08 August 2021 HINDI Murli Today | Brahma Kumaris

Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi

August 7, 2021

Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.

Brahma Kumaris

आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन।  Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. SourceOfficial Murli blog to read and listen daily murlis. पढ़े: मुरली का महत्त्व

डबल विदेशी ब्राह्मण बच्चों की विशेषतायें

♫ मुरली सुने (audio)➤

आज भाग्यविधाता बापदादा अपने श्रेष्ठ भाग्यवान बच्चों को देख हर्षित हो रहे हैं। हरेक बच्चे का भाग्य श्रेष्ठ तो है ही लेकिन उसमें नम्बरवार हैं। आज बापदादा सभी बच्चों के दिल के उमंग-उत्साह के दृढ़ संकल्प सुन रहे थे। संकल्प द्वारा जो सभी ने रूहरिहान की, वह बापदादा के पास संकल्प करते ही पहुँच गई। ‘संकल्प की शक्ति’ वाणी की शक्ति से अति सूक्ष्म होने के कारण अति तीव्रगति से चलती भी है, और पहुँचती भी है। रूहरिहान की भाषा है ही संकल्प की भाषा। साइन्स वाले आवाज को कैच करते हैं लेकिन संकल्प को कैच करने के लिए सूक्ष्म साधन चाहिए। बापदादा हर एक बच्चे के संकल्प की भाषा सदा ही सुनते हैं अर्थात् संकल्प कैच करते हैं। इसके लिए बुद्धि अति सूक्ष्म, स्वच्छ और स्पष्ट आवश्यक है, तब ही बाप की रूहरिहान के रेसपान्ड को समझ सकेंगे।

बापदादा के पास सभी की सन्तुष्टता वा सदा खुश रहने के, निर्विघ्न रहने के, सदा बाप समान बनने के श्रेष्ठ संकल्प पहुँच गये और बापदादा बच्चों के दृढ़ संकल्प के द्वारा सदा सफलता की मुबारक दे रहे हैं क्योंकि जहाँ दृढ़ता है, वहाँ सफलता है ही है। यह है श्रेष्ठ भाग्यवान बनने की निशानी। सदा दृढ़ता, श्रेष्ठता हो; संकल्प में भी कमजोरी न हो – इसको कहते हैं श्रेष्ठता। बच्चों की विशाल दिल देख बच्चों को सदा विशाल दिल, विशाल बुद्धि, विशाल सेवा और विशाल संस्कार – ऐसे ‘सदा विशाल भव’ का वरदान भी वरदाता बाप दे रहे हैं। विशाल दिल अर्थात् बेहद के स्मृतिस्वरूप। हर बात में बेहद अर्थात् विशाल। जहाँ बेहद है तो कोई भी प्रकार की हद अपने तरफ आकर्षित नहीं करती है। इसको ही बाप समान कर्मातीत फरिश्ता जीवन कहा जाता है। कर्मातीत का अर्थ ही है – सर्व प्रकार के हद के स्वभाव संस्कार से अतीत अर्थात् न्यारा। हद है बन्धन, बेहद है निर्बन्धन। तो सदा इसी विधि से सिद्धि को प्राप्त करते रहेंगे। सभी ने स्वयं से जो संकल्प किया: वह सदा अमर है, अटल है, अखण्ड है अर्थात् खण्डित होने वाला नहीं है। ऐसा संकल्प किया है ना? मधुबन की लकीर तक संकल्प तो नहीं है ना? सदा साथ रहेगा ना?

