10 Dec 2023 HINDI Murli Today | Brahma Kumaris

Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi

December 9, 2023

Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.

Brahma Kumaris

आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन।  Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. SourceOfficial Murli blog to read and listen daily murlis. पढ़े: मुरली का महत्त्व

साथी को साथ रख साक्षी और खुशनुमा तख्तनशीन रहो

♫ मुरली सुने (audio)➤

आज विश्व कल्याणकारी बाप विश्व के चारों तरफ के बच्चों को देख हर्षित हो रहे हैं। सभी बच्चों के स्नेह और सहयोग की रेखायें बच्चों के चेहरे से दिखाई दे रही हैं। हर एक के दिल से “मेरा बाबा”, यह गीत बापदादा सुन रहे हैं। बापदादा भी रेसपान्ड में कहते हैं ‘ओ मेरे अति प्रिय, अति स्नेही लाडले बच्चे’। हर एक बच्चा प्रिय भी है, लाडले भी हैं, क्यों? कोटों में कोई और कोई में भी कोई हो। तो लाडले हुए ना! तो बापदादा भी लाडले बच्चों को देख खुश होते हैं। बच्चों को भी सदा खुशी में डांस करते हुए देखते हैं और सदा देखने चाहते हैं। खुशी में रहते तो हैं लेकिन बाप सदा चाहते हैं। सदा खुश रहते हो या खुशी में फर्क पड़ता है? कभी बहुत खुशी, कभी थोड़ी कम और कभी बहुत कम!

बाप ने पहले भी सुनाया है कि वर्तमान समय आप बच्चों की विश्व को इस सेवा की आवश्यकता है जो चेहरे से, नयनों से, दो शब्द से हर आत्मा के दु:ख को दूर कर खुशी दे दो। आपको देखते ही खुश हो जाएं इसलिए खुशनुमा चेहरा या खुशनुमा मूर्त सदा रहे क्योंकि मन की खुशी सूरत से स्पष्ट दिखाई देती है। कितना भी कोई भटकता हुआ, परेशान, दु:ख की लहर में आये, खुशी में रहना असम्भव भी समझते हों लेकिन आपके सामने आते ही आपकी मूर्त, आपकी वृत्ति, आपकी दृष्टि आत्मा को परिवर्तन कर ले। आज मन की खुशी के लिए कितना खर्चा करते हैं, कितने मनोरंजन के नये-नये साधन बनाते हैं। वह हैं अल्प-काल के साधन और आपकी है सदाकाल की सच्ची साधना। तो साधना उन आत्माओं को परिवर्तन कर ले। हाय-हाय ले आवें और वाह-वाह लेकर जाये। वाह कमाल है – परमात्म आत्माओं की! तो यह सेवा करो। समय प्रति समय जितना अल्पकाल के साधनों से परेशान होते जायेंगे, ऐसे समय पर आपकी खुशी उन्हों को सहारा बन जायेगी क्योंकि आप हैं ही खुशनसीब। खुशनसीब हैं या नहीं? अधूरे तो नहीं? हैं ही खुशनसीब। आप जैसा खुशनसीब सारे कल्प में कोई आत्मायें नहीं। इतना नशा चेहरे और चलन से अनुभव कराओ। करा सकते हो या कराते भी हो?

