11 November 2023 HINDI Murli Today | Brahma Kumaris
Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi
8 November 2023
Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.
Brahma Kumaris
आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन। Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. Source: Official Murli blog to read and listen daily murlis. ➤ पढ़े: मुरली का महत्त्व
“मीठे बच्चे - जितना तुम बाप को याद करेंगे उतना तुम्हारी बुद्धि का ताला खुलेगा, जिन्हें घड़ी-घड़ी बाप की याद भूल जाती है, वह हैं अनलकी बच्चे''
प्रश्नः-
खाता जमा करने का आधार क्या है? सबसे बड़ी कमाई किसमें है?
उत्तर:-
खाता जमा होता है दान करने से। जितना तुम दूसरों को बाप का परिचय देंगे उतना आमदनी वृद्धि को पाती जायेगी। मुरली से तुम्हारी बहुत बड़ी कमाई होती है। यह मुरली सांवरे से गोरा बनाने वाली है। मुरली में ही खुदाई जादू है। मुरली से ही तुम मालामाल बनते हो।
♫ मुरली सुने (audio)➤
गीत:-
हमें उन राहों पर चलना है…
ओम् शान्ति। रूहानी बाप समझा रहे हैं बच्चों को कि बच्चे गिरना और सम्भलना है। घड़ी-घड़ी बाप को भूलते हो अर्थात् गिरते हो। याद करते हो तो सम्भलते हो। माया बाप की याद भुलवा देती है क्योंकि नई बात है ना। ऐसे तो कोई बाप को कभी भूलते नहीं। स्त्री कभी अपने पति को भूलती नहीं। सगाई हुई और बुद्धियोग लटका। भूलने की बात नहीं होती। पति, पति है। बाप, बाप है। अब यह तो है निराकार बाप, जिसको साजन भी कहते हैं। सजनी कहा जाता है भक्तों को। इस समय सब हैं भक्त। भगवान् एक है। भक्तों को सजनियां, भगवान् को साजन या भक्तों को बालक, भगवान् को बाप कहा जाता है। अब पतियों का पति वा पिताओं का पिता वह एक है। हर एक आत्मा का बाप परमात्मा तो है ही। वह लौकिक बाप हर एक का अलग-अलग है। यह पारलौकिक परमपिता सभी आत्माओं का बाप एक ही गॉड फादर है, उनका नाम है शिवबाबा। सिर्फ गॉड फादर, माउण्ट आबू लिखने से बताओ चिट्ठी पहुँचेगी? नाम तो लिखना पड़े ना। यह तो बेहद का बाप है। उनका नाम है शिव। शिवकाशी कहते हैं ना। वहाँ शिव का मन्दिर है। जरूर वहाँ भी गये होंगे। दिखाते हैं ना राम यहाँ गया, वहाँ गया, गांधी यहाँ गया……. तो बरोबर शिवबाबा का भी चित्र है। परन्तु वह तो है निराकार। उनको फादर कहा जाता है, और किसको सबका फादर कह नहीं सकते। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर का भी वह फादर है। उनका नाम है शिव। काशी में भी मन्दिर हैं, उज्जैन में भी शिव का मन्दिर है। इतने मन्दिर क्यों बने हैं, कोई भी नहीं जानते। जैसे लक्ष्मी-नारायण की पूजा करते हैं, कहते हैं यह स्वर्ग के मालिक थे परन्तु स्वर्ग कब था, यह मालिक कैसे बने, यह कोई नहीं जानते। पुजारी जिसकी पूजा करे उनके ही आक्यूपेशन को न जाने तो इसको अन्धश्रधा कहा जायेगा ना। यहाँ भी बाबा कहते हैं परन्तु पूरा परिचय नहीं है। मात-पिता को जानते नहीं। लक्ष्मी-नारायण के पुजारी पूजा करते हैं, शिव के मन्दिर में जाकर महिमा करते हैं, गाते हैं तुम मात-पिता……. परन्तु वह कैसे मात-पिता है, कब बने थे – कुछ भी नहीं जानते। भारतवासी ही बिल्कुल नहीं जानते। क्रिश्चियन, बौद्धी आदि अपने क्राइस्ट को, बुद्ध को याद करते हैं। झट उनकी बायोग्राफी को बतायेंगे – क्राइस्ट फलाने समय पर