10 February 2023 HINDI Murli Today | Brahma Kumaris

Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi

9 February 2023

Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.

Brahma Kumaris

आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन।  Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. SourceOfficial Murli blog to read and listen daily murlis. पढ़े: मुरली का महत्त्व

“मीठे बच्चे - बाप तुम्हें हद और बेहद की नॉलेज दे, फिर इससे भी पार घर ले जाते हैं, सतयुग त्रेता है हद, द्वापर कलियुग है बेहद''

प्रश्नः-

बाप द्वारा मिली हुई नॉलेज में मजबूत कौन रह सकता है?

उत्तर:-

जो पूरा पवित्र बनता है। पवित्र नहीं तो नॉलेज धारण नहीं होती। पवित्र गोल्डन एजेड बुद्धि में ही सारी नॉलेज धारण होती है, वही बाप समान मास्टर नॉलेजफुल बनते हैं।

प्रश्नः-

पुरुषार्थ करते-करते तुम बच्चों की कौन सी स्टेज बन जायेगी?

उत्तर:-

अब तक जो उल्टे सुल्टे संकल्प-विकल्प चलते वह सब समाप्त हो जायेंगे। बुद्धियोग एक बाप से लग जायेगा। बुद्धि सोने का बर्तन बन जायेगी। बाप जो भी रत्न देते हैं वह सब धारण होते जायेंगे।

♫ मुरली सुने (audio)➤

ओम् शान्ति। मीठे-मीठे रूहानी बच्चों को रूहानी बाप रोज़-रोज़ बैठ समझाते हैं। यह तो बच्चों को समझाया गया है कि ज्ञान, भक्ति और वैराग्य का यह सृष्टि चक्र बना हुआ है। हद और बेहद के पार जाना है। कहा जाता है ना – हद बेहद से पार। तो बुद्धि में यह ज्ञान रखना है कि हद और बेहद से पार जाना है। बाप के लिए भी कहा जाता है – हद बेहद से पार। इसका भी अर्थ समझना चाहिए। रूहानी बाप रूहानी बच्चों को टॉपिक पर समझाते हैं – ज्ञान, भक्ति पीछे है वैराग्य। यह तो जानते हो ज्ञान दिन को कहा जाता है जबकि नई दुनिया है। वहाँ भक्ति होती नहीं। वह है हद की दुनिया, वहाँ बहुत थोड़े मनुष्य होते हैं, फिर धीरे-धीरे वृद्धि को पाते हैं। आधाकल्प के बाद भक्ति शुरू होती है। जब ज्ञान अर्थात् दिन है तो कोई संन्यास धर्म नहीं है, वैराग्य नहीं है। संन्यास वा त्याग वहाँ होता नहीं, यह सब बातें बुद्धि में रहनी चाहिए। धीरे-धीरे सृष्टि की वृद्धि होती जाती है। जीव आत्माओं की वृद्धि होती है। आत्मायें परमधाम से आती रहती हैं। हद से शुरू होता है, इस समय बेहद में है। तो बाप हद बेहद से पार है। हद में कितने थोड़े बच्चे हैं फिर सृष्टि वृद्धि को पाती है। अब इनसे भी पार जाना है। इसको कहा जाता है बेहद, पहले आत्मायें हद में थी। सतयुग त्रेता में पार्ट बजाती थी। कहाँ 9 लाख मनुष्य, कहाँ 5-6 सौ करोड़ चले जाओ बेहद में। मनुष्य जांच करते हैं कहाँ तक आसमान है, कहाँ तक समुद्र है, इसका अन्त नहीं पा सकते। ऊपर जाने की कितनी कोशिश करते हैं। इतना तेल डालना पड़े जो फिर वापस भी आ सकें। बेहद में जा नहीं सकते, हद तक जायेंगे। हद बेहद से पार का राज़ बाप तुमको समझाते हैं। पहले-पहले नई दुनिया में हद है। बहुत थोड़े रहते हैं। तुमको रचना के आदि मध्य अन्त की नॉलेज होनी चाहिए। यह नॉलेज कोई को नहीं है। बाप को ही नहीं जानते। यह सब राज़ समझाने वाला बाप ही है जो हद बेहद से पार है। तो बाप बैठ तुमको रचना के आदि मध्य अन्त का राज़ समझाते हैं। फिर बाप कहते हैं बच्चे इनसे भी पार जाओ। वहाँ तो कुछ है नहीं। आसमान ही आसमान है, जल ही जल है। जमीन आदि कुछ नहीं, इसको कहा जाता है हद बेहद से पार। इसका कोई भी अन्त नहीं पा सकते हैं। बेअन्त, बेअन्त कहते हैं परन्तु अर्थ नहीं जानते। बाप ही सारी समझ देते हैं क्योंकि वह है श्रेष्ठ अर्थात् बहुत समझदार। समझ समझकर ही बहुत समझदार माला का दाना बने हैं। मनुष्य कोई भी रचता और रचना के आदि मध्य अन्त का राज़ नहीं समझते हैं। बाप ही समझाते हैं। कहते हैं मैं हद को भी देख रहा हूँ, बेहद में भी जाता हूँ। इतने सभी धर्म हैं, ऐसे-ऐसे स्थापना होती है। वह सतयुग है हद की सृष्टि फिर कलियुग में है बेहद। फिर हद बेहद से पार जहाँ हमारा शान्तिधाम है, स्वीट होम है। सतयुग भी है स्वीट होम। वहाँ शान्ति भी है तो राज्य भाग्य भी है। वहाँ सुख और शान्ति दोनों ही हैं। घर जायेंगे तो वहाँ सिर्फ शान्ति होगी, सुख का नाम नहीं। अभी तुम शान्ति और सुख दोनों स्थापन कर रहे हो। वहाँ अशान्ति का नाम नहीं। अशान्ति 5 विकारों से है, यह दुनिया में कोई नहीं जानता। आधाकल्प के बाद फिर रावण राज्य होता है। वो लोग कल्प की आयु लाखों वर्ष कह देते हैं। समझते कुछ भी नहीं, इसलिए भ्रष्टाचारी, दु:खी पतित हैं। जरा भी सभ्यता नहीं है। जो दैवी सभ्यता थी, उसके बदले असभ्यता, आसुरी गुण हो गये हैं।

