03 October 2021 HINDI Murli Today | Brahma Kumaris

03 October 2021 HINDI Murli Today | Brahma Kumaris

Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi

2 October 2021

Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.

Brahma Kumaris

आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन।  Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. SourceOfficial Murli blog to read and listen daily murlis. पढ़े: मुरली का महत्त्व

‘वाचा' और ‘कर्मणा' - दोनों शक्तियों को जमा करने की ईश्वरीय स्कीम

♫ मुरली सुने (audio)➤

आज रूहानी शमा अपने रूहानी परवानों को देख रहे हैं। चारों ओर के परवाने शमा के ऊपर फिदा अर्थात् कुर्बान हो गये हैं। कुर्बान वा फिदा होने वाले अनेक परवाने हैं लेकिन कुर्बान होने के बाद शमा के स्नेह में ‘शमा समान’ बनने में, कुर्बानी करने में नम्बरवार हैं। वास्तव में कुर्बान होते ही हैं दिल के स्नेह के कारण। ‘दिल का स्नेह’ और ‘स्नेह’ – इसमें भी अन्तर है। स्नेह सभी का है, स्नेह के कारण कुर्बान हुए हैं। ‘दिल के स्नेही’ बाप के दिल की बातों को वा दिल की आशाओं को जानते भी हैं और पूर्ण करते हैं। दिल के स्नेही दिल की आशायें पूर्ण करने वाले हैं। दिल के स्नेही अर्थात् जो बाप के दिल ने कहा वह बच्चों के दिल में समाया। और जो दिल में समाया वह कर्म में स्वत: ही होगा। स्नेही आत्माओं के कुछ दिल में समाता है, कुछ दिमाग में समाता है। जो दिल में समाता है, वह कर्म में लाते हैं; जो दिमाग में समाता है उसमें सोच चलता है कि कर सकेंगे वा नहीं, करना तो है, समय पर हो ही जायेगा। ऐसे सोच चलने के कारण सोच तक ही रह जाता है, कर्म तक नहीं होता।

आज बापदादा देख रहे थे कि कुर्बान जाने वाले तो सभी हैं। अगर कुर्बान नहीं जाते तो ब्राह्मण नहीं कहलाते। लेकिन बाप के स्नेह के पीछे जो बाप ने कहा वह करने के लिए कुर्बानी करनी पड़ती अर्थात् अपनापन, चाहे अपनेपन में अभिमान हो वा कमजोरी हो – दोनों का त्याग करना पड़ता है, इसको कहते हैं कुर्बानी। कुर्बान होने वाले बहुत हैं लेकिन कुर्बानी करने के लिए हिम्मत वाले नम्बरवार हैं।

आज बापदादा सिर्फ एक मास की रिजल्ट देख रहे थे। इसी सीजन में विशेष बापदादा ने ‘बाप समान’ बनने का भिन्न-भिन्न रूप से कितनी बार इशारा दिया है और बापदादा की विशेष यही दिल की श्रेष्ठ आशा है। इतना खजाना मिला, वरदान मिले! वरदान के लिए भाग-भाग कर आये। बाप को भी खुशी है कि बच्चे स्नेह से मिलने आते हैं, वरदान ले खुश होते हैं। लेकिन बाप के दिल की आश पूर्ण करने वाले कौन? जो बाप ने सुनाया उसको कर्म में कहाँ तक लाया? मन्सा, वाचा, कर्मणा – तीनों की रिजल्ट कहाँ तक समझते हो? शक्तिशाली मन्सा, सम्बन्ध-सम्पर्क में कहाँ तक आई? सिर्फ अपने आप बैठ मनन किया- यह स्वउन्नति के लिए बहुत अच्छा है और करना ही है। लेकिन जिन श्रेष्ठ आत्माओं की श्रेष्ठ मन्सा अर्थात् संकल्प शक्तिशाली हैं, शुभ-भावना, शुभ-कामना वाले हैं। मन्सा शक्ति का दर्पण क्या है? दर्पण है बोल और कर्म। चाहे अज्ञानी आत्मायें, चाहे ज्ञानी आत्मायें – दोनों के सम्बन्ध-सम्पर्क में बोल और कर्म दर्पण हैं। अगर बोल और कर्म शुभ-भावना, शुभ-कामना वाले नहीं हैं तो मन्सा शक्ति का प्रत्यक्षस्वरूप कैसे समझ में आयेगा? जिसकी मन्सा शक्तिशाली वा शुभ है, उनकी वाचा और कर्मणा स्वत: ही शक्तिशाली शुद्ध होगी, शुभ-भावना वाली होगी। मन्सा शक्तिशाली अर्थात् याद की शक्ति भी श्रेष्ठ होगी, शक्तिशाली होगी, सहजयोगी होंगे। सिर्फ सहज योगी भी नहीं लेकिन सहज कर्मयोगी होंगे।

