04 August 2022 HINDI Murli Today | Brahma Kumaris
Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi
3 August 2022
Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.
Brahma Kumaris
आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन। Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. Source: Official Murli blog to read and listen daily murlis. ➤ पढ़े: मुरली का महत्त्व
“मीठे बच्चे - तुम्हें बाप समान रूप बसन्त बनना है, ज्ञान योग को धारण कर फिर आसामी देखकर दान करना है''
प्रश्नः-
कौन सी रसम द्वापर से चली आती है लेकिन संगम पर बाप उस रसम को बन्द करवा देते हैं?
उत्तर:-
द्वापर से पांव पड़ने की रसम चली आती है। बाबा कहते यहाँ तुम्हें किसी को भी पांव पड़ने की दरकार नहीं। मैं तो अभोक्ता, अकर्ता, असोचता हूँ। तुम बच्चे तो बाप से भी बड़े हो क्योंकि बच्चा बाप की पूरी जायदाद का मालिक होता है। तो मालिकों को मैं बाप नमस्कार करता हूँ। तुम्हें पांव पड़ने की जरूरत नहीं। हाँ छोटे बड़ों का रिगार्ड तो रखना ही पड़ता है।
♫ मुरली सुने (audio)➤
गीत:-
जो पिया के साथ है…
ओम् शान्ति। बरसात तो हर वर्ष पड़ती है। वह है पानी की बरसात, यह है ज्ञान की बरसात – जो कल्प-कल्प होती है। यह है पतित दुनिया नर्क। इसे विषय सागर भी कहा जाता है, जिस विष अर्थात् काम अग्नि से भारत काला हो गया है। बाप कहते हैं मैं ज्ञान सागर ज्ञान वर्षा से गोरा बनाता हूँ। इस रावण राज्य में सब काले हो गये हैं, सबको फिर पवित्र बना देता हूँ। मूलवतन में कोई पतित आत्मा नहीं रहती है। सतयुग में भी कोई पतित नहीं रहते हैं। अभी यह है पतित दुनिया। तो सबके ऊपर ज्ञान वर्षा चाहिए। ज्ञान वर्षा से ही फिर सारी दुनिया पवित्र बन जाती है। दुनिया यह नहीं जानती कि हम कोई काले पतित हो गये हैं। सतयुग में कोई पतित होता नहीं। सारी दुनिया ही पवित्र है। वहाँ पतित का नाम निशान नहीं रहता, इसलिए विष्णु को क्षीरसागर में दिखाते हैं। उसका अर्थ भी मनुष्य नहीं जानते। तुम समझते हो विष्णु के दो रूप यह लक्ष्मी-नारायण ही हैं। कहते हैं वहाँ घी की नदियां बहती हैं तो जरूर क्षीरसागर चाहिए। मनुष्य तो विष्णु भगवान कह देते हैं। तुम विष्णु को भगवान नहीं कह सकते। विष्णु देवताए नम:, ब्रह्मा देवताए नम: कहते हैं। विष्णु को भगवान नम: नहीं कहेंगे। शिव परमात्माए नम: शोभता है। अभी तुमको रोशनी मिली है। ऊंच ते ऊंच श्री श्री 108 रूद्र माला कहा जाता है। ऊपर में है फूल फिर मेरू दाना युगल कहा जाता है लक्ष्मी-नारायण को। ब्रह्मा सरस्वती को युगल नहीं कहा जाता, यह माला शुद्ध है ना। मेरू फिर लक्ष्मी-नारायण को कहा जाता है। प्रवृत्ति मार्ग है ना। विष्णु अर्थात् लक्ष्मी-नारायण की डिनायस्टी। सिर्फ लक्ष्मी-नारायण कहते हैं परन्तु उन्हों की सन्तान भी तो होंगे ना, यह किसको पता नहीं है। अभी तुम बच्चे विषय सागर से निकले हो, उनको कालीदह भी कहा जाता है। सतयुग में तो कुछ होता नहीं। नाग पर डांस की, यह किया। यह सब दन्त कथायें हैं। ब्लाइन्ड-फेथ से गुड़ियों की पूजा करते रहते हैं। बहुत देवियों की