06 September 2023 HINDI Murli Today | Brahma Kumaris

Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi

5 September 2023

Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.

Brahma Kumaris

आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन।  Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. SourceOfficial Murli blog to read and listen daily murlis. पढ़े: मुरली का महत्त्व

“मीठे बच्चे - सर्विस का शौक रखो, विशाल बुद्धि बन सर्विस की भिन्न-भिन्न युक्तियां निकालो, जो बातें बिगर अर्थ हैं, उन्हें करेक्ट करो''

प्रश्नः-

आत्मा जो अजामिल जैसी गंदी बन गई है उसको साफ करने का साधन क्या है?

उत्तर:-

उसे ज्ञान मान सरोवर में डुबो दो, अगर ज्ञान सागर में डूबे रहे तो आत्मा की मैल साफ हो जायेगी।

प्रश्नः-

ब्राह्मणों के लिए सबसे बड़ा पाप कौनसा है?

उत्तर:-

– ब्राह्मण अगर बाप की आज्ञा न मानें तो यह बहुत बड़ा पाप है। बाप की पहली आज्ञा है तुम मुझे निरन्तर याद करो लेकिन बच्चे इसमें ही फेल हो जाते हैं। फिर माया कोई न कोई विकर्म करा देती है।

♫ मुरली सुने (audio)➤

गीत:-

छोड़ भी दे आकाश सिंहासन..

ओम् शान्ति। बच्चों की बुद्धि में क्या आता है? कौन आया है? (बाप, टीचर, सतगुरू) मात-पिता अक्षर तो जरूर चाहिए। मात-पिता अक्षर भारत में प्रचलित है। तुम मात-पिता…. पीछे तुम कह सकते हो बाप-दादा। वैसे तो मात-पिता में बाप-दादा आ जाता है परन्तु नहीं, यह समझाने का तरीका है क्योंकि बाप है माँ भी जरूर चाहिए। अब माता पहले कौन है? यह है गुह्य ते गुह्य बात, जो कोई समझ न सके। क्या प्रजापिता ब्रह्मा होने से भी माता चाहिए? प्रजापिता ब्रह्मा के साथ कोई प्रजापत्नी भी चाहिए? नहीं। प्रजापत्नी नहीं चाहिए, क्योंकि यह मुख वंशावली हैं इसलिए ब्रह्मा की पत्नी कोई हो नहीं सकती। यह बहुत गुह्य और गम्भीर बातें हैं, इसे समझने और धारण करने के लिए बुद्धि चाहिए। यह एक ही बाप है जो बच्चों के सम्मुख आते हैं। तुम तो समझते हो मात-पिता बाप-दादा सम्मुख आया है। बच्चे बाहर में सर्विस करते हैं, सेन्टर्स पर जो रहते हैं वह यह नहीं समझेंगे कि मात-पिता, बाप-दादा सम्मुख आये हैं। वह समझेंगे फलानी बी.के. वा ब्रह्माकुमारी आई है। यह मम्मा एडाप्ट की हुई है। सबसे लक्की सितारा जगत अम्बा है, यह सम्भालने के लिए मुख्य है इसलिए इन पर कलष रहता है और यह (ब्रह्मा) तो हो गई ब्रह्म पुत्रा, मेल के रूप में। तो सरस्वती जरूर चाहिए। सरस्वती को ही जगत अम्बा कहा जाए। इस मेल को तो जगत अम्बा नहीं कहेंगे। यह बड़ा अच्छा राज़ है जो कोई भी गीता-भागवत में नहीं है। शास्त्रों में कहानियां बैठ लिखी हैं। 5 हजार वर्ष पहले वा 2500 वर्ष पहले क्या हुआ था सो बैठ लिखते हैं। वह नाम, रूप, देश, काल तो कुछ है नहीं। नाटक भी अनेक प्रकार के बनाते हैं। यह बाप बैठ सम्मुख अच्छी रीति समझाते हैं कि बच्चे, हर एक बात को पूरा समझ जायें। इन गीतों में भी कई बिगर अर्थ अक्षर हैं। अब आकाश तत्व तो यह है, इसमें तो हम बैठे हैं। जिस पारलौकिक बाप को सब याद करते हैं वह कोई आकाश तत्व से आते नहीं हैं। अगर श्रीकृष्ण की आत्मा कहें वह तो यहाँ ही है। सब मुख्य-मुख्य आत्मायें, धर्म स्थापक आदि यहाँ ही हैं। श्रीकृष्ण की आत्मा भी 84 वें जन्म में यहाँ ही है। उनकी आत्मा को तो बुला न सकें। यह परमपिता परमात्मा को बुलाया जाता है कि आओ, अपना महतत्व निर्वाणधाम छोड़कर वहाँ से आओ। तुम आत्माओं का सिंहासन तो महतत्व है। आकाश में तो तुम जीव आत्मायें रहती हो। यह माण्डवा है, खेल चलने का। जब गीत सुनते हो, दिल में आपेही करेक्ट करते जाओ। यह तो जिन्होंने नाटक बनाये हैं उन्होंने ही फिर गीत बनाये हैं। फिल्म शूट करने वालों को भी समझाना चाहिए। इसमें बड़ी विशाल बुद्धि चाहिए। बाबा राय देते हैं सर्विस करने लिए। यह ड्रामा जिसने बनाया है, उन्हें समझाना चाहिए। उनसे मिलना चाहिए। इतनी समझ चाहिए। बाप तो डायरेक्शन देंगे। बाप को तो जाकर नहीं पूछना है। बाप तुम बच्चों को डायरेक्शन देंगे – ऐसे-ऐसे करो, श्रीमत पर चलो। (गीत) वास्तव में धरती यह भारत खण्ड है। भारत में ही उनका आना होता है। भारत ही उनका बर्थ प्लेस है। सभी उस निराकार फादर को ही बुलाते हैं। श्रीकृष्ण तो सबका फादर नहीं है। और मुरली जो दिखाते हैं वह कोई काठ की तुतारी तो नहीं है, जो श्रीकृष्ण के हाथ में देते हैं। मुरली तो वास्तव में ज्ञान की है।