बापदादा ने देखा – याद को शक्तिशाली बनाने में मैजारिटी बच्चों का अटेन्शन है, याद को सहज और निरन्तर बनाने के लिए उमंग-उत्साह है। आगे बढ़ भी रहे हैं और बढ़ते ही रहेंगे क्योंकि बाप से स्नेह अच्छा है, इसलिए याद का अटेन्शन अच्छा है और याद का आधार है ही ‘स्नेह’। बाप से रूहरिहान करने में भी सब अच्छे हैं। कभी-कभी थोड़ी आंख दिखाते भी हैं, वह भी तब जब आपस में थोड़ा बिगड़ते हैं। फिर बाप को उल्हना देते हैं कि आप क्यों नहीं ठीक करते? फिर भी वह स्नेह भरी मुहब्बत की ऑख है। लेकिन जब संगठन में आते, कर्म में आते, कारोबार में आते, परिवार में आते तो संगठन में बोल अर्थात् वाचा शक्ति इसमें व्यर्थ ज्यादा दिखाई देता है।

वाणी की शक्ति व्यर्थ जाने के कारण वाणी में जो बाप को प्रत्यक्ष करने का जौहर वा शक्ति अनुभव करानी चाहिए, वह कम होता है। बातें अच्छी लगती हैं, वह दूसरी बात है। बाप की बातें रिपीट करते हो तो वह जरूर अच्छी होंगी। लेकिन वाचा की शक्ति व्यर्थ जाने के कारण शक्ति जमा नहीं होती है, इसलिए बाप को प्रत्यक्ष करने की आवाज बुलन्द होने में अभी देरी हो रही है। साधारण बोल ज्यादा हैं। ‘अलौकिक बोल हों, फरिश्तों के बोल हों’। अभी इस वर्ष इस पर अन्डरलाइन करना। जैसे ब्रह्मा बाप को देखा – फरिश्तों के बोल थे, कम बोल और मधुर बोल। जिस बोल का फल निकले, वह है यथार्थ बोल और जिस बोल का कोई फल नहीं, वह है व्यर्थ। चाहे कारोबार का फल हो, कारोबार के लिए भी बोलना तो पड़ता है ना, वह भी लम्बा नहीं करो। अभी शक्ति को जमा करना है। जैसे ‘याद’ से मन्सा की शक्ति जमा करते हो, साइलेन्स में बैठते हो तो ‘संकल्प-शक्ति’ जमा करते हो। ऐसे वाणी की शक्ति भी जमा करो।

