01 Mar 2024 HINDI Murli Today | Brahma Kumaris

Read and Listen today’s Gyan Murli in Hindi

February 29, 2024

Morning Murli. Om Shanti. Madhuban.

Brahma Kumaris

आज की शिव बाबा की साकार मुरली, बापदादा, मधुबन।  Brahma Kumaris (BK) Murli for today in Hindi. SourceOfficial Murli blog to read and listen daily murlis. पढ़े: मुरली का महत्त्व

“मीठे बच्चे - अविनाशी ज्ञान-रत्न तुम्हें राव (राजा) बनाते हैं, यह बेहद का स्कूल है, तुम्हें पढ़ना और पढ़ाना है, ज्ञान-रत्नों से झोली भरनी है''

प्रश्नः-

कौन-से बच्चे सभी को प्यारे लगते हैं? ऊंच पद के लिये किस पुरूषार्थ की जरूरत है?

उत्तर:-

जो बच्चे अपनी झोली भरकर बहुतों को दान करते हैं वह सभी को प्यारे लगते हैं। ऊंच पद के लिये बहुतों की आशीर्वाद चाहिये। इसमें धन की बात नहीं लेकिन ज्ञान धन से अनेकों का कल्याण करते रहो। खुशमिज़ाज़ और योगी बच्चे ही बाप का नाम निकालते हैं।

♫ मुरली सुने (audio)➤

ओम् शान्ति। रूहानी बाप बैठ रूहानी बच्चों को समझाते हैं। बच्चे जानते हैं हमको अब वापिस जाना है, आगे बिल्कुल नहीं जानते थे। बाप बच्चों को समझाते हैं, इनका समझाना भी ड्रामानुसार अब राइट देखने में आता है। और कोई समझा न सके। अब हमको वापिस जाना है। अपवित्र कोई वापिस जा न सके। यह ज्ञान भी इस समय ही मिलता है और एक बाप ही देते हैं। पहले तो यह याद करना है कि हमको वापिस जाना है। बाबा को बुलाते हैं मालूम कुछ भी नहीं था। अचानक जब समय आया तो बाबा आ गया। अब नई-नई बातें समझाते रहते हैं। बच्चे जानते हैं अब हमको वापिस जाना है, इसलिये अब पतित से पावन होना है। नहीं तो सजा खानी पड़ेगी और पद भी भ्रष्ट हो जायेगा। इतना फ़र्क है जैसे यहाँ राव और रंक, वैसे वहाँ राव और रंक बनते हैं। सारा मदार पुरूषार्थ पर है। अब बाप कहते हैं तुम खुद ही पतित थे तब तो पुकारते हैं। यह भी अब तुमको समझाते हैं। अज्ञानकाल में यह बुद्धि में नहीं रहता। बाप कहते हैं आत्मा जो तमोप्रधान बनी है उसको सतोप्रधान बनना है। अब सतोप्रधान कैसे बने – यह भी सीढ़ी पर समझाया है। इनके साथ दैवी गुण भी धारण करने हैं। यह है बेहद का स्कूल। स्कूल में रजिस्टर रखते हैं गुड, बैटर, बेस्ट का। जो सर्विसएबुल बच्चे हैं वह बहुत मीठे हैं। उनका रजिस्टर अच्छा है। अगर रजिस्टर अच्छा नहीं है तो वह उछलते नहीं हैं। सारा मदार है पढ़ाई, योग और दैवी गुणों पर। बच्चे जानते हैं बेहद का बाप हमको पढ़ाते हैं। पहले हम शूद्र वर्ण के थे, अब ब्राह्मण वर्ण के हैं। प्रजापिता ब्रह्मा के बच्चे हम ब्राह्मण हैं, यह तो बहुतों को भूल जाता है। जबकि तुम बाप को याद करते हो तो ब्रह्मा को भी याद करना पड़े। हम ब्राह्मण कुल के हैं – यह भी नशा चढ़े। भूल जाते तो यह नशा नहीं चढ़ता है कि हम ब्राह्मण कुल के हैं फिर देवता कुल के बनेंगे। ब्राह्मण कुल किसने बनाया? ब्रह्मा द्वारा मैं तुमको ब्राह्मण कुल में ले आता हूँ। ब्राह्मणों की यह डिनायस्टी नहीं है। छोटा-सा कुल है। अपने को अब ब्राह्मण समझेंगे तो देवता भी बनेंगे। अपने धन्धे में लग जाने से सब-कुछ भूल जाते हैं। ब्राह्मणपन भी भूल जाता है। धन्धे से फ़ारिग हुए फिर पुरूषार्थ करना चाहिये। कोई-कोई को धन्धे में जास्ती ध्यान देना पड़ता है। काम पूरा हुआ फिर अपनी बात। याद में बैठ जाओ। तुम्हारे पास बैज बहुत अच्छा है, इसमें लक्ष्मी-नारायण का चित्र भी है, त्रिमूर्ति भी है। बाबा हमें ऐसा बनाते हैं! बस, यही मन्मनाभव है। कोई को आदत पड़ जाती है, कोई को नहीं पड़ती है। भक्ति तो अब पूरी हुई। अब बाप को याद करना है। अब बेहद का बाप तुमको बेहद का वर्सा देते हैं, तो खुशी होती है। किसको अच्छी लगन लग जाती है, किसको बहुत कम। है बहुत सहज।