गॉडेज ऑफ नॉलेज सरस्वती को कहते हैं। राधे को नहीं कहेंगे, श्रीकृष्ण को भी नहीं कहेंगे। यह तो जोड़ी है बाप और बच्चे की। सरस्वती को कहा जाता है गॉडेज ऑफ नॉलेज। तो जरूर प्रजापिता ब्रह्मा ब्रह्मपुत्रा भी गॉड ऑफ नॉलेज होना चाहिए। लेकिन ब्रह्मा के लिए तो गाया नहीं जाता। गॉड इज नॉलेजफुल कहा जाता है। ब्रह्मा नॉलेजफुल नहीं, गॉड इज नॉलेजफुल। परमपिता परमात्मा ज्ञान सागर है तो जरूर अपने बच्चों को ज्ञान देंगे। पहले-पहले इनमें प्रवेश कर इन द्वारा दूसरों को देते हैं, इनमें सब लक्की सितारे आ जाते हैं। ज्ञान सूर्य, फिर ज्ञान चन्द्रमा यह (ब्रह्मा) हुए, फिर चाहिए ज्ञान चन्द्रमा के नज़दीक एक सितारा, जो चन्द्रमा के सामने खड़ा रहता है। वह बहुत तीखा होता है। उनको ज्ञान लक्की सितारा कहेंगे। उनका नाम सरस्वती रखा हुआ है। सरस्वती बेटी हो गई ना। यह तो बाप भी हुआ, बड़ी नदी भी हुई। बहुत बड़ी नदी है। सब नदियों का मेल सागर में होता है। सागर और नदियों का मेला होता है। सरस्वती भी सागर में मिलती है। उनका मेला नहीं लगता है। मेला ब्रह्म पुत्रा नदी का लगता है। यह नदी वन्डरफुल है, मेल है। नदी तो फीमेल को कहा जाता है। यह गुह्य राज़ बहुत समझने लायक है। परन्तु यह बातें पहले-पहले कोई को नहीं बतानी चाहिए। पहले तो लौकिक मात-पिता, पारलौकिक मात-पिता का राज़ समझाना चाहिए। लौकिक मात-पिता से अल्पकाल क्षणभंगुर सुख का वर्सा मिलता आया है। यह तो पक्का याद रहना चाहिए। दूसरा कोई दो बाप का राज़ समझा न सके। वह तो जानते ही नहीं। गाते हैं – तुम मात-पिता….. अब पिता सर्वव्यापी है तो माता कहाँ गई? यह समझने की बात है ना। मात-पिता चाहिए ना। मात-पिता कहा जाता है निराकार को। परन्तु यह समझते नहीं कि इनको मात-पिता क्यों कहा जाता है! वह तो गॉड फादर है। फिर कहते हैं एडम और ईव। एडम ही ईव है, यह नहीं समझते। प्रजापिता ब्रह्मा वही फिर माता हो जाती है। एडम और ईव अथवा आदम-बीबी कहते हैं। परन्तु अर्थ नहीं समझ सकते हैं। बच्चे समझ सकते हैं आदम-बीबी वास्तव में यह है। बीबी सो आदम है। इनको बीबी-आदम दोनों कह देते हैं। वह तो है बाप। यह बड़ी पेचीली बातें हैं। भारत में गाते भी हैं तुम मात-पिता….. ऐसे ही सुनी-सुनाई पर गाते रहते हैं, अर्थ कुछ नहीं समझते।

