01 September 2024 | HINDI Murli Today | Brahma Kumaris

Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi

August 31, 2024

Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.

Brahma Kumaris

आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन।  Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. SourceOfficial Murli blog to read and listen daily murlis. पढ़े: मुरली का महत्त्व

“दुआयें दो दुआयें लो, कारण का निवारण कर समस्याओं का समाधान करो''

♫ मुरली सुने (audio)➤

आज प्यार के सागर बापदादा अपने प्यार स्वरूप बच्चों के प्यार की डोरी में खींचकर मिलन मनाने आये हैं। बच्चों ने बुलाया और हज़ूर हाज़िर हो गये। अव्यक्ति मिलन तो सदा मनाते रहते हैं, फिर भी साकार में बुलाया तो बापदादा बच्चों के विशाल मेले में पहुंच गये हैं। बापदादा को बच्चों का स्नेह, बच्चों का प्यार देख खुशी होती है और दिल ही दिल में चारों ओर के बच्चों के लिए गीत गाते हैं – “वाह श्रेष्ठ भाग्यवान बच्चे वाह! भगवान के प्यार के पात्र आत्मायें वाह!” इतना बड़ा भाग्य और इतना साधारण रूप में सहज प्राप्त होना है, यह स्वप्न में भी नहीं सोचा था। लेकिन आज साकार रूप में भाग्य को देख रहे हो। बापदादा देख रहे हैं कि दूर बैठे भी बच्चे मिलन मेला मना रहे हैं। बापदादा उन्हों को देख मिलन मना रहे हैं। मैजारिटी माताओं को गोल्डन चांस मिला है और बापदादा को भी विशेष शक्ति सेना को देख खुशी होती है कि चार दीवारों में रहने वाली मातायें बाप द्वारा विश्व कल्याणकारी बन, विश्व की राज्य अधिकारी बन गई हैं। बन गये हैं या बन रहे हैं, क्या कहेंगे? बन गये हैं ना! विश्व के राज्य का माखन का गोला आप सबके हाथ में है ना! बापदादा ने देखा कि जो भी मातायें मधुबन में पहुंची हैं उन्हों को एक बात की बहुत खुशी है, कौन सी खुशी है? कि बापदादा ने हम माताओं को विशेष बुलाया है। तो माताओं से विशेष प्यार है ना! नशे से कहती हैं – बापदादा ने बुलाया है। हमको बुलाया है, हम क्यों नहीं आयेंगे! बापदादा भी सबकी रूहरिहान सुनते रहते हैं, यह खुशी का नशा देखते रहते हैं। वैसे तो पाण्डव भी कम नहीं हैं, पाण्डवों के बिना भी विश्व के कार्य की समाप्ति नहीं हो सकती। लेकिन आज विशेष माताओं को पाण्डवों ने भी आगे रखा है।

