09 December 2024 | HINDI Murli Today | Brahma Kumaris

Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi

8 December 2024

Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.

Brahma Kumaris

आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन।  Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. SourceOfficial Murli blog to read and listen daily murlis. पढ़े: मुरली का महत्त्व

“मीठे बच्चे - विनाश के पहले सबको बाप का परिचय देना है, धारणा कर दूसरों को समझाओ तब ऊंच पद मिल सकेगा''

प्रश्नः-

राजयोगी स्टूडेन्ट्स को बाप का डायरेक्शन क्या है?

उत्तर:-

तुम्हें डायरेक्शन है कि एक बाप का बनकर फिर औरों से दिल नहीं लगानी है। प्रतिज्ञा कर फिर पतित नहीं बनना है। तुम ऐसा सम्पूर्ण पावन बन जाओ जो बाप और टीचर की याद स्वत: निरन्तर बनी रहे। एक बाप से ही प्यार करो, उसे ही याद करो तो तुम्हें बहुत ताकत मिलती रहेगी।

♫ मुरली सुने (audio)➤

ओम् शान्ति। रूहानी बाप बैठ समझाते हैं। समझाते तब हैं जबकि यह शरीर है। सम्मुख ही समझाना होता है। जो सम्मुख समझाया जाता है वह फिर लिखत के द्वारा सबके पास जाता है। तुम यहाँ आते हो सम्मुख सुनने के लिए। बेहद का बाप आत्माओं को सुनाते हैं। आत्मा ही सुनती है। सब कुछ आत्मा ही करती है – इस शरीर द्वारा इसलिए पहले-पहले अपने को आत्मा जरूर समझना है। गायन है आत्मायें-परमात्मा अलग रहे बहुकाल……। सबसे पहले-पहले बाप से कौन बिछुड़कर आते हैं यहाँ पार्ट बजाने? तुमसे पूछेंगे कितना समय तुम बाप से अलग रहे हो? तो तुम कहेंगे 5 हज़ार वर्ष। पूरा हिसाब है ना। यह तो तुम बच्चों को पता है कैसे नम्बरवार आते हैं। बाप जो ऊपर में थे वह भी अभी नीचे आ गये हैं – तुम सबकी बैटरी चार्ज करने। अभी बाप को याद करना है। अभी तो बाप सम्मुख है ना। भक्ति मार्ग में तो बाप के आक्यूपेशन का पता ही नहीं है। नाम, रूप, देश, काल को जानते ही नहीं। तुमको तो नाम, रूप, देश, काल का सब पता है। तुम जानते हो इस रथ द्वारा बाप हमको सब राज़ समझाते हैं। रचता और रचना के आदि, मध्य, अन्त का राज़ समझाया है। यह कितना सूक्ष्म है। इस मनुष्य सृष्टि रूपी झाड़ का बीजरूप बाप ही है। वह यहाँ आते जरूर हैं। नई दुनिया स्थापन करना उनका ही काम है। ऐसे नहीं कि वहाँ बैठे स्थापना करते हैं। तुम बच्चे जानते हो बाबा इस तन द्वारा हमको सम्मुख समझा रहे हैं। यह भी बाप का प्यार करना हुआ ना। और कोई को भी उनकी बायोग्राफी का पता नहीं है। गीता है आदि सनातन देवी-देवता धर्म का शास्त्र। यह भी तुम जानते हो – इस ज्ञान के बाद है विनाश। विनाश जरूर होना है। और जो भी धर्म स्थापक आते हैं, उनके आने पर विनाश नहीं होता है। विनाश का टाइम ही यह है, इसलिए तुमको जो ज्ञान मिलता है वह फिर खलास हो जाता है। तुम बच्चों की बुद्धि में यह सब बातें हैं। तुम रचता और रचना को जान गये हो। हैं दोनों अनादि जो चलते आते हैं। बाप का पार्ट ही है संगम पर आने का। भक्ति आधाकल्प चलती है, ज्ञान नहीं चलता है। ज्ञान का वर्सा आधाकल्प के लिए मिलता है। ज्ञान तो एक ही बार सिर्फ संगम पर मिलता है। यह क्लास तुम्हारा एक ही बार चलता है। यह बातें अच्छी रीति समझ कर फिर औरों को समझाना भी है। पद का सारा मदार है सर्विस करने पर। तुम जानते हो पुरूषार्थ कर अब नई दुनिया में जाना है। धारणा कर और दूसरों को समझाना – इस पर ही तुम्हारा पद है। विनाश होने के पहले सबको बाप का परिचय देना है और रचना के आदि, मध्य, अन्त का परिचय देना है। तुम भी बाप को याद करते हो कि जन्म-जन्मान्तर के पाप कट जाएं। जब तक बाप पढ़ाते रहते हैं, याद जरूर करना है। पढ़ाने वाले के साथ योग तो रहेगा ना। टीचर पढ़ाते हैं तो उनके साथ योग रहता है। योग बिगर पढ़ेंगे कैसे? योग अर्थात् पढ़ाने वाले की याद। यह बाप भी है, टीचर भी है, सतगुरू भी है। तीनों रूप में पूरा याद करना पड़ता है। यह सतगुरू तुम्हें एक ही बार मिलता है। ज्ञान से सद्गति मिली, बस फिर गुरू की रस्म ही खत्म। बाप, टीचर की रस्म चलती है, गुरू की रस्म खत्म हो जाती है। सद्गति मिल गई ना। निर्वाणधाम में तुम प्रैक्टिकल में जाते हो फिर अपने समय पर पार्ट बजाने आयेंगे। मुक्ति-जीवनमुक्ति दोनों तुमको मिल जाती हैं। मुक्ति भी जरूर मिलती है। थोड़े समय के लिए घर जाकर रहेंगे। यहाँ तो शरीर से पार्ट बजाना पड़ता है। पिछाड़ी में सब पार्टधारी आ जायेंगे। नाटक जब पूरा होता है तो सब एक्टर्स स्टेज पर आ जाते हैं। अभी भी सब एक्टर्स स्टेज पर आकर इकट्ठे हुए हैं। कितना घोर घमसान है। सतयुग आदि में इतना घोर घमसान नहीं था। अभी तो कितनी अशान्ति है। तो अब जैसे बाप को सृष्टि चक्र की नॉलेज है तो बच्चों को भी नॉलेज है। बीज को नॉलेज है ना – हमारा झाड़ कैसे वृद्धि को पाकर फिर खत्म होता है। अभी तुम बैठे हो नई दुनिया की सैपलिंग लगाने अथवा आदि सनातन देवी-देवता धर्म का सैपलिंग लगाने। तुमको पता है इन लक्ष्मी-नारायण ने राज्य कैसे पाया? तुम जानते हो हम अभी नई दुनिया का प्रिन्स बनेंगे। उस दुनिया में रहने वाले सब अपने को मालिक ही कहेंगे ना। जैसे अभी भी सब कहते हैं भारत हमारा देश है। तुम समझते हो अभी हम संगम पर खड़े हैं, शिवालय में जाने वाले हैं। बस, अभी गये कि गये। हम जाकर शिवालय के मालिक बनेंगे। तुम्हारी एम ऑब्जेक्ट ही यह है। यथा राजा रानी तथा प्रजा, सब शिवालय के मालिक बन जाते हैं। बाकी राजधानी में भिन्न-भिन्न स्टेट्स तो होते ही हैं। वहाँ वजीर तो कोई होता ही नहीं। वजीर तब होते हैं जब पतित बनते हैं। लक्ष्मी-नारायण वा राम-सीता का वजीर नहीं सुना होगा क्योंकि वह खुद सतोप्रधान पावन बुद्धि वाले हैं। फिर जब पतित बनते हैं तब राजा-रानी एक वजीर रखते हैं राय लेने के लिए। अभी तो देखो अनेकानेक वजीर हैं।