मुरलियाँ तो बहुत सुनी हैं। अभी जो सुना है वह करना है क्योंकि इस साकार सृष्टि में संकल्प, बोल और कर्म – तीनों का महत्व है और तीनों में ही महानता – इसको ही सम्पन्न स्टेज कहा जाता है। इस साकार सृष्टि में ही फुल मार्क्स लेना अति आवश्यक है। अगर कोई समझे कि संकल्प तो मेरे बहुत श्रेष्ठ हैं लेकिन कर्म वा बोल में अन्तर दिखाई देता है; तो कोई मानेगा? क्योंकि संकल्प का स्थूल दर्पण बोल और कर्म है। श्रेष्ठ संकल्प वाले का बोल स्वत: ही श्रेष्ठ होगा। इसलिए तीनों की विशेषता ही ‘नम्बरवन’ बनना है।

बापदादा डबल विदेशी बच्चों को देख सदा बच्चों की विशेषता पर हर्षित होते हैं। वह विशेषता क्या है? जैसे ब्रह्मा बाप के श्रेष्ठ संकल्प द्वारा वा श्रेष्ठ संकल्प के आह्वान द्वारा दिव्य जन्म प्राप्त किया है, ऐसे ही श्रेष्ठ संकल्प की विशेष रचना होने के कारण अपने संकल्पों को श्रेष्ठ बनाने के विशेष अटेन्शन में रहते हैं। संकल्प के ऊपर अटेन्शन होने कारण किसी भी प्रकार की सूक्ष्म माया के वार को जल्दी जान भी जाते हैं और परिवर्तन करने के लिए वा विजयी बनने के लिए पुरुषार्थ कर जल्दी से खत्म करने का प्रयत्न करते हैं। संकल्प-शक्ति को सदा शुद्ध बनाने का अटेन्शन अच्छा रहता है। अपने को चेक करने का अभ्यास अच्छा रहता है। सूक्ष्म चेकिंग के कारण छोटी गलती भी महसूस कर बाप के आगे, निमित्त बने हुए बच्चों के आगे रखने में साफ-दिल हैं, इसलिए इस विधि से बुद्धि में किचड़ा इकट्ठा नहीं होता है। मैजॉरिटी साफ-दिल से बोलने में संकोच नहीं करते हैं, इसलिए जहाँ स्वच्छता है वहाँ देवताई गुण सहज धारण हो जाते हैं। दिव्य गुणों की धारणा अर्थात् आह्वान करने की विधि है ही ‘स्वच्छता’। जैसे भक्ति में भी जब लक्ष्मी का वा किसी देवी का आह्वान करते हैं तो आह्वान की विधि स्वच्छता ही अपनाते हैं। तो यह स्वच्छता का श्रेष्ठ स्वभाव, दैवी स्वभाव को स्वत: ही आह्वान करता है। तो यह विशेषता मैजॉरिटी डबल विदेशी बच्चों में है इसलिए तीव्रगति से आगे बढ़ने का गोल्डन चांस ड्रामा अनुसार मिला हुआ है, इसको ही कहते हैं ‘लास्ट सो फास्ट’। तो विशेष फास्ट जाने की यह विशेषता ड्रामा अनुसार मिली हुई है। इस विशेषता को सदा स्मृति में रख लाभ उठाते चलो। आया, स्पष्ट किया और गया। इसको ही कहते हैं पहाड़ को रूई समान बनाना। रुई सेकण्ड में उड़ती है ना। और पहाड़ को कितना समय लगेगा? तो स्पष्ट किया, बाप के आगे रखा और स्वच्छता की विधि से फरिश्ता बना, उड़ा, इसको कहते हैं लास्ट सो फास्ट गति से उड़ना। ड्रामा अनुसार यह विशेषता मिली हुई है। बापदादा देखते भी हैं कि कई बच्चे चेक भी करते हैं और अपने को चेन्ज भी करते हैं क्योंकि लक्ष्य है कि हमें विजयी बनना ही है। मैजारिटी का यह नम्बरवन लक्ष्य है।