बापदादा सभी बच्चों को बहुत सहज पुरुषार्थ की विधि सुना रहे हैं। माताओं को सहज चाहिए ना! तो बापदादा सब माताओं, बच्चों को कहते हैं, सबसे सहज पुरुषार्थ का साधन है – “सिर्फ चलते-फिरते सम्बन्ध-सम्पर्क में आते हर एक आत्मा को दिल से शुभ भावना की दुआयें दो और दूसरों से भी दुआयें लो।” चाहे आपको कोई कुछ भी दे, बद्दुआ भी दे लेकिन आप उस बद्दुआ को भी अपने शुभ भावना की शक्ति से दुआ में परिवर्तन कर दो। आप द्वारा हर आत्मा को दुआ अनुभव हो। उस समय अनुभव करो जो बद्दुआ दे रहा है वह इस समय कोई न कोई विकार के वशीभूत है। वशीभूत आत्मा के प्रति वा परवश आत्मा के प्रति कभी भी बद्दुआ नहीं निकलेगी। उसके प्रति सदा सहयोग देने की दुआ निकलेगी। सिर्फ एक ही बात याद रखो कि हमें निरन्तर एक ही कार्य करना है – “संकल्प द्वारा, बोल द्वारा, कर्मणा द्वारा, सम्बन्ध-सम्पर्क द्वारा दुआ देना और दुआ लेना।” अगर किसी आत्मा के प्रति कोई भी व्यर्थ संकल्प वा निगेटिव संकल्प आवे भी तो यह याद रखो मेरा कर्तव्य क्या है! जैसे कहाँ आग लग रही हो और आग बुझाने वाले होते हैं तो वह आग को देख जल डालने का अपना कार्य भूलते नहीं, उन्हों को याद रहता है कि हम जल डालने वाले हैं, आग बुझाने वाले हैं, ऐसे अगर कोई किसी भी विकार की आग वश कोई भी ऐसा कार्य करता है जो आपको अच्छा नहीं लगता है तो आप अपना कर्तव्य याद रखो कि मेरा कर्तव्य है – किसी भी प्रकार की आग बुझाने का, दुआ देने का। शुभ भावना की भावना का सहयोग देने का। बस एक अक्षर याद रखो, माताओं को सहज एक शब्द याद रखना है – “दुआ देना, दुआ लेना”। मातायें यह कर सकती हो? (सभी मातायें हाथ उठा रही हैं) कर सकती हो या करना ही है? पाण्डव कर सकते हैं? पाण्डव कहते हैं – करना ही है। गाया हुआ है पाण्डव अर्थात् सदा विजयी और शक्तियां सदा विश्व कल्याणकारी नाम से प्रसिद्ध हैं।

