09 October 2024 | HINDI Murli Today | Brahma Kumaris
Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi
8 October 2024
Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.
Brahma Kumaris
आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन। Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. Source: Official Murli blog to read and listen daily murlis. ➤ पढ़े: मुरली का महत्त्व
“मीठे बच्चे - विश्व का राज्य बाहुबल से नहीं लिया जा सकता, उसके लिए योगबल चाहिए, यह भी एक लॉ है''
प्रश्नः-
शिवबाबा स्वयं ही स्वयं पर कौन-सा वन्डर खाते हैं?
उत्तर:-
♫ मुरली सुने (audio)➤
ओम् शान्ति। रूहानी बाप तुम बच्चों को स्वदर्शन चक्रधारी बनाते हैं अर्थात् तुम इस 84 के चक्र को जान जाते हो। आगे नहीं जानते थे। अभी बाप द्वारा तुमने जाना है। 84 जन्मों के चक्र में तुम आते हो जरूर। तुम बच्चों को 84 के चक्र का नॉलेज देता हूँ। मैं स्वदर्शन चक्रधारी हूँ परन्तु प्रैक्टिकल में 84 जन्मों के चक्र में आता नहीं हूँ। तो इससे समझ जाना चाहिए शिव बाप में सारा ज्ञान है। तुम जानते हो हम ब्राह्मण अभी स्वदर्शन चक्रधारी बनते हैं। बाबा नहीं बनते हैं। फिर उनमें अनुभव कहाँ से आया? हमको तो अनुभव प्राप्त होता है। बाबा कहाँ से अनुभव लाते हैं जो तुमको सुनाते हैं? प्रैक्टिकल अनुभव होना चाहिए ना। बाप कहते हैं मुझे ज्ञान का सागर कहते हैं परन्तु मैं तो 84 जन्मों के चक्र में आता नहीं हूँ। फिर मेरे में यह ज्ञान कहाँ से आया? टीचर पढ़ाते हैं तो जरूर खुद पढ़ा हुआ है ना। यह शिवबाबा कैसे पढ़ा? इनको कैसे 84 के चक्र का मालूम पड़ा, जबकि खुद 84 जन्मों में नहीं आता है। बाप बीजरूप होने कारण जानते हैं। खुद 84 के चक्र में नहीं आते हैं। परन्तु तुमको सब समझाते हैं, यह भी कितना वन्डर है। ऐसे भी नहीं, बाप कोई शास्त्र आदि पढ़ा हुआ है। कहा जाता है ड्रामा अनुसार उसमें यह नॉलेज नूंधी हुई है जो तुमको सुनाते हैं। तो वन्डरफुल टीचर हुआ ना। वन्डर खाना चाहिए ना इसलिए इनको बड़े-बड़े नाम दिये हैं। ईश्वर, प्रभू, अन्तर्यामी आदि-आदि। तुम वन्डर खाते हो ईश्वर में कैसे सारी नॉलेज भरी हुई है। उनमें आई कहाँ से जो तुमको समझाते हैं? उनको तो कोई बाप भी नहीं, जिससे जन्म लिया हो वा समझा हो। तुम सब भाई-भाई हो। वह एक कैसे तुम्हारा बाप है, बीजरूप है। कितनी नॉलेज बैठ बच्चों को सुनाते हैं। कहते हैं 84 जन्म मैं नहीं लेता हूँ, तुम लेते हो। तो जरूर प्रश्न उठेगा ना – बाबा आपको कैसे मालूम पड़ा। बाबा कहते हैं – बच्चे, अनादि ड्रामा अनुसार मेरे में पहले से यह नॉलेज है, जो तुमको पढ़ाता हूँ इसलिए ही मुझे ऊंच ते ऊंच भगवान् कहा जाता है। खुद चक्र में नहीं आते परन्तु उनमें सारी सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त की नॉलेज है। तो तुम बच्चों को कितनी खुशी होनी चाहिए। उनको 84 के चक्र की नॉलेज कहाँ से मिली? तुमको तो मिली बाप से। बाप में ओरीज्नली नॉलेज है। उनको कहा ही जाता है नॉलेजफुल। कोई से पढ़ा भी नहीं है। तो भी उनको ओरीज्नली मालूम है इसलिए नॉलेजफुल कहा जाता है। यह वन्डर है ना इसलिए यह ऊंच ते ऊंच पढ़ाई गाई जाती है। बच्चों को वन्डर लगता है बाप पर। उनको क्यों नॉलेजफुल कहा जाता – एक तो यह समझने