सतयुग को बहुत दूर ले गये हैं। लाखों वर्ष कह देते हैं। लांग लांग भी कितना? कहानी तो नज़दीक की ही सुनाई जाती है। तुम समझा सकते हो लांग-लांग एगो यानी 5 हजार वर्ष पहले इस भारत में देवी-देवताओं का अखण्ड, अटल, सुख-शान्तिमय राज्य था। और कोई राज्य नहीं था। यह अक्षर कोई विद्वान, आचार्य कह नहीं सकते। देवी-देवताओं का राज्य था, मालूम होना चाहिए कैसे स्थापन हुआ? लक्ष्मी-नारायण कैसे बनें? कैसे उन्हों की राजाई स्थापन हुई? उनके पहले तो कलियुग था। बरोबर कलियुग का अन्त अब है और कलियुग के बाद फिर सतयुग होगा। सतयुग सामने आ गया है। जो लांग-लांग था वह सामने आ गया। 84 जन्म लेते-लेते अब कलियुग का अन्त आकर हुआ है। अभी तुमको कहेंगे 5 हजार वर्ष पहले इन लक्ष्मी-नारायण का सतयुग में राज्य था, अभी नहीं है। अभी टाइम आकर पूरा हुआ है। फिर से लक्ष्मी-नारायण का राज्य स्थापन हो रहा है, यह तुम्हारी बुद्धि में है। जिसके लिए तुम पुरुषार्थ कर रहे हो। यह है समझाने की बात। यह तो सच्ची गीता आदि इसलिए लिखी जाती है कि कोई पढ़कर रिफ्रेश होते रहें। यह जानते हैं जो लिखा जाता है वह फिर प्राय:लोप हो जायेगा। यह सच्ची गीता भी नहीं रहेगी। जो तुम लिखते हो वह सच्चा ज्ञान प्राय:लोप हो जाना है और साथ-साथ शास्त्र भी सब प्राय:लोप हो जायेंगे। सतयुग-त्रेता में शास्त्र होते नहीं। फिर कल्प पहले जैसे द्वापर से बने थे वैसे बनने लग पड़ेंगे। यह है भक्ति मार्ग की सामग्री। रचना की सामग्री बहुत बड़ी है। तुम ज्ञान सेकेण्ड में ले लेते हो। सारी रचना के आदि-मध्य-अन्त को तुम जानते हो। अंगे-अखरे (तिथि-तारीख सहित) पूरा हिसाब-किताब है। 84 जन्म सब नहीं लेते हैं। कोई 70 लेते, कोई 60 लेते, कोई दो भी लेते हैं। वह सारा मिनीमम और मैक्सीमम का हिसाब है। पीछे आने वालों के जरूर नम्बरवार थोड़े-थोड़े जन्म होंगे। उसका फिर विस्तार करना फालतू हो जाता है। तुम बच्चे नटशेल में समझ सकते हो। 84 लाख जन्म तो हैं नहीं, 84 जन्म भी हर एक नहीं ले सकते हैं। ऐसे ही सिर्फ कह देते हैं 84 का चक्र है। 84 लाख जन्मों का चक्र नहीं गाया जाता। (गीत) पाप कपट की छाया पड़ गई है। अब रावण का राज्य है ना। आत्मा पर मैल की छाया पड़ते-पड़ते अब बिल्कुल ही अजामिल हो गये हैं। इतनी मैल चढ़ी है जो साफ होती ही नहीं। उस मैल को निकालने लिए फिर गाया हुआ है ज्ञान मानसरोवर, उसमें डूबा रहे। जैसे जंक लगती है तो उनको उतारने के लिए घासलेट में डाला जाता है। यह भी जंक लगी है इसलिए ज्ञान सागर में डूबे रहो। कोई पानी की नदी वा सागर की बात नहीं है। ज्ञान सागर जो ज्ञान देते हैं उस नॉलेज में तत्पर रहना है। गृहस्थ व्यवहार को भी सम्भालना है। उसमें कोई मत चाहिए तो लेते रहो। हर एक का कर्मबन्धन अपना-अपना है। सर्जन सबके लिए एक ही दवा नहीं देते हैं। हर एक का कर्मबन्धन, हर एक की बीमारी अपनी-अपनी है। यह 5 विकारों की बीमारी महा-भारी है। इस बीमारी को कोई जानते ही नहीं हैं। यह कब से शुरू होती है? आत्मा को बीमारी लगने से शरीर को भी बीमारी लग जाती है। आत्मा में दु:ख पड़ता है तो शरीर में भी पड़ जाता है। यह बातें शास्त्रों में नहीं हैं। वह तो भक्ति मार्ग का भक्ति काण्ड है। भक्ति का भी बाबा ने बताया है कि पहले होती है अव्यभिचारी भक्ति फिर रजो-गुणी व्यभिचारी भक्ति। फिर व्यभिचारी तमोगुणी भक्ति। जैसी-जैसी भक्तों की अवस्था, वैसी भक्ति भी हो जाती है। ज्ञान भी ऐसे उतरता है। पहले 16 कला फिर 14 कला फिर 12 कला …प्रालब्ध जो बनती है, वह फिर उतरती जाती है। तुम बच्चे जानते हो यह कमाई है। कमाई में विघ्न पड़ते हैं। दशायें बदलती हैं। पूछते हैं हमारे ऊपर कौनसी दशा बैठी हुई है? फिर वह लोग बतलाते हैं। इस सच्ची कमाई में भी बच्चों पर दशायें बैठती हैं। कोई पर राहू की दशा बैठती है, काला मुंह कर लेते हैं। बृह्स्पति की दशा थी फिर माया ने थप्पड़ लगाया तो राहू की दशा बैठ गई। काम में गिरा और फट से राहू का ग्रहण लगा। ताला बन्द हो जाता है। यह है गुप्त कड़ी सजा। वह फिर कभी कह नहीं सकेंगे कि भगवानुवाच काम महाशत्रु है। संन्यासी भी काम महाशत्रु के कारण ही स्त्री को छोड़ चले जाते हैं। यह भी निवृत्ति मार्ग की पवित्रता भारतवासियों के लिए अच्छी है। भारतवासी ही पवित्र से अपवित्र बनते हैं तो उन्हों को थमाने के लिए यह संन्यासी हैं। मरम्मत के लिए यह पवित्रता है। पवित्रता की ताकत से ही सृष्टि इतना चलती है। अभी तो वे भी पतित बन पड़े हैं। तुम्हें उनकी भी सर्विस करनी है। सर्विस का तुम बच्चों को बहुत-बहुत शौक रहना चाहिए।