यह है बेहद का ड्रामा। अब कहा जाता है हद बेहद से पार, बहुत दूर-दूर जाते हैं। मनुष्यों को तो खेल का कुछ भी पता नहीं कि सबसे बड़ा कौन? ऊंचे ते ऊंचा है भगवान, तब कहते हैं तुम्हरी गत मत तुम ही जानो। अब तुम बच्चे सब कुछ समझते हो। परन्तु तुम्हारे में भी नम्बरवार हैं। बाप बैठ समझाते हैं कि मेरी बुद्धि कहाँ तक जाती है। हद बेहद से पार… वहाँ कुछ भी नहीं है। तुम बच्चों के रहने का स्थान है वह ब्रह्माण्ड, ब्रह्म महतत्व। जैसे आकाश तत्व में यहाँ बैठे हो, कुछ भी देखने में नहीं आता है। पोलार ही पोलार है। रेडियो में कहते हैं आकाशवाणी। अब आकाश तो बहुत बड़ा है, उसका अन्त तो पा नहीं सकते। उसकी वाणी मनुष्य क्या समझेंगे। यह जो आकाश का तत्व है, इस मुख से, पोलार से वाणी निकलती है, इसको कहा जाता है आकाशवाणी। वाणी मुख से (पोलार से) निकलती है। वाणी कोई नाक कान से नहीं निकलेगी। तो बाप भी इस शरीर में बैठ इस मुख से तुम बच्चों को समझाते हैं। तुम बच्चे ही जानते हो बाप क्या है। जैसे हम आत्मा हैं वैसे बाबा भी ऊंचे ते ऊंची आत्मा है। सबको नम्बरवार पार्ट मिला हुआ है। ऊंचे ते ऊंचा बाप फिर नीचे आओ, नम्बरवार खेल में सब आते हैं। नई दुनिया में पहले-पहले हैं लक्ष्मी-नारायण, फिर उनके साथ जो नई दुनिया में रहते हैं, माला को देखो। ऊपर में फूल ऊंचे ते ऊंचा भगवान फिर है मेरू युगल। फिर माला देखो कैसे बढ़ती है।