की बात है, दूसरी फिर क्या बात है? यह चित्र तुम दिखाते हो तो कोई पूछेंगे कि ब्रह्मा में भी अपनी आत्मा होगी और यह जो नारायण बनते हैं उनमें भी अपनी आत्मा होगी। दो आत्मायें हैं ना। एक ब्रह्मा, एक नारायण की। परन्तु विचार करेंगे तो यह कोई दो आत्मायें नहीं हैं। आत्मा एक ही है। यह एक सैम्पुल दिखाया जाता है देवता का। यह ब्रह्मा सो विष्णु अर्थात् नारायण बनते हैं, इसको कहा जाता है गुह्य बातें। बाप बहुत गुह्य नॉलेज सुनाते हैं जो और कोई पढ़ा न सके सिवाए बाप के। तो ब्रह्मा और विष्णु की कोई दो आत्मायें नहीं हैं। वैसे ही सरस्वती और लक्ष्मी – इन दोनों की दो आत्मायें हैं या एक? आत्मा एक है, शरीर दो हैं। यह सरस्वती ही फिर लक्ष्मी बनती है इसलिए एक आत्मा गिनी जायेगी। 84 जन्म एक ही आत्मा लेती है। यह बड़ी समझ की बात है। ब्राह्मण सो देवता, देवता सो क्षत्रिय बनते हैं। आत्मा एक शरीर छोड़ दूसरा लेती है। आत्मा एक ही है, एक यह सैम्पुल दिखाया जाता है – कैसे ब्राह्मण सो देवता बनते हैं। हम सो का अर्थ कितना अच्छा है। इनको कहा जाता है गुह्य-गुह्य बातें। इसमें भी पहले-पहले तो यह समझ चाहिए कि हम एक बाप के बच्चे हैं। सभी आत्मायें असुल परमधाम में रहने वाली हैं। यहाँ पार्ट बजाने आई हैं। यह खेल है। बाप तुमको इस खेल का समाचार बैठ सुनाते हैं। बाप तो ओरीज्नली जानते ही हैं। उनको कोई ने सिखलाया नहीं है। इस 84 के चक्र को वही जानते हैं जो इस समय तुमको सुनाते हैं। फिर तुम भूल जाते हो। फिर उनका शास्त्र कैसे बन सकता। बाप तो कोई शास्त्र पढ़ा हुआ नहीं है। फिर कैसे आकर नई-नई बातें सुनाते हैं, आधाकल्प है भक्ति मार्ग। यह बात भी शास्त्रों में नहीं है। यह शास्त्र भी ड्रामा अनुसार भक्ति मार्ग में बने हैं। तुम्हारी बुद्धि में शुरू से लेकर अन्त तक इस ड्रामा की कितनी बड़ी नॉलेज है। उनको जरूर मनुष्य तन का आधार लेना पड़े। शिवबाबा इस ब्रह्मा तन में बैठ इस सृष्टि चक्र की नॉलेज सुनाते हैं। मनुष्यों ने तो गपोड़े लगाकर सृष्टि की आयु ही कितनी लम्बी कर दी है। नई दुनिया सो फिर पुरानी दुनिया बनती है। नई दुनिया को कहा जाता है स्वर्ग, पुरानी को कहा जाता है नर्क। दुनिया तो एक ही है। नई दुनिया में रहते हैं देवी-देवता। वहाँ अपार सुख हैं। सारी सृष्टि नई होती है। अभी इनको पुराना कहा जाता है। नाम ही है आइरन एजड वर्ल्ड। जैसे ओल्ड देहली और न्यु देहली कहा जाता है। बाप समझाते हैं – मीठे-मीठे बच्चों, न्यु वर्ल्ड में न्यु देहली होगी। यह तो ओल्ड वर्ल्ड में ही कह देते हैं न्यु देहली। इनको न्यु कैसे कहेंगे! बाप समझाते हैं नई दुनिया में नई दिल्ली होगी। उनमें यह लक्ष्मी-नारायण राज्य करेंगे। उसको कहा जायेगा सतयुग। तुम इस सारे भारत में राज्य करेंगे। तुम्हारी गद्दी जमुना किनारे पर होगी। पिछाड़ी में रावण राज्य की गद्दी भी यहाँ ही है। राम राज्य की गद्दी भी यहाँ होगी। नाम देहली नहीं होगा। उसको परिस्तान कहा जाता है। फिर जो जैसा राजा होता है वह अपनी गद्दी का ऐसा नाम रखते हैं। इस समय तुम सब पुरानी दुनिया में हो। नई दुनिया में जाने के लिए तुम पढ़ रहे हो। फिर से मनुष्य से देवता बन रहे हो। पढ़ाने वाला है बाप।