बापदादा को चारों ओर के बच्चों से अभी तक एक आश रही हुई है। बतायें वह कौन सी आश है? जान तो गये हो! टीचर्स जान गई हो ना! सभी बच्चे यथा शक्ति पुरुषार्थ तो कर रहे हो। बापदादा पुरुषार्थ देख करके मुस्कराते हैं। लेकिन एक आश यह है कि पुरुषार्थ में अभी तीव्रगति चाहिए। पुरुषार्थ है लेकिन अभी तीव्रगति चाहिए। इसकी विधि है – ‘कारण’ शब्द समाप्त हो जाए और निवारण स्वरूप सदा बन जायें। कारण तो समय अनुसार बनते ही हैं और बनते रहेंगे। लेकिन आप सब निवारण स्वरूप बनो क्योंकि आप सभी बच्चों को विश्व के निवारण कर सभी को, मैजारिटी आत्माओं को निर्वाणधाम में भेजना है। तो जब स्वयं को निवारण स्वरूप बनाओ तब विश्व की आत्माओं को निवारण स्वरूप द्वारा सब समस्याओं का निवारण कर निर्वाणधाम में भेज सकेंगे। अभी विश्व की आत्मायें मुक्ति चाहती हैं तो बाप द्वारा मुक्ति का वर्सा दिलाने वाले निमित्त आप हो। तो निमित्त आत्मायें पहले स्वयं को भिन्न-भिन्न समस्याओं के कारण को निवारण कर मुक्त बनायेंगे तब विश्व को मुक्ति का वर्सा दिला सकेंगे। तो मुक्त हैं? किसी भी प्रकार की समस्या का कारण आगे नहीं आये, यह कारण है, यह कारण है, यह कारण है… जब कोई कारण सामने बनता है तो कारण का सेकण्ड में निवारण सोचो, यह सोचो कि जब विश्व का निवारण करने वाली हूँ तो क्या स्वयं की छोटी-छोटी समस्याओं का स्वयं निवारण नहीं कर सकती! नहीं कर सकता! अभी तो आत्माओं की क्यु आपके सामने आयेगी “हे मुक्तिदाता मुक्ति दो” क्योंकि मुक्ति दाता के डायरेक्ट बच्चे हो, अधिकारी बच्चे हो। मास्टर मुक्तिदाता तो हो ना। लेकिन क्यु के आगे आप मास्टर मुक्ति दाताओं के तरफ से एक रूकावट का दरवाजा बन्द है। क्यु तैयार है लेकिन कौन सा दरवाजा बन्द है? पुरुषार्थ में कमजोर पुरुषार्थ का, एक शब्द का दरवाजा है, वह है ‘क्यों’। क्वेश्वन मार्क,(?) क्यों, यह क्यों शब्द अभी क्यु को सामने नहीं लाता। तो बापदादा अभी देश विदेश के सभी बच्चों को यह स्मृति दिला रहे हैं कि आप समस्याओं का दरवाजा “क्यों”, इसको समाप्त करो। कर सकते हैं? टीचर्स कर सकती हैं? पाण्डव कर सकते हैं? सभी हाथ उठा रहे हैं या कोई कोई? फारेनर्स तो एवररेडी हैं ना! हाँ या ना? अगर हाँ तो सीधा हाथ उठाओ। कोई ऐसे-ऐसे कर रहे हैं। अभी कोई भी सेवाकेन्द्र पर समस्या का नाम-निशान न हो। ऐसे हो सकता है? हर एक समझे मुझे करना है। टीचर्स समझें मुझे करना है, स्टूडेन्ट समझें मुझे करना है, प्रवृत्ति वाले समझें मुझे करना है, मधुबन वाले समझें हमें करना है। कर सकते हैं ना? समस्या शब्द ही समाप्त हो जाये, कारण खत्म होके निवारण आ जाए, यह हो सकता है! क्या नहीं हो सकता है, जब पहले-पहले स्थापना के समय में सभी आने वाले बच्चों ने क्या प्रॉमिस किया था और करके दिखाया! असम्भव को सम्भव करके दिखाया। दिखाया ना? तो अभी कितने साल हो गये? स्थापना को कितने वर्ष हो गये? (65) तो इतने वर्षों में असम्भव से सम्भव नहीं हो सकता है? हो सकता है? मुख्य टीचर्स हाथ उठाओ। पंजाब नहीं उठा रहा है, शक्य है क्या? थोड़ा सोच रहे हैं, सोचो नहीं। करना ही है। औरों का नहीं सोचो, हर एक अपना सोचे, अपना तो सोच सकते हो ना? दूसरे को छोड़ो, अपना सोचकर अपने लिए तो हिम्मत रख सकते हो ना? कि नहीं? फारेनर्स रख सकते हैं? (हाथ उठाया) मुबारक हो। अच्छा, अभी जो समझते हैं, वह दिल से हाथ उठाना, दिखावे से नहीं। ऐसे नहीं सब उठा रहे हैं तो मैं भी उठा लूं। अगर दिल से दृढ़ संकल्प करेंगे कि कारण को समाप्त कर निवारण स्वरूप बनना ही है, कुछ भी हो, सहन करना पड़े, माया का सामना करने पड़े, एक दो के सम्बन्ध-सम्पर्क में सहन भी करना पड़े, मुझे समस्या नहीं बनना है। हो सकता है? अगर दृढ़ निश्चय है तो वह पीछे से लेकर आगे तक हाथ उठाओ। (बापदादा ने सभी से हाथ उठवाया और सारा दृश्य टी.वी. पर देखा) अच्छा है ना एक्सरसाइज़ हो गई! हाथ इसीलिए उठाते हैं, जैसे अभी एक दो को देख करके हाथ उठाने में उमंग आता है ना! ऐसे ही जब भी कोई समस्या आवे तो सामने बापदादा को देखना, दिल से कहना बाबा, और बाबा हाज़िर हो जायेगा, समस्या खत्म हो जायेगी। समस्या सामने से हट जायेगी और बापदादा सामने हाज़िर हो जायेगा। “मास्टर सर्वशक्तिमान” अपना यह टाइटल हर समय याद करो। नहीं तो बापदादा अभी यादप्यार में मास्टर सर्वशक्तिवान न कहकर सर्वशक्तिवान कहे? शक्तिवान बच्चों को यादप्यार, अच्छा लगेगा? मास्टर सर्व-शक्तिवान हैं, मास्टर सर्वशक्तिवान क्या नहीं कर सकते हैं! सिर्फ अपना टाइटल और कर्तव्य याद रखो। टाइटल है “मास्टर सर्व-शक्तिवान” और कर्तव्य है “विश्व कल्याणकारी”। तो सदा अपना टाइटल और कर्तव्य याद करने से शक्तियां इमर्ज हो जायेंगी। मास्टर बनो, शक्तियों के भी मास्टर बनो, आर्डर करो, हर शक्ति को समय पर आर्डर करो। वैसे शक्तियां धारण करते भी हो, हैं भी लेकिन सिर्फ कमी यह हो जाती है कि समय पर यूज़ नहीं करने आती। समय बीतने के बाद याद आता है, ऐसे करते तो बहुत अच्छा होता। अब अभ्यास करो जो शक्तियां समाई हुई हैं, उसको समय पर यूज़ करो। जैसे इन कर्मेन्द्रियों को आर्डर से चलाते हो ना, हाथ को, पांव को चलाते हो ना! ऐसे हर शक्ति को आर्डर से चलाओ। कार्य में लगाओ। समा के रखते हो, कार्य में कम लगाते हो। समय पर कार्य में लगाने से शक्ति अपना कार्य जरूर करेगी। और खुश रहो, कभी-कभी कोई बच्चों का चेहरा बड़ा सोच-विचार में, थोड़ा ज्यादा गम्भीर दिखाई देते हैं। खुश रहो, नाचो गाओ, आपकी ब्राह्मण जीवन है ही खुशी में नाचने की और अपने भाग्य और भगवान के गीत गाने की। तो नाचने गाने वाले जो होते हैं ना वह ऐसा गम्भीर होके नाचे तो कहेंगे नाचना नहीं आता। गम्भीरता अच्छी है लेकिन टू मच गम्भीरता, थोड़ा सा सोच विचार का लगता है।

