12 April 2023 HINDI Murli Today | Brahma Kumaris
Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi
11 April 2023
Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.
Brahma Kumaris
आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन। Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. Source: Official Murli blog to read and listen daily murlis. ➤ पढ़े: मुरली का महत्त्व
“मीठे बच्चे - ज्ञान अमृत है और योग अग्नि है, ज्ञान और योग से तुम्हारे सब दु:ख-दर्द दूर हो जायेंगे''
प्रश्नः-
कौन सा रस ज्ञान से प्राप्त होता है, भक्ति से नहीं?
उत्तर:-
जीवनमुक्ति का रस। भक्ति से किसी को भी जीवनमुक्ति का रस नहीं मिल सकता। बाप जब आते हैं तो बच्चों को जो डायरेक्शन देते, वही ज्ञान है उसी पर चलने से स्वर्ग की राजाई मिल जाती है।
♫ मुरली सुने (audio)➤
गीत:-
भोलेनाथ से निराला.
ओम् शान्ति। बच्चों का भोला बाबा बच्चों प्रति समझा रहे हैं। इसको कहा जाता है शिव भोला बाबा। हमेशा शिव को बाबा कहा जाता है। कोई चित्र देखे वा न देखे परन्तु याद करते हैं शिव भोलानाथ। शंकर वा विष्णु वा ब्रह्मा को भोलानाथ नहीं कहेंगे। भोला अक्षर कहने से मनुष्यों की बुद्धि में निराकार शिवबाबा का ही चित्र आता है। अब तुम बच्चे प्रैक्टिकल में जानते हो। अब भोलानाथ बाबा कहने से भक्ति मार्ग वालों का कोई मुख मीठा नहीं होता है। भल कितनी भी महिमा करते रहें मुख मीठा नहीं होगा। अभी तुम बच्चे शिवबाबा को याद करते हो। शिव भोलानाथ बाबा कहने से मुख मीठा हो जाता है। शिवबाबा हमको पढ़ाकर स्वर्ग का मालिक बनाते हैं। बाबा कहने से बच्चों को प्रापर्टी भी जरूर याद पड़ती है। तुम बच्चे जानते हो वही शिवबाबा है, मनुष्य सृष्टि का बीज रूप भी उनको कहा जाता है। झाड़ का एक ही बीज होता है। तो मनुष्य सृष्टि रूपी झाड़ का भी वह एक बीज है जिससे फिर मनुष्य सृष्टि रची जाती है क्योंकि बाप हो गया ना। बाकी सब हुए उनके बच्चे। भक्तों का भगवान बाप एक है। भक्त याद करते हैं भगवान को परन्तु पूरा जानते नहीं हैं। यह भी ड्रामा में नूँध है। बच्चों को इस ज्ञान और योगबल से सदा सुखी बनाए मैं छिप जाता हूँ। ज्ञान सागर भी एक ही है। जैसे वह पानी का सागर भी एक ही है। उनको बाँटा गया है – यह इन्डिया का सागर, यह फलाने का सागर। वास्तव में सागर एक ही है। सतयुग में इस सागर को बाँट नहीं सकते। एक ही सागर रहता है, जिसके तुम मालिक बनने वाले हो। वहाँ इतने खण्ड थोड़ेही रहते। एक बाप की एक राजधानी रहती है। इसी भारत पर वर्ल्ड आलमाइटी अथॉरिटी का एक ही राज्य था। देवी-देवताओं के राज्य को भगवान-भगवती का राज्य भी कहते हैं। विलायत वाले गॉड-गॉडेज कहते हैं। परन्तु जानते नहीं हैं कि वह कब राज्य करते थे। कैसे राज्य पाया।
ज्ञान सागर एक बाप है, वही ज्ञान से सबकी सद्गति करते हैं। अब तुम बच्चे जानते हो हमारे सामने ज्ञान सागर बैठा है। उनसे ज्ञान गंगायें निकल सारे विश्व को सद्गति देती हैं। इसको ज्ञान अमृत भी कहते हैं। अमृत शब्द से ही फिर पुजारी लोग चरण धोकर वह अमृत बनाए पीते हैं। वास्तव में उसको अमृत नहीं कहा जाता। आजकल दवाईयों का भी नाम अमृत रखा है, जिससे सब दु:ख दूर होते हैं। वह भी बात नहीं है। यह तो बाप बैठ बच्चों को योग सिखाते हैं। योग को अमृत नहीं कहा जाता। योग अग्नि से तुम्हारी सब