ब्राह्मण जीवन में अगर खुशी नहीं तो ब्राह्मण बनकर क्या किया! ब्राह्मण जीवन अर्थात् खुशी की जीवन। कभी-कभी बापदादा देखते हैं, कोई-कोई के चेहरे जो होते हैं ना वह थोड़ा सा… क्या होता है? अच्छी तरह से जानते हैं, तभी हंसते हैं। तो बापदादा को ऐसा चेहरा देख रहम भी आता और थोड़ा सा आश्चर्य भी लगता। मेरे बच्चे और उदास! हो सकता है क्या? नहीं ना! उदास अर्थात् माया के दास। लेकिन आप तो मास्टर मायापति हो। माया आपके आगे क्या है? चींटी भी नहीं है, मरी हुई चींटी। दूर से लगता है जिंदा है लेकिन होती मरी हुई है। सिर्फ दूर से परखने की शक्ति चाहिए। जैसे बाप की नॉलेज विस्तार से जानते हो ना, ऐसे माया के भी बहुरूपी रूप की पहचान, नॉलेज अच्छी तरह से धारण कर लो। वह सिर्फ डराती है, जैसे छोटे बच्चे होते हैं ना तो उनको माँ बाप निर्भय बनाने के लिए डराते हैं। कुछ करेंगे नहीं, जानबूझकर डराने के लिए करते हैं। ऐसे माया भी अपना बनाने के लिए बहुरूप धारण करती है। जब बहुरूप धारण करती है तो आप भी बहुरूपी बन उसको परख लो। परख नहीं सकते हैं ना, तो क्या खेल करते हो? युद्ध करने शुरू कर देते हो हाय, माया आ गई! और युद्ध करने से बुद्धि, मन थक जाता है। फिर थकावट से क्या कहते हो? माया बड़ी प्रबल है, माया बड़ी तेज है। कुछ भी नहीं है। आपकी कमजोरी भिन्न-भिन्न माया के रूप बन जाती है। तो बापदादा सदा हर एक बच्चे को खुशनसीब के नशे में, खुशनुमा चेहरे में और खुशी की खुराक से तन्दरूस्त और सदा खुशी के खजानों से सम्पन्न देखने चाहते हैं। जीवन में चाहिए क्या? खुराक और खजाना। और क्या चाहिए? तो आपके पास खुशी की खुराक है या स्टॉक कभी खत्म हो जाता है? खुशी का खजाना अखुट है। अखुट है ना? और जितना खर्चो उतना बढ़े। अगर और कोई भी पुरुषार्थ नहीं करो सिर्फ एक लक्ष्य रखो – कुछ भी हो जाए, चाहे अपने मन के स्थिति द्वारा, चाहे कोई अन्य आत्माओं द्वारा, चाहे प्रकृति द्वारा, चाहे वायुमण्डल द्वारा कुछ भी हो जाए, मुझे खुशी नहीं छोड़नी है। यह तो सहज पुरुषार्थ है ना या खुशी खिसक जाती है? सहज है या कभी-कभी मुश्किल है? दृढ़ संकल्प रखो और बातों को भूल जाओ। एक ही बात पक्की रखो – मुझे खुश रहना है। तो बातें क्या लगेंगी? खेल। और अपनी खेल देखने की साक्षीपन की सीट पर सदा स्थित रहो। चाहे कोई अपमान करने वाला हो, आपको परेशान कर अपने साक्षीपन की शान से नीचे उतारने वाले हों, लेकिन आप साक्षीपन की सीट से नीचे नहीं आओ। नीचे आ जाते हो तभी खुशी कम हो जाती है।

बापदादा ने पहले भी दो शब्द सुनाये हैं – साथी और साक्षी। जब बापदादा साथ है तो साक्षीपन की सीट सदा मजबूत रहती है। कहते सभी हो बापदादा साथ है, बापदादा साथ है लेकिन माया का प्रभाव भी पड़ता रहता और कहते भी रहते हो बापदादा साथ है, बापदादा साथ है। साथ है, लेकिन साथ को ऐसे समय पर यूज़ नहीं करते हो, किनारे कर देते हो। जैसे कोई साथ में होता है ना, कोई बहुत ऐसा काम पड़ जाता है या कोई ऐसी बात होती है तो साथ कभी ख्याल नहीं होता, बातों में पड़ जाते हैं। ऐसे साथ है यह मानते भी हो, अनुभव भी करते हो। कोई है जो कहेगा साथ नहीं है? कोई नहीं कहता। सब कहते हैं मेरे साथ है, यह भी नहीं कहते कि तेरे साथ है। हर एक कहता है मेरे साथ है। मेरा साथी है। मन से कहते हो या मुख से? मन से कहते हो?