बेकायदे कोई भी चलन नहीं चलनी है। भल पुरुषार्थी हो, सम्पूर्ण तो कोई नहीं बना है। कुछ न कुछ पाप होते रहते हैं। बाप की आज्ञा न माना यह भी बड़ा पाप है। बाप का फ़रमान है निरन्तर मुझे याद करो। जानता हूँ कि कर नहीं सकेंगे। परन्तु तुम पूरा पुरुषार्थ ही नहीं करते हो। जो करेंगे वह अच्छा पद पायेंगे। अच्छा।

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बाप-दादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार :

1) 5 विकारों की बीमारी से मुक्त होने के लिए सर्जन की राय लेते रहना है। आत्मा पर कोई बीमारी न लगे, इसकी सम्भाल करनी है।

2) सच्ची कमाई करनी और करानी है। कोई भी बेकायदे चलन नहीं चलनी है। राहू की दशा कभी न बैठे इसके लिए बाप के फ़रमान पर सदा चलना है।

वरदान:-

जो बच्चे याद और सेवा में सदा बिजी रहते हैं वह सभी चक्करों से सहज ही मुक्त हो जाते हैं। कोई भी चक्र रहा हुआ होगा तो चक्कर ही लगाते रहेंगे। कभी सम्बन्धों का चक्कर, कभी अपने स्वभाव संस्कार का चक्कर, ऐसे व्यर्थ के सभी चक्कर समाप्त तब होंगे जब बुद्धि में सिवाए शमा के और कुछ भी न हो। शमा पर फिदा होने वाले शमा के समान बन जाते हैं। ऐसे फिदा होने वाले अर्थात् समा जाने वाले ही सच्चे परवाने हैं।

स्लोगन:-

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