हंसी की बात सुनाते हैं – बापदादा के वतन में सबके जमा की भण्डारियाँ हैं। आपके सेवाकेन्द्र में भी भण्डारियाँ हैं ना। बाप के वतन में बच्चों की भण्डारी है। हर एक सारे दिन में मन्सा, वाचा, कर्मणा – तीनों शक्तियाँ बचत कर जमा करते हैं, वह है भण्डारी। मन्सा शक्ति कितनी जमा की, वाचा शक्ति, कर्मणा शक्ति कितनी जमा की – इसका सारा पोतामेल है। आप भी खर्चे और बचत का पोतामेल भेजते हो ना। तो बापदादा ने यह जमा की भण्डारियाँ देखी। तो क्या निकला होगा? जमा का खाता कितना निकला होगा? हर एक की रिजल्ट तो अपनी-अपनी है। भण्डारियाँ भरी हुई तो बहुत थी लेकिन चिल्लर ( रेज़गारी) ज्यादा थी। छोटे बच्चे भण्डारी में चिल्लर जमा करते हैं तो भण्डारी कितनी भारी हो जाती है! तो वाचा की रिजल्ट में विशेष यह ज्यादा देखा। जैसे याद के ऊपर अटेन्शन है, वैसे वाचा के ऊपर इतना अटेन्शन नहीं है। तो इस वर्ष वाचा और कर्मणा – इन दोनों शक्तियों को जमा करने की स्कीम (योजना) बनाओ। जैसे गवर्मेन्ट भी भिन्न-भिन्न विधि से बचत की स्कीम बनाती है ना। ऐसे, इसमें मूल मन्सा है – यह तो सब जानते हैं। लेकिन मन्सा के साथ-साथ विशेष वाचा और कर्मणा – यह सम्बन्ध-सम्पर्क में स्पष्ट दिखाई देती है। मन्सा फिर भी गुप्त है लेकिन यह प्रत्यक्ष दिखाई देने वाली है। बोल में जमा करने का साधन है – ‘कम बोलो और मीठा बोलो, स्वमान से बोलो’। जैसे ब्रह्मा बाप ने छोटे अथवा बड़ों को स्वमान के बोल से अपना बनाया। इस विधि से जितना आगे बढ़ेंगे, उतना विजय माला जल्दी तैयार होगी। तो इस वर्ष क्या करना है? सेवा के साथ विशेष यह शक्तियाँ जमा करते हुए सेवा करनी है।

सेवा के प्लैन्स तो सभी ने अच्छे ते अच्छे बनाये हैं और अभी तक जो प्लैन प्रमाण सेवा कर रहे हैं, चारों ओर – चाहे भारत में, चाहे विदेश में, अच्छी कर भी रहे हैं और करने वाले भी हैं। जैसे सेवा में एक दो से अच्छे ते अच्छी रिजल्ट निकालने की शुभ-भावना से आगे बढ़ रहे हो, ऐसे सेवा में संगठित रूप में सदा सन्तुष्ट रहने और सन्तुष्ट करने का विशेष संकल्प – यह भी सदा साथ-साथ रहे क्योंकि एक ही समय तीन प्रकार की सेवा साथ-साथ होती है। एक – अपनी सन्तुष्टता, यह है स्व की सेवा। दूसरी – संगठन में सन्तुष्टता, यह है परिवार की सेवा। तीसरी – भाषा द्वारा वा किसी भी विधि द्वारा विश्व के आत्माओं की सेवा। एक ही समय पर तीन सेवा होती हैं। कोई भी प्रोग्राम बनाते हो तो उसमें तीनों सेवा समाई हुई हैं। जैसे विश्व के सेवा की रिजल्ट वा विधि अटेन्शन में रखते हो, ऐसे दोनों सेवायें ‘स्व’ और ‘संगठन’ की – तीनों ही निर्विघ्न हों, तब कहेंगे सेवा की नम्बरवन सफलता। तीनों सफलता साथ होना ही नम्बर लेना है। इस वर्ष तीनों सेवाओं में सफलता साथ-साथ हो – यह नगाड़ा बजे। अगर एक कोने में नगाड़ा बजता है तो कुम्भकरणों के कानों तक नहीं पहुँचता है। जब चारों ओर यह नगाड़ा बजेगा, तब सभी कुम्भकरण जागेंगे। अभी एक जागता है तो दूसरा सोता है, दूसरा जागता है तो तीसरा सोता है। थोड़ा जागते भी हैं तो ‘अच्छा-अच्छा’ करके फिर सो जाते हैं। लेकिन जाग जाएं और मुख से वा मन से ‘अहो प्रभू!’ कहें और मुक्ति का वर्सा लेवें, तब समाप्ति हो। जागेंगे तब तो मुक्ति का वर्सा लेंगे। तो समझा, क्या करना है? एक दो के सहयोगी बनो। दूसरे के बचाव में अपना बचाव अर्थात् बचत हो जायेगी।

