05 Dec 2023 HINDI Murli Today | Brahma Kumaris

Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi

December 4, 2023

Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.

Brahma Kumaris

आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन।  Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. SourceOfficial Murli blog to read and listen daily murlis. पढ़े: मुरली का महत्त्व

“मीठे बच्चे - कल्याणकारी बाप अभी तुम्हारा ऐसा कल्याण कर देते हैं जो कभी रोना न पड़े, रोना अकल्याण वा देह-अभिमान की निशानी है''

प्रश्नः-

किस अटल भावी को जानते हुए तुम्हें सदा निश्चिंत रहना है?

उत्तर:-

तुम जानते हो कि इस पुरानी दुनिया का विनाश अवश्य होना है। भल पीस के लिए प्रयास करते रहते हैं लेकिन नर चाहत कुछ और…. कितना भी कोशिश करें यह भावी टल नहीं सकती। नैचुरल कैलेमिटीज़ आदि भी होनी हैं। तुम्हें नशा है कि हमने ईश्वरीय गोद ली है, जो साक्षात्कार किये हैं, वह सब प्रैक्टिकल में होना ही है, इसलिए तुम सदा निश्चिन्त रहते हो।

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ओम् शान्ति। विश्व में मनुष्यों की बुद्धि में भक्ति मार्ग का ही गायन है क्योंकि अभी भक्ति मार्ग चल रहा है। यहाँ फिर भक्ति का गायन नहीं है। यहाँ तो बाप का गायन है। बाप की महिमा करनी होती है, जिस बाप से इतना ऊंच वर्सा मिलता है। भक्ति में सुख नहीं है। भक्ति में रहते हुए भी याद तो स्वर्ग को करते हैं ना। मनुष्य मरते हैं तो कहते हैं स्वर्गवासी हुआ। तो खुश होना चाहिए ना। जबकि स्वर्ग में जन्म लेते तो फिर रोने की तो दरकार नहीं। वास्तव में यह सच्ची बात तो है नहीं कि स्वर्गवासी हुआ, इसलिए रोते रहते हैं। अब इन रोने वालों का कल्याण कैसे हो? रोना दु:ख की निशानी है। मनुष्य रोते तो हैं ना। बच्चे जन्मते हैं तो भी रोते हैं क्योंकि दु:ख होता है। दु:ख नहीं होगा तो जरूर हर्षित रहेंगे। रोना तब आता है जब कोई न कोई अकल्याण होता है। सतयुग में कभी अकल्याण नहीं होता इसलिए वहाँ कभी रोते नहीं। अकल्याण की बात ही नहीं होती। यहाँ कभी कमाई में घाटा पड़ता है या कभी अन्न नहीं मिलता तो दु:खी होते हैं। दु:ख में रोते हैं, भगवान् को याद करते हैं कि आकर सभी का कल्याण करो। अगर सर्वव्यापी है तो किसको कहते हैं – कल्याण करो? परमपिता परमात्मा को सर्वव्यापी मानना बड़े से बड़ी भूल है। बाप है सबका कल्याणकारी, वह एक ही कल्याणकारी है तो जरूर सबका कल्याण करेंगे। तुम बच्चे जानते हो परम-पिता परमात्मा हमेशा कल्याण ही करते हैं। अब वह परमपिता परमात्मा कब आये जो विश्व का कल्याण करे? विश्व का कल्याण करने वाला और तो कोई है नहीं। बाप को फिर सर्वव्यापी कह देते हैं। कितनी भारी भूल है। अभी बाप अपना परिचय देकर कहते हैं मनमनाभव, इसमें ही कल्याण है। सतयुग-त्रेता में कोई भी हालत में अकल्याण होता नहीं। त्रेता में भी जबकि रामराज्य है तो वहाँ शेर-बकरी इकट्ठे जल पीते हैं। हम राम-सीता के राज्य की इतनी स्तुति नहीं करेंगे क्योंकि दो कला कम हो जाने से कुछ न कुछ सुख कम मिलता है। हम तो पसन्द करते हैं स्वर्ग, जो बाप स्थापन करते हैं। उसमें पूरा वर्सा पायें तो बहुत अच्छा है। ऊंच ते ऊंच बाप से वर्सा ले हम कल्याण करें। हर एक को अपना कल्याण करना है श्रीमत पर।