तुम जानते हो ऊंचे ते ऊंचे बाप ने नीचे आकर राजयोग सिखाया है। अभी तुम हो संगम पर जबकि कलियुगी पुरानी दुनिया खत्म होनी है। बाप ने इनका हिसाब भी बताया है, मैं आता हूँ ब्रह्मा तन में। मनुष्यों को तो पता ही नहीं है कि ब्रह्मा कौन-सा? सुना है प्रजापिता ब्रह्मा। तुम प्रजा हो ना ब्रह्मा की इसलिए अपने को बी.के. कहलाते हो। वास्तव में शिवबाबा के बच्चे शिववंशी हो जब निराकार आत्मायें हो, फिर साकार में प्रजापिता ब्रह्मा के बच्चे भाई-बहन हो और कोई भी सम्बन्ध नहीं है। इस समय तुम उस कलियुगी सम्बन्ध को भूलते हो क्योंकि उनमें बन्धन है। तुम जाते हो नई दुनिया में। ब्राह्मणों की चोटी होती है। चोटी ब्राह्मणों की निशानी है। तुम ब्राह्मणों का यह कुल है। वह हैं कलियुगी ब्राह्मण। ब्राह्मण अक्सर करके पण्डे होते हैं। एक धामा खाते हैं, दूसरे ब्राह्मण गीता सुनाते हैं। अभी तुम ब्राह्मण यह गीता सुनाते हो, वह भी गीता सुनाते हैं, तुम भी गीता सुनाते हो। फर्क देखो कितना है! तुम कहते हो कृष्ण को भगवान नहीं कह सकते। कृष्ण को तो देवता कहा जाता है। उनमें दैवीगुण हैं। उनको तो इन आंखों से देखा जा सकता है। शिव के मन्दिर में देखेंगे शिव को अपना शरीर है नहीं। वह है परम आत्मा अर्थात् परमात्मा। ईश्वर, प्रभू, भगवान आदि अक्षर का कोई अर्थ नहीं निकलता। परमात्मा ही सुप्रीम आत्मा है। तुम नान सुप्रीम हो। फर्क देखो कितना है, तुम्हारी आत्मा और उस आत्मा में। तुम आत्मायें अभी परमात्मा से सीख रही हो। वह कोई से सीखा नहीं है। यह तो फादर है ना। उस परमपिता परमात्मा को तुम फादर भी कहते, टीचर भी कहते और गुरू भी कहते। है एक ही। और कोई भी आत्मा बाप टीचर गुरू नहीं बन सकती है। एक ही परम आत्मा है उनको कहा जाता है सुप्रीम। हर एक को पहले फादर चाहिए, फिर टीचर चाहिए फिर पिछाड़ी में चाहिए गुरू। बाप भी कहते हैं – मैं तुम्हारा बाप भी बनता हूँ फिर टीचर बनता हूँ और फिर मैं ही तुम्हारा सद्गति दाता सतगुरू भी बनता हूँ। सद्गति देने वाला गुरू है ही एक। बाकी तो गुरू अनेक हैं। बाप कहते हैं मैं तुम सबको सद्गति देता हूँ, तुम सब सतयुग में जायेंगे बाकी सब चले जायेंगे शान्तिधाम, जिसको परमधाम कहते हैं। सतयुग में आदि सनातन देवी-देवता धर्म था। बाकी कोई धर्म है नहीं और सभी आत्मायें चली जाती है मुक्तिधाम। सद्गति कहा जाता है सतयुग को, पार्ट बजाते-बजाते फिर दुर्गति में आ जाते हैं। तुम ही सद्गति से फिर दुर्गति में आते हो। तुम ही पूरे 84 जन्म लेते हो। यथा राजा-रानी तथा प्रजा जो उस समय होंगे। 9 लाख तो पहले आयेंगे। 84 जन्म 9 लाख तो लेंगे ना फिर दूसरे आते रहेंगे – यह हिसाब किया जाता है। जो बाप समझाते हैं। सब 84 जन्म नहीं लेते हैं, पहले-पहले आने वाले ही 84 जन्म लेते हैं फिर कम-कम लेते आते हैं। मैक्सीमम हैं 84, यह जो बातें हैं और कोई मनुष्य नहीं जानते। बाप ही बैठ समझाते हैं। गीता में है भगवानुवाच। अभी तुम समझ गये हो – आदि सनातन देवी-देवता धर्म कोई कृष्ण ने नहीं रचा। यह तो बाप ही स्थापन करते हैं। कृष्ण की आत्मा ने 84 जन्मों के अन्त में यह ज्ञान सुना है जो पहले नम्बर में आया। यह बातें समझने की हैं। रोज़ पढ़ना है, तुम स्टूडेन्ट हो भगवान के। भगवानुवाच है ना। मैं तुमको राजाओं का राजा बनाता हूँ। यह है पुरानी दुनिया, नई दुनिया माना सतयुग। अभी है कलियुग। बाप आकर कलियुगी पतित से सतयुगी पावन देवता