बापदादा ने तो अभी सुना कि देहली में उद्घाटन हो रहा है (9 दिसम्बर 2001 को देहली गुड़गांव में ओम् शान्ति रिट्रीट सेन्टर का उद्घाटन है) लेकिन बापदादा अभी कौन सा उद्घाटन देखने चाहता है? वह डेट तो फिक्स करो, यह छोटे मोटे उद्घाटन तो हो ही जायेंगे। लेकिन बापदादा उद्घाटन चाहते हैं “सब विश्व की स्टेज पर बाप समान साक्षात फरिश्ते सामने आ जाएं और पर्दा खुल जाए।” ऐसा उद्घाटन आप सबको भी अच्छा लगता है ना! रूहरिहान में भी सभी कहते रहते हैं, बाप भी सुनते रहते हैं, बस अभी यही इच्छा है – बाप को प्रत्यक्ष करें और बाप की इच्छा है कि पहले बच्चे प्रत्यक्ष हों। बाप बच्चों के साथ प्रत्यक्ष होगा। अकेला नहीं होगा। तो बापदादा वह उद्घाटन देखने चाहते हैं। उमंग भी अच्छा है, जब रूहरिहान करते हैं तो रूहरिहान के समय सबके उमंग बहुत अच्छे होते हैं। लेकिन जब कर्मयोगी बनते हैं तो थोड़ा फर्क पड़ जाता। तो मातायें क्या करेंगी? बड़ा झुण्ड है माताओं का। और माताओं को देख बापदादा को बहुत खुशी होती है। किसने भी माताओं को इतना आगे नहीं लाया है लेकिन बापदादा माताओं को आगे बढ़ते देख खुश होते हैं। माताओं का विशेष यह संकल्प है कि जो किसी ने नहीं करके दिखाया वह हम मातायें बाप के साथ करके दिखायेंगे। करके दिखायेंगी? अभी एक हाथ की ताली बजाओ। मातायें, सब कुछ कर सकती हैं। माताओं में उमंग अच्छा है। कुछ भी नहीं समझें लेकिन यह तो समझ लिया है ना कि मैं बाबा की हूँ, बाबा मेरा है। यह तो समझ लिया है ना! मेरा बाबा तो सब कहते हैं ना? बस दिल से यही गीत गाते रहो – मेरा बाबा, मेरा बाबा, मेरा बाबा…।