बीमारियाँ 21 जन्मों के लिए दूर होंगी। इस जन्म की नहीं, इसमें तो अन्त तक भोगते रहेंगे। यह है योग की बात। बाप कहते हैं योग लगाओ तो तुम्हारी सब बीमारियाँ नष्ट होंगी। फिर कब बीमार होंगे ही नहीं। तुम पुरुषार्थ करते हो बाप से हेल्थ वेल्थ लेने लिए। वहाँ कोई बीमारी होती ही नहीं। मैं तुमको ऐसे कर्म सिखलाता हूँ जो कभी बीमारी होगी ही नहीं। कहते हैं व्यास भगवान ने शास्त्र बनाये.. परन्तु यह तो सब ड्रामा में नूँध है। नाम पड़ गया है व्यास का। यह है बना बनाया ड्रामा। जो भी तुमने देखा वह सब ड्रामा में नूँध है, अनादि बना बनाया है। यह बदल नहीं सकता। भक्ति मार्ग द्वापर से प्रारम्भ हो जाता है। भल कोई कितनी भी भक्ति करे, शास्त्र पढ़े परन्तु वापस नहीं जा सकता। सतोप्रधान से तमोप्रधान में जरूर आना है। इस कर्मक्षेत्र से बाहर कोई जा नहीं सकता। तुम जानते हो हम सो सतोप्रधान थे, अब हम सो तमोप्रधान बने हैं। ड्रामा अनुसार बनना ही है। भक्ति मार्ग में रात शुरू हो अन्धियारा हो जाता है। पहले इतना अन्धियारा नहीं होता है जितना अभी है। रात को भी पहले सतो-प्रधान फिर सतो-रजो-तमो कहा जाता है। धीरे-धीरे कला कमती होते-होते घोर अन्धियारा हो जाता है। अभी सृष्टि पर बेहद का ग्रहण है। एकदम घोर अन्धियारा है। इस चन्द्रमा की बात नहीं, यह सारे विश्व की बात है। रावण का ग्रहण लगा हुआ है। द्वापर से लेकर सारे विश्व को ग्रहण लगना शुरू होता है। थोड़ा-थोड़ा लगता जाता है। 2500 वर्ष लगता है जबकि अन्त में भारत बिल्कुल ही काला हो जाता है। अभी है बिल्कुल घोर अन्धियारा। घोर सोझरा अर्थात् दिन बनाने वाला है बाप। पतित को पावन बनाने वाला है बाप। माया रावण फिर रात, घोर अन्धियारा बनाती है। भक्ति करते भगवान को याद करते ही आते हैं। भगवान, भगवान को तो याद नहीं करेंगे। सर्वव्यापी के ज्ञान वालों को समझाना चाहिए गॉड फादर इज वन। वह है मनुष्य सृष्टि का बीज-रूप। बाकी सब हैं रचना। रचना की ऐसी महिमा कभी हो नहीं सकती। अगर कोई आत्मा सो परमात्मा कहे तो उनकी महिमा गाई नहीं जा सकती। गायन उस एक बाप का ही है। वह पतित-पावन मनुष्य सृष्टि का बीजरूप, सत्य है, चैतन्य है। आनन्द का सागर, ज्ञान का सागर है। कोई भी मनुष्य की यह महिमा हो नहीं सकती।
ज्ञान से जीवनमुक्ति का रस एक सेकेण्ड में आ जाता है। भगवानुवाच गीता में है ना – यज्ञ, तप, तीर्थ आदि करना वेद शास्त्र पढ़ना – यह सब भक्तिमार्ग है। इनसे कोई भी मेरे पास नहीं आ सकता है। पिछाड़ी में सबको पार्ट बजाने आना है। गॉड फादर इज वन, वही करन-करावनहार है इसलिए ब्रह्मा से सतयुगी आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना कराते हैं। मनुष्य को करन-करावनहार नहीं कहेंगे। गॉड को ही क्रियेटर, डायरेक्टर कहा जाता है। बच्चों को डायरेक्शन देते रहते हैं। डायरेक्शन को ज्ञान कहा जाता है। तुम बच्चों को खुद बैठ समझाते हैं। आत्मा इन आंखों से देखती है। भृकुटी के बीच में रहती है। मुख से बोलती है। परमपिता परमात्मा भी जब आये तब तो मुख से ज्ञान सुनाये। कहते हैं मैं इस रथ में रथी हो बैठा हूँ। तुमको सहज राजयोग सिखलाता हूँ। तुम राजऋषि हो। ऐसा कोई मनुष्य नहीं जो कहे कि हे लाडले बच्चे तुम राजऋषि हो। सिवाए बाप के कोई की ताकत नहीं बात करने की। बाप ही कहते हैं – हे बच्चे। इनकी आत्मा भी सुनती है। इनको भी कहते हैं – हे बच्चे, तुम राजऋषि हो। तुमको राजाई के लिए हमें शिक्षा देनी है। पाँच हज़ार वर्ष पहले मैंने तुमको शिक्षा दी थी। हर 5 हजार वर्ष बाद हम शिक्षा देने आते हैं। ऐसे कोई साधू सन्त आदि कह न सके। बाप ही समझाते हैं उनको खिवैया भी कहते हैं। बरोबर तुमको विषय सागर से निकाल क्षीर सागर में ले जाते हैं। तुम बड़े आराम से बैठे रहेंगे।