बापदादा तो खेल देखते हैं, बाप साथ बैठे हैं और अपनी परिस्थिति में, उसको सामना करने में इतना मस्त हो जाते हैं जो देखते नहीं हैं कि साथ में कौन है। तो बाप भी क्या करते? बाप भी साथी से साक्षी बनकर खेल देखते हैं। ऐसे तो नहीं करो ना। जब साथी कहते हो तो साथ तो निभाओ, किनारा क्यों करते हो? बाप को अच्छा नहीं लगता। बाप यही शुभ आशा रखते हैं और है भी कि एक-एक बच्चा स्वराज्य अधिकारी सो विश्व अधिकारी है। आप लोग प्रजा हैं क्या! प्रजा तो नहीं बनना है ना? राज़े, महाराजे, विश्व राजे हो ना! प्रजा बनाने वाले हो, प्रजा बनने वाले नहीं हो। राजा बनने वाले, प्रजा बनाने वाले हो। तो राजा कहाँ बैठता है? तख्त पर बैठता है ना! जब प्रैक्टिकल में राजा के नशे में होता है तो तख्त पर बैठता है ना! तो साक्षीपन का तख्त छोड़ो नहीं। जो अलग-अलग पुरुषार्थ करते हो उसमें थक जाते हो। आज मन्सा का किया, कल वाचा का किया, सम्बन्ध-सम्पर्क का किया तो थक जाते हो। एक ही पुरुषार्थ करो कि साक्षी और खुशनुमा तख्तनशीन रहना है। यह तख्त कभी नहीं छोड़ना है। कोई राजा ऐसे सीरियस होकर तख्त पर बैठे, बैठा तख्त पर हो लेकिन बहुत क्रोधी हो, ऑफिशियल हो तो अच्छा लगेगा? कहेंगे यह तो राजा नहीं है। तो आप सदा तख्तनशीन है ना! वह राज़े तो कभी तख्त पर बैठते, कभी नहीं बैठते लेकिन साक्षीपन का तख्त ऐसा है जिसमें हर कार्य करते भी तख्तनशीन, उतरना नहीं पड़ता है। सोते भी तख्तनशीन, उठते-चलते, सम्बन्ध-सम्पर्क में आते तख्तनशीन। तख्त पर बैठना आता है कि बैठना नहीं आता है, खिसक जाते हो? साक्षीपन के तख्तनशीन आत्मा कभी भी कोई समस्या में परेशान नहीं हो सकती। समस्या तख्त के नीचे रह जायेगी और आप ऊपर तख्तनशीन होंगे। समस्या आपके लिए सिर नहीं उठा सकेगी, नीचे दबी रहेगी। आपको परेशान नहीं करेगी और कोई को भी दबा दो तो अन्दर ही अन्दर खत्म हो जायेगा ना। तो बापदादा को ऐसे समय पर आश्चर्य लगता है, आप नहीं आश्चर्य करना। अपने पर भले करना, दूसरे पर नहीं करना। तो आश्चर्य लगता है कि यह मेरे बच्चे क्या कर रहे हैं! तख्त से उतर रहे हैं। जब तख्तनशीन रहने के संस्कार अब से ही डालेंगे तब विश्व के तख्त पर भी बैठेंगे। यहाँ सदाकाल तख्तनशीन नहीं होंगे तो वहाँ भी सदा अर्थात् जितना समय फुल है, उतना समय नहीं बैठ सकेंगे। संस्कार सब अभी भरने हैं। फिर वही भरे हुए संस्कार सतयुग में कार्य करेंगे। रॉयल्टी के संस्कार अभी से भरने हैं। ऐसे नहीं सोचना कि अभी कुछ समय तो पड़ा है, इतने में विनाश तो होना नहीं है, यह नहीं सोचना। विनाश होना है अचानक। पूछकर नहीं आयेगा कि हाँ तैयार हो! सब अचानक होना है। आप लोग भी ब्राह्मण कैसे बनें? अचानक ही सन्देश मिला, प्रदर्शनी देखी, सम्पर्क-सम्बन्ध हुआ बदल गये। क्या सोचा था कि इस तारीख को ब्राह्मण बनेंगे? अचानक हो गया ना! तो परिवर्तन भी अचानक होना है। आपको पहले माया और ही अलबेला बनायेगी, सोचेंगे हमने तो दो हजार सोचा था – वह भी पूरा हो गया, अभी तो थोड़ा रेस्ट कर लो। पहले माया अपना जादू फैलायेगी, अलबेला बनायेगी। किसी भी बात में, चाहे सेवा में, चाहे योग में, चाहे धारणा में, चाहे सम्बन्ध-सम्पर्क में यह तो चलता ही है, यह तो होता ही है…, ऐसे पहले माया अलबेला बनाने की कोशिश करेगी। फिर अचानक विनाश होगा, फिर नहीं कहना कि बापदादा ने सुनाया ही नहीं, ऐसा भी होना है क्या! इसलिए पहले ही सुना देते हैं – अलबेले कभी भी किसी भी बात में नहीं बनना। चार ही सब्जेक्ट में अलर्ट, अभी भी कुछ हो जाए तो अलर्ट। उस समय नहीं कहना बापदादा अभी आओ, अभी साथ निभाओ, अभी थोड़ी शक्ति दे दो, उस समय नहीं देंगे। अभी जितनी शक्ति चाहिए, जैसी चाहिए उतनी जमा कर लो। सबको खुली छुट्टी है, खुले भण्डार हैं, जितनी शक्ति चाहिए, जो शक्ति चाहिए ले लो। पेपर के समय टीचर वा प्रिंसीपल मदद नहीं करता।

