01 March 2025 | HINDI Murli Today | Brahma Kumaris
Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi
28 February 2025
Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.
Brahma Kumaris
आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन। Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. Source: Official Murli blog to read and listen daily murlis. ➤ पढ़े: मुरली का महत्त्व
“मीठे बच्चे - प्रीत और विपरीत यह प्रवृत्ति मार्ग के अक्षर हैं, अभी तुम्हारी प्रीत एक बाप से हुई है, तुम बच्चे निरन्तर बाप की याद में रहते हो''
प्रश्नः-
याद की यात्रा को दूसरा कौन-सा नाम देंगे?
उत्तर:-
गीत:-
♫ मुरली सुने (audio)➤
ओम् शान्ति। बाप बच्चों को समझा रहे हैं। अब इसको याद की यात्रा भी कहें तो प्रीत की यात्रा भी कहें। मनुष्य तो उन यात्राओं पर जाते हैं। यह जो रचना है उनकी यात्रा पर जाते हैं, भिन्न-भिन्न रचना है ना। रचयिता को तो कोई भी जानते ही नहीं। अभी तुम रचयिता बाप को जानते हो, उस बाप की याद में तुमको कभी रूकना नहीं है। तुमको यात्रा मिली है याद की। इसको याद की यात्रा अथवा प्रीत की यात्रा कहा जाता है। जिसकी जास्ती प्रीत होगी वह यात्रा भी अच्छी करेंगे। जितना प्यार से यात्रा पर रहेंगे, पवित्र भी बनते जायेंगे। शिव भगवानुवाच है ना। विनाश काले विपरीत बुद्धि और विनाश काले प्रीत बुद्धि। तुम बच्चे जानते हो अभी विनाशकाल है। यह वही गीता एपीसोड चल रहा है। बाबा ने श्रीकृष्ण की गीता और त्रिमूर्ति शिव की गीता का कान्ट्राक्ट भी बताया है! अब गीता का भगवान कौन? परमपिता शिव भगवानुवाच। सिर्फ शिव अक्षर नहीं लिखना है क्योंकि शिव नाम भी बहुतों के हैं इसलिए परमपिता परमात्मा लिखने से वह सुप्रीम हो गया। परमपिता तो कोई अपने को कह न सके। संन्यासी लोग शिवोहम् कह देते हैं, वह तो बाप को याद भी कर न सकें। बाप को जानते ही नहीं। बाप से प्रीत है ही नहीं। प्रीत और विपरीत यह प्रवृत्ति मार्ग के लिए है। कोई बच्चों की बाप से प्रीत बुद्धि होती है, कोई की विपरीत बुद्धि भी होती है। तुम्हारे में भी ऐसे हैं। बाप के साथ प्रीत उनकी है, जो बाप की सर्विस में तत्पर हैं। बाप के सिवाए और कोई से प्रीत हो न सके। शिवबाबा को ही कहते हैं बाबा हम तो आपके ही मददगार हैं। ब्रह्मा की इसमें बात ही नहीं। शिवबाबा के साथ जिन आत्माओं की प्रीत होगी वह जरूर मददगार होंगे। शिवबाबा के साथ वह सर्विस करते रहेंगे। प्रीत नहीं है तो गोया विपरीत हो जाते हैं, विपरीत बुद्धि विनशन्ती। जिनकी बाप से प्रीत होगी तो मददगार भी बनेंगे। जितनी प्रीत उतना सर्विस में मददगार बनेंगे। याद ही नहीं करते तो प्रीत नहीं है। फिर देहधारियों से प्रीत हो जाती है। मनुष्य, मनुष्य को अपनी यादगार की चीज़ भी देते हैं ना। वह याद जरूर पड़ते हैं।
