03 August 2021 HINDI Murli Today | Brahma Kumaris

Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi

August 2, 2021

Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.

Brahma Kumaris

आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन।  Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. SourceOfficial Murli blog to read and listen daily murlis. पढ़े: मुरली का महत्त्व

“मीठे बच्चे - बापदादा की यादप्यार लेनी है तो सर्विसएबुल बनो, बुद्धि में ज्ञान भरपूर है तो वर्षा करो''

प्रश्नः-

कौन सा नशा भरे हुए बादलों को भी उड़ा कर ले जाता, बरसने नहीं देता है?

उत्तर:-

अगर फालतू देह-अभिमान का नशा आया तो भरे हुए बादल भी उड़ जायेंगे। बरसेंगे भी तो सर्विस के बदले डिस-सर्विस करेंगे। अगर बाबा से प्यार नहीं, उनसे योग नहीं तो ज्ञान होते हुए भी जैसे खाली हैं। ऐसे खाली बादल अनेकों का कल्याण कैसे करेंगे।

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ओम् शान्ति। बाकी थोड़े बादल बचे हैं। जैसे बरसात जब कम हो जाती है तो सागर के ऊपर बादल नहीं होते हैं, ठण्डे हो जाते हैं। वैसे यहाँ भी ठण्डे हो जाते हैं। बादल उनको कहेंगे जो रिफ्रेश हो जाकर वर्षा बरसाते हैं। अगर कोई बरसात नहीं करते तो उनको बादल थोड़ेही कहेंगे। यह हैं ज्ञान बादल। वह हैं पानी के बादल। ज्ञान के बादल आते हैं, जब सीज़न होती है। रिफ्रेश हो जाकर औरों को रिफ्रेश करते हैं। बादल भी नम्बरवार होते हैं। कोई तो बहुत जोर से बरसते हैं। बादलों का काम ही है बरसना और मुरझाये हुए पौधों को रिफ्रेश करना। जिनमें पूरा ज्ञान है वह छिपकर नहीं बैठते। उनको बाबा का डायरेक्शन भी नहीं चाहिए। हैं ही बादल। आते ही हैं भरकर बरसने के लिए। जहाँ देखें कलराठी जमीन है, तो जाकर सब्ज करना चाहिए। महारथी बच्चे तो सब सेन्टर्स को अच्छी रीति जानते हैं। कौन सा सेन्टर ठण्डा है? किस सेन्टर्स के बच्चों को जास्ती तूफान आते हैं? महारथी सर्विसएबुल अच्छी रीति जानते हैं। बाबा भी हमेशा कहते हैं सर्विसएबुल बच्चों को यादप्यार देना। अच्छे-अच्छे बादल सर्विस पर जायेंगे। प्रदर्शनी में भी कोई सब एकरस नहीं समझाते हैं। मुख्य बात ही यह है। गीता का भगवान निराकार परमपिता परमात्मा है, न कि साकारी श्रीकृष्ण। समझाने का बड़ा अच्छा ढंग चाहिए। सारा दिन यही ख्यालात रहने चाहिए कि सबको जाकर जगायें। सब घोर अन्धियारे में पड़े हैं। सबको प्रेम से समझाते रहो कि दो बाप हैं। एक हद का और दूसरा बेहद का। बेहद के बाप को ही पतित-पावन कहते हैं। अब तुम बच्चों को बुद्धि मिली है। दुनिया के मनुष्य देखने में भल भभके वाले हैं परन्तु हैं पत्थरबुद्धि। बाप खुद कहते हैं इन साधू नाम वालों का भी मुझे ही उद्धार करना है। वह भी रचता और रचना को नहीं जानते हैं। सतयुग से लेकर फिर यह ज्ञान प्राय: लोप हो जाता है। परन्तु यह किसको भी पता नहीं। शास्त्रों में यह ज्ञान है नहीं। उससे किसकी सद्गति हो नहीं सकती, गीता का मान कितना है, परन्तु वह तो है भक्ति मार्ग। बाप तो पतित-पावन है, वह बैठ राजयोग सिखलाते हैं। तो जरूर राजाई के लिए नई दुनिया चाहिए। बाप ही आकर राजयोग सिखलायेंगे। यह भी अभी तुमको मालूम पड़ा है, जिन्हों को कल्प पहले समझाया होगा, उनको ही अभी समझायेंगे फिर समझेंगे। यह लड़ाई कोई वह नहीं है। जैसे हमेशा चलती आई है। 8-10 वर्ष चलकर फिर बन्द हो जायेगी। ड्रामा अनुसार बाम्ब्स जो बने हैं वह कोई रखने के लिए नहीं हैं। पतित मनुष्यों का मौत होने बिगर सतयुग आयेगा नहीं। शान्ति कैसे स्थापन हो – यह भी समझाना पड़े। शान्ति स्थापन करना वा श्रेष्ठाचारी दुनिया बनाना, यह तो एक बाप का ही काम है। बाप कहते हैं और संग बुद्धि का योग तोड़ एक संग जोड़ना है। देह सहित जो भी कुछ देखने में आता है, इन सबसे तोड़ना है। अब हमको वापिस जाना है, तो घर को ही याद करना है। अभी तुम समझते हो यह है मृत्युलोक। हम अमरलोक में जाने के लिए अमर कथा सुन रहे हैं। देवताओं को कहा जाता है दैवीगुणों वाले मनुष्य। यहाँ तो एक भी हो न सके। कृष्ण के लिए भी कितनी ग्लानी लिख दी है। कुछ भी बुद्धि में नहीं आता।

अभी तुम बच्चों को अच्छी रीति पुरुषार्थ करना है, दैवीगुण धारण करने हैं। दैवीगुण किसको कहा जाता है – वह भी समझाया जाता है। सम्पूर्ण निर्विकारी जरूर बनना है। यह है मुख्य पहला गुण। जहाँ तहाँ तुम देखेंगे पवित्र के आगे अपवित्र माथा टेकते हैं। सतयुग में हैं ही पवित्र तो वहाँ मन्दिर होते नहीं। फिर जब पुजारी बनते हैं तो मन्दिर बनाते हैं, जो पावन थे वही पतित बनते हैं। यह है बहुत जन्मों के अन्त का जन्म। बाप कहते हैं – इस पुरानी दुनिया को, पुराने शरीर को भी भूलना है। इस पुरानी दुनिया को अब खत्म होना है। इसे खलास होने में देरी नहीं लगेगी। यह पुरानी दुनिया, धन, दौलत, माल-मिलकियत सब गई कि गई। थोड़े रोज़ बाकी हैं। दुनिया में थोड़ेही किसको पता है कि यह पुरानी दुनिया खत्म हो जायेगी। तुम सुनाते हो परन्तु जब विश्वास भी बैठे ना। भगवानुवाच, जब समझें तब बुद्धि में बैठे।

बाप तुम बच्चों को कहते हैं – अपने को आत्मा समझ मुझ बाप को याद करो। बच्चे जानते हैं बेहद का बाप हमको राजयोग सिखलाते हैं। वह है सब आत्माओं का बाप। सब ब्रदर्स हैं। स्वर्ग में सभी ब्रदर्स सुखी थे, कलियुग में सभी ब्रदर्स दु:खी हैं। सभी आत्मायें नर्कवासी हैं। सिर्फ आत्मा तो नहीं होगी ना। शरीर भी तो चाहिए ना। अब तुम बच्चों को आत्म-अभिमानी बनना है, इसमें ही मेहनत है। मासी का घर नहीं है। यह अवस्था पक्की तब हो जब पहले यह निश्चय हो कि परमपिता परमात्मा हमको पढ़ाते हैं। शिवबाबा आते ही हैं इस शरीर द्वारा पढ़ाने। हम भी शरीर द्वारा सुनते हैं, धारण करते हैं। संस्कारों अनुसार ही एक शरीर छोड़ दूसरा धारण करते हैं। जैसे बाबा लड़ाई वालों का मिसाल देते हैं। लड़ाई के संस्कार ले जाते हैं तो फिर उनमें ही आ जाते हैं। अब बाप के संस्कारों का भी तुमको मालूम है कि निराकार बेहद के बाप में क्या संस्कार हैं! वह मनुष्य सृष्टि का बीजरूप है। पतित-पावन, ज्ञान का सागर है। वही आकर पावन बनायेंगे। बाप कहते हैं – मामेकम् याद करो तो तुम्हारे जन्म-जन्मान्तर के विकर्म विनाश होंगे। नहीं तो बहुत सजायें खानी पड़ेंगी। पद कुछ भी नहीं मिलेगा।