गीता के आदि और अन्त में अक्षर है मन्मनाभव। यह वो ही गीता एपीसोड है। सिर्फ श्रीकृष्ण का नाम डाल दिया है। भक्ति मार्ग में जो भी दृष्टान्त आदि हैं वह सब इस समय के हैं। भक्ति मार्ग में कोई ऐसे नहीं कहेंगे कि देह का भान भी छोड़ो, अपने को आत्मा समझो। यहाँ तुमको यह शिक्षा बाप आते ही देते हैं। यह निश्चय है – देवी-देवता धर्म की स्थापना हमारे द्वारा हो रही है। राजधानी भी स्थापन हो रही है, इसमें लड़ाई आदि की बात नहीं है। बाप अब तुम्हें पवित्रता सिखाते हैं, वह भी आधाकल्प कायम रहेगी। वहाँ रावण राज्य ही नहीं। विकारों पर तुम अब जीत पा रहे हो। यह तुम जानते हो कि हमने हूबहू कल्प पहले जैसे राजधानी स्थापन की थी, वैसे अब कर रहे हैं। हमारे लिये यह पुरानी दुनिया खत्म होने वाली है। ड्रामा का चक्र फिरता रहता है। वहाँ सोना ही सोना होगा। जो था वह फिर होगा, इसमें मूँझने की बात नहीं है। माया मच्छन्दर का खेल दिखाते हैं। ध्यान में सोने की ईटें देखा। तुम भी बैकुण्ठ में सोने के महल देखते हो। वहाँ की चीज़ें तुम यहाँ नहीं ला सकते हो। यह है साक्षात्कार। भक्ति में तुम इन बातों को नहीं जानते थे। अब बाप कहते हैं – मैं आया हूँ तुमको ले जाने के लिये। तुम्हारे बिगर बेआरामी होती है। जब समय आता है तो हमको बेआरामी हो जाती है – बस जाऊं, बच्चे बहुत दु:खी हैं, पुकारते हैं। तरस पड़ता है – बस, जाऊं। ड्रामा में जब समय होता है तब ख्याल होता है – बस जाऊं। नाटक दिखाते हैं विष्णु अवतरण। लेकिन विष्णु अवतरण तो होता ही नहीं। दिन-प्रतिदिन मनुष्यों की बुद्धि खत्म होती जाती है। कुछ समझ में नहीं आता। आत्मा पतित बन पड़ी है। अब बाप कहते हैं – बच्चे, पावन बनो तो राम राज्य हो। राम को जानते नहीं। शिव की पूजा जो की जाती है उनको राम नहीं कहेंगे। शिवबाबा कहना शोभता है। भक्ति में कोई रस नहीं। तुमको अब रस आता है। बाप खुद कहते हैं – मीठे बच्चे, मैं तुमको ले जाने आया हूँ। फिर तुम्हारी आत्मा वहाँ से आपेही सुखधाम चली जायेगी। वहाँ तुम्हारा साथी नहीं बनूँगा। अपनी अवस्था अनुसार तुम्हारी आत्मा जाकर दूसरे शरीर में, गर्भ में प्रवेश करेगी। दिखाते हैं सागर में पीपल के पत्ते पर श्रीकृष्ण आया। सागर की तो बात ही नहीं। गर्भ में बड़े आराम से रहते हैं। बाबा कहते – मैं गर्भ में नहीं जाता हूँ। मैं तो प्रवेश करता हूँ। मैं बच्चा नहीं बनता। मेरे बदले श्रीकृष्ण को बच्चा समझ दिल बहलाते हैं। समझते हैं श्रीकृष्ण ने ज्ञान दिया इसलिये उनको बहुत प्यार करते हैं। मैं सभी को साथ ले जाता हूँ। फिर तुमको भेज देता हूँ। फिर मेरा पार्ट पूरा। आधा कल्प कोई पार्ट नहीं। फिर भक्ति मार्ग में पार्ट शुरू होता है। यह भी ड्रामा बना हुआ है।