यह सब पढ़ाई है ना। सारी पढ़ाई बुद्धि में रहती है। बीज और झाड़। बीज ऊपर में है। रचता बाप ने बैठ रचना के आदि मध्य अन्त का राज़ तुमको समझाया है। यह सृष्टि रूपी कल्प वृक्ष है, इनकी आयु भी एक्यूरेट है, इसमें एक सेकेण्ड का भी फर्क नहीं पड़ सकता है। तुमको कितनी नॉलेज मिली है, इसमें मजबूत वह रह सकते हैं जो पवित्र बनते हैं। नहीं तो नॉलेज धारण हो न सके। पवित्र बर्तन, गोल्डन एजेड बुद्धि होगी तो नॉलेज ऐसी सहज धारण रहेगी जैसे बाबा के पास है। नम्बरवार मास्टर नॉलेजफुल बन जायेंगे। यह राज़ बाप बिगर कोई समझा न सके। न देवताओं के मुख से सुनेंगे, न पतित मनुष्यों के मुख से सुनेंगे। बाप ही सुनाते हैं, सो भी अभी संगम पर ही तुम सुनते हो। बाप एक ही बार बाप टीचर सतगुरू बनते हैं। पार्ट बजाते हैं फिर 5 हजार वर्ष बाद वही पार्ट बजायेंगे। प्रलय तो होती नहीं। तो पहले है बाप, ऊंचे ते ऊंचा शिव फिर मेरू ऊंचे ते ऊंचा महाराजा महारानी। फिर अन्त में जाकर आदि देव, आदि देवी बनेंगे। सारा ज्ञान तुम्हारी बुद्धि में है, परन्तु नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार। यह नॉलेज तुम किसको भी सुनाओ तो वन्डर खायेंगे। बाप नॉलेजफुल बिगर यह नॉलेज कोई दे न सके। यह बच्चों को धारण करना बहुत सहज है, कोई मुश्किल नहीं परन्तु याद की यात्रा है मुख्य। सोने के बर्तन में रत्न ठहर सकेंगे। ऊंचे ते ऊंचे रत्न हैं। यह बाबा रत्नों का व्यापारी भी है ना। अच्छा रत्न आता था तो चांदी की डिब्बी में कपास डालकर ऐसे बनाकर रखते थे। फिर ऐसे खोलकर दिखाते थे जैसे बहुत फर्स्टक्लास चीज़ है। अच्छी चीज़, अच्छे बर्तन में ही शोभती है।

तुम्हारे यह कान हैं बर्तन, इन द्वारा तुम सुनते हो। धारण करते हो तो यह सोने का (पवित्र) चाहिए अर्थात् बुद्धियोग बाबा से पूरा होना चाहिए। बुद्धियोग ठीक नहीं होगा तो कोई बात ठहरेगी नहीं। उल्टे सुल्टे संकल्प भी नहीं उठने चाहिए। तूफान बन्द। पुरुषार्थ करते-करते यह स्टेज होगी। बुद्धि को सब तरफ से निकाल मेरे साथ लगाते-लगाते बर्तन सोना हो जायेगा, दूसरों को भी दान देते रहो। भारत महादानी है, भारत में धन आदि बहुत दान करते हैं। यह फिर है अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान, जो बाप बच्चों को देते हैं। देह सहित, देह के जो भी सम्बन्धी हैं उन सबको छोड़ बुद्धि एक के साथ लगानी है। हम तो बाप के हैं। बस। बाबा एम आब्जेक्ट बता देते हैं। पुरुषार्थ करना बच्चों का काम है तब ही ऊंच पद पायेंगे। कोई भी उल्टा सुल्टा संकल्प नहीं उठना चाहिए। बाप है नॉलेज का सागर। हद बेहद से पार सब राज़ समझाते रहते हैं। मैं हद बेहद से पार चला जाता हूँ, तुम भी हद बेहद से पार हो, संकल्प आदि कुछ नहीं। फिर तुम भी पार चले जायेंगे। गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान बनना है। हथ कार डे दिल शिव बाबा को दे.. चलते-चलते कई बच्चे टूट भी पड़ते हैं। नापास हो पड़ते हैं। तुमको सब मालूम पड़ जायेगा। अच्छे-अच्छे महारथियों को भी माया हप कर गई। आज नहीं हैं। बाप को छोड़ जाकर माया की एशलम लेते हैं। पढ़ने वाले ऊंच चले जाते हैं और पढ़ाने वाली टीचर मायावी बन जाती है। जैसे ट्रेटर होते हैं, दूसरे पास जाकर शरण लेते हैं। जो पावरफुल देखते हैं उस तरफ चले जाते हैं। तुम जानते हो बहुत ताकत वाला तो एक बाप है, वही सर्वशक्तिमान है। हमको ऊंच पढ़ाए एकदम विश्व का मालिक बना देते हैं। कोई अप्राप्त वस्तु नहीं जिसके लिए पुरुषार्थ करना पड़े। ऐसी कोई चीज़ है ही नहीं जो तुम्हारे पास न हो। सो भी है नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार। बेहद के बाप बिगर यह बातें कोई जानते नहीं। तुम ही पूज्य थे फिर तुम ही पुजारी बने हो। अब फिर पूज्य बनने के लिए पुरुषार्थ कर रहे हो। जितना बाबा की याद में रहेंगे तो माया के तूफान खत्म होते जायेंगे। हातमताई का खेल दिखाते हैं। मुहलरा डालते थे तो माया भाग जाती थी। मुहलरा निकाला तो माया आ गई। बाप समझाते हैं बच्चे अपने को आत्मा भाई-भाई समझो। शरीर ही नहीं तो फिर दृष्टि कहाँ जायेगी। इतनी मेहनत करनी है। कल्प-कल्प तुम्हारा ही पुरुषार्थ चलता है। पुरुषार्थ से तुम अपना भाग्य बनाते हो।