क्रिश्चियन धर्म की स्थापना करने आया था। भारतवासी किसको भी पूजते हैं, उनको पता नहीं है कि यह कौन हैं? न शिव को, न ब्रह्मा-विष्णु-शंकर को, न जगत अम्बा, जगतपिता को, न लक्ष्मी-नारायण को जानते, सिर्फ पूजा करते रहते हैं। उन्हों की बायोग्राफी क्या है, कुछ भी नहीं जानते। बाप आत्माओं को बैठ समझाते हैं – तुम जब स्वर्ग में थे तो तुम्हारी आत्मा और शरीर दोनों पवित्र थे, तुम राज्य करते थे। तुम जानते हो बरोबर हम राज्य करते थे, हमने पुनर्जन्म लिये, 84 जन्म भोगते-भोगते बादशाही गँवा दी। गोरे से काले बन गये हैं। सुन्दर थे, अब श्याम बन गये हैं। आजकल नारायण को भी सांवरा दिखाते हैं तो सिद्ध होता है वही श्रीकृष्ण, श्रीनारायण था। परन्तु इन बातों को बिल्कुल समझते नहीं।
यादव हैं मूसल इन्वेंट करने वाले और कौरव-पाण्डव भाई-भाई थे। वह आसुरी भाई और यह दैवी भाई थे। यह भी आसुरी थे, इन्हों को बाप ने ऊंच बनाकर दैवी भाई बनाया है। दोनों भाइयों का क्या हुआ? बरोबर पाण्डवों की जीत हुई, कौरव विनाश हो गये। यहाँ बैठे हुए भी भल मम्मा-बाबा कहते हैं परन्तु जानते नहीं हैं। बाप की श्रीमत पर नहीं चलते हैं। जानते नहीं हैं कि बाबा हमको राजयोग सिखला रहे हैं। निश्चय नहीं रहता। देह-अभिमानी होने कारण, देह के मित्र-सम्बन्धियों आदि को याद करते हैं। यहाँ तो देही बाप को याद करना है। यह नई बात हो गई। मनुष्य कोई समझा न सके। यहाँ मात-पिता के पास बैठे हुए भी उनको जानते नहीं। यह वन्डर है ना। जन्म ही यहाँ हुआ। फिर भी जानते नहीं क्योंकि निराकार है। उनको अच्छी रीति समझ नहीं सकते। उसकी मत पर नहीं चलते तो फिर आश्चर्यवत् भागन्ती हो जाते हैं। जिससे स्वर्ग का 21 जन्मों का वर्सा मिलता है, उनको नहीं जानने से भाग जाते हैं। जो बाप को जानते हैं उनको बख्तावर कहा जाता है। दु:ख से लिबरेट करने वाला तो एक ही बाप है। दुनिया में दु:ख तो बहुत है ना। यह है ही भ्रष्टाचारी राज्य। ड्रामा अनुसार फिर भी 5 हजार वर्ष बाद ऐसी ही भ्रष्टाचारी सृष्टि होगी, फिर बाप आकर सतयुगी श्रेष्ठाचारी स्वराज्य स्थापन करेंगे। तुम मनुष्य से देवता बनने आये हो। यह है मनुष्यों की दुनिया। देवताओं की दुनिया सतयुग में होती है। यहाँ हैं पतित मनुष्य, पावन देवतायें सतयुग में होते हैं। यह तुमको ही समझाया जाता है जो तुम ब्राह्मण बने हो। जो ब्राह्मण बनते जायेंगे उनको समझाते जायेंगे। सब तो ब्राह्मण नहीं बनेंगे। जो ब्राह्मण बनते हैं वही फिर देवता बनेंगे। ब्राह्मण न बना तो देवता बन न सके। बाबा-मम्मा कहा तो ब्राह्मण कुल में आया। फिर है सारा पढ़ाई के पुरुषार्थ पर मदार। यह किंगडम स्थापन हो रही है और इब्राहम, बुद्ध आदि कोई किंगडम स्थापन नहीं करते हैं। क्राइस्ट अकेला आया। किसी में प्रवेश कर क्रिश्चियन धर्म स्थापन किया फिर जो क्रिश्चियन धर्म की आत्मायें ऊपर में हैं, वह आती रहती हैं। अभी सब क्रिश्चियन्स की आत्मायें यहाँ हैं। अभी अन्त में सबको वापिस जाना है। बाप सभी का गाइड बन सबको दु:ख से लिबरेट करते हैं। बाप ही है सारी ह्युमिनटी का लिबरेटर और गाइड। सब आत्माओं को वापस ले जायेंगे। आत्मा पतित होने कारण वापिस जा नहीं सकती है। निराकारी दुनिया तो पावन है ना। अभी यह साकारी सृष्टि पतित है। अब इन सबको पावन कौन बनाये, जो निराकारी दुनिया में जा सकें? इसलिए बुलाते हैं ओ गॉड फादर