04 June 2024 | HINDI Murli Today | Brahma Kumaris

Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi

3 June 2024

Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.

Brahma Kumaris

आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन।  Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. SourceOfficial Murli blog to read and listen daily murlis. पढ़े: मुरली का महत्त्व

“मीठे बच्चे - अब इस छी-छी गंदी दुनिया को आग लगनी है इसलिए शरीर सहित जिसे तुम मेरा-मेरा कहते हो - इसे भूल जाना है, इससे दिल नहीं लगानी है''

प्रश्नः-

बाप तुम्हें इस दु:खधाम से ऩफरत क्यों दिलाते हैं?

उत्तर:-

क्योंकि तुम्हें शान्तिधाम-सुखधाम जाना है। इस गंदी दुनिया में अब रहना ही नहीं है। तुम जानते हो आत्मा शरीर से अलग होकर घर जायेगी, इसलिए इस शरीर को क्या देखना। किसी के नाम-रूप तरफ भी बुद्धि न जाये। गन्दे ख्यालात भी आते हैं तो पद भ्रष्ट हो जायेगा।

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ओम् शान्ति। शिवबाबा अपने बच्चों, आत्माओं से बात करते हैं। आत्मा ही सुनती है। अपने को आत्मा निश्चय करना है। निश्चय करके फिर यह समझाना है कि बेहद का बाप आया हुआ है, सबको ले जाने लिए। दु:ख के बन्धन से छुड़ाए सुख के सम्बन्ध में ले जाते हैं। सम्बन्ध सुख को, बंधन दु:ख को कहा जाता है। अब यहाँ के कोई भी नाम-रूप आदि में दिल नहीं लगाओ। अपने घर जाने लिए तैयारी करनी है। बेहद का बाबा आया हुआ है, सभी आत्माओं को ले जाने इसलिए यहाँ कोई से दिल नहीं लगानी है। यह सब यहाँ के छी-छी बंधन हैं। तुम समझते हो हम अब पवित्र बने हैं तो हमारे शरीर को कोई भी हाथ न लगाये, छी-छी ख्यालात से। वह ख्यालात ही निकल जाते हैं। पवित्र बनने सिवाए वापिस घर तो जा न सकें। फिर सजायें खानी पड़ेंगी, अगर न सुधरे तो। इस समय सभी आत्मायें अनसुधरेली हैं। शरीर के साथ छी-छी काम करती हैं। छी-छी देहधारियों से दिल लगी हुई है। बाप आकर कहते हैं – यह सब गन्दे ख्याल छोड़ो। आत्मा को शरीर से अलग होकर घर जाना है। यह तो बहुत छी-छी गन्दी दुनिया है, इसमें तो अब हमको रहना नहीं है। कोई को देखने की भी दिल नहीं होती। अभी तो बाप आये हैं स्वर्ग में ले जाने। बाप कहते हैं – बच्चे, अपने को आत्मा समझो। पवित्र बनने लिए बाप को याद करो। कोई भी देहधारी से दिल नहीं लगाओ। बिल्कुल ममत्व मिट जाना चाहिए। स्त्री-पुरूष का बहुत प्यार होता है। एक-दो से अलग हो नहीं सकते। अब तो अपने को आत्मा भाई-भाई समझना है। गन्दे ख्याल नहीं रहने चाहिए। बाप समझाते हैं – अभी यह वेश्यालय है। विकारों के कारण ही तुमने आदि, मध्य, अन्त दु:ख को पाया है। बाप बहुत ही ऩफरत दिलाते हैं। अभी तुम स्टीमर पर बैठे हो जाने के लिए। आत्मा समझती है अभी हम जा रहे हैं बाप के पास। इस सारी पुरानी दुनिया से वैराग्य है। इस छी-छी दुनिया, नर्क वेश्यालय में हमको रहना नहीं है। तो फिर विष के लिए गन्दे ख्यालात आना बहुत खराब है। पद भी भ्रष्ट हो जायेगा। बाप कहते हैं मैं तुमको गुल-गुल दुनिया में, सुखधाम में ले जाने आया हूँ। मैं तुमको इस वेश्यालय से निकाल शिवालय में ले जाऊंगा तो अब बुद्धि का योग रहना चाहिए नई दुनिया में। कितनी खुशी होनी चाहिए। बेहद का बाबा हमको पढ़ाते हैं, यह बेहद सृष्टि चक्र कैसे फिरता है, वह तो बुद्धि में है। सृष्टि चक्र को जानने से अर्थात् स्वदर्शन चक्रधारी होने से तुम चक्रवर्ती राजा बनेंगे। अगर देहधारी से बुद्धियोग लगाया तो पद भ्रष्ट हो पड़ेगा। कोई भी देह के सम्बन्ध याद न आयें। यह तो दु:ख की दुनिया है, इसमें सब दु:ख ही देने वाले हैं।