बनाते हैं इसलिए कलियुगी मनुष्य पुकारते हैं – बाबा आकर हमको पावन बनाओ। कलियुगी पतित से सतयुगी पावन बनाओ। फ़र्क देखो कितना है। कलियुग में हैं अपार दु:ख। बच्चा जन्मा सुख हुआ, कल मर गया – दु:खी हो जायेगा। सारी आयु कितना दु:ख होता है। यह है ही दु:ख की दुनिया। अभी बाप सुख की दुनिया स्थापन कर रहे हैं। तुमको स्वर्गवासी देवता बनाते हैं। अभी तुम पुरूषोत्तम संगमयुग पर हो। उत्तम ते उत्तम पुरूष वा नारी बनते हो। तुम आते ही हो यह लक्ष्मी-नारायण बनने के लिए। स्टूडेन्ट टीचर से योग रखते हैं क्योंकि समझते हैं इन द्वारा हम पढ़कर फलाना बनेंगे। यहाँ तुम योग लगाते हो परमपिता परमात्मा शिव से, जो तुम्हें देवता बनाते हैं। कहते हैं मुझ अपने बाप को याद करो, जिसके तुम सालिग्राम बच्चे हो। अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो वही नॉलेजफुल है। बाप तुम्हें सच्ची गीता सुनाते हैं परन्तु खुद पढ़ा हुआ नहीं है। कहते हैं मैं किसका बच्चा नहीं, कोई से पढ़ा हुआ नहीं हूँ। मेरा कोई गुरू नहीं। मैं फिर तुम बच्चों का बाप, टीचर, गुरू हूँ। उनको कहा जाता है परम आत्मा। इस सारे सृष्टि के आदि, मध्य, अन्त को जानते हैं, जब तक वह न सुनावें, तब तक तुम आदि, मध्य, अन्त को समझ न सको। इस चक्र को जानने से तुम चक्रवर्ती राजा बनते हो। तुमको यह बाबा नहीं पढ़ाते हैं, इसमें शिवबाबा प्रवेश कर आत्माओं को पढ़ाते हैं। यह नई बात है ना। यह होते ही हैं संगम पर। पुरानी दुनिया खत्म हो जायेगी, किसकी दबी रही धूल में, किसकी राजा खाए…….। बच्चों को कहते हैं बहुतों का कल्याण करने लिए, फिर से देवता बनाने के लिए यह पाठशाला म्युज़ियम खोलो। जहाँ बहुत आकर सुख का वर्सा पायेंगे। अभी रावण राज्य है ना। राम राज्य में था सुख, रावण राज्य में है दु:ख क्योंकि सब विकारी बन गये हैं। वह है ही निर्विकारी दुनिया। बच्चे तो इन लक्ष्मी-नारायण आदि को भी हैं ना। परन्तु वहाँ है योगबल। बाप तुमको योगबल सिखलाते हैं। योगबल से तुम विश्व के मालिक बनते हो, बाहुबल से कोई विश्व का मालिक बन न सके। लॉ नहीं कहता। तुम बच्चे याद के बल से सारे विश्व की बादशाही ले रहे हो। कितनी ऊंची पढ़ाई है। बाप कहते हैं – पहले-पहले पवित्रता की प्रतिज्ञा करो। पवित्र बनने से ही फिर तुम पवित्र दुनिया के मालिक बनेंगे। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार :
1) कलियुगी सम्बन्ध जो कि इस समय बन्धन है, उन्हें भूल स्वयं को संगमयुगी ब्राह्मण समझना है। सच्ची गीता सुननी और सुनानी है।
2) पुरानी दुनिया खत्म होनी है इसलिए अपना सब कुछ सफल करना है। बहुतों के कल्याण लिए, मनुष्यों को देवता बनाने के लिए यह पाठशाला वा म्युज़ियम खोलने हैं।
वरदान:-
कई बच्चे कहते हैं कि हम राइट हैं फिर भी हमें ही सहन करना पड़ता है, मरना पड़ता है लेकिन यह सहन करना वा मरना ही धारणा की सबजेक्ट में नम्बर लेना है, इसलिए सहन करने में घबराओ नहीं। कई बच्चे सहन करते हैं लेकिन मजबूरी से सहन करना और मोहब्बत में सहन करना – इसमें अन्तर है। बातों के कारण सहन नहीं करते हो लेकिन बाप की आज्ञा है सहनशील बनो। तो आज्ञा समझ मोहब्बत में सहन करना अर्थात् स्वयं को परिवर्तन कर लेना इसकी ही मार्क्स हैं।
स्लोगन:-
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