तुम बच्चे जानते हो यह बहुत मजे का खेल है। खेल हमेशा मजे का ही होता है। सुख भी होता है, दु:ख भी होता है। इस बेहद के खेल को तुम बच्चे ही जानते हो। इसमें रोने-पीटने आदि की बात ही नहीं। गाते भी हैं बीती सो बीती देखो….. बनी-बनाई बन रही। यह नाटक तुम्हारी बुद्धि में है। हम इनके एक्टर्स हैं। हमारे 84 जन्मों का पार्ट एक्यूरेट अविनाशी है। जो जिस जन्म में जो एक्ट करते आये हैं वही करते रहेंगे। आज से 5 हज़ार वर्ष पहले भी तुमको यही कहा था कि अपने को आत्मा समझो। गीता में भी अक्षर हैं। तुम जानते हो बरोबर आदि सनातन देवी-देवता धर्म जब स्थापन हुआ था तो बाप ने कहा था देह के सब धर्म छोड़ अपने को आत्मा समझो और बाप को याद करो। मन्मनाभव का अर्थ तो बाप ने अच्छी रीति समझाया है। भाषा भी यही है। यहाँ देखो कितनी ढेर भाषायें हैं। भाषाओं पर भी कितना हंगामा है। भाषा बिगर तो काम चल न सके। ऐसी-ऐसी भाषायें सीखकर आते हैं जो मदर लैंगवेज खलास हो जाती है। जो जास्ती भाषायें सीखते हैं उनको इनाम मिलता है। जितने धर्म, उतनी भाषायें होंगी। वहाँ तो तुम जानते हो अपनी ही राजाई होगी। भाषा भी एक होगी। यहाँ तो 100 माइल पर एक भाषा है। वहाँ तो एक ही भाषा होती है। यह सब बातें बाप बैठ समझाते हैं तो उस बाप को ही याद करते रहो। शिवबाबा समझाते हैं ब्रह्मा द्वारा। रथ तो जरूर चाहिए ना। शिवबाबा हमारा बाप है। बाबा कहते हैं मेरे तो बेहद के बच्चे हैं। बाबा इन द्वारा पढ़ाते हैं ना। टीचर को कभी गले से थोड़ेही लगाते हैं। बाप तो तुमको पढ़ाने आये हैं। राजयोग सिखलाते हैं तो टीचर ठहरा ना। तुम स्टूडेन्ट हो। स्टूडेन्ट कभी टीचर को भाकी पहनते हैं क्या? एक बाप का बनकर फिर औरों से दिल नहीं लगानी है।