डबल विदेशी बच्चों को देख बाप को भी डबल खुशी होती है। क्यों होती है? क्योंकि डबल विदेशियों को स्वयं को परिवर्तन करने में डबल मेहनत करनी पड़ी इसीलिए जब बापदादा डबल विदेशी बच्चों को देखते हैं तो डबल खुशी होती है, वाह मेरे डबल विदेशी बच्चे वाह! डबल विदेशी हाथ उठाओ। (विश्व के अनेक देशों के करीब 1 हजार भाई बहिनें सभा में उपस्थित हैं) वाह बहुत अच्छा। डबल ताली बजाओ। बापदादा विदेश की सेवा के समाचार सुनते रहते हैं, देखते भी रहते हैं, रिजल्ट में सेवा का उमंग-उत्साह बहुत अच्छा है। सिर्फ कभी-कभी अपने ऊपर सेवा का थोड़ा सा बोझ उठा लेते हो। बोझ नहीं उठाओ। बोझ बाप को दे दो। बाप के लिए वह बोझ कुछ भी नहीं है लेकिन आप सेवा का बोझ उठा लेते हो तो थक जाते हो। सेवा बहुत अच्छी करते हो, सेवा के समय नहीं थकते हो। उस समय बहुत अच्छे चेहरों का फोटो निकालने वाला होता है लेकिन कोई-कोई (सभी नहीं) सेवा के बाद थोड़ा सा थकावट के चेहरे में दिखाई देते हैं। बाप कहते हैं बोझ उठाते क्यों हो? क्या बोझ उठाना अच्छा लगता है या आदत पड़ी हुई है? बोझ नहीं उठाओ। बोझ तब लगता है जब बाप साथ नहीं है। मैंने किया, मैं करती हूँ, मैं करता हूँ तो बोझ हो जाता है। बाप साथ है, बाप का कार्य है, बाप करा रहा है तो बोझ नहीं होगा। हल्के हो नाचते रहेंगे। जैसे डांस बहुत अच्छी करते हो ना। डबल विदेशियों की डांस देखो तो बहुत अच्छी होती है। अपने को थकाते नहीं हैं, फरिश्ते माफिक करते हो। इन्डियन जो करेंगे वह पांव थकायेंगे, हाथ भी थकायेंगे। लेकिन विदेशी डांस भी लाइट करते हो, तो ऐसे सेवा भी एक डांस समझो, खेल समझो। थको नहीं। बापदादा को वह फोटो अच्छा नहीं लगता है। सेवा का उमंग-उत्साह अच्छा है और यह भी रिजल्ट बाप के पास है कि अभी थोड़ी सी बात में हलचल में आने की परसेन्टेज बहुत कम है। मैजॉरिटी ठीक हैं, बाकी थोड़ी संख्या कभी-कभी थोड़ा सा हलचल में दिखाई देती है। लेकिन आदि की रिजल्ट और अब की रिजल्ट में बहुत अच्छा अन्तर है। ऐसा दिखाई देता है ना? अभी नाज़ुकपन छोड़ते जा रहे हैं। बापदादा को रिजल्ट देख करके खुशी है।

