05 July 2022 HINDI Murli Today | Brahma Kumaris
Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi
4 July 2022
Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.
Brahma Kumaris
आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन। Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. Source: Official Murli blog to read and listen daily murlis. ➤ पढ़े: मुरली का महत्त्व
"मीठे बच्चे - गरीब निवाज़ बाबा तुम्हें कौड़ी से हीरे जैसा बनाने आये हैं तो तुम सदा उनकी श्रीमत पर चलो''
प्रश्नः-
कौन सा एक कर्तव्य बच्चों का है, बाप का नहीं?
उत्तर:-
बच्चे कहते हैं बाबा फलाने सम्बन्धी की बुद्धि का ताला खोलो… बाबा कहते यह धन्धा मेरा नहीं। यह तो तुम बच्चों का कर्तव्य है। तुम्हारी बुद्धि का ताला खुला है तो तुम औरों का भी ताला खोल स्वर्ग में चलने के लायक बनाओ अर्थात् सबको मुक्ति और जीवनमुक्ति की राह बताओ।
♫ मुरली सुने (audio)➤
गीत:-
जाग सजनियां जाग..
ओम् शान्ति। तुम जगे हुए बच्चे बैठे हो फिर औरों को जगाना है। अज्ञान नींद से जगाना है। तुम जागे हो सो भी नम्बरवार क्योंकि घड़ी-घड़ी भूल जाते हो। जगाने वाला कहते हैं सजनियां भूल न जाओ। यह याद का घृत है। मनुष्य मरते हैं तो दीवे में घृत डालते रहते हैं कि दीवा बुझ न जाये। बाप कहते हैं बच्चे याद करते रहो। यह याद करने के लिए, घृत डालने के लिए सवेरे का टाइम बहुत अच्छा है। सवेरे याद करेंगे तो वह याद बहुत समय कायम रहेगी। तुम्हारा दीवा बुझा हुआ है। अब याद से अपना दीवा जगाते हो। तुम्हारा दीवा जगता रहता है। सतयुग से त्रेता तक जगता रहेगा, इसको दीपमाला कहते हैं। रुद्र माला और दीप माला बात एक ही है। याद तो शिवबाबा को ही करना है ना। तुम असुल में रुद्र माला के मोती तो हो ना अर्थात् निर्वाणधाम में रहने वाले हो। उसे शिवबाबा का धाम, रूद्रधाम भी कह सकते हैं। बच्चे जानते हैं बाबा के पास हमें जाना है। याद से दीपक जगता जायेगा। यह श्री अर्थात् श्रेष्ठ मत मिलती है। गाया हुआ भी है श्रीमत मिली थी, तो श्रेष्ठ सत्य धर्म की स्थापना हुई थी। अब तुम्हारा बड़ा झुण्ड है। नम्बरवार जितना जागते हैं उतना जगा सकते हैं। दीवे को जगाने के लिए सवेरे उठना पड़ता है। घृत डालना पड़ता है, इसमें कोई तकलीफ नहीं। बाप को याद करना यही घृत डालते रहना है। आत्मा पावन होती रहती है। आत्मा पहले पतित थी अर्थात् आत्मा की ज्योति बुझी हुई थी। अब बाप को याद करने से ज्योत जगेगी और विकर्म विनाश होते रहेंगे अर्थात् पावन बनते रहेंगे। अभी आत्मा पर अज्ञान का पर-छाया पड़ा हुआ है। बाप ही सबसे बड़ा सर्जन भी है। कोई स्थूल दवाई आदि डालने के लिए नहीं देते हैं। सिर्फ कहते हैं मामेकम् याद करो। इस याद में सब दवाईयां आ जाती हैं। याद से ही तन्दरूस्त बन जाते हैं भविष्य जन्म-जन्मान्तर के लिए। वो योग तो बहुत किसम-किसम के सिखलाते हैं, उससे बहुत पहलवान भी बनते हैं। मेहनत करते हैं।
