02 March 2025 | HINDI Murli Today | Brahma Kumaris

Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi

1 March 2025

Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.

Brahma Kumaris

आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन।  Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. SourceOfficial Murli blog to read and listen daily murlis. पढ़े: मुरली का महत्त्व

“एक को प्रत्यक्ष करने के लिए एकरस स्थिति बनाओ, स्वमान में रहो, सबको सम्मान दो''

♫ मुरली सुने (audio)➤

आज बापदादा हर एक बच्चे के मस्तक में तीन भाग्य के सितारे चमकते हुए देख रहे हैं। एक परमात्म पालना का भाग्य, परमात्म पढ़ाई का भाग्य, परमात्म वरदानों का भाग्य। ऐसे तीन सितारे सभी के मस्तक बीच देख रहे हैं। आप भी अपने भाग्य के चमकते हुए सितारों को देख रहे हो? दिखाई देते हैं? ऐसे श्रेष्ठ भाग्य के सितारे सारे विश्व में और किसी के भी मस्तक में चमकते हुए नहीं नज़र आयेंगे। यह भाग्य के सितारे तो सभी के मस्तक में चमक रहे हैं, लेकिन चमक में कहाँ-कहाँ अन्तर दिखाई दे रहा है। कोई की चमक बहुत शक्तिशाली है, कोई की चमक मध्यम है। भाग्य विधाता ने भाग्य सभी बच्चों को एक समान दिया है। कोई को स्पेशल नहीं दिया है। पालना भी एक जैसी, पढ़ाई भी एक साथ, वरदान भी एक ही जैसा सबको मिला है। सारे विश्व के कोने-कोने में पढ़ाई सदा एक ही होती है। यह कमाल है जो एक ही मुरली, एक ही डेट और अमृतवेले का समय भी अपने-अपने देश के हिसाब से होते भी है एक ही, वरदान भी एक ही है। स्लोगन भी एक ही है। फ़र्क होता है क्या? अमेरिका और लण्डन में फ़र्क होता है? नहीं होता है। तो अन्तर क्यों?

अमृतवेले की पालना चारों ओर बापदादा एक ही करते हैं। निरन्तर याद की विधि भी सबको एक ही मिलती है, फिर नम्बर-वार क्यों? विधि एक और सिद्धि की प्राप्ति में अन्तर क्यों? बापदादा का चारों ओर के बच्चों से प्यार भी एक जैसा ही है। बापदादा के प्यार में चाहे पुरुषार्थ प्रमाण नम्बर में लास्ट नम्बर भी हो लेकिन बापदादा का प्यार लास्ट नम्बर में भी वही है। और ही प्यार के साथ लास्ट नम्बर में रहम भी है कि यह लास्ट भी फास्ट, फर्स्ट हो जाए। आप सभी जो दूर-दूर से पहुंचे हो, कैसे पहुंचे हो? परमात्म प्यार खींच के लाया है ना! प्यार की डोरी में खींच के आ गये। तो बापदादा का सबसे प्यार है। ऐसे समझते हो या क्वेश्चन उठता है कि मेरे से प्यार है या कम है? बापदादा का प्यार हर एक बच्चे से एक दो से ज्यादा है। और यह परमात्म प्यार ही सब बच्चों की विशेष पालना का आधार है। हर एक क्या समझते हैं – मेरा प्यार बाप से ज्यादा है कि दूसरे का प्यार ज्यादा है, मेरा कम है? ऐसे समझते हैं? ऐसे समझते हो ना कि मेरा प्यार है? मेरा प्यार है, है ना ऐसे? पाण्डव ऐसे है? हर एक कहेगा “मेरा बाबा”, यह नहीं कहेगा सेन्टर इन्चार्ज का बाबा, दादी का बाबा, जानकी दादी का बाबा, कहेंगे? नहीं। मेरा बाबा कहेंगे। जब मेरा कह दिया और बाप ने भी मेरा कह दिया, बस एक मेरा शब्द में ही बच्चे बाप के बन गये और बाप बच्चों का बन गया। मेहनत लगी क्या? मेहनत लगी? थोड़ी-थोड़ी? नहीं लगी? कभी-कभी तो लगती है? नहीं लगती? लगती है। फिर मेहनत लगती है तो क्या करते हो? थक जाते हो? दिल से, मुहब्बत से कहो “मेरा बाबा”, तो मेहनत मुहब्बत में बदल जायेगी। मेरा बाबा कहने से ही बाप के पास आवाज पहुंच जाता है और बाप एक्स्ट्रा मदद देते हैं। लेकिन है दिल का सौदा, जबान का सौदा नहीं है। दिल का सौदा है। तो दिल का सौदा करने में होशियार हो ना? आता है ना? पीछे वालों को आता है? तभी तो पहुंचे हो। लेकिन सबसे दूरदेशी कौन? अमेरिका? अमेरिका वाले दूरदेशी वाले हैं या बाप दूरदेशी है? अमेरिका तो इस दुनिया में है। बाप तो दूसरी दुनिया से आता है। तो सबसे दूरदेशी कौन? अमेरिका नहीं। सबसे दूरदेशी बापदादा है। एक आकार वतन से आता, एक परमधाम से आता, तो अमेरिका उसके आगे क्या है? कुछ भी नहीं।