सेवा के प्लैन में जितना सम्पर्क में समीप लाओ, उतना सेवा की प्रत्यक्ष रिजल्ट दिखाई देगी। सन्देश देने की सेवा तो करते आये हो, करते रहना लेकिन विशेष इस वर्ष सिर्फ सन्देश नहीं देना, सहयोगी बनाना है अर्थात् सम्पर्क में समीप लाना है। सिर्फ फार्म भरा दिया – यह तो चलता रहता है लेकिन इस वर्ष आगे बढ़ो। फार्म भराओ लेकिन फार्म भरने तक नहीं छोड़ दो, सम्बन्ध में लाना है। जैसा व्यक्ति वैसे सम्पर्क में लाने के प्लैन्स बनाओ। चाहे छोटे-छोटे प्रोग्राम करो लेकिन लक्ष्य यह रखो। सहयोगी सिर्फ एक घण्टे के लिए वा फार्म भरने के समय तक के लिए नहीं बनाना है लेकिन सहयोग द्वारा उसको समीप लाना है। सम्पर्क में, सम्बन्ध में लाओ। तो आगे चल सेवा का रूप परिवर्तन होगा। आपको अपने लिए नहीं करना पड़ेगा। आपकी तरफ से सम्बन्ध में आने वाले बोलेंगे, आपको सिर्फ आशीर्वाद और दृष्टि देनी पड़ेगी। जैसे आजकल शंकराचार्य को कुर्सी पर बिठाते हैं, वैसे आपको पूज्य की कुर्सी पर बिठायेंगे, चाँदी की नहीं। धरनी तैयार करने वाले निमित्त बनेंगे और आपको सिर्फ दृष्टि से बीज डालना है, दो आशीर्वाद के बोल बोलना है तब तो प्रत्यक्षता होगी। आपमें बाप दिखाई देगा और बाप की दृष्टि, बाप के स्नेह की अनुभूति लेते ही प्रत्यक्षता के नारे लगने शुरू हो जायेंगे।