अभी तुम महावीर बनते हो। पवित्रता को ही महावीरता कहा जाता है। इससे आयु भी बहुत बड़ी हो जाती है। बाप की याद से ताकत मिलती जाती है। बाप समझाते हैं तुमको पवित्र दुनिया का मालिक बनना है तो यह अन्तिम जन्म पवित्र बनो। संन्यासी भी 5 विकारों का संन्यास करते हैं। परन्तु वह तो बहुत दूर जंगल में चले जाते हैं। यहाँ तुमको गृहस्थ व्यवहार में रहते 5 विकारों का संन्यास करना है। तुम जानते हो इस संन्यास से प्राप्ति बहुत भारी है। उनको तो कुछ भी पता नहीं कि हमें मुक्ति मिलेगी वा क्या होगा। पुनर्जन्म में तो उनको आना ही है। तुमको तो इस मृत्यु-लोक में आना ही नहीं है। तुमको जाना है अमरपुरी में। फ़र्क हो गया ना। भल संन्यासी लोग कितने भी हठयोग आदि करें फिर भी उन्हों को मृत्युलोक में रहना ही है। तुम बच्चों को इस मृत्युलोक से जाना है अमरलोक में, इसलिए मेहनत करनी पड़ती है, जिस मेहनत से वह डरते हैं। समझते हैं गृहस्थ व्यवहार में रह हम योगी नहीं बन सकते। उनको कुछ पता ही नहीं है, संन्यास से क्या मिलेगा? कोई एम आब्जेक्ट ही नहीं है, तुम्हारे पास एम आब्जेक्ट है। वो थोड़ेही कहेंगे हम नई दुनिया में जायेंगे। वह तो मुक्तिधाम में जायेंगे, परन्तु उनको पता ही नहीं है। तुम तो राजाई में ऊंच पद पाने के लिए पुरुषार्थ करते हो। इसमें पुरुषार्थ पूरा करना है, आशीर्वाद वा कृपा की बात ही नहीं है। ऐसे नहीं कि हमारे पति की बुद्धि का ताला खुले, आशीर्वाद करो। क्या हम सभी का ताला खोल देंगे? तुम बच्चों की बुद्धि का ताला खुल जाता है फिर भी मेहनत तुमको करनी है। बाबा किसका ताला खोलते नहीं हैं। ड्रामानुसार जिन बच्चों को शूद्र से ब्राह्मण बनना है, उन्हों को आना ही है। जिनका कल्प पहले ताला खुला होगा, उनका ही खुलेगा। हाँ शुभचिंतक हो राय दी जाती है। तरस तो पड़ता है ना कि यह भी साहूकार बन जाये। ताला खुले तो स्वर्ग में चले जायें। यह भी स्वर्ग के मालिक बन जायें। यह तुम्हारा धन्धा है। उनका है हद का संन्यास। तुम्हारा है बेहद का संन्यास। तुम बेहद का राज्य मांगते हो। वह बेहद की मुक्ति मांगते हैं। वह मुक्ति भी ऐसी है जैसे तुम्हारी जीवनमुक्ति है। हमेशा के लिए मुक्ति तो हो नहीं सकती। पुनर्जन्म लेना ही है। बच्चे जानते हैं पहले जब वहाँ से आते हैं तो पुनर्जन्म फिर भी अच्छा सतोप्रधान मिलता है फिर रजो तमो में आ जाते हैं। तुम सबसे ऊंच बिरादरी के हो। पहले-पहले आदि सनातन देवी-देवता धर्म की बिरादरी है। फिर अनेक प्रकार के धर्म के स्तम्भ निकलते हैं। वह सब पीछे आने वाले हैं। तुम्हारी बुद्धि में यह सब बातें रहनी चाहिए। हम ब्राह्मण हैं, वह शूद्र हैं। हम शिक्षा पाकर तमोप्रधान से सतोप्रधान हो रहे हैं। कौन बनाते हैं? जो एवर सतोप्रधान हैं वह कभी रजो तमो में नहीं आते। हमको बना रहे हैं। हर एक को मेहनत करनी है। तुम्हारी मेहनत से आटोमेटिकली तुमको ही ऊंच पद मिलता है। हर एक अपनी राजधानी को सम्भालते हो। तुमको मदद देने वाला एक ही बेहद का बाप है। वह सहज युक्ति बताते हैं। इसका नाम ही है सहज राजयोग, जिससे दैवी स्वराज्य मिलता है। स्व अर्थात् आत्मा को ही राज्य मिलता