तो आज दूरदेशी बाप इस साकार दुनिया के दूरदेशी बच्चों से मिल रहे हैं। नशा है ना? आज हमारे लिए बापदादा आये हैं! भारतवासी तो बाप के हैं ही लेकिन डबल विदेशियों को देख बापदादा विशेष खुश होते हैं। क्यों खुश होते हैं? बापदादा ने देखा है भारत में तो बाप आये हैं इसीलिए भारतवासियों को यह नशा एक्स्ट्रा है लेकिन डबल फॉरेनर्स से प्यार इसलिए है कि भिन्न-भिन्न कल्चर होते हुए भी ब्राह्मण कल्चर में परिवर्तन हो गये। हो गये ना? अभी तो संकल्प नहीं आता – यह भारत का कल्चर है, हमारा कल्चर तो और है? नहीं। अभी बापदादा रिजल्ट में देखते हैं, सब एक कल्चर के हो गये हैं। चाहे कहाँ के भी हैं, साकार शरीर के लिए देश भिन्न-भिन्न हैं लेकिन आत्मा ब्राह्मण कल्चर की है और एक बात बापदादा को डबल फॉरेनर्स की बहुत अच्छी लगती है, पता है कौनसी? (जल्दी सेवा करने लग गये हैं) और बोलो? (नौकरी भी करते हैं, सेवा भी करते हैं) ऐसे तो इण्डिया में भी करते हैं। इण्डिया में भी नौकरी करते हैं। (कुछ भी होता है तो सच्चाई से अपनी कमजोरी को बता देते हैं, स्पष्टवादी हैं) अच्छा, इण्डिया स्पष्टवादी नहीं है?

बापदादा ने यह देखा है कि चाहे दूर रहते हैं लेकिन बाप के प्यार के कारण प्यार में मैजारिटी पास हैं। भारत को तो भाग्य है ही लेकिन दूर रहते प्यार में सब पास हैं। अगर बापदादा पूछेगा तो प्यार में परसेन्टेज है क्या? बाप से प्यार की सबजेक्ट में परसेन्टेज है? जो समझते हैं प्यार में 100 परसेन्ट हैं वह हाथ उठाओ। (सभी ने हाथ उठाया) अच्छा – 100 परसेन्ट? भारत-वासी नहीं उठा रहे हैं? देखो, भारत को तो सबसे बड़ा भाग्य मिला है कि बाप भारत में ही आये हैं। इसमें बाप को अमेरिका पसन्द नहीं आई, लेकिन भारत पसन्द आया है। यह (अमेरिका की गायत्री बहन) सामने बैठी है इसलिए अमेरिका कह रहे हैं। लेकिन दूर होते भी प्यार अच्छा है। प्रॉब्लम आती भी है लेकिन फिर भी बाबा-बाबा कहके मिटा लेते हैं।