अभी तुम बच्चों को बाप अविनाशी ज्ञान रत्नों की सौगात देते हैं, जिससे तुम राजाई प्राप्त करते हो। अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान करते हैं तो प्रीत बुद्धि हैं। जानते हैं बाबा सबका कल्याण करने आये हैं, हमको भी मददगार बनना है। ऐसे प्रीत बुद्धि विजयन्ती होते हैं। जो याद ही नहीं करते वह प्रीत बुद्धि नहीं। बाप से प्रीत होगी, याद करेंगे तो विकर्म विनाश होंगे और दूसरों को भी कल्याण का रास्ता बतायेंगे। तुम ब्राह्मण बच्चों में भी प्रीत और विपरीत का मदार है। बाप को जास्ती याद करते हैं गोया प्रीत है। बाप कहते हैं मुझे निरन्तर याद करो, मेरे मददगार बनो। रचना को एक रचता बाप ही याद रहना चाहिए। किसी रचना को याद नहीं करना है। दुनिया में तो रचयिता को कोई जानते नहीं, न याद करते हैं। संन्यासी लोग भी ब्रह्म को याद करते हैं, वह भी रचना हो गई। रचयिता तो सबका एक ही है ना। और जो भी चीजें इन आंखों से देखते हो वह सब तो हैं रचना। जो नहीं देखने आता है वह है रचयिता बाप। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर का भी चित्र है। वह भी रचना है। बाबा ने जो चित्र बनाने लिए कहा है ऊपर में लिखना है परमपिता परमात्मा त्रिमूर्ति शिव भगवानुवाच। भल कोई अपने को भगवान कहे परन्तु परमपिता कह न सके। तुम्हारा बुद्धियोग है शिवबाबा के साथ, न कि शरीर के साथ। बाप ने समझाया है अपने को अशरीरी आत्मा समझ मुझ बाप को याद करो। प्रीत और विपरीत का सारा मदार है सर्विस पर। अच्छी प्रीत होगी तो बाप की सर्विस भी अच्छी करेंगे, तब विजयन्ती कहेंगे। प्रीत नहीं तो सर्विस भी नहीं होगी। फिर पद भी कम। कम पद को कहा जाता है ऊंच पद से विनशन्ती। यूँ विनाश तो सबका होता ही है, परन्तु यह खास प्रीत और विपरीत की बात है। रचयिता बाप तो एक ही है, उनको ही शिव परमात्माए नम: कहते हैं। शिवजयन्ती भी मनाते हैं। शंकर जयन्ती कभी सुना नहीं है। प्रजापिता ब्रह्मा का भी नाम बाला है, विष्णु की जयन्ती नहीं मनाते, श्रीकृष्ण की मनाते हैं। यह भी किसको पता नहीं – श्रीकृष्ण और विष्णु में क्या फ़र्क है? मनुष्यों की है विनाश काले विपरीत बुद्धि। तो तुम्हारे में भी प्रीत और विपरीत बुद्धि हैं ना। बाप कहते हैं तुम्हारा यह रूहानी धंधा तो बहुत अच्छा है। सवेरे और शाम को इस सर्विस में लग जाओ। शाम का समय 6 से 7 तक अच्छा कहते हैं। सतसंग आदि भी शाम को और सवेरे करते हैं। रात में तो वायुमण्डल खराब हो जाता है। रात को आत्मा स्वयं शान्ति में चली जाती है, जिसको नींद कहते हैं। फिर सवेरे जागती है। कहते भी हैं राम सिमर प्रभात मोरे मन। अब बाप बच्चों को समझाते हैं मुझ बाप को याद करो। शिवबाबा जब शरीर में प्रवेश करे तब तो कहे कि मुझे याद करो तो विकर्म विनाश हो जायेंगे। तुम बच्चे जानते हो हम कितना बाप को याद करते हैं और रूहानी सेवा करते हैं। सभी को यही परिचय देना है – अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो तो तुम तमोप्रधान से सतोप्रधान बन जायेंगे। खाद निकल जायेगी। प्रीत बुद्धि में भी परसेन्टेज है। बाप से प्रीत नहीं है तो जरूर अपनी देह में प्रीत है या मित्र सम्बन्धियों आदि से प्रीत