अच्छा – अभी एक सेकण्ड बापदादा देता है, सब अलर्ट होकर बैठो। बापदादा से सभी का प्यार 100 परसेन्ट है ना! प्यार तो परसेन्ट में नहीं है ना। 100 परसेन्ट है? तो 100 परसेन्ट प्यार का रिटर्न देने के लिए तैयार हो? 100 परसेन्ट प्यार है ना। जिसका थोड़ा सा कम हो, वह हाथ उठा लो। पीछे बच जायेंगे। अगर कम हो तो हाथ उठा लो। 100 परसेन्ट प्यार नहीं है तो वो हाथ उठाओ। प्यार की बात कर रहे हैं। (एक-दो ने हाथ उठाया) अच्छा प्यार नहीं है, कोई हर्जा नहीं, हो जायेगा। जायेंगे कहाँ, प्यार तो करना ही पड़ेगा। अच्छा, अभी सभी अलर्ट होकर बैठे हैं ना! अभी सभी प्यार के रिटर्न में एक सेकण्ड बाप के सामने अन्तर्मुखी हो अपने आपसे दिल से, दिल में संकल्प कर सकते हो कि अब हम स्वयं के प्रति वा औरों के प्रति समस्या नहीं बनेंगे। यह दृढ़ संकल्प प्यार के रिटर्न में कर सकते हो? जो समझते हैं – कुछ भी हो जाए, अगर कुछ हो भी गया तो सेकण्ड में स्वयं को परिवर्तन कर देंगे, वह दिल में संकल्प दृढ़ करें, जो कर सकता है दृढ़ संकल्प। बापदादा मदद देंगे लेकिन मदद लेने की विधि है दृढ़ संकल्प की स्मृति। बापदादा के सामने संकल्प लिया है, यह स्मृति की विधि आपको सहयोग देगी। तो कर सकते हो? कांध हिलाओ। देखो, संकल्प से क्या नहीं हो सकता है, घबराओ नहीं, बापदादा की एक्स्ट्रा मदद जरूर मिलेगी। अच्छा।

ऐसे सर्व तीव्र पुरुषार्थी श्रेष्ठ आत्माओं को, सदा बाप के प्यार का रिटर्न करने वाले हिम्मतवान बच्चों को, सदा अपने विशेषताओं द्वारा औरों को भी विशेष आत्मा बनाने वाले पुण्य आत्मायें बच्चों को, सदा समस्या समाधान स्वरूप विशेष आगे उड़ने वाले बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

विदाई के समय:- आज विशेष जो मधुबन में ऊपर सेक्यूरिटी के कार्य में बिजी हैं, वह बापदादा के सामने आ रहे हैं। यज्ञ की रखवाली करने वालों की बहुत ही बड़ी ड्युटी है तो रखवाली कर रहे हैं, दूर बैठे भी याद कर रहे हैं, तो खास बापदादा जो ऊपर कोई भी सेवा अर्थ बैठे हैं, चाहे ज्ञान सरोवर में, चाहे पाण्डव भवन में, चाहे शान्तिवन में जो भी रखवाली करने वाले हैं, उन्हों को बापदादा विशेष यादप्यार दे रहे हैं। सभी मेहनत बहुत अच्छी कर रहे हैं। अच्छा – सभी देश-विदेश वालों ने, जिसने भी याद भेजी है, वह समझें हमको विशेष रूप से बापदादा ने याद दी है। अच्छा।

वरदान:-

फरिश्ता अर्थात् पुराने संसार की आकर्षण से मुक्त, न संबंध रूप में आकर्षण हो, न अपनी देह वा किसी देहधारी व्यक्ति या कोई वस्तु की तरफ आकर्षण हो, ऐसे ही पुराने संस्कार की आकर्षण से भी मुक्त – संकल्प, वृत्ति वा वाणी के रूप में कोई संस्कार की आकर्षण न हो। जब ऐसे सर्व आकर्षणों से अथवा व्यर्थ समय, व्यर्थ संग, व्यर्थ वातावरण से मुक्त बनेंगे तब कहेंगे डबल लाइट फरिश्ता।

स्लोगन:-

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