प्यार में तो बापदादा ने भी पास कर लिया और अभी किसमें पास होना है? होना भी है ना! हैं भी और होना भी है। तो वर्तमान समय के प्रमाण बापदादा यही चाहते हैं कि हर एक बच्चे में स्व-परिवर्तन के शक्ति की परसेन्टेज़, जैसे प्यार की शक्ति में सबने हाथ उठाया, सभी ने हाथ उठाया ना! इतनी ही स्व-परिवर्तन की तीव्र गति है? इसमें आधा हाथ उठेगा या पूरा? क्या उठेगा? परिवर्तन करते भी हो लेकिन समय लगता है। समय की समीपता के प्रमाण स्व-परिवर्तन की शक्ति ऐसी तीव्र होनी चाहिए जैसे कागज के ऊपर बिन्दी लगाओ तो कितने में लगती है? कितना समय लगता है? बिन्दी लगाने में कितना समय लगता है? सेकण्ड भी नहीं। ठीक है ना! तो ऐसी तीव्रगति है? इसमें हाथ उठायें क्या? इसमें आधा हाथ उठेगा। समय की रफ्तार तेज़ है, स्व-परिवर्तन की शक्ति ऐसे तीव्र होनी है और जब परिवर्तन कहते हैं तो परिवर्तन के आगे पहले स्व शब्द सदा याद रखो। परिवर्तन नहीं, स्व-परिवर्तन। बापदादा को याद है कि बच्चों ने बाप से एक वर्ष के लिए वायदा किया था कि संस्कार परिवर्तन से संसार परिवर्तन करेंगे। याद है? वर्ष मनाया था – संस्कार परिवर्तन से संसार परिवर्तन। तो संसार की गति तो अति में जा रही है। लेकिन संस्कार परिवर्तन उसकी गति इतनी फास्ट है? वैसे फॉरेन की विशेषता है, कॉमन रूप से, फॉरेन फास्ट चलता, फास्ट करता। तो बाप पूछते हैं कि संस्कार परिवर्तन में फास्ट हैं? तो बापदादा स्व-परिवर्तन की रफ्तार अभी तीव्र देखने चाहते हैं। सभी पूछते हो ना! बापदादा क्या चाहते हैं? आपस में रूहरिहान करते हो ना, तो एक दो से पूछते हो बापदादा क्या चाहते हैं? तो बापदादा यह चाहते हैं। सेकण्ड में बिन्दी लगे। जैसे कागज में बिन्दी लगती है ना, उससे भी फास्ट, परिवर्तन में जो अयथार्थ है उसमें बिन्दी लगे। बिन्दी लगाने आती है? आती है ना! लेकिन कभी-कभी क्वेश्चन मार्क हो जाता है। लगाते बिन्दी हैं और बन जाता है क्वेश्चन मार्क। यह क्यों, यह क्या? यह क्यों और क्या… यह बिन्दी को क्वेश्चन मार्क में बदल देता है। बापदादा ने पहले भी कहा था – व्हाई-व्हाई नहीं करो, क्या करो? फ्लाई या वाह! वाह! करो या फ्लाई करो। व्हाई-व्हाई नहीं करो। व्हाई-व्हाई करना जल्दी आता है ना! आ जाता है? जब व्हाई आवे ना तो उसको वाह! वाह! कर लो। कोई भी कुछ करता है, कहता है, वाह! ड्रामा वाह!। यह क्यों करता है, यह क्यों कहता, नहीं। यह करे तो मैं करूं, नहीं।