बाप कहते हैं मैं तुमको राजयोग सिखलाने आया हूँ ना। तुम शरीरधारी, हम अशरीरी ऊपर में रहने वाले। कहते हो – बाबा, पावन बनाने आओ तो गोया तुम पतित हो ना? फिर मेरे को भाकी कैसे पहन सकते? प्रतिज्ञा कर फिर पतित बन जाते हैं। जब एकदम पावन बन जायेंगे, पिछाड़ी में फिर याद में भी रहेंगे, टीचर को, गुरू को याद करते रहेंगे। अभी तो छी-छी बन गिर पड़ते हैं, और ही सौ गुणा दण्ड पड़ जाता है। यह तो बीच में दलाल के रूप में मिला है, उनको याद करना है। बाबा कहते हैं मैं भी उनका मुरब्बी बच्चा हूँ। फिर मैं कहाँ भाकी पहन सकता हूँ! तुम फिर भी इस शरीर द्वारा मिलते हो। मैं उनको कैसे भाकी पहनूँ? बाप तो कहते हैं – बच्चे, तुम एक बाप को ही याद करो, प्यार करो। याद से पॉवर बहुत मिलती है। बाप सर्वशक्तिमान् है। बाप से ही तुमको इतनी पॉवर मिलती है। तुम कितने बलवान बनते हो। तुम्हारी राजधानी पर कोई जीत पहन न सके। रावण राज्य ही खत्म हो जाता है। दु:ख देने वाला कोई रहता ही नहीं। उनको सुखधाम कहा जाता है। रावण सारे विश्व में सबको दु:ख देने वाला है। जानवर भी दु:खी होते हैं। वहाँ तो जानवर भी आपस में प्रेम से रहते हैं। यहाँ तो प्रेम है नहीं।

तुम बच्चे जानते हो यह ड्रामा कैसे फिरता है। इसके आदि-मध्य-अन्त का राज़ बाप ही समझाते हैं। कोई अच्छी रीति पढ़ते हैं, कोई कम पढ़ते हैं। पढ़ते तो सब हैं ना। सारी दुनिया भी पढ़ेगी अर्थात् बाप को याद करेगी। बाप को याद करना – यह भी पढ़ाई है ना। उस बाप को सब याद करते हैं, वह सर्व का सद्गति दाता, सबको सुख देने वाला है। कहते भी हैं आकर पावन बनाओ तो जरूर पतित ठहरे। वह तो आते ही हैं विकारियों को निर्विकारी बनाने। पुकारते भी हैं कि हे अल्लाह, आकर हमको पावन बनाओ। उनका यही धंधा है, इसलिए बुलाते हैं।