बाप डर्टी दुनिया से सबको ले जाते हैं, इसलिए अब बुद्धियोग अपने घर से लगाना है। मनुष्य भक्ति करते हैं – मुक्ति में जाने लिए। तुम भी कहते हो – हम आत्माओं को यहाँ रहना नहीं है। हम यह छी-छी शरीर छोड़कर अपने घर जायेंगे, यह तो पुरानी जुत्ती है। बाप को याद करते-करते फिर यह शरीर छूट जायेगा। अन्तकाल बाप के सिवाए और कोई दूसरी चीज़ याद न रहे। यह शरीर भी यहाँ ही छोड़ना है। शरीर गया तो सब कुछ गया। देह सहित जो कुछ भी है, तुम जो मेरा-मेरा कहते हो यह सब भूल जाना है। इस छी-छी दुनिया को आग लगनी है, इसलिए इनसे अब दिल नहीं लगानी है। बाप कहते हैं मीठे-मीठे बच्चों, मैं तुम्हारे लिए स्वर्ग की स्थापना कर रहा हूँ। वहाँ तुम ही जाकर रहेंगे। अभी तुम्हारा मुंह उस तरफ है। बाप को, घर को, स्वर्ग को याद करना है। दु:खधाम से ऩफरत आती है। इन शरीरों से ऩफरत आती है। शादी करने की भी क्या दरकार है। शादी करने से फिर दिल लग जाती है शरीर से। बाप कहते हैं इस पुरानी जुत्तियों से कुछ भी स्नेह नहीं रखो। यह है ही वेश्यालय। सब पतित ही पतित हैं। रावण राज्य है। यहाँ कोई से भी दिल नहीं लगानी है, सिवाए बाप के। बाप को याद नहीं करेंगे तो जन्म-जन्मान्तर के पाप कटेंगे नहीं। फिर सजायें भी बहुत कड़ी हैं। पद भी भ्रष्ट हो जायेगा। तो क्यों न इस कलियुगी बन्धन को छोड़ दें। बाबा सबके लिए यह बेहद की बात समझाते हैं। जब रजोप्रधान संन्यासी थे तो दुनिया गंदी नहीं थी। जंगल में रहते थे। सबको आकर्षण होती थी। मनुष्य वहाँ जाकर उन्हों को खाना पहुँचा आते थे। निडर हो रहते थे। तुमको भी निडर बनना है, इसमें बड़ी विशाल बुद्धि चाहिए। बाप के पास आते हैं, तो बच्चों को खुशी रहती है। हम बेहद बाप से सुखधाम का वर्सा लेते हैं। यहाँ तो कितना दु:ख है। कई गन्दी-गन्दी बीमारियां आदि होती हैं। बाप तो गैरन्टी करते हैं – तुमको वहाँ ले जाते हैं, जहाँ दु:ख, बीमारी आदि का नाम नहीं। आधाकल्प के लिए तुमको हेल्दी बनाते हैं। यहाँ कोई से भी दिल लगाई तो बहुत सजायें खानी पड़ेगी।

तुम समझा सकते हो, वो लोग कहते हैं 3 मिनट साइलेन्स। बोलो, सिर्फ साइलेन्स से क्या होगा। यह तो बाप को याद करना है, जिससे विकर्म विनाश हों। साइलेन्स का वर देने वाला बाप है। उनको याद करने बिगर शान्ति मिलेगी कैसे? उनको याद करेंगे तब ही वर्सा मिलेगा। टीचर्स को भी बहुत शब्क (पाठ) पढ़ाना है। खड़ा हो जाना चाहिए, कोई कुछ भी कहेगा नहीं। बाप के बने हो तो पेट के लिए तो मिलेगा ही, शरीर निर्वाह के लिए बहुत मिलेगा। जैसे वेदान्ती बच्ची है, उसने इम्तहान दिया, उसमें एक प्वाइंट थी – गीता का भगवान् कौन? उसने परमपिता परमात्मा शिव लिख दिया तो उनको नापास कर दिया। और जिन्होंने श्रीकृष्ण का नाम लिखा था, उनको पास कर दिया। बच्ची ने सच बताया तो उसको न जानने कारण नापास कर दिया। फिर लड़ना पड़े मैंने तो यह सच-सच लिखा। गीता का भगवान् है ही निराकार परमपिता परमात्मा। श्रीकृष्ण देहधारी तो हो न सके। परन्तु बच्ची की दिल थी इस रूहानी सर्विस करने की तो छोड़ दिया।