आजकल बापदादा ने देखा है, सुना दूं। परिवर्तन करना है ना! तो आजकल रिजल्ट में चाहे फॉरेन में चाहे इण्डिया में दोनों तरफ एक बात की लहर है, वह क्या? यह होना चाहिए, यह मिलना चाहिए, यह इसको करना चाहिए… जो मैं सोचता हूँ, कहता हूँ वह होना चाहिए…। यह चाहिए, चाहिए जो संकल्प मात्र में भी होता है यह वेस्ट थॉट्स, बेस्ट बनने नहीं देता है। बापदादा ने सभी का वेस्ट का चार्ट थोड़े समय का नोट किया है। चेक किया है। बापदादा के पास तो पॉवरफुल मशीनरी है ना। आप जैसा कम्प्युटर नहीं है, आपका कम्प्युटर तो गाली भी देता है। लेकिन बापदादा के पास चेकिंग मशीनरी बहुत फास्ट है। तो बापदादा ने देखा मैजारिटी का वेस्ट संकल्प सारे दिन में बीच-बीच में चलता है। क्या होता है यह वेस्ट संकल्प का वज़न भारी होता है और बेस्ट थॉटस का वज़न कम होता है। तो यह जो बीच-बीच में वेस्ट थॉट्स चलते हैं वह दिमाग को भारी कर देते हैं। पुरुषार्थ को भारी कर देते हैं, बोझ है ना तो वह अपने तरफ खींच लेता है इसलिए शुभ संकल्प जो स्व-उन्नति की लिफ्ट है, सीढ़ी भी नहीं है लिफ्ट है वह कम होने के कारण, मेहनत की सीढ़ी चढ़नी पड़ती है। बस दो शब्द याद करो – वेस्ट को खत्म करने के लिए अमृतवेले से लेके रात तक दो शब्द संकल्प में, बोल में और कर्म में, कार्य में लगाओ। प्रैक्टिकल में लाओ। वह दो शब्द हैं – स्वमान और सम्मान। स्वमान में रहना है और सम्मान देना है। कोई कैसा भी है, हमें सम्मान देना है। सम्मान देना, स्वमान में स्थित होना है। दोनों का बैलेन्स चाहिए। कभी स्वमान में ज्यादा रहते, कभी सम्मान देने में कमी पड़ जाती है। ऐसे नहीं कि कोई सम्मान दें तो मैं सम्मान दूं, नहीं। मुझे दाता बनना है। शिव शक्ति पाण्डव सेना दाता के बच्चे दाता हैं। वह दे तो मैं दूं, वह तो बिजनेस हो गया, दाता नहीं हुआ। तो आप बिजनेसमैन हो कि दाता हो? दाता कभी लेवता नहीं होता। अपने वृत्ति और दृष्टि में यही लक्ष्य रखो मुझे, औरों को नहीं, मुझे सदा हर एक के प्रति अर्थात् सर्व के प्रति चाहे अज्ञानी है, चाहे ज्ञानी है, अज्ञानियों के प्रति फिर भी शुभ भावना रखते हो लेकिन ज्ञानी तू आत्माओं प्रति आपस में हर समय शुभ भावना, शुभ कामना रहे। वृत्ति ऐसी बन जाये, दृष्टि ऐसी बन जाये। बस दृष्टि में जैसे स्थूल बिन्दी है, कभी बिन्दी गायब होती है क्या! आंखों में से अगर बिन्दी गायब हो जाये तो क्या बन जायेंगे? देख सकेंगे? तो जैसे आंखों में बिन्दी है, वैसे आत्मा वा बाप बिन्दी नयनों में समाई हो। जैसे देखने वाली बिन्दी कभी गायब नहीं होती, ऐसे आत्मा वा बाप के स्मृति की बिन्दी वृत्ति से, दृष्टि से गायब नहीं हो। फॉलो फादर करना है ना! तो जैसे बाप की दृष्टि वा वृत्ति में हर बच्चे के लिए स्वमान है, सम्मान है ऐसे ही अपनी दृष्टि वृत्ति में स्वमान, सम्मान। सम्मान देने से जो मन में आता है कि यह बदल जाये, यह नहीं करे, यह ऐसा हो, वह शिक्षा से नहीं होगा लेकिन सम्मान दो तो जो मन में संकल्प रहता है, यह हो, यह बदले, यह ऐसा करे, वह करने लग जायेंगे। वृत्ति से बदलेंगे, बोलने से नहीं बदलते। तो क्या करेंगे? स्वमान और सम्मान, दोनों याद रहेगा ना या सिर्फ स्वमान याद रहेगा? सम्मान देना अर्थात् सम्मान लेना। किसी को भी मान देना समझो माननीय बनना है। आत्मिक प्यार की निशानी है – दूसरे की कमी को अपनी शुभ भावना, शुभ कामना से परिवर्तन करना। बापदादा ने अभी लास्ट सन्देश भी भेजा था कि वर्तमान समय अपना स्वरूप मर्सीफुल बनाओ, रहमदिल। लास्ट जन्म में भी आपके जड़ चित्र मर्सीफुल बन भक्तों पर रहम कर रहे हैं। जब चित्र इतने मर्सीफुल हैं तो चैतन्य में क्या होगा? चैतन्य तो रहम की खान है। रहम की खान बन जाओ। जो भी आवे रहम, यही प्यार की निशानी है। करना है ना? या सिर्फ सुनना है? करना ही है, बनना ही है। तो बापदादा क्या चाहते हैं, इसका उत्तर दे रहा है। प्रश्न करते हैं ना, तो बापदादा उत्तर दे रहे हैं।