अभी छोटे-छोटे माइक भी तैयार कर रहे हैं। अभी छोटे माइक हैं, लेकिन छोटे से बड़े तक भी आ जायेंगे। बापदादा को याद है – आदि में यह विदेशी टीचर्स कहती थी कि वी.आई.पीज को मिलना ही मुश्किल है, आना तो छोड़ो, मिलना ही मुश्किल है। और अभी सहज हो गया है क्योंकि आप भी वी.वी.वी.आई.पी. हो गये तो आपके आगे वी.आई.पी. क्या हैं! टोटल विदेश की रिजल्ट अच्छी है। सेन्टर्स भी अच्छे हैं, वृद्धि को प्राप्त करते जा रहे हैं। भारत में हैण्ड्स नहीं हैं, नहीं तो भारत में भी सेवाकेन्द्र तो बहुत खुल जायें। एक-एक ज़ोन वाला कहता है – हैण्ड्स नहीं हैं। तो अभी इस वर्ष हैण्ड्स निकालने की सेवा करो। हैण्ड्स मांगो नहीं, निकालो; और ही दान-पुण्य करो।

विदेश में यह बहुत अच्छा तरीका है – जहाँ भी सेन्टर खुलता है, वहाँ के ही लौकिक कार्य भी करते हैं सेन्टर भी चलाते हैं। कैसे चलेगा, कौन चलायेगा, यह प्राब्लम कम है। आप लोग यह नहीं सोचना कि हम लौकिक काम क्यों करें! यह तो आपकी सेवा का साधन है। लौकिक कार्य नहीं करते हो लेकिन अलौकिक कार्य के निमित्त बनने के लिए लौकिक कार्य करते हो। जहाँ भी जाते हो वहाँ सेन्टर खोलने का उमंग रहता है ना। तो लौकिक कार्य कब तक करेंगे – यह नहीं सोचो। लौकिक कार्य अलौकिक कार्य निमित्त करते हो तो आप सरेण्डर हो। लौकिकपन नहीं हो, अलौकिकपन है तो लौकिक कार्य में भी समर्पण हो। लौकिक कार्य को छोड़कर समर्पण समारोह मनाना है – यह बात नहीं है। ऐसा करने से वृद्धि कैसे होगी! इसीलिए लौकिक कार्य करते अलौकिक कार्य के निमित्त बनते हो, तो जो निमित्त लौकिक समझते हैं और रहते अलौकिकता में हैं, ऐसी आत्माओं को डबल क्या, पदम मुबारक है। सिर्फ ट्रस्टी होकर करना, मैं-पन में नहीं आना। मैं इतना काम करती हूँ, मैं-पन नहीं। करावनहार करा रहा है। मैं इन्स्ट्रुवमेंट हूँ। पॉवर के आधार पर चल रही हूँ। अच्छा।

आज डबल विदेशियों का टर्न है ना। आप लोगों को भी डबल विदेशियों को देख खुशी होती है ना! तो सभी डबल विदेशी खुशनुमा हो? हाथ की ताली बजाओ। अभी मधुबन में तो माया नहीं आती है ना?

अच्छा, एक सेकेण्ड में बिल्कुल बाप समान अशरीरी बन सकते हो? तो एक सेकेण्ड में फुल स्टॉप लगाओ और अशरीरी स्थिति में स्थित हो जाओ। (बापदादा ने 3 मिनट ड्रिल कराई) अच्छा, यह सारे दिन में बार-बार अभ्यास करते रहो।

चारों ओर के सर्व मायाजीत, प्रकृतिजीत, साक्षीपन के तख्तनशीन, साथी के साथ का सदा अनुभव करने वाले, सदा दृढ़ता से सफलता को गले का हार बनाने वाले, सदा बाप समान लाइट रहने वाले, सदा अपने माइट द्वारा विश्व को दु:ख-अशान्ति की कमजोरी से छुड़ाने वाले ऐसे मास्टर सुख के सागर, खुशी के सागर, प्रेम के सागर, ज्ञान के सागर बाप समान बच्चों को याद-प्यार और नमस्ते।

वरदान:-

जो परखने की शक्ति द्वारा बाप को, अपने आपको, समय को, ब्राह्मण परिवार को और अपने श्रेष्ठ कर्तव्य को पहचान कर फिर निर्णय करते हैं कि क्या बनना है और क्या करना है, वही सेवा करते, कर्म वा संबंध सम्पर्क में आते सदा सफलता प्राप्त करते हैं। मन्सा-वाचा-कर्मणा हर प्रकार की सेवा में सफलतामूर्त बनने का आधार है परखने और निर्णय करने की शक्ति।

स्लोगन:-

 दैनिक ज्ञान मुरली पढ़े

रोज की मुरली अपने email पर प्राप्त करे Subscribe!

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top