आओ। गॉड फादर आकर बतलाते हैं कि मैं एक ही बार आता हूँ, जब सारी दुनिया भ्रष्टाचारी बन जाती है। कितनी गोलियां, बारुद आदि बनाते रहते हैं – एक-दो को मारने के लिए। एक तो बाम्ब्स बना रहे हैं दूसरे फिर नैचुरल कैलेमिटीज़, फ्ल्ड्स, अर्थ क्वेक आदि होंगी, बिजली चमकेगी, बीमार पड़ जायेंगे क्योंकि खाद तो बननी है ना। गन्द की ही खाद बनती है ना। तो इस सारी सृष्टि को खाद चाहिए जो फिर फर्स्ट क्लास उत्पत्ति हो। सतयुग में सिर्फ भारत ही था। अब इतने सबका विनाश होना है। बाप कहते हैं मैं आकर दैवी राजधानी स्थापन करता हूँ और सब ख़त्म हो जायेंगे, बाकी तुम स्वर्ग में जायेंगे। स्वर्ग को तो सब याद करते हैं ना। परन्तु स्वर्ग कहा किसको जाता है – यह कोई को पता नहीं। कोई भी मरेगा कहेंगे स्वर्गवासी हुआ। अरे, कलियुग में जो मरेंगे तो जरूर पुनर्जन्म कलियुग में ही लेंगे ना। इतना भी अक्ल कोई में नहीं है। डॉक्टर आफ फिलॉसाफी आदि नाम रखाते हैं, समझते कुछ नहीं। मनुष्य मन्दिर में रहने वाले थे। वह है क्षीर सागर, यह है विषय सागर। यह सब बातें बाप ही समझाते हैं। पढ़ायेंगे तो मनुष्यों को, जानवर को तो नहीं पढ़ायेंगे।
बाप समझाते हैं यह ड्रामा बना हुआ है। जैसा साहूकार मनुष्य वैसा फरनीचर होगा। गरीब के पास ठिक्कर-ठोबर होगा, साहूकार के पास तो इतने वैभव होंगे। तुम सतयुग में साहूकार बनते हो तो तुम्हारे हीरे-जवाहरों के महल होते हैं। वहाँ पर कोई गन्दगी आदि नहीं होती, बांस नहीं होती। यहाँ तो बांस होती है इसलिए अगरबत्ती आदि जगाई जाती है। वहाँ तो फूलों आदि में नैचुरल खुशबू रहती है। अगरबत्ती जलाने की दरकार नहीं पड़ती, उनको हेविन कहा जाता है। बाप हेविन का मालिक बनाने के लिए पढ़ाते हैं। देखो, कैसे साधारण है। ऐसे बाप को याद करना भी भूल जाते हैं! निश्चय पूरा नहीं तो भूल जाते हैं। जिससे स्वर्ग का वर्सा मिलता है, ऐसे मात-पिता को भूल जाना कैसी बदकिस्मती है। बाप आकर ऊंच ते ऊंच बनाते हैं। ऐसे मात-पिता की मत पर न चले तो 100 परसेन्ट मोस्ट अनलकी कहेंगे। नम्बरवार तो होंगे ना। कहाँ पढ़ाई से विश्व का मालिक बनना, कहाँ नौकर चाकर बनना! तुम समझ सकते हो हम कहाँ तक पढ़ते हैं। वहाँ सिर्फ धर्म पितायें आते हैं धर्म स्थापन करने, यहाँ मात-पिता है क्योंकि प्रवृत्ति मार्ग है ना। पवित्र प्रवृत्ति मार्ग था। अभी है अपवित्र प्रवृत्ति मार्ग। लक्ष्मी-नारायण पवित्र थे तो उन्हों की सन्तान भी पवित्र थी। तुम जानते हो हम क्या बनेंगे? मात-पिता कितना ऊंच बनाते हैं तो फालो करना चाहिए ना! भारत को ही मदर फादर कन्ट्री कहा जाता है। सतयुग में सब पवित्र थे, यहाँ पतित हैं। कितना अच्छी रीति समझाया जाता है परन्तु बाप को याद नहीं करते तो बुद्धि का ताला बन्द हो जाता है। सुनते-सुनते पढ़ाई छोड़ देते हैं तो ताला एकदम बंद हो जाता है। स्कूल में भी नम्बरवार हैं। पत्थरबुद्धि और पारसबुद्धि कहा जाता है। पत्थरबुद्धि कुछ भी समझते नहीं, सारे दिन में 5 मिनट भी बाप को याद नहीं करते। 5 मिनट याद करेंगे तो इतना ही ताला खुलेगा। जास्ती याद करेंगे तो अच्छी रीति ताला खुल जायेगा। सारा मदार याद पर है। कोई-कोई बच्चे बाबा को पत्र लिखते हैं – प्रिय बाबा वा प्रिय दादा। अब सिर्फ प्रिय दादा पोस्ट में चिट्ठी डालो तो मिलेगी? नाम तो चाहिए ना! दादा-दादियां तो दुनिया में बहुत हैं। अच्छा!