वर्तमान समय सेवा में वृद्धि अच्छी हो रही है, चाहे भारत में, चाहे फॉरेन में लेकिन बापदादा चाहते हैं ऐसी कोई निमित्त आत्मा बनाओ जो कोई विशेष कार्य करके दिखाये। ऐसा कोई सहयोगी बनें जो अब तक करने चाहते हैं, वह करके दिखावे। प्रोग्राम्स तो बहुत किये हैं, जहाँ भी प्रोग्राम्स किये हैं उन सर्व प्रोग्राम्स की सभी तरफ वालों को बापदादा बधाई देते हैं। अभी कोई और नवीनता दिखाओ। जो आपकी तरफ से आपके समान बाप को प्रत्यक्ष करें। परमात्मा की पढ़ाई है, यह मुख से निकले। बाबा-बाबा शब्द दिल से निकले। सहयोगी बनते हैं, लेकिन अभी एक बात जो रही है कि यही एक है, यही एक है, यही एक है… यह आवाज फैले। ब्रह्माकुमारियां काम अच्छा कर रही हैं, कर सकती हैं, यहाँ तक तो आये हैं लेकिन यही एक हैं और परमात्म ज्ञान है। बाप को प्रत्यक्ष करने वाला बेधड़क बोले। आप बोलते हो परमात्मा कार्य करा रहा है, परमात्मा का कार्य है लेकिन वह कहे कि जिस परमात्मा बाप को सभी पुकार रहे हैं, वह ज्ञान है। अभी यह अनुभव कराओ। जैसे आपके दिल में हर समय क्या है? बाबा, बाबा, बाबा… ऐसे कोई ग्रुप निकले। अच्छा है, कर सकते हैं, यहाँ तक तो ठीक है। परिवर्तन हुआ है। लेकिन लास्ट परिवर्तन है – एक है, एक है, एक है। वह होगा जब ब्राह्मण परिवार एकरस स्थिति वाले हो जाये। अभी स्थिति बदलती रहती है। एकरस स्थिति एक को प्रत्यक्ष करेगी। ठीक है ना! तो डबल फॉरेनर्स एक्जैम्पुल बनो। सम्मान देने में, स्वमान में रहने में एक्जैम्पुल बनो, नम्बर ले लो। चारों ओर जैसे मोहजीत परिवार का दृष्टान्त बताते हैं ना, जो चपरासी भी, नौकर भी सब मोहजीत। वैसे कहाँ भी जायें अमेरिका जायें, आस्ट्रेलिया जायें, हर देश में एकरस, एकमत, स्वमान में रहने वाले, सम्मान देने वाले, इसमें नम्बर लो। ले सकते हैं ना?

चारों ओर के बाप के नयनों में समाये हुए, नयनों के नूर बच्चों को सदा एकरस स्थिति में स्थित रहने वाले बच्चों को, सदा भाग्य का सितारा चमकने वाले भाग्यवान बच्चों को, सदा स्वमान और सम्मान साथ-साथ रखने वाले बच्चों को, सदा पुरुषार्थ की तीव्र रफ्तार करने वाले बच्चों को बापदादा का यादप्यार, दुआयें और नमस्ते।

वरदान:-

रोज़ अमृतवेले सर्व सम्बन्धों का सुख बापदादा से लेकर औरों को दान करो। सर्व सुखों के अधिकारी बन औरों को भी बनाओ। कोई भी काम है उसमें साकार साथी याद न आये, पहले बाप की याद आये क्योंकि सच्चा मित्र बाप है। सच्चे साथी का साथ लेंगे तो सहज ही सर्व से न्यारे और प्यारे बन जायेंगे। जो सर्व सम्बन्धों से हर कार्य में एक बाप को याद करते हैं वह सहज ही निर्मोही बन जाते हैं। उनका किसी भी तरफ लगाव अर्थात् झुकाव नहीं रहता इसलिए माया से हार भी नहीं हो सकती है।

स्लोगन:-

अव्यक्त इशारे – सत्यता और सभ्यता रूपी क्लचर को अपनाओ

सत्यता की निशानी सभ्यता है। अगर आप सच्चे हो, सत्यता की शक्ति आपमें है तो सभ्यता को कभी नहीं छोड़ो, सत्यता को सिद्ध करो लेकिन सभ्यतापूर्वक। अगर सभ्यता को छोड़कर असभ्यता में आकरके सत्य को सिद्ध करना चाहते हो तो वह सत्य सिद्ध नहीं होगा। असभ्यता की निशानी है जिद और सभ्यता की निशानी है निर्मान। सत्यता को सिद्ध करने वाला सदैव स्वयं निर्मान होकर सभ्यतापूर्वक व्यवहार करेगा।

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