अब तुम जानते हो बाप कहते हैं मैं ब्रह्मा तन में प्रवेश करता हूँ। फिर यह ब्रह्मा सरस्वती विष्णु का रूप बनते हैं। तुम विष्णुपुरी के मालिक बनते हो ना। यह हैं गुप्त बातें। तुम बच्चे ही जानों और न जाने कोई। पहले-पहले जब कोई आते हैं तो उनको समझाना चाहिए गॉड फादर इज वन, तो जरूर बाकी इतने सब उनके बच्चे ठहरे। परमपिता परमात्मा एक ही है। वह है मनुष्य सृष्टि का बीजरूप। सभी भक्तों का भगवान सबको सुख देते हैं। यहाँ कलियुग में तो बहुत दु:खी हैं। मनुष्य त्राहि-त्राहि करते रहते हैं। सतयुग में दु:ख की बात नहीं। यहाँ तो सारी दुनिया में ढेर भक्त हैं। यह मन्दिर मस्जिद आदि सब भक्ति मार्ग की सामग्री हैं। सतयुग में यह होते नहीं। वह है भक्ति कल्ट, यह है ज्ञान कल्ट। जब रात शुरू होती है तो पहले-पहले सोमनाथ का मन्दिर बनाते हैं। तो तुम्हारे पास जब कोई आते हैं तो पहले-पहले उन्हें समझाओ कि गॉड फादर इज वन। भारत में ही गाते हैं तुम मात-पिता.. यह है मदर फादर कन्ट्री। जगत अम्बा, जगत पिता दोनों हैं। देलवाड़ा मन्दिर भी एक्यूरेट बना हुआ है। लक्ष्मी-नारायण का चित्र मन्दिरों में एक्यूरेट बना हुआ है। लेकिन ओरिज्नल चित्र तो निकाल न सकें। कोई एक्टर का ही चित्र ले फिर बनाते हैं। उन्हों ने तो राज्य किया सतयुग में। मनुष्य कहते भी हैं सतयुग में लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। लक्ष्मी-नारायण के बचपन की कोई हिस्ट्री है नहीं। राधे-कृष्ण की है। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनाते हैं फिर नारायण अष्टमी कहाँ गई। श्रीकृष्ण को फिर द्वापर में ले गये हैं। राधे-कृष्ण तो प्रिन्स-प्रिन्सेज हैं, दोनों अपनी-अपनी राजधानी में रहते हैं, जरूर स्वयंवर हुआ होगा तब राजगद्दी पर बैठे होंगे। राधे-कृष्ण का राज्य तो है नहीं। सूर्यवंशी और चन्द्रवंशी घराना है। चन्द्रवंशी में तो सूर्यवंशी श्रीकृष्ण आ न सके। बड़े मूँझ गये हैं। तो पहले-पहले समझाना है गॉड फादर एक है। वह होते हैं हद के फादर। स्त्री रची फिर स्त्री से बच्चे पैदा किये। स्त्री को एडाप्ट किया, जन्म नहीं दिया। बेहद का बाप भी कहते हैं मैं इनमें प्रवेश कर एडाप्ट करता हूँ। भगवान ने सृष्टि कैसे रची! यह किसको भी पता नहीं है। ऐसे नहीं कि प्रलय हो जाती फिर सागर में पत्ते पर आते हैं। अगर ऐसा है तो अकेला श्रीकृष्ण कैसे सृष्टि रचेगा। फिर तो दो चाहिए। फीमेल भी चाहिए। परन्तु ऐसी कोई बात है नहीं। बाप कहते हैं मैं एडाप्ट करता हूँ। तुम सब कहते हो – बाबा, हम आपकी मुख वंशावली हैं। मैं इस मुख का आधार लेता हूँ। कहता हूँ – हे बच्चे। तुम भी कहते हो – हे शिवबाबा, हम आपके बच्चे थे, फिर बने हैं। बाप कहते हैं तुम बच्चों के लिए मैंने वैकुण्ठ की सौगात लाई है। तुम यहाँ बैठे हो स्वर्ग का मालिक बनने लिए। यह राजयोग है राजाई स्थापन हो रही है। और प्रीसेप्टर ऐसे नहीं कहेंगे कि मैं क्रिश्चियन राजाई स्थापन करता हूँ वा सिक्ख राजाई स्थापन करता हूँ। नहीं। तुम नई दुनिया