अभी सेवा की गोल्डन जुबली तो पूरी कर ली। अभी और सेवा करेंगे और आप देख-देख हर्षित होते रहेंगे। जैसे, पोप क्या करता है? इतनी बड़ी सभा के बीच दृष्टि दे आशीर्वाद के बोल बोलते। लम्बा-चौड़ा भाषण करने वाले दूसरे निमित्त बनेंगे। आप कहो कि हमें बाप ने सुनाया है, उसके बदले दूसरे कहेंगे – इन्होंने जो सुनाया, वह बाप का है, और कोई है ही नहीं। तो धीरे-धीरे ऐसे हैण्डस तैयार होंगे। जैसे सेवाकेन्द्र सम्भालने के लिए हैण्डस तैयार हुए हैं ना, ऐसे स्टेज पर आपकी तरफ से दूसरे बोलने वाले, अनुभव करके बोलने वाले निकलेंगे। सिर्फ महिमा करने वाले नहीं, ज्ञान की गुह्य प्वाइन्ट को स्पष्ट करने वाले, परमात्म-ज्ञान को सिद्ध करने वाले – ऐसे निमित्त बनेंगे। लेकिन उसके लिए ऐसे-ऐसे लोगों को स्नेही, सहयोगी और सम्पर्क में लाते सम्बन्ध में लाओ। इस सारे कार्यक्रम का लक्ष्य ही यह है कि ऐसे सहयोगी बनाओ जो स्वयं आप ‘माइट’ बन जाओ और वह ‘माइक’बन जायें। इस वर्ष के सहयोग की सेवा का लक्ष्य ‘माइक’ तैयार करने हैं जो अनुभव के आधार से आपके या बाप के ज्ञान को प्रत्यक्ष करें। जिनका प्रभाव स्वत: ही औरों के ऊपर सहज पड़ता हो, ऐसे माइक तैयार करो। समझा, सेवा का उद्देश्य क्या है, इतने जो प्रोग्राम्स बनायें हैं उसका मक्खन क्या निकलेगा? खूब सेवा करो लेकिन इस वर्ष सन्देश के साथ-साथ यह एड करो। नज़र में रखो – कौन-कौन ऐसे पात्र हैं और उसको समय प्रति समय भिन्न-भिन्न विधि से सम्पर्क में लाओ। ऐसे नहीं – एक प्रोग्राम किया, फिर दूसरा ऊपर से किया, तीसरा ऊपर से किया और पहले वाले वहाँ ही रह गये, तीसरे आ गये। यह भी जमा की शक्ति प्रयोग में लानी पड़ेगी। हर प्रोग्राम से जमा करते जाओ। लास्ट में ऐसे सम्बन्ध-सम्पर्क वालों की माला बन जाये। समझा? बाकी क्या रहा? मिलने का प्रोग्राम।

इस वर्ष बापदादा 6 मास के सेवा की रिजल्ट देखना चाहते हैं। सेवा में जो भी प्लैन्स बनाये हैं, वह चारों ओर एक दो के सहयोगी बन खूब चक्र लगाओ। सभी छोटे-बड़ों को उमंग-उत्साह में लाकर तीनों प्रकार की सेवा में आगे बढ़ाओ इसलिए बापदादा ने इस वर्ष में पूरा रात को दिन बनाकर सेवा दे दी। अब तीनों प्रकार की सेवा का फल खाने का यह वर्ष है। आने का नहीं है, फल खाने का है। इस वर्ष आने की नूँध नहीं है। सकाश तो बाप की सदा ही साथ है। जो ड्रामा की नूँध है वह बता दी। ड्रामा की मंजूरी को मंजूर करना ही पड़ता है। सेवा खूब करो। 6 मास में ही रिजल्ट मालूम पड़ जायेगी। बाप की आशाओं को पूर्ण करने का प्लैन बनाओ। जहाँ भी देखो, जिसको भी देखो – हर एक का संकल्प, बोल और कर्म बाप की आशाओं के दीप जगाने वाले हों। पहले मधुबन में यह एग्जैम्पल दिखाओ। बचत की स्कीम का मॉडल पहले मधुबन में बनाओ। यह बैंक में जमा करो पहले। मधुबन वालों को भी वरदान तो मिल ही गये। बाकी जो रह गये हैं, उन्हों को भी इस वर्ष में जल्दी पूरा करेंगे क्योंकि बाप का स्नेह तो सभी बच्चों के साथ है। वैसे तो हर एक बच्चे के प्रति हर कदम में वरदान है। जो दिल के स्नेही आत्मायें हैं, वह चलते ही हर कदम वरदान से हैं। बाप का वरदान सिर्फ मुख से नहीं लेकिन दिल से भी है और दिल का वरदान सदा ही दिल में खुशी, उमंग-उत्साह का अनुभव कराता है। यह दिल के वरदान की निशानी है। दिल के वरदान को जो भी अपने दिल से धारण करते हैं, उसकी निशानी यही है वे सदा खुशी और उमंग-उत्साह से आगे बढ़ते रहते हैं। कभी भी किसी बातों में न अटकेंगे, न रूकेंगे, वरदान से उड़ते रहेंगे और बातें सब नीचे रह जायेंगी। साइड-सीन्स भी उड़ने वाले को रोक नहीं सकती।