मूर्तियां बनाते हैं। लाखों करोड़ों रूपया खर्चा करके देवियों को श्रृंगारते हैं। कोई तो सच्चे सोने के जेवर आदि भी पहनाते हैं क्योंकि ब्राह्मणों को दान करना होता है। ब्राह्मण जो पूजा कराते हैं, बहुत खर्चा कराते हैं, धूमधाम से देवियों की झांकी निकालते हैं। देवियों को क्रियेट कर, पालना कर फिर उनका श्रृंगार कर डुबो देते हैं। इसको कहा जाता है गुड़ियों की पूजा। भाषण में तुम समझा सकते हो कैसे यह अन्धश्रद्धा की पूजा है। गणेश भी बहुत अच्छा करके बनाते हैं। अब सूंढ वाले तो कोई मनुष्य होते नहीं हैं। कितने चित्र बनाते हैं, पैसा खर्च करते हैं।
बाप बच्चों को समझाते हैं – तुमको हम कितना साहूकार एकदम विश्व का मालिक बनाते हैं। यह आत्माओं को परमात्मा बैठ समझाते हैं। यह भी जानते हैं – जिन्होंने कल्प पहले पढ़ा है और श्रीमत पर चले हैं वही चलेंगे। नहीं पढ़ेंगे, घूमेंगे फिरेंगे तो होंगे खराब। ऊंच पद पा नहीं सकेंगे। अभी तुम बच्चों को अविनाशी ज्ञान रत्नों से कितना साहूकार बना रहे हैं। वे लोग तो शिव और शंकर का अर्थ नहीं जानते। शंकर के आगे जाकर कहते हैं झोली भर दे, परन्तु शंकर तो झोली भरते नहीं हैं। अभी बच्चों को बाप अविनाशी ज्ञान रत्न देते हैं। वह धारण करने हैं। एक-एक रत्न लाखों रूपये का है। तो अच्छी रीति धारण कर और धारण कराना है, दान करना पड़े। बाबा ने समझाया है दान भी आसामी देखकर करो, जिनको सुनने की ही दिल नहीं, उनके पिछाड़ी टाइम वेस्ट मत करो। शिव के पुजारी हो वा देवताओं के पुजारी हों। ऐसे-ऐसे को कोशिश करके दान देना है, तो तुम्हारा टाइम वेस्ट न जाये। तुम हर एक को रूप-बसन्त भी बनना है ना। जैसे बाबा रूप बसन्त है ना। उनका रूप ज्योतिलिंगम् नहीं, स्टार मिसल है। परमपिता परम आत्मा परमधाम में रहने वाला है। परमधाम परे से परे है ना। आत्माओं को तो परमात्मा नहीं कहेंगे। वह परम आत्मा है। यहाँ जो दु:खी आत्मायें हैं, वह परमपिता को बुलाती हैं। उनको सुप्रीम आत्मा कहेंगे। वह बिन्दी मिसल है। ऐसा नहीं कि उनका कोई नाम रूप है ही नहीं। ज्ञान सागर है, पतित-पावन है। दुनिया तो नहीं जानती है। पूछो परमपिता परमात्मा कहाँ है? कहेंगे सर्वव्यापी है। अरे तुम उन्हें पतित-पावन कहते हो तो पावन कैसे बनायेंगे? कुछ भी समझते नहीं हैं, इसको अन्धेर नगरी कहा जाता है। तुमको तो बाबा ने हर बात से छुड़ा दिया है। बाबा अभोक्ता, अकर्ता और असोचता है। कभी भी पांव पर गिरने नहीं देते हैं परन्तु द्वापर से यह रसम चली आई है। छोटे बड़े का रिगार्ड रखते हैं। वास्तव में बच्चा वारिस बनता है – बाप की प्रापर्टी का। बाप कहते हैं यह मालिक हैं – हमारी जायदाद के। मालिक को नमस्ते करते हैं। भल मालिक बाप है परन्तु सच्चा मालिक तो बच्चा बन गया सारी प्रापर्टी का। तो तुमको ऐसा थोड़ेही कहेंगे पांव पड़ो, यह करो। नहीं। बच्चे मिलने आते हैं तो भी बाबा कहते हैं शिवबाबा को याद करके मिलने आना। आत्मा कहती है हम शिवबाबा की गोद लेता हूँ। मनुष्य इन बातों में मूँझते हैं। शिवबाबा इस ब्रह्मा द्वारा बच्चों को एडाप्ट करते हैं। तो यह माँ हो गई ना। तुम समझते हो हम माँ बाप से मिलने आये