अब बच्चों को ज्ञान समझना और समझाना तो सहज है। दूसरे को सुनायेंगे तो खुशी होगी और पद भी ऊंच पायेंगे। यहाँ बैठ सुनते तो अच्छा लगता है। बाहर जाने से भूल जाते हैं। जैसे जेल बर्ड होते हैं। कोई न कोई शरारत (हरकत) करके जेल में जाते ही रहते हैं। तुम्हारा भी ऐसा हाल होता है। गर्भ में अन्जाम करके फिर वहाँ की वहाँ रही। यह सब बातें बनाई हैं तो मनुष्य कुछ पाप कर्म न करें। आत्मा संस्कार अपने साथ ले जाती है। तो कोई छोटेपन से पण्डित बन जाते हैं। लोग समझते हैं आत्मा निर्लेप है। परन्तु आत्मा निर्लेप नहीं। अच्छे वा बुरे संस्कार आत्मा ही ले जाती है तब ही कर्मों का भोग होता है। अभी तुम पवित्र संस्कार ले जाते हो। तुम पढ़कर फिर पद पाते हो। बाबा तो सारी आत्माओं के झुण्ड को वापस ले जाते हैं। बाकी थोड़े रहते हैं। वह पिछाड़ी में आते रहते हैं। रहते भी वही हैं जिनको पिछाड़ी में आना है। माला है ना। नम्बरवार बनते जाते हैं। बाकी जो बनेंगे वह स्वर्ग में भी पिछाड़ी में आयेंगे। बाबा कितना अच्छा समझाते हैं, कोई को धारणा होती है, कोई को नहीं। अवस्था ऐसी है तो पद भी ऐसा ही मिल जाता है। तुम बच्चों को रहमदिल, कल्याणकारी बनना है। ड्रामा ही ऐसा बना हुआ है। दोष किसको नहीं दे सकते। कल्प पहले जितनी पढ़ाई की होगी उतनी ही होगी। जास्ती होगी नहीं, कितना भी पुरूषार्थ करावें, कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा। फ़र्क तब पड़े जब किसको सुनायें। नम्बरवार तो हैं ही। कहाँ राव, कहाँ रंक! यह अविनाशी ज्ञान-रत्न राव (राजा) बनाते हैं। अगर पुरूषार्थ नहीं करते तो रंक बन जाते हैं। यह बेहद का स्कूल है। इसमें फर्स्ट, सेकेण्ड, थर्ड हैं। भक्ति में पढ़ाई की बात नहीं। वहाँ है उतरने की बात। शोभनिक बहुत हैं। झांझ बजाते, स्तुति करते, यहाँ तो शान्त में रहना है। भजन आदि कुछ नहीं। तुमने आधा कल्प भक्ति की है। भक्ति का कितना शो है। सबका अपना-अपना पार्ट है। कोई गिरता, कोई चढ़ता, कोई की तकदीर अच्छी, कोई की कम। तदबीर तो बाबा एकरस कराते हैं। पढ़ाई भी एकरस है तो टीचर भी एक है। बाकी सब हैं मास्टर्स। कोई बड़ा आदमी कहे – फुर्सत नहीं, बोलो – घर में आकर पढ़ायें? क्योंकि उन्हों को तो अपना अहंकार रहता है। एक को हाथ करने से औरों पर भी असर पड़ता है। अगर वह भी किसको कहें कि यह ज्ञान अच्छा है, तो कहेंगे इन्हें भी ब्रह्माकुमारियों का संग लग गया, इसलिये सिर्फ अच्छा कह देते हैं। बच्चों में योग की पॉवर अच्छी चाहिये। ज्ञान तलवार में योग का जौहर चाहिये। खुशमिज़ाज़ और योगी होगा तो नाम निकालेंगे। नम्बरवार तो हैं। राजधानी बननी है। बाप कहते हैं धारणा तो बहुत सहज है। बाबा को जितना याद करेंगे उतना लव रहेगा। कशिश होगी। सुई साफ है तो चुम्बक तरफ खींचती है। कट होगी तो खींचेगी नहीं। यह भी ऐसे है। तुम साफ हो जाते हो तो पहले नम्बर में चले जाते हो। बाप की याद से कट निकलेगी।