दूसरी विशेषता – जन्म लेते, वर्सा प्राप्त करते सेवा का उमंग-उत्साह स्वत: ही रहता है। सेवा में लग जाने से एक तो सेवा का प्रत्यक्षफल ‘खुशी’ भी मिलती है और सेवा से विशेष बल भी मिलता है और सेवा में बिजी रहने के कारण निर्विघ्न बनने में भी सहयोग मिलता है। तो सेवा का उमंग-उत्साह स्वत: ही आना, समय निकालना वा अपना तन-मन-धन सफल करना – यह भी ड्रामा अनुसार विशेषता की लिफ्ट मिली हुई है। अपनी विशेषताओं को जानते हो ना। इस विशेषताओं से अपने को जितना आगे बढ़ाने चाहो उतना बढ़ा सकते हो। ड्रामा अनुसार किसी भी आत्मा का यह उल्हना नहीं रह सकता कि हम पीछे आये हैं, इसलिए आगे नहीं बढ़ सकते। डबल विदेशी बच्चों को अपनी विशेषताओं का गोल्डन चांस है। भारतवासियों को फिर अपना गोल्डन चांस है। लेकिन आज तो डबल विदेशी बच्चों से मिल रहे हैं। ड्रामा में विशेष नूँध होने के कारण किसी भी लास्ट वाली आत्मा का उल्हना चल नहीं सकता क्योंकि ड्रामा एक्यूरेट बना हुआ है। इन विशेषताओं से सदा तीव्रगति से उड़ते चलो। समझा? स्पष्ट हुआ वा अभी भी कोई उल्हना है? दिलखुश मिठाई तो बाप को खिला दी है। ‘दृढ़ संकल्प’ किया अर्थात् दिलखुश मिठाई बाप को खिलाई। यह अविनाशी मिठाई है। सदा ही बच्चों का भी मुख मीठा और बाप का तो मुख मीठा है ही। लेकिन फिर और भोग नहीं लगाना, दिलखुश मिठाई का ही भोग लगाना। स्थूल भोग तो जो चाहे लगाना लेकिन मन के संकल्प का भोग सदा दिलखुश मिठाई का ही लगाते रहना।

बापदादा सदा कहते हैं कि पत्र भी जब लिखते हो तो सर्फ दो अक्षर का पत्र सदा बाप को लिखो। वह दो शब्द कौन से हैं? ओ.के. (O.K.)। न इतने कागज जायेंगे, न स्याही जायेगी और न समय जायेगा। बचत हो जायेगी। ओ.के. अर्थात् बाप भी याद है और राज्य भी याद है। ओ (O) जब लिखते हो तो बाप का चित्र बन जाता है ना। और के. अर्थात् किंगडम। तो ओ. के. लिखा तो बाप और वर्सा दोनों याद आ जाता है। तो पत्र लिखो जरूर लेकिन दो शब्दों में। तो पत्र पहुँच जायेगा। बाकी दिल की उमंगों को तो बापदादा जानते हैं। प्यार के दिल की बातें तो दिलाराम बाप के पास पहुँच ही जाती हैं। यह पत्र लिखना तो सभी को आता है ना? भाषा न जानने वाला भी लिख सकता है। इसमें भाषा भी सभी की एक ही हो जायेगी। यह पत्र पसन्द है ना। अच्छा!

आज पहले ग्रुप का लास्ट दिन है। प्राब्लम्स तो सब खत्म हो गई, बाकी टोली खाना और खिलाना है। बाकी क्या रहा? अभी औरों को ऐसा बनाना है। सेवा तो करनी है ना। निर्विघ्न सेवाधारी बनो। अच्छा।

सदा बाप समान बनने के उमंग-उत्साह से उड़ने वाले, सदा स्व को चेक कर चेन्ज कर सम्पूर्ण बनने वाले, सदा संकल्प बोल और कर्म – तीनों में श्रेष्ठ बनने वाले, सदा स्वच्छता द्वारा श्रेष्ठता को धारण करने वाले, ऐसे तीव्रगति से उड़ने वाली विशेष आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