हैं। याद शिवबाबा को करना है। तो यह फर्स्ट माँ हो गई। वर्सा तुमको शिवबाबा से मिलता है। यह भी उनकी याद में रहता है। बाप जो समझाते हैं उसको धारण करना है। रूप बसन्त बनना है। योग में रहेंगे, ज्ञान धारण करेंगे और करायेंगे तो मेरे समान रूप बसन्त बन जायेंगे। फिर मेरे साथ चल पड़ेंगे। अभी तुम्हारी बुद्धि में ज्ञान है फिर जब स्वर्ग में आयेंगे तो ज्ञान पूरा हो जायेगा। फिर प्रालब्ध शुरू हो जायेगी। फिर नॉलेज का पार्ट पूरा हो जायेगा। यह है बड़ी गुप्त बातें, कोई मुश्किल समझते हैं। बुढ़ियों को भी बाप समझाते हैं कि एक को ही याद करो। दूसरा न कोई। तो बाप के पास जाकर फिर कृष्णपुरी में चली जायेंगी। यह है कंसपुरी। ऐसे नहीं कि कृष्णपुरी में कंस भी था, यह सब दन्त कथायें हैं। कृष्ण की माँ को 8 बच्चे दिखाते हैं। यह तो ग्लानी हो गई। कृष्ण को टोकरी में डाल जमुना पार ले गये। फिर जमुना नीचे चली गई। वहाँ तो यह बातें होती नहीं। अभी तुम बच्चों को रोशनी मिली है। बाप कहते हैं आगे जो कुछ सुना है वह भूल जाओ। बाप कहते हैं इन यज्ञ तप आदि करने से मेरे से कोई मिल नहीं सकते। आत्मा तमोप्रधान बनने से उनके पंख टूट जाते हैं। अभी इस सारी दुनिया को आग लगनी है। होलिका बनाते हैं तो आग में कोकी पकाते हैं। यह बात है आत्मा और शरीर की। सबके शरीर जल जाते हैं, बाकी आत्मा अमर बन जाती है। अभी तुम बच्चे समझ सकते हो सतयुग में इतने मनुष्य, इतने धर्म होते नहीं। सिर्फ एक ही आदि सनातन देवी-देवता धर्म है। भारत ही सबसे बड़े ते बड़ा तीर्थ स्थान है। काशी में बहुत जाकर बैठते थे, समझते हैं अभी बस काशीवास करेंगे। जहाँ शिव है वहाँ ही हम शरीर छोड़ेंगे। बहुत साधु लोग जाकर वहाँ बैठते हैं। सारा दिन यही गीत गाते रहते हैं – जय विश्वनाथ गंगा। अब शिव के द्वारा पानी की गंगा तो निकल नहीं सकती। शिव के दर पर मरना पसन्द करते हैं। अभी तो तुम प्रैक्टिकल में दर पर हो। कहाँ भी हो परन्तु शिवबाबा को याद करते रहो। जानते हो शिवबाबा हमारा बाप है, हम उनको याद करते-करते उनके पास चले जायेंगे। तो शिवबाबा पर इतना लव होना चाहिए ना। उनको कोई अपना बाप नहीं, टीचर नहीं और सबको है ही। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर का भी रचयिता वह बाप ही है ना। रचना से रचना को (भल फिर कोई भी हो) वर्सा मिल नहीं सकता। वर्सा हमेशा बच्चों को बाप से मिलता है। तुम बच्चे जानते हो हम ज्ञान सागर बाप के पास आये हैं। बाप अभी ज्ञान की वर्षा बरसाते हैं। तुम अभी पावन बन रहे हो। बाकी तो सब अपना-अपना हिसाब चुक्तू कर अपने-अपने धाम में चले जायेंगे। मूलवतन में आत्माओं का झाड़ है। यहाँ भी साकारी झाड़ है। वहाँ है रूद्र माला, यहाँ है विष्णु की माला। फिर छोटी-छोटी बिरादरियां निकलती आती हैं। बिरादरियां निकलते-निकलते झाड़ बड़ा हो जाता है। अभी फिर सबको वापिस घर जाना है। फिर देवी-देवता धर्म को राज्य करना है। अभी तुम मनुष्य से देवता विश्व का मालिक बन रहे हो तो बहुत खुशी होनी चाहिए कि भगवान हमको पढ़ाते हैं। राजयोग और ज्ञान से राजाओं का राजा बनाते हैं। नर से नारायण, नारी से लक्ष्मी बनाते हैं। सूर्यवंशी फिर चन्द्रवंशी में भी आयेंगे। बाबा रोज़ समझाते, रोशनी देते रहते हैं।