अब बच्चे जानते हैं बाबा हमको सहज रास्ता बता देते हैं। कहते हैं मनमनाभव। यह अक्षर भी गीता में हैं, परन्तु इसका अर्थ नहीं समझते। बाप कहते हैं मामेकम् याद करो। देह सहित देह के सब धर्मों को छोड़ अपने को आत्मा समझ मुझ परमपिता परमात्मा को याद करो। याद को ही योग अग्नि कहा जाता है। योग कॉमन अक्षर है। गीता में भी है परन्तु सिर्फ कृष्ण का नाम डाल देने से घोर अन्धियारा कर दिया है। अब तुम समझाते हो तो कह देते हैं यह तुम्हारी कल्पना है। कुछ भी पता नहीं पड़ता है। उनको वर्सा तो लेना ही नहीं है। पहले तो जब यह समझें कि यह बेहद का बाप, बाप भी है, टीचर भी है, सतगुरू भी है, वह हमको पढ़ाते हैं। यह पक्का निश्चय चाहिए। नये आदमी को निश्चय बैठ जाए, असम्भव है। कोई-कोई नये-नये भी सेन्सीबुल होते हैं तो समझ जाते हैं। कोई तो यहाँ आने भी नहीं चाहते, कुछ भी समझते नहीं। जरा भी बुद्धि में नहीं आता। इतने ढेर बी.के. हैं जरूर इन्हों को बाप से वर्सा मिला होगा। वह फैमली हो गई। नाम ही लिखा हुआ है ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ, तो फैमली हुई ना। प्रजापिता ब्रह्मा की फैमली कितनी बड़ी है परन्तु यह बात किसी की बुद्धि में नहीं आ सकती। कोई पूछे आपकी एम आब्जेक्ट क्या है? बोलो, बाहर बोर्ड पर लिखा हुआ है – प्रजापिता ब्रह्माकुमार कुमारियाँ, तो फैमली हो गई। डाडे से वर्सा मिलता है। प्रजापिता ब्रह्मा मुख द्वारा शिवबाबा रचना रचते हैं। तो वह क्रियेटर ठहरा, स्वर्ग रचते हैं तो जरूर बच्चों को स्वर्ग का वर्सा देंगे। तो यह फैमली हुई ना। बाप बच्चे, बच्चियाँ और दादा है। ब्रह्मा भी है, शिव भी है। वह है रचयिता। निराकार है तो बच्चों को वर्सा कैसे देंगे। ब्रह्मा द्वारा वर्सा देते हैं। यह अच्छी रीति समझाना चाहिए। बोलो, यह तुम्हारे बाप का घर है। इनको कहते हैं रूद्र ज्ञान यज्ञ। हम ब्राह्मण हैं, बाप के सिवाए और कोई राजयोग सिखला न सके। गीता में भी है ना – मनमनाभव अर्थात् मामेकम् याद करो। तो हम उस एक बाप को ही याद करते हैं। भक्ति मार्ग में गाते हैं कि बाबा आप आयेंगे तो हम वारी जायेंगे, हम आपके बनेंगे। हम आत्मा इस देह को छोड़ आपके साथ चली जायेंगी। आपके बनेंगे तो जरूर आपके साथ भी जायेंगे। सगाई करते हैं तो साजन साथ ले जायेंगे ना। यह शिव साजन भी कहते हैं, हम तुमको इस दु:ख से छुड़ाए सुखधाम में ले चलेंगे। फिर अपने-अपने पुरूषार्थ अनुसार जाकर राजाई करेंगे, जो जितना ज्ञान धन धारण करेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे। छोटी-छोटी कुमारियाँ भी सर्विस कर रही हैं। उन्हों को ही बड़े-बड़े विद्वान, पण्डितों आदि को समझाना है, शौक होना चाहिए। कुश्ती होती है तो बड़ी-बड़ी चैलेन्ज देते हैं तो इनके साथ हम लड़ेंगे। सर्विसएबुल बच्चों को आराम से सोना नहीं चाहिए। आराम हराम है। जो भी अपने को महारथी समझते हैं, उन्हें सुख से सोना नहीं है। सर्विस पर चक्र लगाना चाहिए। आजकल बाबा प्रदर्शनियाँ बहुत बनवाते रहते हैं। बड़ों-बड़ों को निमन्त्रण भेज दो। अभी नहीं तो पीछे आ जायेंगे। साधू-सन्त महात्मा कोई भी हो, जगाते रहो, परन्तु बात करने वाला चाहिए महारथी। जिनका बाप से योग नहीं, प्यार नहीं वह तो जैसे खाली बादल हैं। वह क्या करेंगे! यह तो जानते हो पढ़े हुए के आगे अनपढ़ भरी ढोयेंगे। हर एक खुद को समझ सकते हैं – हम कहाँ तक पढ़ा हुआ हूँ। सर्विस करके दिखाता हूँ। अगर बादल