आस्ट्रेलिया ग्रुप के छोटे बच्चों से बापदादा की मुलाकात:- सभी गॉडली स्टूडेन्ट हो ना। रोज स्टडी करते हो जैसे वह स्टडी रोज करते हो, ऐसे यह भी करते हो? मुरली सुनना अच्छा लगता है? समझ में आती है, मुरली क्या होती है? बाप को रोज़ याद करते हो? सुबह उठते गुडमार्निंग करते हो? कभी भी यह गुडमार्निंग मिस नहीं करना। गुडमार्निंग भी करना, गुडनाईट भी करना और जब खाना खाते हो तब भी याद करना। ऐसे नहीं भूख लगती है तो बाप को भूल जाओ। खाने के पहले जरूर याद करना। याद करेंगे तो पढ़ाई में बहुत अच्छे नम्बर ले लेंगे क्योंकि जो बाप को याद करते हैं वह सदा पास होंगे, कभी फेल नहीं हो सकते। तो सदैव पास होते हो? अगर पास न हुए तो सब कहेंगे – यह शिव बाप के बच्चे भी फेल होते हैं। रोज़ मुरली की एक प्वाइंट अपनी माँ से जरूर सुनो। अच्छा! बहुत भाग्यवान हो जो भाग्यविधाता की धरनी पर पहुँचे हो। बाप से मिलने का भाग्य मिला है। यह कम भाग्य नहीं है।

अव्यक्त बापदादा से पर्सनल मुलाकात

1. बाप द्वारा मिले हुए सर्व खजानों को सर्व आत्माओं प्रति लगाने वाली भरपूर बन औरों को भरपूर बनाने वाली आत्मा हो? कितने खजाने भरपूर हैं? जो भरपूर होता है वह सदा बांटता है। अविनाशी भण्डारा लगा हुआ है। जो आये भरपूर होकर जाये, कोई खाली जा नहीं सकता। इसको कहते हैं अखण्ड भण्डारा। कभी महादानी बन दान करते, कभी ज्ञानी बन ज्ञान-अमृत पिलाते, कभी दाता बन, धन-देवी बन धन देते – ऐसे सर्व की शुभ आशायें बाप द्वारा पूर्ण कराने वाले हो। जितना खजाने बांटते, उतना और बढ़ते जाते हैं। इसको कहते हैं सदा मालामाल। कोई भी खाली हाथ न जायें। सबके मुख से यही दुआयें निकलें कि ‘वाह, हमारा भाग्य!’ ऐसे महादानी, वरदानी बन सच्चे सेवाधारी बनो।

2. ड्रामा अनुसार सेवा का वरदान भी सदा आगे बढ़ाता है। एक होती है योग्यता द्वारा सेवा प्राप्त होना और दूसरा है वरदान द्वारा सेवा प्राप्त होना। स्नेह भी सेवा का साधन बनता है। भाषा भल न भी जानते हों लेकिन स्नेह की भाषा सभी भाषाओं से श्रेष्ठ है इसलिए स्नेही आत्मा को सदा सफलता मिलती है। जो स्नेह की भाषा जानते हैं, वह कहाँ भी सफल हो जाते हैं। सेवा सदा निर्विघ्न हो चले – इसको कहते हैं सेवा में सफलता। तो स्नेह की विशेषता से आत्मायें तृप्त हो जाती हैं। स्नेह के भण्डारे भरपूर हैं, इसे बांटते चलो। जो बाप से भरा है, वह बांटो। यह बाप से लिया हुआ स्नेह ही आगे बढ़ाता रहेगा।