तुम्हारी भाषा भी करेक्ट होनी चाहिए। वो लोग कहते हैं अल्लाह, वह कहते हैं गॉड। गॉड फादर भी कहते हैं। पिछाड़ी वालों की बुद्धि फिर भी अच्छी रहती है। इतना दु:ख नहीं उठाते। तो अब तुम सम्मुख बैठे हो, क्या करते हो? बाबा को इस भृकुटी में देखते हो। बाबा फिर तुम्हारी भृकुटी में देखते हैं। जिसमें मैं प्रवेश करता हूँ, उनको देख सकता हूँ? वह तो बाजू में बैठा है, यह बड़ी समझने की बात है। मैं इनके बाजू में बैठा हुआ हूँ। यह भी समझता है, हमारे बाजू में बैठा है। तुम कहेंगे हम सामने दो को देखते हैं। बाप और दादा दोनों आत्मा को देखते हो। तुम्हारे में ज्ञान है – बापदादा किसको कहते हैं? आत्मा सामने बैठी है। भक्ति मार्ग में तो आंखें बन्द कर बैठ सुनते हैं। पढ़ाई कोई ऐसे थोड़ेही होती है। टीचर को तो देखना पड़े ना। यह तो बाप भी है, टीचर भी है तो सामने देखना होता है। सामने बैठे और आंखे बन्द हों, झुटका खाते रहें, ऐसी पढ़ाई तो होती नहीं। स्टूडेन्ट टीचर को जरूर देखता रहेगा। नहीं तो टीचर कहेंगे यह तो झुटका खाते रहते हैं। यह कोई भांग पीकर आये हैं। तुम्हारी बुद्धि में है बाबा इस तन में है। मैं बाबा को देखता हूँ। बाप समझाते हैं यह क्लास कॉमन नहीं है – जो कोई आंखे बन्दकर बैठे। स्कूल में कभी कोई आंखे बन्द करके बैठते हैं क्या? और सतसंगों को स्कूल नहीं कहा जाता है। भल गीता बैठ सुनाते हैं परन्तु उसको स्कूल नहीं कहा जाता। वह कोई बाप थोड़ेही है जिसको देखें। कोई-कोई शिव के भक्त होते हैं तो शिव को ही याद करते हैं, कान से कथा सुनते रहते। शिव की भक्ति करने वालों को शिव को ही याद करना पड़े। कोई भी सतसंग में प्रश्न-उत्तर आदि नहीं होता है। यहाँ होता है। यहाँ तुम्हारी आमदनी बहुत है। आमदनी में कभी उबासी नहीं आ सकती। धन मिलता है ना तो खुशी होती है। उबासी, ग़म की निशानी है। बीमार होगा वा देवाला निकला होगा तो उबासी आती रहेगी। पैसा मिलता रहेगा तो कभी उबासी नहीं आयेगी। बाबा व्यापारी भी है। रात को स्टीमर आते थे तो रात को जागना पड़ता था। कोई-कोई बेग़म रात को आती हैं तो सिर्फ फीमेल के लिए ही खुला रहता है। बाबा भी कहते हैं प्रदर्शनी आदि में फीमेल्स के लिए खास दिन रखो तो बहुत आयेंगी। पर्देनशीन भी आयेंगी। बहुएं पर्देनशीन रहती हैं। मोटर में भी पर्दा रहता है। यहाँ तो आत्मा की बात है। ज्ञान मिल गया तो पर्दा भी खुल जायेगा। सतयुग में पर्दा आदि होता नहीं। यह तो प्रवृत्ति मार्ग का ज्ञान है ना। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार :

1) यह खेल बड़ा मज़े का बना हुआ है, इसमें सुख और दु:ख का पार्ट नूँधा हुआ है इसलिए रोने पीटने की बात नहीं। बुद्धि में रहे बनी-बनाई बन रही, बीती का चिंतन नहीं करना है।

2) यह कॉमन क्लास नहीं है, इसमें आंखे बन्द करके नहीं बैठना है। टीचर को सामने देखना है। उबासी आदि नहीं लेनी है। उबासी गम (दु:ख) की निशानी है।

वरदान:-

सन्तुष्टता योगी जीवन का विशेष लक्ष्य है, जो सदा सन्तुष्ट रहते और सर्व को सन्तुष्ट करते हैं उनके योगी जीवन का प्रभाव दूसरों पर स्वत: पड़ता है। जैसे साइन्स के साधनों का वायुमण्डल पर प्रभाव पड़ता है, ऐसे सहजयोगी जीवन का भी प्रभाव होता है। योगी जीवन के तीन सर्टीफिकेट हैं एक – स्व से सन्तुष्ट, दूसरा – बाप सन्तुष्ट और तीसरा – लौकिक अलौकिक परिवार सन्तुष्ट।

स्लोगन:-

 दैनिक ज्ञान मुरली पढ़े

रोज की मुरली अपने email पर प्राप्त करे Subscribe!

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top
Scroll to Top