तुम जानते हो अब बाप को याद करते-करते अपने इस शरीर को भी छोड़ साइलेन्स दुनिया में जाना है। याद करने से हेल्थ-वेल्थ दोनों ही मिलती हैं। भारत में पीस प्रासपर्टी थी ना। ऐसी-ऐसी बातें तुम कुमारियां बैठ समझाओ तो तुम्हारा कोई भी नाम नहीं लेंगे। अगर कोई सामना करे तो तुम कायदेसिर लड़ो, बड़े-बड़े ऑफीसर्स के पास जाओ। क्या करेंगे? ऐसे नहीं कि तुम भूख मरेंगी। केले से, दही से भी रोटी खा सकते हो। मनुष्य पेट के लिए कितने पाप करते हैं। बाप आकर सबको पाप आत्मा से पुण्य आत्मा बनाते हैं। इसमें पाप करने, झूठ बोलने की कोई दरकार नहीं है। तुमको तो 3/4 सुख मिलता है, बाकी 1/4 दु:ख भोगते हो। अब बाप कहते हैं – मीठे बच्चों, मुझे याद करो तो तुम्हारे जन्म-जन्मान्तर के पाप भस्म हो जायेंगे। और कोई उपाय नहीं। भक्ति मार्ग में तो बहुत धक्के खाते हो। शिव की पूजा तो घर में भी कर सकते हैं परन्तु फिर भी बाहर मन्दिर में जरूर जाते हैं। यहाँ तो तुमको बाप मिला है। तुमको चित्र रखने की दरकार नहीं है। बाप को तुम जानते हो। वह हमारा बेहद का बाप है, बच्चों को स्वर्ग की बादशाही का वर्सा दे रहे हैं। तुम आते हो बाप से वर्सा लेने। यहाँ कोई शास्त्र आदि पढ़ने की बात नहीं। सिर्फ बाप को याद करना है। बाबा बस हम आये कि आये। तुमको घर छोड़े कितना समय हुआ है? सुखधाम को छोड़े 63 जन्म हुए हैं। अब बाप कहते हैं शान्तिधाम, सुखधाम में चलो। इस दु:खधाम को भूल जाओ। शान्तिधाम, सुखधाम को याद करो और कोई डिफीकल्ट बात नहीं है। शिवबाबा को कोई शास्त्र आदि पढ़ने की दरकार नहीं है। यह ब्रह्मा पढ़ा हुआ है। तुमको तो अभी शिवबाबा पढ़ाते हैं। यह ब्रह्मा भी पढ़ा सकते हैं। परन्तु तुम सदैव समझो शिवबाबा के लिए। उनको याद करने से विकर्म विनाश होंगे। बीच में यह भी है।