तुम बादल सागर के पास आते हो भरने लिए। भरकर फिर जाकर बरसना है। भरेंगे नहीं तो राजाई पद नहीं पायेंगे, प्रजा में चले जायेंगे। कोशिश कर जितना हो सके बाप को याद करना है। यहाँ तो कोई किसको, कोई किसको याद करते रहते हैं, अथाह नाम हैं। बाप आकर कहते हैं वन्दे मातरम्। दिखाते भी हैं – द्रोपदी के चरण दबाये। बाबा के पास बुढ़ियाँ आती हैं तो बाबा उन्हों को कहते हैं बच्ची थक गई हो? अब बाकी थोड़े रोज़ हैं। तुम घर बैठे शिवबाबा को और वर्से को याद करो। जितना याद करेंगे उतना विकर्माजीत बनेंगे। आप समान औरों को नहीं बनायेंगे तो प्रजा कैसे बनेगी। बहुत मेहनत करनी है। धारण कर फिर औरों को भी आप समान बनाना है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार :
1) हर बात में अपना समय सफल करना है। दान भी आसामी (पात्र) देखकर करना है। जो सुनना नहीं चाहते हैं उनके पीछे टाइम वेस्ट नहीं करना है। बाप के और देवताओं के भक्तों को ज्ञान देना है।
2) अविनाशी ज्ञान रत्नों को धारण कर साहूकार बनना है। पढ़ाई जरूर पढ़नी है। एक एक रत्न लाखों रूपयों का है, इसलिए इसे धारण करना और कराना है।
वरदान:-
सबसे सहज और निरन्तर याद का साधन है-सदा बाप के साथ का अनुभव हो। साथ की अनुभूति याद करने की मेहनत से छुड़ा देती है। जब साथ है तो याद रहेगी ही लेकिन ऐसा साथ नहीं कि सिर्फ साथ में बैठा है लेकिन साथी अर्थात् मददगार है। साथ वाला कभी भूल भी सकता है लेकिन साथी नहीं भूलता। तो हर कर्म में बाप ऐसा साथी है जो मुश्किल को भी सहज करने वाला है। ऐसे साथी के साथ का सदा अनुभव होता रहे तो सिद्धि स्वरूप बन जायेंगे।
स्लोगन:-
मातेश्वरी जी के अनमोल महावाक्य
हम जो भी कुछ इस नज़र से देखते हैं, जानते हैं अब कलियुग की अन्त है और सतयुगी दैवी दुनिया की स्थापना हो रही है। हमारी नज़रों में यह कलियुगी दुनिया खत्म हुई पड़ी है। जैसे गीता में भगवान के महावाक्य है – बच्चे, यह जो गुरु गोसाई आदि देखते हो यह सब मरे ही पड़े हैं। वैसे हम समझते हैं इतने सारे जो मनुष्य सम्प्रदाय हैं वो सब आइरन एज तक पहुँच चुके हैं तब ही परमात्मा के महावाक्य हैं, मैं इस आसुरी दुनिया का विनाश कर दैवी सृष्टि की स्थापना करता हूँ, तभी हम कह सकते हैं कि सब मरे ही पड़े हैं। तो अपना इस दुनिया से कोई भी कनेक्शन नहीं है। कहते हैं पुरानी दुनिया न जीती देखो, नई दुनिया के लिये सप्ताह कोर्स करो क्योंकि नई दुनिया की स्थापना होगी अर्थात् जीते रहेंगे तो अपने लिये यह दुनिया है ही नहीं। भल मनुष्य समझते हैं हम अच्छे कर्म करेंगे, दान पुण्य करेंगे तो फिर से आकर इस दुनिया में भोगेंगे। लेकिन यह जो हम जान चुके हैं कि यह दुनिया अब खत्म होने वाली है। तो इस विनाशी दुनिया की प्रालब्ध ही विनाशी है। वो जन्म जन्मान्तर नहीं चलेगी, अब देखो हमारी नज़र और दुनिया की नज़र में कितना फर्क है। अब यह निश्चय भी तब बैठता है जब यह निश्चय हो कि हमें पढ़ाने वाला कौन है? अच्छा – ओम् शान्ति।
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