3. स्नेह का वरदान भी सेवा के निमित्त बना देता है। बाप से स्नेह है तो औरों को भी बाप के स्नेही बनाए समीप ले आते हो। जैसे बाप के स्नेह ने आपको अपना बना लिया तो सब कुछ भूल गया। ऐसे अनुभवी बन औरों को भी अनुभवी बनाते रहो। सदा बाप के स्नेह के पीछे कुर्बान जाने वाली आत्मा हूँ – इसी नशे में रहो। बाप और सेवा – यही लगन आगे बढ़ने का साधन है। चाहे कितना भी कोई बात आये लेकिन बाप का स्नेह, सहयोग दे आगे बढ़ाता है क्योंकि स्नेही को स्नेह का रिटर्न पद्मगुणा मिलता है। स्नेह ऐसी शक्ति है जो कोई भी बात मुश्किल नहीं लगती क्योंकि स्नेह में खो जाते हैं। इसको कहते हैं परवाने शमा पर फिदा हुए। चक्र लगाने वाले नहीं, फिदा होने वाले, प्रीत की रीति निभाने वाले। तो स्नेह और शक्ति – दोनों के बैलेन्स से सदा आगे बढ़ते और बढ़ाते चलो। बैलेन्स ही बाप की ब्लैसिंग दिलाता है और दिलाता रहेगा। बड़ों की छत्रछाया भी सदा आगे बढ़ाती रहेगी। बाप की छत्रछाया तो है ही लेकिन बड़ों की छत्रछाया भी गोल्डन आफर है। तो सदा आफरीन मानते हुए आगे बढ़ते चलो तो भविष्य स्पष्ट होता जायेगा।

4. हर कदम में बाप का साथ अनुभव करने वाले हो ना। जिन बच्चों को बाप ने विशेष सेवा के अर्थ निमित्त बनाया है, तो निमित्त बनाने के साथ-साथ सेवा के हर कदम में सहयोगी भी बनता है। भाग्यविधाता ने हर एक बच्चे को भाग्य की विशेषता दी हुई है। उसी विशेषता को कार्य में लगाते सदा आगे बढ़ते और बढ़ाते चलो। सेवा तो श्रेष्ठ ब्राह्मण आत्माओं के पीछे-पीछे आने वाली है। सेवा के पीछे आप नहीं जाते, जहाँ जाते वहाँ सेवा पीछे आती है। जैसे जहाँ लाइट होती है, वहाँ परछाई जरूर आती है। ऐसे आप डबल लाइट हो तो आपके पीछे सेवा भी परछाई के समान आयेगी इसलिए सदा निश्चिन्त बन बाप की छत्रछाया में चलते चलो।

5. सदा दिल में बाप समान बनने का उमंग रहता है ना? जब समान बनेंगे तब ही समीप रहेंगे। समीप तो रहना है ना। समीप रहने वाले के पास समान बनने का उमंग रहता ही है और समान बनना मुश्किल भी नहीं है। सिर्फ जो भी कर्म करो, तो कर्म करने के पहले यह स्मृति में लाओ कि यह कर्म बाप कैसे करते हैं। तो यह स्मृति स्वत: बाप के कर्म जैसा फालो करायेगी। इसमें बैठकर सोचने की बात नहीं है, सीढ़ी उतरते-चढ़ते भी सोच सकते हो। बहुत सहज विधि है। तो सिर्फ बाप से मिलान करते चलो और यही याद रखो कि बाप समान अवश्य बनना ही है, तो हर कर्म में सहज ही सफलता का अनुभव करते रहेंगे। अच्छा!

वरदान:-

जैसे शरीर की शक्ति के लिए पाचन शक्ति वा हजम करने की शक्ति आवश्यक है ऐसे आत्मा को शक्तिशाली बनाने के लिए मनन शक्ति चाहिए। मनन शक्ति द्वारा अनुभव स्वरूप हो जाना – यही सबसे बड़े से बड़ी शक्ति है। ऐसे अनुभवी कभी धोखा नहीं खा सकते, सुनी सुनाई बातों में विचलित नहीं हो सकते। अनुभवी सदा सम्पन्न रहते हैं। वह सदा शक्तिशाली, मायाप्रूफ, विघ्न प्रूफ बन जाते हैं।

स्लोगन:-

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