है। आत्मा कहती है अभी हम बेगरी शरीर में हैं। फिर प्रिन्स का शरीर मिलेगा। तुम आत्मायें यहाँ बैठी हो, जिसके पास जाना है, उसको ही याद करना है। गुरू लोग मंत्र देते रहते हैं। यहाँ बाबा का मंत्र कोई और देने वाला नहीं है। बाप एक ही मंत्र देते हैं, मैं तुम्हारा निराकार बाप हूँ। तुम्हारा टीचर भी हूँ, पतित-पावन गुरू भी हूँ। हूँ तो निराकार, यह भी निश्चय चाहिए। हमारा बाप पतित-पावन निराकार ज्ञान का सागर है। राजयोग से हमको महाराजा महारानी बनाते हैं। बेहद का वर्सा देते हैं। 100 प्रतिशत सम्पत्तिवान भव, आयुश्वान भव। देवताओं जितनी आयु कोई की नहीं होती। पुत्रवान भव, तुम्हारा कुल चलता है। तुम जानते हो वहाँ विकार हो नहीं सकता। आत्मा को अपनी नॉलेज है। हम अभी जाकर बच्चा बनेंगे फिर जवान हो बूढ़े बनेंगे। फिर दूसरा शरीर लेंगे। वहाँ की रसम रिवाज और, यहाँ की रसम-रिवाज और है। बाप ही समझा सकते हैं। रोज़ कहते हैं बच्चों जीव की आत्माओं, जीव बिगर सुनायेंगे कैसे? यह याद रखना है। हम आत्माओं को परमपिता परमात्मा समझा रहे हैं। परन्तु यह भी भूल जाता है। अभी तुम प्रैक्टिकल में बैठे हो। यह भी जानते हो जन्म-जन्मान्तर फालतू कथायें सुनते आये हैं। कितनी गीतायें पुस्तक सुनते आये हैं। अभी है संगमयुग। संगमयुग का अर्थ ही है पुरानी दुनिया का विनाश, नई दुनिया की स्थापना, इसलिए इसको आस्पीशियस, कल्याणकारी संगमयुग कहा जाता है। संगमयुग को भूलने से अपनी राजधानी को भूल जाते हैं। भल तुम प्रदर्शनी आदि रखते हो, फिर भी कोई की बुद्धि में नहीं बैठता। इतना कहते हैं कि यहाँ ईश्वर को पाने की समझानी बहुत अच्छी है। बस। यही नहीं समझते कि ईश्वर पढ़ाते हैं। कोई विरले को निश्चय बैठता है, जो कहते कि बरोबर ठीक है। हम भी समझते हैं पढ़ाने वाला परमपिता परमात्मा है। जैसे भीष्मपितामह आदि ने पिछाड़ी में माना है कि परमात्मा इन्हों को पढ़ाते हैं। पिछाड़ी में यह ज्ञान आयेगा। भल प्रदर्शनी में हजारों आते हैं परन्तु यह किसको भी समझ में नहीं आता कि तुमको निराकार परमपिता परमात्मा पढ़ाते हैं। कहते हैं यह बात हमको समझ में नहीं आती। निराकार कैसे पढ़ायेंगे? अच्छा हम आकर समझेंगे, कहकर फिर आयेंगे नहीं। ऐसे भी होते हैं। कितना तुम समझाते हो चलो हम तुमको स्वर्ग की बादशाही दें, तो भी मानते नहीं। सैपलिंग लगती है। बाप समझाते हैं तुमको भक्तों को समझाना सहज होगा। तुम सर्वव्यापी कहते हो तो पूजते क्यों हो? यह तो जड़ है, तुम तो चैतन्य हो। तुम बड़े हो गये ना। समझाना है बेहद का बाप तो एक ही है, उनकी ही महिमा है। वह मनुष्य सृष्टि का बीज रूप पतित-पावन है। दुनिया पतित है, उनको पतित से पावन बनाने वाला एक ही बाप है। जरूर संगम पर ही आता होगा। अब आये हैं, कहते हैं मुझे याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। गीता में अक्षर हैं परन्तु कृष्ण का नाम लिखने से बुद्धि ठहरती नहीं हैं। तुम जानते हो यह ज्ञान है बहुत सहज, परन्तु विघ्न पड़ते रहते हैं। मित्र-सम्बन्धी आदि सब विघ्न डालेंगे। हम इनको इस तरफ खींचते हैं वह फिर उस तरफ खींचते हैं। बड़ी जंजीरें हैं। बाप समझाते हैं यह कैसे हो सकता है। शिवबाबा तो ज्ञान का सागर, सुख का सागर है। कुछ तो किया होगा ना। स्वर्ग स्थापन करने वाला है। सिर्फ कहता हूँ मेरे को याद करो। कृष्ण तो कह न सके। समझाने के लिए बड़ी मेहनत चाहिए, थकना नहीं है। बहुतों से मेहनत पहुँचती नहीं है। बहाने बहुत लगाते हैं। बाबा कोई तकलीफ नहीं देते हैं। भल बच्चों को सम्भालो, भोजन बनाओ। सिर्फ शिवबाबा की याद में रहो। अच्छा दिन में टाइम नहीं मिलता है, अमृतवेले तो याद करो। कहते हैं राम सिमर प्रभात मोरे मन। आत्मा कहती है प्रभात में अपने बाप को याद करो। बाबा भी यही कहते हैं नींद भी टाइम पर करनी चाहिए। पूरा चार्ट रखना है। सवेरे उठ सकते हो। इस पर एक कहावत भी सिंधी में है – सवेरे सोना, सवेरे उठना… (जल्दी सोना, जल्दी उठना) अभी तुम अक्लमंद बनते हो। सारा चक्र बुद्धि में है। तुम्हें कोई भी दु:ख नहीं मिल सकता। कितना तुम शाहों के शाह बन जाते हो। पैसे की कभी कोई तकलीफ नहीं होती और हेल्दी भी बनते हो। यह सब गुण अभी तुम शिवबाबा से पाते हो। बरोबर तुम हेल्दी वेल्दी और हैपी बनते हो। यह भी तुम जानते हो होली, दीपावली आदि यह सब अभी की बातें हैं, जो यादगार में आ जाती हैं। तो सवेरे उठकर बाप को याद करना बड़ा अच्छा है। याद को बढ़ाते रहो।
बच्चों ने गीत भी सुना – जागो और जगाओ अज्ञान नींद से। गृहस्थ व्यवहार में रहते किसको बाप का परिचय दो। वह फिर लिखे भी कि बाबा, फलाने द्वारा हम आपको जान गये हैं। अभी तो हम आपके ही होकर रहेंगे, आपसे वर्सा जरूर लेंगे। आपके ही थे, ऐसी चिट्ठी आवे तब सर्विस का सबूत मिले। पत्र देख बाबा खुश होंगे। बाकी सिर्फ क्लास से ही होकर आना यह तो पुरानी चाल हो गई।। जैसे और सतसंगों में नियम से जाते हैं। तुमको तो एक-एक को अच्छी रीति समझाना है। यह बहुत ऊंची पढ़ाई है। यह ज्ञान सागर से कितनी अच्छी नॉलेज मिलती है। मेहनत चाहिए समझाने की। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार :
1) याद का अभ्यास बढ़ाना है। इस यात्रा में कभी थकना वा बहाना नहीं देना है। याद का पूरा-पूरा चार्ट रखना है। भोजन भी शिवबाबा की याद में बनाना वा खाना है।
2) बुद्धि से बेहद का संन्यास करना है। इस छी-छी दुनिया को बुद्धि से त्याग देना है। बाप द्वारा जो मंत्र मिला है वही सबको देना है। जगे हैं तो जगाना भी है।
वरदान:-
हर कर्म में, श्रीमत के इशारे प्रमाण चलने वाली आत्मा को ही ऑनेस्ट अर्थात् ईमानदार और वफादार कहा जाता है। ब्राह्मण जन्म मिलते ही दिव्य बुद्धि में बापदादा ने जो श्रीमत भर दी है, ऑनेस्ट आत्मा हर सेकण्ड हर कदम उसी प्रमाण एक्यूरेट चलती रहती है। जैसे साइन्स की शक्ति द्वारा कई चीजें इशारे से ऑटोमेटिक चलती हैं, चलाना नहीं पड़ता, चाहे लाइट द्वारा, चाहे वायब्रेशन द्वारा स्विच आन किया और चलता रहता है। ऐसे ही ऑनेस्ट आत्मा साइलेन्स की शक्ति द्वारा सदा और स्वत: चलते रहते हैं।
स्लोगन:-
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