बाप बच्चों को मुख्य बात कहते हैं अपने को आत्मा समझ मुझ बाप को याद करो। यह बात तुम ही जान सकते हो। भल वह कहते हैं गॉड फादर है, हम सभी ब्रदर्स हैं। परन्तु समझते नहीं हैं। गाते भी हैं सबका सद्गति दाता राम, सबको सुख देने वाला एक ही बाप है। राम को बाबा नहीं कहेंगे। बाबा एक शरीरधारी को दूसरा अशरीरी को कहते हैं। पहले-पहले है अशरीरी फिर शरीरी बनते हैं। पहले हम बाबा के साथ रहते फिर पार्ट बजाने के लिए लौकिक देहधारी बाप के पास आते हैं। यह सब हैं रूहानी बातें। उस लौकिक जिस्मानी पढ़ाई को भूल जाना है। चक्र सारा बुद्धि में है। अभी है संगमयुग, हमको अब नई दुनिया में जाना है। पुरानी दुनिया खत्म होनी है। अब नई दुनिया में जाने के लिए दैवी गुण भी जरूर धारण करना पड़े, पावन बनना पड़े। बाप को भी जरूर याद करना पड़े और पूरा-पूरा याद करना है ताकि पाप कट जाएं। बाप कहते हैं मुझे याद करो तो पावन बनेंगे, इनको कहा जाता है योग अग्नि। बाबा की श्रीमत पर चलना है। बाकी तो सारी दुनिया रावण की मत पर चल रही है। वह है विकारी मत। यह है निर्विकारी मत। पांच विकार हैं ना। पहले-पहले है देह अहंकार फिर काम, क्रोध.. मनुष्य अहंकार को पिछाड़ी में रखते हैं। वास्तव में अहंकार तो पहले होना चाहिए। पीछे और विकार आते हैं। बाप तुम बच्चों को समझाते हैं कल्प-कल्प अनेक बार समझाया है। हर 5000 वर्ष के बाद समझाते हैं। बुद्धि से समझते हो बाबा हमको आस्तिक बनाते हैं अर्थात् रचता और रचना का नॉलेज बताते हैं इसलिए उनको क्रियेटर कहा जाता है। यूँ तो अनादि क्रियेशन है फिर भी समझाने वाला एक है, उनमें सारा ज्ञान है। है अनादि बना हुआ ड्रामा, कोई बनाता नहीं है। वह हद का ड्रामा शूट करना सहज होता है। यह तो बड़ा बेहद का ड्रामा है। यह अनादि शूट किया हुआ है, बना बनाया है। इस ड्रामा में जरा भी फ़र्क नहीं पड़ सकता। बेहद ड्रामा का चक्र चलता रहता है। हम तमोप्रधान से सतोप्रधान फिर सतोप्रधान से तमोप्रधान बनते हैं। पवित्रता की ही मुख्य बात आती है। पवित्र दुनिया में कितना सुख है, पतित दुनिया में कितना दु:ख है। आधाकल्प सुखधाम, आधाकल्प दु:खधाम यह राज़ भी तुम्हारी बुद्धि में ही है, दूसरा कोई नहीं जानते। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार :

1) उल्टे सुल्टे संकल्पों से मुक्त होने के लिए बुद्धियोग हद बेहद से पार घर में लगाना है। दैहिक दृष्टि समाप्त करने के लिए आत्मा भाई-भाई हूँ – यह अभ्यास पक्का करना है।

2) अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान करना है। बुद्धि को सोना (पवित्र) बनाने के लिए और सब तरफ से निकाल एक बाप से लगाना है।

वरदान:-

अपनी जिम्मेवारी बाप को देकर, स्वयं को बाप हवाले कर दो अर्थात् अपने सब बोझ बाप को दे दो तो डबल लाइट बन जायेंगे। बुद्धि से सरेन्डर हो जाओ तो और कोई भी बात बुद्धि में नहीं आयेगी, बस सब कुछ बाप का है, सब कुछ बाप में है तो और कुछ रहा ही नहीं, जब रहा ही नहीं तो बुद्धि कहाँ जायेगी, बस एक बाप, एक ही याद का रास्ता, इस रास्ते से सहज मंजिल पर पहुंच जायेंगे।

स्लोगन:-

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1 thought on “10 February 2023 HINDI Murli Today | Brahma Kumaris”

  1. मुस्कान

    बेहद के बच्चों को सुधारकर ज्ञानी-योगी-मीठा-पवित्र -सर्वगुण सम्पन्न -आत्म-अभिमानी / परमात्म-अभिमानी बनाने वाले, विश्व कल्याणकारी बनाने वाले, निर्विकारी -निरोगी बनाने वाले जादूगर शांति का सागर सर्वशक्तिमान भगवान मीठे बाबा शिव बाबा श्वांस-श्वांस थैंक्स.

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