बाप ने समझाया है – एक है आसुरी सम्प्रदाय, दूसरा है दैवी सम्प्रदाय। अभी एक तरफ रावण राज्य है, दूसरे तरफ मैं दैवी सप्रदाय स्थापन कर रहा हूँ। ऐसे नहीं कि अभी दैवी सम्प्रदाय है। आसुरी सम्प्रदाय को मैं दैवी बना रहा हूँ। कहेंगे दैवी सम्प्रदाय तो सतयुग में होता है। बाप कहते हैं इस आसुरी सम्प्रदाय को दैवी सम्प्रदाय भविष्य के लिए बनाता हूँ। अभी है ब्राह्मण सम्प्रदाय, दैवी सम्प्रदाय बन रहा है। गुरुनानक ने भी कहा है मनुष्य से देवता…. परन्तु कौन से मनुष्य हैं जिनको देवता बनायेंगे? वह ड्रामा के आदि, मध्य, अन्त को तो जानते नहीं। सृष्टि के आदि में जो लक्ष्मी-नारायण श्रेष्ठाचारी हैं, वह भी आदि, मध्य, अन्त को नहीं जानते। त्रिकालदर्शी नहीं हैं। आगे जन्म में त्रिकालदर्शी थे, स्वदर्शन चक्रधारी थे तब यह राज्य पद पाया है। उन्होंने फिर स्वदर्शन चक्र दे दिया है विष्णु को। तो यह भी समझाना है कि स्वदर्शन चक्रधारी ब्राह्मण हैं तो मनुष्य आश्चर्य खायेंगे। वह तो श्रीकृष्ण को भी कह देते, विष्णु को भी कह देते। यह तो जानते नहीं कि विष्णु के दो रूप लक्ष्मी-नारायण हैं। हम भी नहीं जानते थे। मनुष्य तो हर बात में कह देते हैं भावी। जो होने वाला है उसको कोई टाल नहीं सकते। यह तो ड्रामा है। तो पहले-पहले बाप का परिचय दें या ड्रामा का राज़ समझायें? सो भी जब बाबा की याद हो, पहले-पहले बाप का परिचय देना चाहिए। बेहद का बाबा, शिवबाबा तो मशहूर है। रूद्र बाबा भी नहीं कहते। शिवबाबा नामीग्रामी है। बाप ने समझाया है कि जहाँ-जहाँ भक्त हैं, उन्हों को जाकर समझाओ। अखबार में पढ़ा था मनुष्य कहते हैं कि हिमालय की इतनी मल्टीमिलियन एज है। अब हिमालय की कोई आयु होती है क्या? यह तो सदैव है ही। हिमालय कभी गुम होता है क्या? यह भारत भी अनादि है। कब रचा गया, उसकी एज नहीं निकाल सकते। वैसे हिमालय के लिए भी नहीं कह सकते कि यह कब से है। इस हिमालय पहाड़ की आयु गिनी नहीं जाती। ऐसे थोड़ेही कहेंगे कि आकाश की वा समुद्र की आयु इतनी है। हिमालय की आयु कहते हैं, तो समुद्र की भी बतायें, कुछ भी जानते नहीं। यहाँ तो तुमको बाप से वर्सा पाना है। यह है ईश्वरीय फैमली।