में राजाई लेने लिए शिक्षा पा रहे हो। यह वन्डर है ना। गॉड फादर है स्वर्ग का रचयिता। तो जरूर उनसे हमको स्वर्ग की राजाई पाने का हक है ना। सतयुग में राजाई थी, मनुष्य सृष्टि कैसे क्रियेट करते हैं, अभी तुम जानते हो। भगवानुवाच – यह है हमारे मुख वंशावली। बाकी सभी हैं रावण की कुख वंशावली। वह ब्राह्मण कुख वंशावली, तुम ब्राह्मण मुख वंशावली हो। तुम समझा सकते हो ब्रह्मा की औलाद जरूर ब्राह्मण ठहरे ना। ब्रह्मा है प्रजापिता ब्रह्मा, तो उनकी सन्तान भी ब्राह्मण ठहरे। ब्राह्मण के बच्चे ब्राह्मण होते हैं ना। तुम हो ब्रह्मा की सच्ची औलाद ब्राह्मण। ब्राह्मण हैं सबसे ऊंच। ब्राह्मणों को चोटी में रखा जाता है। जैसे ऊंच ते ऊंच भगवान शिवबाबा को त्रिमूर्ति से उड़ा दिया है। वैसे ऊंच ते ऊंच ब्राह्मणों को भी चोटी से उड़ा दिया है। विराट रूप में ब्राह्मणों को नहीं दिखाते हैं। सिर्फ कहते हैं देवता, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र.. पहले-पहले तुम ब्राह्मण हो। तुम कितनी भारी सेवा करते हो! ऊंच ते ऊंच भगवान, फिर उनसे पैदा किये हुए तुम बच्चे हो। शिव-बाबा तो नई सृष्टि पर आते नहीं। तुम आते हो। शिवबाबा कहते हैं – मैं तुमको राज्य देता हूँ। फिर मेरा नाम ही गुम हो जाता है। मैं छिप जाता हूँ। मैंने क्या किया, कैसे सृष्टि रची, यह कोई नहीं जानते।
अब नया कोई आता है तो जास्ती माथा नहीं मारना है। पहले-पहले परिचय देना है बाप का। वह है स्वर्ग का रचयिता। देवतायें स्वर्ग के मालिक थे। फिर 84 जन्म लेते-लेते अब वह शूद्र वर्ण में हैं। फिर उनको ब्राह्मण बनाते हैं। वर्ण भी हैं ना। विराट रूप का चित्र भी है। ब्राह्मणों की चोटी के आगे शिव भी जरूर देना है। जैसे त्रिमूर्ति पर शिव दिखाते हैं, वैसे ब्राह्मणों के ऊपर भी शिव दिखाना है। समझाना है शिवबाबा ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मण बनाते हैं। वह फिर ब्राह्मण सो देवता, सो क्षत्रिय, सो वैश्य शूद्र बनते हैं। पहले-पहले तो कोई को भी अल्फ ही समझाना है। वह बाप इस ब्रह्मा द्वारा सृष्टि रचते हैं तो सब भाई-बहन हो जाते। शिव की सन्तान तो सब आत्मायें हैं ही। फिर मनुष्य सृष्टि रची जाती है तो पहले-पहले ब्रह्मा, सरस्वती, ब्राह्मण फिर देवता, क्षत्रिय.. बनते हैं। ऐसे यह मनुष्य सृष्टि का झाड़ वृद्धि को पाता है। उसी बाप को सब भूले हुए हैं। देखो, बापदादा कितना क्लीयर कर समझाते हैं। बच्चों को भी सीखना है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार :
1) हम राजऋषि हैं। स्वयं भगवान हमें राजयोग सिखाकर राजाई का वर्सा देते हैं, इस नशे में रहना है।
2) योग अग्नि से विकर्मों को दग्ध कर सब बीमारियों से सदा के लिए मुक्त होना है। इस जन्म के कर्मभोग को याद में रह चुक्तू करना है।
वरदान:-
ब्राह्मण जीवन की विशेष धारणा पवित्रता है, यही निरन्तर अतीन्द्रिय सुख और स्वीट साइलेन्स का विशेष आधार है। पवित्रता सिर्फ ब्रह्मचर्य नहीं लेकिन ब्रह्मचारी और सदा ब्रह्माचारी अर्थात् ब्रह्मा बाप के आचरण पर हर कदम चलने वाले। संकल्प, बोल और कर्म रूपी कदम ब्रह्मा बाप के कदम ऊपर कदम हो, ऐसे जो ब्रह्माचारी हैं उनका चेहरा और चलन सदा ही अन्तर्मुखी और अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति करायेगा।
स्लोगन:-
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