गाया हुआ है कि भावना का फल मिलता है। तो चाहे आत्माओं में ज्ञान के प्रति, योग के प्रति शुभ भावना नहीं भी हो लेकिन आपकी शुभ भावना उनको फल दे देती है। ऐसे नहीं सोचो कि इतना कुछ सेवा की लेकिन फल तो मिला ही नहीं। लेकिन फल एक जैसे नहीं होते। कोई सीज़न का फल होता है, कोई सदा का फल होता है। तो सीज़न का फल सीज़न पर ही फल देगा ना। तो आपने शुभ भावना का बीज डाला, अगर सीज़न का फल होगा तो सीज़न में निकलेगा ही। वैसे भी देखो जो खेती का काम करते हैं, तो जो सीज़न पर चीज़ निकलने वाली होती है तो ये नहीं सोचते हैं कि 6 मास के बाद ये निकलेगा इसलिये बीज डालो ही नहीं। तो आप भी बीज डालते चलो। समय पर सर्व आत्माओं को जगना ही है। आपकी रहम भावना, शुभ भावना फल अवश्य देगी। अगर कोई आपोजीशन भी करता है तो भी आपको अपने रहम की भावना छोड़नी नहीं है और ही सोचो कि ये आपोजीशन या इन्सल्ट, गालियां ये खाद का काम करेंगी। तो खाद पड़ने से अच्छा फल निकलेगा। जितनी गालियां देंगे, उतना आपके गुण गायेंगे इसलिये हर आत्मा को दाता बन देते जाओ। अच्छा माने तो दें, नहीं। ये तो लेवता हो गये? लेने की इच्छा नहीं रखो कि वो अच्छा बोले, अच्छा माने तो दें। नहीं। इसको कहा जाता है दाता के बच्चे मास्टर दाता। चाहे वृत्ति द्वारा, चाहे वायब्रेशन्स द्वारा, चाहे वाणी द्वारा देते जाओ। इतने भरपूर हो ना? सब ख़ज़ाने हैं?
डबल विदेशियों को देख बापदादा डबल खुश होते हैं क्यों? डबल पुरुषार्थ करते हैं। एक तो अपना रीति-रस्म परिवर्तन करने का भी पुरुषार्थ करते हैं। बापदादा देखते हैं कि उमंग-उत्साह मैजारिटी में अच्छा है। अगर कभी उमंग-उत्साह बीच-बीच में नीचे-ऊपर होता है तो आज विधि सुनाई कि समा जाओ, स्नेह की गोदी में छिप जाओ, फिर माया आयेगी ही नहीं। ये तो सहज है ना। बीज रूप होने में मेहनत है, इसमें मेहनत नहीं है। और कुछ भी नहीं आये लेकिन स्नेह में समाना तो आता है कि ये मुश्किल है? (नहीं) तो ये करो। अभी मुश्किल शब्द नहीं बोलना। नीचे आते हो तो छोटी-सी चीज़ बड़ी लगती है, ऊपर चले जाओ तो बड़ी चीज़ भी छोटी लगेगी। फ़रिश्ते हो या साधारण मानव हो? (फ़रिश्ता) फ़रिश्ता कहाँ रहता है? ऊपर रहता है या नीचे? (ऊपर) तो नीचे क्यों ठहरते हो, अच्छा लगता है? कभी-कभी दिल होती है नीचे आने की? नहीं, फिर क्यों आते हो? बाप का साथ छोड़ते हो तब नीचे आते हो।
तो डबल विदेशियों को डबल पुरुषार्थ का प्रत्यक्ष फल डबल चांस है। इसका फायदा लो। इस वर्ष में क्या करेंगे? डबल सर्विस। महादानी-वरदानी बनेंगे या खुद बाप के आगे कहेंगे शक्ति दे दो औरों को भी शक्तियां दो। अच्छा है, हिम्मत रखने में नम्बर ले लिया। अभी फास्ट पुरुषार्थ कर आगे उड़ते चलो।
वरदान:-
संगमयुग पर बापदादा ने सबसे बड़ा खजाना खुशी का दिया है। रोज़ अमृतवेले खुशी की एक प्वाइंट सोचो और सारा दिन उसी खुशी में रहो। ऐसे खुशी में रहते दूसरों को भी खुशी का दान देते रहो, यही सबसे बड़े ते बड़ा महादान है क्योंकि दुनिया में अनेक साधन होते हुए भी अन्दर की सच्ची अविनाशी खुशी नहीं है, आपके पास खुशियों का भण्डार है तो दान देते रहो, यही सबसे बड़ी सौगात है।
स्लोगन:-
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