गायन है – बलिहारी गुरू आपकी….. इसलिये कहते हैं गुरू ब्रह्मा, गुरू विष्णु.. वह सगाई कराने वाले गुरू मनुष्य हैं। तुमने सगाई शिव के साथ की है, न कि ब्रह्मा से। तो याद भी शिव को ही करना है। दलाल के चित्र की जरूरत नहीं। सगाई पक्की हो गई फिर एक-दो को याद करते रहते हैं तो इनको भी दलाली मिल जाती है। सगाई का भी मिलता है ना। दूसरा फिर इनमें प्रवेश करते हैं, लोन लेते हैं तो यह भी कशिश करते हैं। तब बच्चों को भी समझाते हैं कि जितना तुम बहुतों का कल्याण करेंगे उतना तुमको उजूरा मिलेगा। यह हैं ज्ञान की बातें। दूसरों को ज्ञान देते रहो तो आशीर्वाद मिल जाती है। पैसे की दरकार नहीं। मम्मा के पास भल धन नहीं था, परन्तु बहुतों का कल्याण किया। ड्रामा में हरेक का पार्ट है। कोई धनवान धन देते हैं, म्यूजियम बनाते हैं तो बहुतों की आशीर्वाद मिल जाती है। अच्छा साहूकार का पद मिल जाता है। साहूकार के पास दास-दासियां बहुत होती हैं। प्रजा में साहूकारों के पास बहुत धन होता है फिर उनसे लोन लेते हैं। साहूकार बनना भी अच्छा है। वह भी गरीब ही साहूकार बनते हैं। बाकी साहूकारों में हिम्मत कहाँ! इस ब्रह्मा ने फट से सब कुछ दे दिया। कहते हैं हाथ जिनका ऐसे… (देने वाला) बाबा ने प्रवेश किया तो सब-कुछ छुड़ा दिया। कराची में तुम कैसे रहे हुए थे। बड़े-बड़े मकान, मोटरें, बस आदि सब कुछ था। अब बाप कहते हैं – आत्म-अभिमानी बनो। कितना नशा चढ़ना चाहिये-भगवान् हमको पढ़ाते हैं! बाप तुमको अथाह खजाने देते हैं। तुम धारणा नहीं करते हो। लेने का दम नहीं। श्रीमत पर नहीं चलते हो। बाप कहते हैं बच्चे अपनी झोली भर लो। वह लोग शंकर के आगे जाकर कहते हैं – झोली भर दो। बाबा यहाँ बहुतों की झोली भरते हैं। बाहर जाने से खाली हो जाती है। बाप कहते हैं तुमको बहुत भारी खजाना देता हूँ। ज्ञान-रत्नों से झोली भर-भरकर देता हूँ। फिर भी नम्बरवार हैं जो अपनी झोली भरते हैं। वह फिर दान भी करते हैं, सबको प्यारे भी लगते हैं। होगा नहीं तो देंगे क्या?

तुम्हें 84 के चक्र को अच्छी तरह समझना और समझाना है। बाकी मेहनत है योग की। अब तुम युद्ध के मैदान पर हो। माया पर जीत पाने के लिये लड़ते हो। नापास हुए तो चन्द्रवंशी में चले जायेंगे। यह समझ की बात है। बच्चों को बहुत खुशी होनी चाहिये – बाबा, आप कितना वर्सा देते हो। उठते-बैठते सारा दिन यह बुद्धि में रहे तब धारणा हो सके। योग है मुख्य। योग से ही तुम विश्व को पवित्र बनाते हो। नॉलेज अनुसार तुम राज्य करते हो। यह पैसे आदि तो मिट्टी में मिल जाने वाले हैं। बाकी यह अविनाशी कमाई तो सब साथ चलेगी। जो सेन्सीबुल होंगे वह कहेंगे हम बाबा से पूरा ही वर्सा लेंगे। तकदीर में नहीं तो पाई पैसे का पद पायेंगे। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार :

1) अपनी पढ़ाई और दैवी गुणों का रजिस्टर ठीक रखना है। बहुत-बहुत मीठा बनना है। हम ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण हैं – इस नशे में रहना है।

2) सर्व का प्यार वा आशीर्वाद प्राप्त करने के लिये ज्ञान-रत्नों से अपनी झोली भरकर दान करना है। बहुतों के कल्याण के निमित्त बनना है।

वरदान:-

सारे दिन के हर कर्म में कभी भगवान के सखा वा सखी रूप को, कभी जीवन साथी रूप को, कभी मुरब्बी बच्चे के रूप को, जब कभी दिलशिकस्त होते हो तो सर्वशक्तिवान स्वरूप से मा. सर्वशक्तिवान के स्मृति स्वरूप को इमर्ज करो तो दिलखुश हो जायेंगे और बाप के साथ का स्वत: अनुभव करेंगे फिर यह ब्राह्मण जीवन सदा अमूल्य, श्रेष्ठ भाग्यवान अनुभव होती रहेगी।

स्लोगन:-

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1 thought on “01 Mar 2024 HINDI Murli Today | Brahma Kumaris”

  1. मुस्कान

    अब हमको पतित से पावन बनकर परमपिता शिव परमात्मा के पास वापस परम शांति मुक्ति-धाम शिवालय वापस जाना है

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