आज दीपावली है। दीपावली पर नया खाता रखते हैं। तुम सच्चे सच्चे ब्राह्मण हो। वह ब्राह्मण लोग व्यापारियों से नया खाता रखाते हैं। तुमको भी अपना नया खाता रखना है। परन्तु यह है नई दुनिया के लिए। भक्ति मार्ग का खाता है बेहद घाटे का। तुम बेहद का वर्सा पाते हो, बेहद की सुख-शान्ति पाते हो। यह बेहद की बातें बेहद का बाप बैठ समझाते हैं और बेहद का सुख पाने वाले बच्चे ही यह सब समझ सकते हैं। बाप के पास कोटों में कोई ही आते हैं। चलते-चलते कमाई में घाटा पड़ता है तो जो जमा किया है वह भी ना हो जाती है। तुम्हारा खाता वृद्धि को तब पाता है जब कोई को दान देते हो। दान नहीं देते हो तो आमदनी की वृद्धि नहीं होती है। तुम पुरुषार्थ करते हो आमदनी की वृद्धि हो। वह तब होगी जब किसको दान करेंगे, फायदा प्राप्त करायेंगे। कोई को बाप का परिचय दिया, गोया जमा हुआ। परिचय नहीं देते हो तो जमा भी नहीं होता है। तुम्हारी कमाई बहुत-बहुत बड़ी है। मुरली से तुम्हारी सच्ची कमाई होती है, सिर्फ यह मालूम पड़ जाए कि मुरली किसकी है? यह भी तुम बच्चे जानते हो जो सांवरे बन गये हैं उन्हों को ही गोरा बनने के लिए मुरली सुननी है। मुरली तेरी में है जादू। खुदाई जादू कहते हैं ना। तो इस मुरली में खुदाई जादू है। यह ज्ञान भी तुमको अभी है। देवताओं में यह ज्ञान नहीं था। जब उनमें ही ज्ञान नहीं था तो पिछाड़ी वालों में ज्ञान कैसे हो सकता? शास्त्र आदि भी जो बाद में बनते हैं वह सब ख़त्म हो जायेंगे। तुम्हारी यह सच्ची गीतायें तो बहुत थोड़ी हैं। दुनिया में तो वह गीतायें लाखों की अन्दाज में होंगी। वास्तव में यह चित्र ही सच्ची गीता हैं। उस गीता से इतना नहीं समझ सकेंगे जितना इन चित्रों से समझ सकेंगे। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार :
1) अच्छी रीति पढ़ाई पढ़कर स्वयं को बख्तावर (तकदीरवान) बनाना है। देवता बनने के लिए पक्का ब्राह्मण बनना है।
2) देही बाप को याद करने के लिए देही-अभिमानी बनना है। देह को भी भूलने का अभ्यास करना है।
वरदान:-
योगयुक्त रहने की सरल विधि है – सदा अपने को सारथी और साक्षी समझकर चलना। इस रथ को चलाने वाली हम आत्मा सारथी हैं, यह स्मृति स्वत: इस रथ अथवा देह से वा किसी भी प्रकार के देह-भान से न्यारा बना देती है। देह-भान नहीं तो सहज योगयुक्त बन जाते और हर कर्म भी युक्तियुक्त होता है। स्वयं को सारथी समझने से सर्व कर्मेन्द्रियां अपने कन्ट्रोल में रहती हैं। वह किसी भी कर्मेन्द्रिय के वश नहीं हो सकते।
स्लोगन:-
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