आज बापदादा सभी बच्चों को जिन्होंने भी दिल से, अथक बन सेवा की, उन सब सेवाधारियों को इस सीजन के सेवा की मुबारक दे रहे हैं। मधुबन में आकर मधुबन के श्रृंगार बने, ऐसे श्रृंगार बनने वाले बच्चों को भी बापदादा मुबारक दे रहे हैं और निमित्त बनी हुई श्रेष्ठ आत्माओं को भी सदा अथक बन बाप समान अपनी सेवाओं से सर्व को रिफ्रेश करने की मुबारक दे रहे हैं और रथ को भी मुबारक है। चारों ओर के सेवाधारी बच्चों को मुबारक हो। निर्विघ्न बन बढ़ते रहे हो और बढ़ते रहना है। देश-विदेश के सभी बच्चों को आने की भी मुबारक है तो रिफ्रेश होने की भी मुबारक है। लेकिन सदा रिफ्रेश रहना, 6 मास तक नहीं रहना। रिफ्रेश में रिफ्रेश होने भले आना क्योंकि बाप का खजाना तो सभी बच्चों को सदा ही अधिकार है। बाप और खजाना सदा साथ है और सदा ही साथ रहेगा। सिर्फ जो अन्डरलाइन कराई, उसमें विशेष स्वयं को एग्जैम्पल बनाए एग्जाम में एक्स्ट्रा मार्क्स लेना। दूसरे को नहीं देखना, अपने को एग्जैम्पल बनाना। इसमें जो ओटे सो अर्जुन अर्थात् नम्बरवन। दूसरी बार बापदादा आवे तो फरिश्तों के कर्म, फरिश्तों के बोल, फरिश्तों के संकल्प धारण करने वाले सदा ही हर एक दिखाई दे। ऐसा परिवर्तन संगठन में दिखाई दे। हर एक अनुभव करे कि यह फरिश्तों के बोल, फरिश्तों के कर्म कितने अलौकिक हैं! यह परिवर्तन समारोह बापदादा देखना चाहते हैं। अगर हर एक सारे दिन के बोल अपने टेप करो तो बहुत अच्छी तरह से मालूम पड़ जायेगा। चेक करो तो मालूम पड़ जायेगा कि कितना व्यर्थ जाता है? मन की टेप में चेक करो, स्थूल टेप में नहीं। साधारण बोल भी व्यर्थ में जमा होता है। अगर 4 बोल के बजाए 24 बोल बोले तो 20 किसमें गये? एनर्जी जमा करो, तब आपके दो बोल आशीर्वाद के, एक घण्टे के भाषण का काम करेंगे। अच्छा!

चारों ओर के सर्व कुर्बान जाने वाले रूहानी परवानों को, सर्व बाप समान बनने के दृढ़ संकल्प से आगे बढ़ने वाली विशेष आत्माओं को, सदा उड़ती कला द्वारा किसी भी प्रकार की साइडसीन को पार करने वाले डबल लाइट बच्चों को रूहानी शमा बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

वरदान:-

जैसे बाप में 100 प्रतिशत निश्चयबुद्धि हो, कोई कितना भी डगमग करने की कोशिश करे लेकिन हो नहीं सकते, ऐसे दैवी परिवार वा संसारी आत्माओं द्वारा भल कोई कैसा भी पेपर ले, क्रोधी बन सामना करे वा कोई इनसल्ट कर दे, गाली दे – उसमें भी डगमग हो नहीं सकते, इसमें सिर्फ हर आत्मा प्रति कल्याण की भावना हो, यह भावना उनके संस्कारों को परिवर्तन कर देगी। इसमें सिर्फ अधीर्य नहीं होना है, समय प्रमाण फल अवश्य निकलेगा – यह ड्रामा की नूंध है।

स्लोगन:-

 दैनिक ज्ञान मुरली पढ़े

रोज की मुरली अपने email पर प्राप्त करे Subscribe!

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top
Scroll to Top