तुम जानते हो बाप का बनने से स्वर्ग के मालिक बनते हैं। एक राजा जनक की बात नहीं। जीवनमुक्ति में अथवा रामराज्य में तो बहुत होंगे ना। सबको जीवनमुक्ति मिली होगी। तुम सेकेण्ड में मुक्ति-जीवनमुक्ति पाने के पुरूषार्थी हो। बच्चा बने हो, मम्मा-बाबा कहते हो। जीवनमुक्ति तो मिलेगी ना। समझ सकते हैं प्रजा तो ढेर की ढेर बनती जाती है। दिन-प्रतिदिन प्रभाव तो निकलना है ना। यह धर्म की स्थापना करना बड़ी मेहनत है। वह तो ऊपर से आकर स्थापना करते हैं, उनके पिछाड़ी ऊपर से आते-जाते हैं। यहाँ तो एक-एक को राज्य-भाग्य पाने का लायक बनाना पड़ता है। लायक बनाना बाप का काम है। जो मुक्ति-जीवनमुक्ति के लायक थे, सबको माया ने ना-लायक बना दिया है। 5 तत्व भी ना-लायक बने हैं, फिर लायक बनाने वाला बाप है। तुम्हारा अभी सेकेण्ड-सेकेण्ड जो पुरूषार्थ चलता है, समझते हैं कल्प पहले भी फलाने ने ऐसा ही पुरूषार्थ किया था। कोई आश्चर्यवत् भागन्ती हो जाते हैं, फारकती दे देते हैं। प्रैक्टिकल देखते रहते हैं। यह भी समझते हैं विनाश सामने खड़ा है, ड्रामा अनुसार सबको एक्ट में आना है। नर चाहत कुछ और…. वह चाहते हैं पीस हो परन्तु भावी को तुम बच्चे जानते हो। तुमने साक्षात्कार किया है, वह भल कितना भी माथा मारें कि विनाश न हो परन्तु यह भावी टल नहीं सकती। अर्थक्वेक नैचुरल कैलेमिटीज होंगी, वह क्या कर सकते। कहेंगे यह तो गॉड का काम है। तुम्हारे में भी बहुत थोड़े हैं जिनको इतना नशा चढ़ता है और याद में रहते हैं। सब तो परिपूर्ण नहीं बने हैं। तुम जानते हो यह भावी टलने की नहीं है। अन्न नहीं है, मनुष्यों के रहने के लिए जगह नहीं है, 3 पैर पृथ्वी के नहीं मिलते।

तुम्हारा यह है ईश्वरीय परिवार – मात, पिता और बच्चे। बाप कहते हैं मैं बच्चों के आगे ही प्रत्यक्ष होता हूँ। बच्चों को सिखाता हूँ। बच्चे भी कहते हैं – हम बाप की मत पर चलते हैं। बाप भी कहते हैं मैं बच्चों के ही सम्मुख आकर मत देता हूँ। बच्चे ही समझेंगे। नहीं समझते हैं तो छोड़ो, लड़ने की कोई बात नहीं। हम परिचय देते हैं बाप का। बाप कहते हैं मुझे याद करो तो विकर्म विनाश होंगे और स्वदर्शन चक्र को याद करो तो चक्रवर्ती राजा बनेंगे। मनमनाभव, मध्याजी भव का अर्थ भी यह है। बाप का परिचय दो जिससे क्रियेटर और क्रियेशन का राज़ तो समझ जायें। मुख्य यह एक ही बात है, गीता में मुख्य यह एक ही भूल है। बाप कहते हैं मुझ कल्याणकारी को ही आकर कल्याण करना है। बाकी शास्त्रों से कल्याण हो नहीं सकता। पहले तो सिद्ध करना है कि भगवान् एक है, उनको तुम याद करते हो परन्तु जानते नहीं हो। बाप को याद करना है तो परिचय भी चाहिए ना। वह कहाँ रहते हैं, आते हैं वा नहीं? बाप वर्सा तो जरूर यहाँ के लिए देंगे या वहाँ के लिए देंगे? बाप तो सम्मुख चाहिए। शिवरात्रि भी मनाते हो। शिव तो सुप्रीम फादर है, सब आत्माओं का। वह रचता है, नई नॉलेज देते हैं। सृष्टि चक्र के आदि, मध्य, अन्त को वह जानते हैं। वह है ऊंचे से ऊंचा टीचर, जो मनुष्य को देवता बनाते हैं, राजयोग सिखलाते हैं। मनुष्य कभी राजयोग सिखला न सकें। हमको भी उसने सिखलाया तब हम सिखलाते हैं। गीता में भी शुरूआत में और अन्त में मनमनाभव और मध्याजी भव कहा है। झाड़ और ड्रामा का नॉलेज भी बुद्धि में रहता है। डिटेल में समझाना पड़ता है। रिजल्ट में फिर भी एक बात आती है – बाप और वर्से को याद करना है। यहाँ तो एक ही बात है, हम विश्व के मालिक बनेंगे। विश्व का कल्याणकारी ही विश्व का मालिक बनाते हैं। स्वर्ग का मालिक बनायेंगे, नर्क का थोड़ेही मालिक बनायेंगे। दुनिया यह नहीं जानती कि नर्क का रचयिता रावण है, स्वर्ग का रचयिता बाप है। अब बाप कहते हैं मौत सामने खड़ा है, सबकी वानप्रस्थ अवस्था है, मैं लेने आया हूँ। मुझे याद करो तो विकर्म विनाश होंगे। आत्मा मैली से शुद्ध हो जायेगी। फिर तुमको स्वर्ग में भेज देंगे। यह निश्चयबुद्धि से किसको समझाना है, तोते मुआफिक नहीं। निश्चयबुद्धि को फिर रोने की वा देह अभिमान में आने की बात नहीं रहती। देह-अभिमान बहुत गन्दा बना देता है। अब तुम देही-अभिमानी बनो। शरीर निर्वाह अर्थ कर्म करो। वह तो कर्म संन्यासी बन जाते हैं। यहाँ तो तुमको गृहस्थ व्यवहार में रहना है, बच्चों को सम्भालना है। बाप को और चक्र को जानना तो बहुत सहज है।