अब बाप कहते हैं टाइम थोड़ा है, जास्ती नहीं है। ऐसा ख्याल मत करो कि जो नसीब में होगा, वह मिलेगा। स्कूल में पढ़ाई का पुरूषार्थ करते हैं ना। ऐसे थोड़ेही कहेंगे जो नसीब में होगा…… यहाँ नहीं पढ़ते हैं तो वहाँ जन्म-जन्मान्तर नौकरी चाकरी करते रहेंगे। राजाई मिल न सके। करके पिछाड़ी में ताज रख देंगे, वह भी त्रेता में। मूल बात है – पवित्र बन औरों को बनाना। सत्य नारायण की सच्ची कथा सुनाना है बहुत सहज। दो बाप हैं, हद के बाप से हद का वर्सा मिलता है, बेहद के बाप से बेहद का। बेहद बाप को याद करो तो यह देवता बनेंगे। परन्तु फिर उसमें भी ऊंच पद पाना है। पद पाने के लिए ही कितना मारा-मारी करते हैं। पिछाड़ी में बॉम्बस की भी एक-दो को मदद देंगे। यह इतने सब धर्म थे थोड़ेही। फिर नहीं रहेंगे। तुम राज्य करने वाले हो तो अपने ऊपर रहम करो ना – कम से कम ऊंच पद तो पायें। बच्चियां 8 आना भी देती हैं – हमारी एक ईट लगा देना। सुदामा का मिसाल सुना है ना। चावल मुट्ठी बदले महल मिल गया। गरीब के पास हैं ही 8 आने तो वही देंगे ना। कहते हैं बाबा हम गरीब हैं। अभी तुम बच्चे सच्ची कमाई करते हो। यहाँ सबकी है झूठी कमाई। दान-पुण्य आदि जो करते हैं, वह पाप आत्माओं को ही करते हैं। तो पुण्य के बदले पाप हो जाता है। पैसा देने वाले पर ही पाप हो जाता है। ऐसे-ऐसे करते सब पाप आत्मा बन जाते हैं। पुण्य आत्मा होते ही हैं सतयुग में। वह है पुण्य आत्माओं की दुनिया। वह तो बाप ही बनायेंगे। पाप आत्मा रावण बनाते, गन्दे बन पड़ते हैं। अब बाप कहते हैं गन्दे कर्म नहीं करो। नई दुनिया में गंद होता नहीं। नाम ही है स्वर्ग तो फिर क्या, स्वर्ग कहने से ही मुख में पानी आ जाता है। देवता होकर गये हैं तब तो यादगार हैं। आत्मा अविनाशी है। कितने ढेर एक्टर्स हैं। कहाँ तो बैठे होंगे, जहाँ से पार्ट बजाने आते हैं। अभी कलियुग में कितने ढेर मनुष्य हैं। देवी-देवताओं का राज्य है नहीं। कोई को समझाना तो बहुत सहज है। एक धर्म की अभी फिर स्थापना हो रही है, बाकी सब खत्म हो जायेंगे। तुम जब स्वर्ग में थे तो और कोई धर्म नहीं था। चित्र में राम को बाण दे दिया है। वहाँ बाण आदि की तो बात नहीं। यह भी समझते हैं। जिसने जो सर्विस की है कल्प पहले, वही अभी करते हैं। जो बहुत सर्विस करते हैं, बाप को भी बहुत प्यारे लगते हैं। लौकिक बाप के बच्चे भी जो अच्छी रीति पढ़ते हैं, उन पर बाप का प्यार जास्ती रहता है। जो लड़ते खाते रहेंगे तो उनको थोड़ेही प्यार करेंगे, सर्विस करने वाले बहुत प्यारे लगते हैं।

एक कहानी है – दो बिल्ले लड़े, माखन कृष्ण खा गया। सारे विश्व की बादशाही रूपी माखन तुमको मिलता है। तो अब ग़फलत नहीं करनी है। छी-छी नहीं बनना है। इसके पीछे राजाई मत गंवाओ। बाप के डायरेक्शन मिलते हैं, याद नहीं करेंगे तो पाप का बोझा चढ़ता जायेगा, फिर बहुत सजायें खानी पड़ेंगी। ज़ार-ज़ार रोयेंगे। 21 जन्म की बादशाही मिलती है। इसमें फेल हुए तो बहुत रोयेंगे। बाप कहते हैं न पियरघर, न ससुरघर को याद करना है। भविष्य नये घर को ही याद करना है।

बाप समझाते हैं कोई को देख लट्टू नहीं बन जाना है। फूल बनना है। देवतायें फूल थे, कलियुग में कांटे थे। अभी तुम संगम पर फूल बन रहे हो। किसको दु:ख नहीं देना है। यहाँ ऐसे बनेंगे तब सतयुग में जायेंगे। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार :

1) अन्तकाल में एक बाप के सिवाए दूसरा कोई याद न आये उसके लिए इस दुनिया में किसी से भी दिल नहीं लगानी है। छी-छी शरीरों से प्यार नहीं करना है। कलियुगी बन्धन तोड़ देने हैं।

2) विशाल बुद्धि बन निडर बनना है। पुण्य आत्मा बनने के लिए कोई भी पाप अब नहीं करना है। पेट के लिए झूठ नहीं बोलना है। चावल मुट्ठी सफल कर सच्ची-सच्ची कमाई जमा करनी है, अपने ऊपर रहम करना है।

वरदान:-

एक परमात्म लगन में रहना ही तपस्या है। इस तपस्या का बल ही स्वयं को और विश्व को सदा के लिए निर्विघ्न बना सकता है। निर्विघ्न रहना और निर्विघ्न बनाना ही आपकी सच्ची सेवा है, जो अनेक प्रकार के विघ्नों से सर्व आत्माओं को मुक्त कर देती है। ऐसे सेवाधारी बच्चे तपस्या के आधार पर बाप से जीवनमुक्ति का वरदान लेकर औरों को दिलाने के निमित्त बन जाते हैं।

स्लोगन:-

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