भरा हुआ है और बरसे नहीं तो वह बादल ही क्या काम का। हर एक को अपनी समझ चाहिए। फालतू देह-अभिमान के नशे में रहेंगे तो ऊंच पद हमेशा के लिए गँवा देंगे। बाबा को सर्विस का कितना शौक है। गवर्मेन्ट को समझाना चाहिए तो हमको हाल दो। जहाँ हम यह रूहानी सेवा कर मनुष्य को देवता बना दें। बाप आये ही हैं राजयोग सिखाने लेकिन युक्तियुक्त समझाना चाहिए। जो भाषण ही नहीं जानते वह थोड़ेही समझा सकेंगे। ऊंच पद पा न सकें। पद वह पा सकेंगे जो सर्विस करेंगे। बड़ों-बड़ों को लिखो तो इस नॉलेज के बिगर भारत का वा दुनिया का कल्याण नहीं हो सकता। एज्युकेशन है मुख्य। इन लक्ष्मी-नारायण ने भी एज्युकेशन से ही पद पाया ना। अगले जन्म में राजयोग सीखे हैं। हम भी अभी यहाँ पढ़ रहे हैं। स्कूल में स्टूडेन्ट समझते हैं हम यह इम्तहान देकर फिर जाकर यह बनेंगे। यह तुमको नॉलेज मिलती है, वह इस दुनिया के लिए नहीं है। तुम भी पढ़ते हो भविष्य 21 जन्मों के लिए, प्रालब्ध बनाने के लिए। वह पढ़ते हैं इस जन्म के सुख के लिए। तो वह भी पढ़ना है और साथ-साथ यह भी शिक्षा सीखनी है, इसमें डरने की बात नहीं। स्प्रीचुअल नॉलेज क्यों नहीं लेनी चाहिए। चित्र लेकर जाए समझाना चाहिए। बोलो – नॉलेज सबके लिए बहुत जरूरी है, परन्तु बच्चे अजुन खड़े नहीं होते। नौकरी टोकरी में फॅसे हुए रहते हैं। बंधन-मुक्त हैं तो फिर सर्विस में लग जाना चाहिए। श्रीमत पर सब चलने वाले तो हैं नही। बीच में माया घोटाला मार देती है। कोई-कोई बच्चों को शौक बहुत है, परन्तु नशा नहीं चढ़ता कि हम जायें बहुतों का कल्याण करें। तो बाबा भी समझे जबकि बालिग हो गये तो घुटका क्यों खाना चाहिए! कह सकते हैं कि हमको तो भारत का उद्धार करना है। सच्ची सेवा कर मनुष्य को देवता बनाना है। बाबा को तो वन्डर लगता है, नशा नहीं चढ़ता इसलिए बाबा कहते हैं रजो बुद्धि हैं। चांस बहुत अच्छा है। ऐसे भी बहुत हैं जिनको नॉलेज का घमण्ड बहुत है परन्तु डिससर्विस बहुत करते हैं। यह तो गुड़ जाने गुड़ की गोथरी जाने। राहू का ग्रहण बैठ जाता है। ब्रहस्पति की दशा उतर राहू की बैठ जाती है। अभी-अभी देखो अच्छा चल रहा है। अभी-अभी देखो फिर ग्रहचारी बैठ जाती है, गिर पड़ते हैं। बच्चों को तो बहुत बहादुर होना है। पान का बीड़ा उठाना है। हम इस भारत को स्वर्गवासी बनाकर छोड़ेंगे। तुम्हारा धर्म है नर्कवासी को स्वर्गवासी बनाना, भ्रष्टाचारी को श्रेष्ठाचारी बनाना। बाबा नशा तो बहुत अच्छा चढ़ाते हैं परन्तु बच्चों में नम्बरवार चढ़ता है। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार :

1) बन्धनमुक्त बन भारत की सच्ची सेवा करनी है। रूहानी सेवा कर मनुष्य को देवता बनाना है। ज्ञान के घमण्ड में नहीं आना है। रूहानी नशे में रहना है।

2) निश्चयबुद्धि बन पहले अपनी अवस्था पक्की करनी है। देह सहित जो कुछ देखने में आता है, उनसे तोड़ना है और एक बाप के साथ जोड़ना है।

वरदान:-

कोई भी व्यर्थ संकल्प वा पुराने संस्कार देह-अभिमान के संबंध से हैं, आत्मिक स्वरूप के संस्कार बाप समान होंगे। जैसे बाप सदा विश्व कल्याणकारी, परोपकारी, रहमदिल, वरदाता….है, ऐसे स्वयं के संस्कार नेचुरल बन जाएं। संस्कार बनना अर्थात् संकल्प, बोल और कर्म स्वत: उसी प्रमाण चलना। जीवन में संस्कार एक चाबी हैं जिससे स्वत: चलते रहते हैं। फिर मेहनत करने की जरूरत नहीं रहती।

स्लोगन:-

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