बाप को कितने बच्चे हैं। फिर उनमें कोई सपूत हैं कोई कपूत हैं। नाम बदनाम करते हैं। काला मुंह कर देते हैं। बाप कहते हैं काला मुंह नहीं करो। बच्चा बन और फिर काला मुंह करते हो, कुल कलंकित बनते हो। इस काम चिता से तुम सांवरे बने हो। काम चिता पर थोड़ेही जल मरना है। हल्का नशा भी नहीं होना चाहिए। संन्यासी आदि अपने फालोअर्स को ऐसे थोड़ेही कहेंगे। वह रीयल्टी में नहीं हैं। बाप तो सबको सच्ची बातें समझाते हैं। बाप कहते हैं मुझे याद करो। तुमने गैरन्टी की है – बाबा आपकी मत पर चल हम स्वर्गवासी बनेंगे। बाप कहते हैं बच्चे फिर विषय गटर में गिरने का ख्याल क्यों करते हो? तुम बच्चियां जब ऐसी मुरली चलाओ तो कहेंगे ऐसा ज्ञान तो हमने कभी सुना नहीं। मन्दिर के हेड्स को पकड़ना चाहिए। चित्र ले जाना चाहिए। यह त्रिमूर्ति झाड़ दिलवाला के ही चित्र हैं। ऊपर में दैवी झाड़ खड़ा है, बाकी दैवी झाड़ जो पास्ट हो गया वह दिखाते हैं। ऐसी सर्विस कोई करके दिखाए तब बाबा महिमा करे, इसने तो कमाल की है। जैसे बाबा रमेश की महिमा करते हैं। प्रदर्शनी विहंग मार्ग की सर्विस का नमूना अच्छा निकाला है। यहाँ भी प्रदर्शनी करेंगे। चित्र तो बहुत अच्छे हैं।

अब देखो देहली में जो रिलीजस कान्फ्रेन्स होती है वह भी कहते हैं वननेस हो। उसका तो अर्थ ही नहीं। बाप एक है, बाकी हैं भाई-बहन। बाप से वर्सा मिलने की बात है। आपस में मिल क्षीरखण्ड कैसे होंगे, यह बातें समझने की हैं। प्रदर्शनी की वृद्धि लिये युक्ति रचनी है। जो सर्विस का सबूत नहीं दिखाते उनको तो लज्जा आनी चाहिए। अगर 10 नये आये और 8-10 मर गये तो इससे फायदा क्या हुआ। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार :

1) शरीर निर्वाह अर्थ काम करते देही-अभिमानी रहने का अभ्यास करना है। किसी भी परिस्थिति में रोना वा देह-अभिमान में नहीं आना है।

2) श्रीमत पर अपना और दूसरों का कल्याण करना है। सपूत बन बाप का नाम बाला करना है।

वरदान:-

कई बच्चे सोचते हैं कि मेरा पार्ट तो इतना दिखाई नहीं देता, योग तो लगता नहीं, अशरीरी होते नहीं – यह हैं व्यर्थ संकल्प। इन संकल्पों को परिवर्तित कर समर्थ संकल्प करो कि याद तो मेरा स्वधर्म है। मैं ही कल्प-कल्प का सहजयोगी हूँ। मैं योगी नहीं बनूंगा तो कौन बनेगा। कभी ऐसे नहीं सोचो कि क्या करूं मेरा शरीर तो चल नहीं सकता, यह पुराना शरीर तो बेकार है। नहीं। वाह-वाह के संकल्प करो, कमाल गाओ इस अन्तिम शरीर की, तो समर्थी आ जायेगी।

स्लोगन:-

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