है। बाप से प्रीत होगी तो सर्विस में लग जायेंगे। बाप से प्रीत नहीं तो सर्विस में भी नहीं लगेंगे। कोई को सिर्फ अल़फ और बे का राज़ समझाना तो बहुत ही सहज है। हे भगवान, हे परमात्मा कह याद करते हैं परन्तु उनको जानते बिल्कुल नहीं। बाबा ने समझाया है हर एक चित्र में ऊपर परमपिता त्रिमूर्ति शिव भगवानुवाच जरूर लिखना है तो कोई कुछ कह न सके। अभी तुम बच्चे तो अपना सैपलिंग लगा रहे हो। सभी को रास्ता बताओ तो बाप से आकर वर्सा लेवे। बाप को जानते ही नहीं इसलिए प्रीत बुद्धि हैं नहीं। पाप बढ़ते-बढ़ते एकदम तमोप्रधान बन पड़े हैं। बाप के साथ प्रीत उनकी होगी जो बहुत याद करेंगे। उनकी ही गोल्डन एज बुद्धि होगी। अगर और तरफ बुद्धि भटकती होगी तो तमोप्रधान ही रहेंगे। भल सामने बैठे हैं तो भी प्रीत बुद्धि नहीं कहेंगे क्योंकि याद ही नहीं करते हैं। प्रीत बुद्धि की निशानी है याद। वह धारणा करेंगे, औरों पर भी रहम करते रहेंगे कि बाप को याद करो तो तुम पावन बनेंगे। यह किसको भी समझाना तो बहुत सहज है। बाप स्वर्ग की बादशाही का वर्सा बच्चों को ही देते हैं। जरूर शिवबाबा आया था तब तो शिवजयन्ती भी मनाते हैं ना। कृष्ण, राम आदि सब होकर गये हैं तब तो मनाते आते हैं ना। शिवबाबा को भी याद करते हैं क्योंकि वह आकर बच्चों को विश्व की बादशाही देते हैं, नया कोई इन बातों को समझ न सके। भगवान कैसे आकर वर्सा देते हैं, बिल्कुल ही पत्थरबुद्धि हैं। याद करने की बुद्धि नहीं। बाप खुद कहते हैं तुम आधाकल्प के आशिक हो। मैं अब आया हुआ हूँ। भक्ति मार्ग में तुम कितने धक्के खाते हो। परन्तु भगवान तो कोई को मिला ही नहीं। अभी तुम बच्चे समझते हो बाप भारत में ही आया था और मुक्ति-जीवनमुक्ति का रास्ता बताया था। श्रीकृष्ण तो यह रास्ता बताते नहीं। भगवान से प्रीत कैसे जुटे सो भारतवासियों को ही बाप आकर सिखलाते हैं। आते भी भारत में हैं। शिव जयन्ती मनाते हैं। तुम बच्चे जानते हो ऊंच ते ऊंच है ही भगवान, उनका नाम है शिव इसलिए तुम लिखते हो शिव जयन्ती ही हीरे तुल्य है, बाकी सबकी जयन्ती है कौड़ी तुल्य। ऐसे लिखने से बिगड़ते हैं इसलिए हर एक चित्र में अगर शिव भगवानुवाच होगा तो तुम सेफ्टी में रहेंगे। कोई-कोई बच्चे पूरा नहीं समझते हैं तो नाराज़ हो जाते हैं। माया की ग्रहचारी पहला वार बुद्धि पर ही करती है। बाप से ही बुद्धियोग तोड़ देती है, जिससे एकदम ऊपर से नीचे गिर जाते हैं। देहधारियों से बुद्धियोग अटक पड़ता है तो बाप से विपरीत हुए ना। तुमको प्रीत रखनी है एक विचित्र विदेही बाप से। देहधारी से प्रीत रखना नुकसानकारक है। बुद्धि ऊपर से टूटती है तो एकदम नीचे गिर पड़ते हैं। भल यह अनादि बना बनाया ड्रामा है फिर भी समझायेंगे तो सही ना। विपरीत बुद्धि से तो जैसे बांस आती है, नाम-रूप में फँसने की। नहीं तो सर्विस में खड़ा हो जाना चाहिए। बाबा ने कल भी अच्छी रीति समझाया – मुख्य बात ही है गीता का भगवान कौन? इसमें ही तुम्हारी विजय होनी है। तुम पूछते हो कि गीता का भगवान शिव या श्रीकृष्ण? सुख देने वाला कौन है? सुख देने वाला तो शिव है तो उनको वोट देना चाहिए। उनकी ही महिमा है। अब वोट दो गीता का भगवान कौन? शिव को वोट देने वाले को कहेंगे प्रीत बुद्धि। यह तो बहुत भारी इलेक्शन है। यह सब युक्तियां उनकी बुद्धि में आयेंगी जो सारा दिन विचार सागर मंथन करते रहते होंगे।
कई बच्चे चलते-चलते रूठ पड़ते हैं। अभी देखो तो प्रीत है, अभी देखो तो प्रीत टूट पड़ती, रूठ जाते हैं। कोई बात से बिगड़े तो कभी याद भी नहीं करेंगे। चिट्ठी भी नहीं लिखेंगे। गोया प्रीत नहीं है। तो बाबा भी 6-8 मास चिट्ठी नहीं लिखेंगे। बाबा कालों का काल भी है ना! साथ में धर्मराज भी है। बाप को याद करने की फुर्सत नहीं तो तुम क्या पद पायेंगे। पद भ्रष्ट हो जायेगा। शुरू में बाबा ने बड़ी युक्ति से पद बतलाये थे। अभी तो वह हैं थोड़ेही। अब तो फिर से माला बननी है। सर्विसएबुल की तो बाबा भी महिमा करते रहेंगे। जो खुद बादशाह बनते हैं तो कहेंगे हमारे हमजिन्स भी बनें। यह भी हमारे मिसल राज्य करें। राजा को अन्न दाता, मात पिता कहते हैं। अब माता तो है जगत अम्बा, उन द्वारा तुमको सुख घनेरे मिलते हैं। तुम्हें पुरूषार्थ से ऊंच पद पाना है। दिन-प्रतिदिन तुम बच्चों को मालूम होता जायेगा – कौन-कौन क्या बनेगा? सर्विस करेंगे तो बाप भी उनको याद करेंगे। सर्विस ही नहीं करते तो बाप याद क्यों करे! बाप याद उन बच्चों को करेंगे जो प्रीत बुद्धि होंगे।
यह भी बाबा ने समझाया है – किसकी दी हुई चीज़ पहनेंगे तो उनकी याद जरूर आयेगी। बाबा के भण्डारे से लेंगे तो शिवबाबा ही याद आयेगा। बाबा खुद अनुभव बतलाते हैं। याद जरूर पड़ती है इसलिए कोई की भी दी हुई चीज़ रखनी नहीं चाहिए। अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार :
1) एक विदेही विचित्र बाप से दिल की सच्ची प्रीत रखनी है। सदा ध्यान रहे – माया की ग्रहचारी कभी बुद्धि पर वार न कर दे।
2) कभी भी बाप से रूठना नहीं है। सर्विसएबुल बन अपना भविष्य ऊंच बनाना है। किसी की दी हुई चीज़ अपने पास नहीं रखनी है।
वरदान:- |
इस किले में हर आत्मा सदा विजयी और निर्विघ्न बन जाए इसके लिए विशेष टाइम पर चारों ओर एक साथ योग के प्रोग्राम रखो। फिर कोई भी इस तार को काट नहीं सकेगा क्योंकि जितना सेवा बढ़ाते जायेंगे उतना माया अपना बनाने की कोशिश भी करेगी इसलिए जैसे कोई भी कार्य शुरू करते समय शुद्धि की विधियां अपनाते हो, ऐसे संगठित रूप में आप सर्व श्रेष्ठ आत्माओं का एक ही शुद्ध संकल्प हो – विजयी, यह है शुद्धि की विधि – जिससे किला मजबूत हो जायेगा।
स्लोगन:-
अव्यक्त इशारे – सत्यता और सभ्यता रूपी क्लचर को अपनाओ
ब्राह्मण जीवन में फर्स्ट नम्बर की कल्चर है “सत्यता और सभ्यता”। तो हर एक के चेहरे और चलन में यह ब्राह्मण क्लचर प्रत्यक्ष हो। हर ब्राह्मण मुस्कराता हुआ हर एक से सम्पर्क में आये। कोई कैसा भी हो आप अपना यह क्लचर कभी नहीं छोड़ो तो सहज परमात्म प्रत्यक्षता के निमित्त बन जायेंगे।
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